Thursday 9 January 2014

‘आप’ की बढ़ती लोकप्रियता!

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ताजा सर्वे के अनुसार देश के बड़े महानगरों में ४४% लोग आम आदमी पार्टी को वोट देंगे. ५८% लोग नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहते हैं पर २५% लोग अरविन्द केजरीवाल को प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहते हैं राहुल गांधी १४% के साथ तीसरे नंबर पर हैं. यह अभी का और सिर्फ महानगरों का सर्वे है. आगे और भी सर्वे आएंगे. जिनमे सम्भावना है कि ‘आप’ का ग्राफ बढ़ने वाला है.
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी, जो कि आगामी चुनाव में देश की सत्ता प्राप्त करने का सपना संजोये हुए है, का चिंतित होना लाजिमी है. और अब तो आर. एस. एस. प्रमुख मोहन भागवत ने भी कह दिया – भाजपा के लिए ‘आप’ बड़ी चुनौती है.
महज चार सीटों के अंतर से दिल्ली राज्य के सिंहासन से वचित होना दुर्भाग्य और चिंता की बात तो है ही.कांग्रेस अपनी हार से कुछ भी सबक नहीं लेना चाहती है, वह गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा बिल लाकर, हड़बड़ी में लोकपाल बिल पास कराकर और साम्प्रदायिकता का भय दिखाकर तीसरी बार सत्ता में आने का सपना संजोये हुए है या जैसे तैसे तिकड़म भिड़ाकर मोदी या भाजपा को सत्ता से दूर रखना चाहती है.इसमे क्षेत्रीय पार्टियां और भाजपा विरोधी पार्टियां कुछ मददगार साबित हो सकती है.पर दिल्ली के सबसे करीब और सबसे ज्यादा लोकसभा सीट देनेवाली उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी कुछ भी सबक लेना नहीं चाहती. मुजफ्फरनगर के दंगे में चाहे जिसका भी हाथ हो उनका पुनर्वास न करा पाना और इस भयानक ठंढ में दंगापीड़ित शिविरों में बदइंतजामी से बेफिक्र सैफई में और विदेश में आम आदमी के टैक्स के पैसों से जश्न मनाना ही उनके लिए प्राथमिकता में है. (ऐसा मौका फिर शायद न मिले!).
मायावती ने प्रस्तर की हाथियों के द्वारा अम्बेदकर पार्क के नाम पर करोड़ो रुपये खर्च किये गए, स्व्यं सोने- चांदी की मुकुट पहनने वाली बहन जी मायावती के सर से ताज अभी हाल ही में उतरा और गत विधान सभा के चुनावों में बैकफुट पर चले जाना,यह दर्शाता है कि जनता अब झूठे वादों के झांसे में नहीं आने वाली.
मोदी जी भी गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं, इससे जनता के रोजमर्रा की समस्या कैसे हल हो सकती है.
उधर दिल्ली में अल्पमत की सरकार होकर भी अपने वादे को पूरे करने में तत्काल सक्रियता, अरविंद केजरीवाल के प्रति आम आदमी का सकारात्मक रुख को खींचता है.
प्रशांत भूषण के बयान से आम आदमी पार्टी के दफ्तर पर हिन्दू नाम धारी पार्टियों(संगठनों) का तोड़फोड़ उनकी हताशा को ही दर्शाता है. किसी विचारधारा का विरोध किया जा सकता है पर विरोधस्वरूप तोड़फोड़ से नुकसान किसका होनेवाला है? सलमान रश्दी, तस्लीमा नसरीन और मलाला पर फतवा और हमले का अंजाम भी कट्टड़वादी संगठन देख चुके हैं. फिर ‘आप’ पर इस तरह हमला क्यों? आपको(तोड़ फोड़ करने वाले को) अन्य लोग, मीडिया वाले जाने इसके अलावा और क्या फायदा ‘इनलोगों’ को होनेवाला है? इसके पहले भी वेलेंटाइन डे पर, इन तथाकथित हिंदूवादी संगठन का हिंसात्मक विरोध जग जाहिर है. यही संगठन आसाराम …. आदि पर चुप रहते हैं.
विरोध करने का तरीका दूसरा भी हो सकता है.
फेकबुक पर भी आजकल भाजपा समर्थक कांग्रेस को छोड़ ‘आप’ के पीछे लगे हैं. ये सभी मिलकर ‘आप’ को फायदा ही पहुंचा रहे हैं, ऐसा मेरा मानना है. हरेक को किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन को समर्थन या विरोध करने का पूरा अधिकार है, पर उसके लिए भद्दा तरीका अपनाना, मेरे ख्याल से बिलकुल गलत है.
जब अमर्त्य सेन ने मोदी का विरोध किया था, तो यही लोग उनकी बेटी की अर्धनग्न तस्वीर फेकबुक पर डाल कर अपना गुस्सा निकल रहे थे. इस बार भी ‘आप’ की मंत्री राखी बिडलान की तुलना राखी सावंत से कर अपने दिमागी दिवालियापन का ही परिचय दे रहे हैं.
‘आप’ की लोकप्रियता और विचारधारा से प्रभावित होकर प्रगतिशील बुद्धिजीवी वर्ग ‘आप’ में शामिल होने के लिए खिंचे चले आ रहे हैं, बहुत सारी पार्टियां और नेता ‘आप’ की विचारधारा से प्रभावित होकर अपनी सोच में भी बदलाव लाने की पहल कर रहे हैं.
माना कि और भी कई मुख्यमंत्री सादगी का आचरण करते रहे हैं ..फिर उनका आचरण का उदाहरण दूसरे लोग अपने आचरण में परिवर्तन कर क्यों नहीं देते?
अरविन्द केजरीवाल की शैली सब से अलग है. आज भी उनकी विनम्रता देखी जा सकती है, जब उन्होंने मीडिया को सम्बोधन के समय कहा- “आपलोग हमें ऐसे ही डाँटते रहें, ताकि हम अपने आप में निरंतर सुधार करते रहें. ‘आप’ से सबक सभी क्षेत्रीय दलों को भी लेना है, भाजपा को सबसे अधिक सीख लेनी है, अगर सत्ता पर काबिज होना है तो … मोदी जी के लिए आलीशान मंच, कभी नकली लाल किला, तो कभी नकली संसद भवन बनाकर वे क्या सन्देश देना चाहते हैं ? मोदी भी उन सभाओं में जाकर अपनी चाय बेचने वाली छवि तो कभी अपनी माता द्वारा बर्तन मांजने की कथा सुनाकर भ्रमित करने की कोशिश करते हैं. उस महंगे प्रचार से बेहतर होता कि उन पैसों से किसी गरीब का भला करते. आम आदमी के सचमुच का आंसू पोंछते.
आम आदमी को गुजरात के वैभव से क्या लेना देना, जिस राज्यों में आपकी सरकारें हैं, वहाँ आप अच्छा कीजिये आप को जनता अवश्य चुनेगी जैसा कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आपको सफलता मिली है.
कर्णाटक, चेन्नई, और आंध्र में भी विकास के कार्य हुए हैं और हो रहे हैं, तभी वहाँ की सरकारें स्थिर रहती हैं.ममता बनर्जी सादगी में भी रह्कर बंगाल का कुछ विशेष भला नहीं कर पायी हैं.कानून ब्यवस्था किसी भी राज्य के लिए चुनौती का कार्य होता है. यह भी राज्य सरकार का मामला है. उनमे आमूल-चूल परिवर्तन आना ही चाहिए. केवल सरकार भरोसे नहीं, जनता और सामाजिक संगठनों को भी जागरूक होना होगा.
‘आप’ को भी ब्यर्थ की बयानबाजी से बचकर काम करने की जरूरत है. कुछ महीने बचे हैं. आज मीडिया, दूसरे संचार के माध्यम, सोसल साइट्स भी महत्व्पूर्ण भूमिका निभा रहे हैं…. परिवर्तन तो आनी है … आयेगी …सभी राजनीतिक पार्टियां चिंतित जरूर हैं …अगर परिवर्तन आता है, जनता के हित में फैसला होता है, तो यह सबके लिए खुशी की बात होगी. भ्रष्टाचार, पूंजीवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद …आदि अगर दूर होते है,… देश के हित की बात, देशवासियों के हित की बात होती है, तो इससे भारत का नाम अवश्य ही एक बार फिर विश्व पटल पर उभरेगा. सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:!
-जवाहर लाल सिंह

2 comments:

  1. आप की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. नए नए लोग इससे जुड़ रहे हैं.

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