Sunday 24 February 2019

किसान सम्मान निधि योजना का शुभारम्भ और प्रयागराज के महाकुम्भ में डुबकी


प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को गोरखपुर की खाद फैक्ट्री से पूर्वांचल के किसानों को भी खाद-पानीदेने का काम किया. तो यहीं से पूरे देश के किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत किया. इस योजना में वह एक साथ देश के 12 करोड़ किसानों के खाते में सीधा 2000 रुपये भेजने की योजना का शुभारम्भ किया. यूपी में छोटी जोत के करीब 50 फीसदी किसानों वाले पूर्वांचल में वह किसानों से सीधा संवाद भी किया साथ ही देश के विभिन्न भागों के किसानों से भी तकनीक के जरिये सीधा बात किया. बीजेपी की योजना है कि लोकसभा चुनाव से पहले वह किसानों के घर-घर तक जाकर बता सके कि वह किसानों के लिए कितना फिक्रमंद है. साथ ही आज 10,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास और अनावरण किया गया है, जिनमे किसानों के साथ पूर्वांचल के लोगों के कल्याण की भावना जुड़ी हुई है.
पूर्वांचल, जिसकी जिम्मेवारी कांग्रेस की नवनियुक्त महासचिव प्रियंका गाँधी को दी गयी है .... वहां पर विभिन्न परियोजनाओं का शुरुआत कर के अपना मास्टर स्ट्रोक कार्ड खेल लिया है. निस्संदेह इसका लाभ आगामी चुनाव में मोदी जी को मिलनेवाला है. जुलाई, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही दोबारा खोलने के लिए इस खाद फैक्ट्री की नींव रखी थी. यह खाद फैक्ट्री 1990-91 में बंद हो गई थी. इस फैक्ट्री के बंद होने से किसानों को तो नुकसान हुआ ही, फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर बेरोजगार हो गए थे. इसके बाद से यह फैक्ट्री पूर्वांचल की सियासत के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गई थी. मोदी ने इसका शिलान्यास कर किसानों और युवाओं में एक आश जगा दी थी. अब ढाई साल बाद मोदी फिर से उसी उम्मीद को और आगे बढ़ा रहे हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि यह खाद फैक्ट्री 2020 तक शुरू हो जाएगी. इसके बाद यहां से खाद का उत्पादन शुरू हो जाएगा. फैक्ट्री शुरू होने से युवाओं को रोजगार मिलने के साथ खाद उत्पादन के जरिए किसानों को भी सीधा फायदा होगा. दरअसल, गोरखपुर और आसपास के किसान छोटी जोत के हैं. अभी तक वह धान और गेंहू की फसल पर ज्यादा केंद्रित हैं. उपजाऊ जमीन और पानी की उपलब्धता के बावजूद उन्हें फसल का ज्यादा फायदा नहीं मिल पाता है. केंद्र सरकार ने कृषि दूरदर्शन के साथ ऑनलाइन और टेलीफोन से सहायता शुरू की है, जिसके जरिए वह मौसम और मिट्टी के अनुसार फसलों में बदलाव कर सकते हैं. 
पिछली बार पांच राज्यों के चुनाव के समय विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने किसानो के कर्ज माफी की घोषणा की, उसका तत्काल लाभ चुनाव परिणाम के रूप में मिला और क्रमश: छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में वापस लौटी. तब से ही भाजपा नेतृत्व या कहें कि प्रधान मंत्री श्री मोदी किसानों के लिए तत्काल कुछ करने की योजना बना रहे थे और उसका ऐलान बजट घोषणा में ही कर दिया था. छोटे और मंझोले किसानों को हर साल ६००० आर्थिक सहायता देने की घोषणा कर दी जिसे दिसंबर से ही लागू भी कर दिया गया है. ६००० रुपये तीन किश्तों में किसानों को उनके खाते में दे दी जायेगी. इसकी पहली किश्त यानी दो हजार रुपये देने की शुरुआत २४ फरवरी से ही हो गयी है. करीब १२ लाख किसानों को इसके लाभ मिलने हैं और सबकी सूची युद्धस्तर पर तैयार की जा रही है. अभी जो सूची तैयार की गयी है, उनमे काफी खामियां भी है, उसे फिर से दुरुस्त करने की कोशिश भी की जा रही है. फिर भी कम से कम एक करोड़ एक लाख किसानों को यह राशि मिलने जा रही है. आचार संहिता लागू होने से पहले अगर ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसका लाभ मिल जाता है, तो किसानों को तो फायदा होगा ही, भाजपा सरकार को भी तत्काल फायदा होनेवाला है, जिसका आत्म विश्वास प्रधान मंत्री ने अपने ‘मन की बात’ में कर दी है कि अगला ‘मन की बात’ वे मई की आखिरी रविवार को करेंगे जब वे देश के फिर से प्रधान मंत्री चुन लिए जायेंगे.
पुलवामा हमले के बाद देश एक जुट हुआ है और वह इसका बदला चाहता है. सरकार और सेना भी अपने अपने तरीके से जवाब दे रही है. जहाँ आतंकी हमले के मास्टर माइंड अब्दुल रशीद गाजी को १०० घंटे के अन्दर मार गिराया जाता है. साथ ही पाकिस्तान के साथ व्यापारिक समझौते पर भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं. अब पाकिस्तान को सिन्धु जल समझौते पर भी पुनर्विचार कर पानी रोकने की भी कार्रवाई कर सकती है. जबकि यह भी कहा जा रहा है, इसकी योजना पहले से तैयार थी. इस हमले के बाद भारत को कूटनीतिक स्तर पर भी अन्तराष्ट्रीय समुदाय सहित अमेरिका का भी समर्थन प्राप्त हुआ है. पाकिस्तान अलग-थलग जरूर हुआ है, पर उसे मदद करनेवाले भी कई देश हैं. आतंकवादियों पर लगाम और उनका पूर्णत: खात्मा जरूरी है.
सबसे बड़ी बात – प्रयागराज के संगम में डुबकी के बाद प्रधान मंत्री ने पूजा अर्चना की और स्वच्छाग्राहियों/सफाई-कर्मचारियों को खुद पैर धोकर, उसके पैरों को पोंछकर और उन्हें साल ओढ़ाकर सम्मानित किया. ऐसा बहुत कम होता है, जब किसी देश के प्रधान मंत्री ने सफाई कर्मियों को इस प्रकार से सम्मानित किया हो ... निश्चित ही यह उन सभी सफाई कर्मियों के लिए गर्व की बात है. इस साल का अर्ध कुम्भ का आयोजन पिछले सालों के आयोजनों से अलग था. सफाई व्यवस्था के अलावा सुरक्षा व्यवस्था भी चुश्त-दुरुश्त थी, ऐसा सभी कह रहे हैं. विदेशों से भी काफी मेहमान आये और कुम्भ के व्यवस्था की सराहना की है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार(२४ फरवरी) को प्रयागराज पहुंचे और यहां आयोजित कुम्भ मेले में शामिल होते हुए उन्होंने त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाई. गंगा स्नान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूजा-अर्चना भी की. इसके बाद पीएम ने पांच स्वच्छाग्रहियों (तीन पुरुष, दो महिलाओं) यानी सफाईकर्मियों के पैर धोक, उनका आशीर्वाद लिया. सफाई कर्मचारियों के पैर धोकर पीएम मोदी ने उनके पैर पोछे और उन्हें एक शॉल भी भेंट की. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे उनका हालचाल भी जाना और कुंभ में स्वच्छता की व्यवस्था को देखते हुए उन्हें धन्यवाद दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में स्वच्छता के मिशन को लगातार आगे ले जाने की कवायद में जुटे रहे हैं. उन्होंने महात्मा गांधी के जन्मदिन के मौके पर 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी. इस मिशन का शुभारंभ उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि राजघाट से किया था. यह अभियान दो भागों में बंटा हुआ है, स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) का जिम्मा पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का है और स्वच्छ भारत अभियान (शहरी) की जिम्मेदारी शहरी एवं विकास मंत्रालय के पास है. 
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, 'कुंभ के कर्मयोगियों में साफ सफाई कर रहे स्वच्छाग्रही भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों से कुंभ के विशाल क्षेत्र में हो रही साफ सफाई को दुनिया में चर्चा का विषय बना दिया है, हर व्यक्ति के जीवन में अनेक ऐसे पल आते हैं, जो अविस्मरणीय होते हैं. आज ऐसा ही एक पल मेरे जीवन में आया है, जिन स्वच्छाग्रहियों के पैर मैंने धोए हैं, वह पल जीवनभर मेरे साथ रहेगा.' बता दें कि इन कर्मचारियों की स्वच्छ कुंभ में अहम भूमिका रही है. प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, कुम्भ २०१९  मेले में अभी तक 20 करोड़ 54 लाख लोग स्नान कर चुके हैं.    
एक दबी हुई आवाज, लेकिन सफाई कर्मियों की तरफ से जरूर उठी कि हमलोगों को स्थायी किया जाय. हम यही काम आगे भी करते रहेंगे. अब यह तो आगे का वक्त बताएगा कि इन्हें स्थायी किया जायेगा या नहीं क्योंकि सफाई कर्मी हर जगह अस्थायी रूप से निविदा पर ही काम करते हैं. जबकि वे हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं.
-       --जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday 17 February 2019

तत्काल कठोर कदम उठाने होंगे


मन बड़ा उद्विग्न है! व्यथित है! व्याकुल है! बेचैन है ! जब १४ फरवरी, अंतर्राष्ट्रीय प्रेम के इजहार दिवस के दिन हमारी सीआरपीएफ की टीम पर बर्बर और कायरतापूर्ण हमला किया गया, जिसमे हमारे ४० से ज्यादा जवान शहीद हुए! ...या कहें बिना मौत मारे गए. इस तरह का कातिलाना और वहशियाना हमला कोई वहशी और शातिर दिमाग का व्यक्ति ही कर सकता है. हमलावर शातिर युवकों को इस तरह की घटना को अंजाम देने के लिए, जिसमे उसके भी चीथरों तक का भी पता न चले ... उसको मानसिक रूप से तैयार करनेवाला व्यक्ति कितना बड़ा वहशी रहा होगा, यह हमारे जैसे लोगों के अनुमान से परे है. भारत या दूसरे शांतिप्रिय देशों के लिए इस तरह का आतंकवाद एक नासूर की तरह हो गया है, जिसका तत्काल खात्मा जरूरी है. अमेरिका जैसा सशक्त देश ऐसे आतंकवादियों से निपट चुका है और उसे सही अंजाम तक पहुंचा चुका है. ओसामा बिन लादेन को उसी के घर में घुसकर, उसने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की तबाही के असली गुनहगार को समाप्त कर दिया. साथ ही उसने अपनी सुरक्षा व्यवस्था भी चुश्त-दुरुश्त कर ली.
समय की मांग है कि हम भी वैसा ही कुछ करें ताकि आतंकवादियों के आकाओं का खात्मा हो, उन्हें पनाह देनेवाले, उन्हें सूचनाएं पहुँचानेवाले लोगों की भी पहचान कर समाप्त करना अत्यंत ही जरूरी है.
यूं छोटे-मोटे हमले और सीमाओं पर आतंकी गतिविधियाँ तो लगातार होती ही रहती हैं. फिर भी पिछले चार-पांच सालों में भी जो बड़े हमले हुए हैं उनमे पठानकोट, उरी और यह पुलवामा शामिल है. हम यह नहीं कहते कि सरकार ने आवश्यक कदम नही उठाए, बल्कि यही कहेंगे कि अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. हमारी सेना की सुरक्षा, हमारे नागरिकों की सुरक्षा, हमारे जान-माल की सुरक्षा की जिम्मेवारी हमारी सरकार की है और उसे हर हाल में करना ही चाहिए क्योंकि वह हमारी ही चुनी हुई सरकार है.
पुलवामा हमले के बाद जो जरूरी कदम उठाए गए हैं उनमे प्रमुख है – भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लिया. इसके आर्थिक नफा-नुकसान की गणना बाद में होती रहेगी. पर पाकिस्तान को भी जरूरी चीजों की कमी होगी जिसकी क्षतिपूर्ति वह चीन या दूसरे देशों से कर लेगा. पर यह पाकिस्तान को एक सन्देश देने की कोशिश की गयी है.
उसके बाद जो दूसरा कदम उठाया गया है वह है- जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए कश्मीरी अलगाववादियों को मिली सुरक्षा छीन लेने का फैसला किया है. इन अलगाववादी नेताओं में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता मीरवाइज़ उमर फारूक, अब्दुल ग़नी बट्ट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी, शब्बीर शाह शामिल हैं. सरकार की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक, इन अलगाववादियों को मुहैया कराई गई सुरक्षा और दूसरे वाहन वापस ले लिए जाएंगे. इसमें कहा गया है, किसी भी अलगाववादी को सुरक्षाबल अब किसी सूरत में सुरक्षा मुहैया नहीं कराएंगे. अगर उन्हें सरकार की तरफ से कोई अन्य सुविधा दी गई है, तो वह भी तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएगी. इसके साथ ही अब पुलिस मुख्यालय किसी अन्य अलगाववादियों को मिली सुरक्षा व अन्य व्यवस्थाओं की समीक्षा करेगा और उसे भी तत्काल वापस ले लिया जाएगा.
इसी के साथ पोखरण में वायु सेना का युद्धाभ्यास को लाइव दिखाया गया. कई चैनेल उसे बार-बार दिखाते रहे. इससे हमे तो हमारी सेना के पराक्रम का पता चलता है, पर यही सब जानकारियां पाकिस्तान और चीन को भी तो पहुँच रही है जिसका वे नाजायज फायदा उठा सकते हैं. हमारी सरकार का इसके पीछे क्या मकसद हो सकता है? सरकार ही जाने! हमें इसपर कोई टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है.
सरकार और सेना द्वारा और भी बहुत सारे अहम जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं और उठाया जाएगा. हम सब शांतिपूर्वक देखेंगे और सरकार तथा सेना का नैतिक समर्थन भी करेंगे. यही राष्ट्र धर्म है ... लगभग सभी राजनीतिक पार्टियाँ भी आज प्रधान मंत्री, केंद्र सरकार और भारतीय सेना के साथ है. सोशल मीडिया पर बहुत सारी बातें चल रही है. इस मुद्दे पर राजनीति न हो, पर कमोबेश अधिकांश लोग अपनी अपनी पार्टी के हिसाब से सत्ता पक्ष को या तो समर्थन कर रहे हैं या दूसरी पार्टी के नेताओं पर उंगली भी उठा रहे हैं. यह एक तरह से आपसी मतभेद पैदा करनेवाली बात हो गयी, जो इस घड़ी मे नहीं होना चाहिए. अभी हमारी एकजुटता काफी जरूरी है, साथ ही सेना और सेना के हताहत परिजनों के साथ खड़े रहने की जरूरत है. इस दुःख की घड़ी में हमें उनके साथ खड़े रहने की जरूरत है. ताकि उनका मनोबल बना रहे और वे पूरे मनोयोग से देश की सेवा और सुरक्षा करते रहें.
थोड़ा सा पीछे चलते हैं - 2 जनवरी 2016 को तड़के सुबह 3:30 बजे पंजाब के पठानकोट में वायुसेना स्टेशन पर भारी मात्रा में असलहा बारूद से लैस आतंकवादियों ने आक्रमण कर दिया. संभवत: जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों से  मुठभेड़ में 2 जवान शहीद हो गये जबकि 3 अन्य घायल सिपाहियों ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. सभी आतंकवादी भी मारे गये. यहाँ से हमने यानी हमारी सेना और सरकार ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करना शुरू कर दिया था. उसके लगभग ९ महीने बाद उरी पर हमला हो गया.
उरी हमला - 18 सितम्बर 2016 को  जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए. हालाँकि सैन्य बलों की कार्रवाई में सभी चार आतंकी मारे गए. यह भारतीय सेना पर किया गया, लगभग 20 सालों में सबसे बड़ा हमला था. उरी हमले में सीमा पार बैठे आतंकियों का हाथ बताया गया. इनकी योजना के तहत ही सेना के कैंप पर फियादीन हमला किया गया. हमलावरों के द्वारा निहत्थे और सोते हुए जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गयी ताकि ज्यादा से ज्यादा जवानों को मारा जा सके. अमेरिका ने उड़ी हमले को "आतंकवादी" हमला करार दिया. उड़ी हमले का बदला भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक से लिया, जिस पर एक फिल्म बनी है, उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइक, यह एक ऐसी फिल्म है जिससे देशहित के लिए राष्ट्रवादी विचारधारा का विकास होगा और हम भारतीयों में राष्ट्रीयता पनपेगी, शायद सरकार का यही मानना है. लेकिन इसका परिणाम शायद आतंकवादियों या पाकिस्तान समर्थकों पर उल्टा हुआ आतंकियों ने CRPF की टीम पर हमला करके अब तक के सबसे बड़ी आतंकी घटना का अंजाम दे दिया. इसमें ४० से ज्यादा जवान शहीद हो गए. पर हाँ, इस हमले के बाद सभी भारतीय और सभी राजनीतिक दल एक हुए हैं और सबके मन में एक बात अवश्य जाग्रत हुई कि देश सर्वोपरि है. अभी सरकार और सेना जो भी फैसले ले रही है या आगे लेनेवाली है, पूरा देश समर्थन करता है बशर्ते कि आतंकवादियों और उसको समर्थन करनेवाली पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूटे और हमारे जवानों पर हमारे देश पर हमला करने से पहले सौ बार सोचे. 
कुल मिलाकर अगर देखें तो चूंकि पाकिस्तान भारत से ही अलग होकर हमारा दुश्मन बन गया है कश्मीर समस्या एक गंभीर मसला है जिसे सुलझाना न तो उतना आसन है नहीं केंद्र में सत्तासीन चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, दोनों की नीतियों में बहुत बड़ा अंतर देखने को नहीं मिला. फिलहाल केंद्र में एक मजबूत सरकार है जिसे पूरी स्वतंत्रता है कि वह जरूरी कदम उठाए और तत्काल अमल में लाये.
जय हिंद! जय भारत! जय जवान! जय किसान!  - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday 10 February 2019

उत्तर में ओलावृष्टि, पूरब में धींगा-मुश्ती


अभी अन्ना जी ने अनशन शुरू ही किया था पर मीडिया या जनता ने उनपर ध्यान बहुत कम दिया. बेचारे को राज्य के मुख्यमंत्री के आश्वासन मात्र से ही अनशन समाप्त करना पड़ा. उधर बंगाल में सीबीआई पहुँचती है पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर को गिरफ्तार करने और खुद कोलकत्ता पुलिस के हाथों गिरफ्तार हो जाती है जिसका समर्थन करते हुए प्रदेश की जुझारू मुख्य मंत्री पुलिस कमिश्नर के साथ धरने पर भी बैठ जाती है. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचता है और न्यायसंगत फैसला सुनाता ही जिसे केंद्र सरकार और राज्यसरकार दोनों अपनी अपनी-अपनी जीत बता रहे हैं.
अभी यह मामला शांत भी नहीं पड़ा था कि रोबर्ट वाड्रा को पूछताछ के लिए ED के पास जाना पड़ता है. पूछताछ का क्रम अभी जारी है कब तक रहेगा वह भी अनिश्चित है... पर इन मामलों का भरपूर राजनीतिक इस्तेमाल भी हो रहा है. भले ही इसका मतलब जनता या मीडिया जो भी निकाले पर पक्ष और विपक्ष इसे भुनाने की भरपूर कोशिश करेंगे. हाँ अखिलेश और मायावती भला कैसे छूट सकते हैं. इन दोनों पर भी सीबीआई पहले से लगी है ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने मायावती को सरकारी फण्ड से खुद की और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथियों की मूर्ति के नरमन में हुए खर्च को वापस करने को कह रही है. मतलब भयकर सर्दी में भी राजनीतिक माहौल काफी गर्म है.
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी हर स्थिति को अपने पाले में लाने कि लिए, उसे भुनाने के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. वे कब किस बात को किस धारा में मोड़ देंगे वह भी पूरे आत्म-विश्वास के साथ कि जनता तत्काल मंत्रमुग्ध तो हो ही जाती है. फिलहाल उनकी टक्कर का वक्ता भारत क्या पूरे विश्व में मिलना दुर्लभ है. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर अपने पौने दो घंटे का पूरा-पूरा इस्तेमाल किया और विपक्ष को हर मुद्दे पर आड़े हाथों लिया. उनका काम ही है सबको अपने हाथों में ले लेना और उसका श्रेय भी खुद से ले लेना ... चाहे गधे से प्रेरणा वाली बात हो हो या चाय पर चर्चा या फिर ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल ... या फिर उल्टा चोर चौकीदार को डांटे? चाय का रिश्ता भी बंगाल की जलपाईगुड़ी में जोड़ ही दिया.
इस तरह के राजनीतिक खेल अभी जारी हैं और जारी रहेंगे. उधर राफेल पर नित नए खुलासे हो रहे हैं तो इधर सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर नागेश्वर राव इन दिनों मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. अभी हाल ही में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का अवमानना नोटिस भी झेलना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने राव को बिहार में आश्रयगृह मामलों की जांच कर रहे सीबीआई के मुख्य अधिकारी ए के शर्मा का तबादला किए जाने पर सख्त रुख अपनाते हुए अवमानना का नोटिस दिया है. अदालत ने उन्हें 12 फरवरी को कोर्ट में पेश होने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि यह सरासर अवमानना का मामला है, इसके लिए छोड़ा नहीं जाएगा, अब भगवान ही तुम्हें बचा सकता है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने शीर्ष अदालत के दो आदेशों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया. न्यायालय की अनुमति के बगैर ही सीबीआई के संयुक्त निदेशक शर्मा का तबादला सीआरपीएफ में किए जाने के मामले में नागेश्वर राव को अवमानना नोटिस जारी किया था.
उसके बाद सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर रह चुके नागेश्वर राव और उनकी पत्नी के ठिकानों पर शुक्रवार की शाम कोलकाता पुलिस ने छापेमारी की. इस बीच नागेश्वर राव ने प्रेस रिलिज जारी करते हुए दावा किया है कि जिस कंपनी में पुलिस ने छापमारी की है, उस कंपनी से उनका कोई वास्ता नहीं है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर गुरूवार को बड़ा हमला बोला है. ममता ने सवाल करते हुए कहा- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लेकर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) तक सभी उन्हें (पीएम को) क्यों बाय-बाय बोल रहे हैं?
तृणमूल सुप्रीमो ने आगे कहा- अगर आप पंगा लोगे, तो मैं चंगा बन जाऊंगी.
ममता बनर्जी ने आगे कहा – "वह (पीएम) भारत के बारे में नहीं जानते हैं. वे यहां तक सिर्फ गोधरा और अन्य दंगों के बाद पहुंचे हैं. वह रफाल के मास्टर हैं. वह नोटबंदी के मास्टर हैं... वह भ्रष्टाचार के मास्टर हैं." ... "वह हमसे डर गए हैं क्योंकि हम एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं. मैं कभी डरी नहीं, हमेशा अपने रास्ते के लिए संघर्ष किया. मैनें हमेशा मां-माटी-मानुष का आदर किया है. यह दुर्भाग्य है कि पैसे की ताकत के बल पर वह प्रधानमंत्री बन गए."
गौरतलब है कि इससे पहले पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर के घर पर सीबीआई की टीम के पहुंचने के बाद से केन्द्र और राज्य सरकार की तल्खी और बढ़ गई है. उस घटना के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद धरने पर बैठ गई थी. उधर, ज्यों-ज्यों लोकसभा चुनाव का समय पास आ रहा है पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और केन्द्र सरकार की अगुवाई करनेवाली बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप और बढ़ गया है. इससे पहले, ममता बनर्जी सरकार ने राज्य में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रथ यात्रा की भी इजाजत नहीं दी थी. उन्होंने ये दलील दी कि इससे राज्य में कानून व्यवस्था खराब हो सकती है.
पश्चिम बंगाल से ही जलपाईगुड़ी में पीएम मोदी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जलपाईगुड़ी से अब रेल और हवाई सेवा की कनेक्टिविटी मजबूत हो जाएगी. उन्होंने कहा कि यहां के लोगों का जीवन आसान बनाने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है. इसके साथ ही सालों पुरानी मांग हाईकोर्ट बेंच का उद्घाटन किया गया है. आज जो बेंच यहां के लोगों को मिली उसे कलकत्ता हाइकोर्ट ने उसे 20 साल पहले ही मंजूरी दी थी लेकिन यह सपना आज पूरा हुआ है. पीएम ने कहा कि कांग्रेस, टीएमसी और वामपंथी सरकारें जनहित के लिए नहीं सोचती हैं. पीएम मोदी ने जलपाईगुड़ी में आई जनता से कहा, 'आप चाय उगाने वाले हैं और हम चाय बनाने वाले हैं. पता नहीं 'दीदी' (ममता) को चायवालों से क्या दिक्कत है'. उन्होंने कहा कि टीएमसी सरकार ने  माटी को बदनाम कर दिया गया  है और मानुष को मजबूर कर दिया है. उत्तर पश्चिम बंगाल टी, टूरिज्म और टिंबर के लिए जाना जाता है. लेकिन सरकारों की वजह से यहां विकास नहीं हो पाया. पीएम ने कहा चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों के बैंक खाते खुलवाए गए हैं और इस बार के बजट में मजदूरों और चाय के बागानों में काम करने वाले  लोगों को लिए पेंशन की व्यवस्था की गई है जिसमें 3 हजार रुपये प्रति माह दिए जाएंगे. 
पीएम मोदी ने कहा कि जो त्रिपुरा में हुआ वह पश्चिम बंगाल में भी होने वाला है. त्रिपुरा में बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने लाल झंडा उखाड़ दिया अब वहां सुख-शांति के सूरज उग आया है. पीएम मोदी ने कहा देश के इतिहास में पहली बार है जब आम जनता को लूटने वालों के पक्ष में कोई मुख्यमंत्री धरना देकर बैठ जाए. चिटफंड पीड़ितों से मैं वादा करता हूं कि पाई-पाई का हिसाब लिया जाएगा.
प्रधान मंत्री अपने सरकार की उपलब्धियों और विपक्ष की खामियों को हर मौके पर भुनाते रहते हैं. मीडिया उनके हर भाषण को लाइव दिखाता भी है जिसका जनमानस पर असर होना स्वाभाविक ही है. सबसे ज्यादा असर तो किसानों के खातों जानेवाले पैंसों का पड़ेगा. गरीबों को मिले उनके मकान का असर पड़ेगा. उज्ज्वला और सौभाग्य योजना का असर तो पड़ेगा ही... अब बेरोजगारी और व्यापारी के नुक्सान का क्या होगा? यह तो वही जनता बताएगी. पर चुनेगी किसे अभी भी प्रश्न चिह्न है. कोई भी राजनीतिक पार्टी पूरी तरह स्वच्छ हो, कहना मुश्किल है. रहे सहे में से ही चुनाव करना है. जाति-धर्म का मुद्दा भी चलेगा ही हर हाल में. वैसे राम मंदिर का मुद्दा तो फिलहाल ठंढे बस्ते में डाल दिया गया है. मोदी अपने ढंग से ही चुनाव लड़ना जानते हैं. यह बात अलग है कि पिछले चुनाव में तीन राज्यों में हार चुके है... हो सकता है उस समय स्थानीय मुद्दे और राज्य सरकारों के incumbency फैक्टर रहे होंगे. केंद्र सरकार का incumbency फैक्टर और राफेल का कितना असर होता है, यह तो जनता ही बताएगी.
कुल मिलाकर शीत लहर और राजनीति की लहर में बाजी कौन मारता है देखना बाकी है. बस जनता को जागरूक रहना है अपने हक़ के लिए. कोई भी सरकार हो जनता को सुख सुविधा, रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी ध्यान दे. रोजगार या कमाई के साधन अत्यावश्यक है ताकि नौजवानों को उनकी काबिलियत के अनुसार काम और दाम मिले. किसानों को उनकी उपज का भी उचित दाम मिले और खेती करने के साधन सुलभ हों. कोई भी आदमी कितना भी कमा ले, खायेगा वही जो किसान खेतों में उपजायेगा. इसके अलावा विभिन्न प्रकार कि औद्योगिक इकाइयों के लिए भी कच्चे माल इसी धरती से उपजते हैं और उपजानेवाले किसान ही होते हैं. इस देश का दुर्भाग्य है कि किसानों को उनकी फसल के उचित दाम नहीं मिलते, उनको बाजार से कृषि के लिए या अपने लिए, बाजारों से सभी महंगे उत्पाद खरीदने होते हैं. इसलिए छोटे किसानों और मजदूरों पर ध्यान देना आवश्यक है, चाहे जिसकी भी सरकार हो. जय हिन्द! जय भारत! जय जवान! जय किसान! जय माँ शारदे! वसंत-पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
-         --  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर   

Saturday 2 February 2019

अंतरिम बजट, अंतिम बजट या चुनावी वायदे


बजट घोषणाओं के जरिए मोदी सरकार ने इस बार मुख्य रूप से किसानों, गरीबों, मज़दूरों और मध्यम वर्ग को साधने की कोशिश की है. साथ ही प्रखर हिंदुत्व के एजेंडे के लिए प्रतिबद्धता भी जताई. उन्होंने आयकर में छूट की सीमा दोगुनी कर उस मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों को ख़ुश कर दिया जो पिछले चार सालों के दौरान छूट की सीमा न बढ़ने से भाजपा से नाराज बैठा था. हालांकि यह सिर्फ एक अप्रैल से 30 जून तक(तीन महीनों) का अंतरिम बजट है, वित्तमंत्री ने इनकम टैक्स से छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी. बहुप्रतीक्षित यूनिवर्सल बेसिक इनकम(यूबीआई) तो लागू नहीं हुई लेकिन 15,000 रुपए मासिक आय वाले 60 वर्ष से अधिक आयु के 10 करोड़ श्रमिकों के लिए 3000 रुपए की मासिक पेंशन की घोषणा कर दी. निर्बल वर्गों के बुजुर्ग और निर्बलों लिए यह धनराशि किसी बड़े वरदान से कम नहीं है. भाजपा को उम्मीद है कि ये लोग भी चुनाव में आशीर्वाद भी उसी को देंगे.  नौकरीपेशा लोगों की तरह ही किसान भी भाजपा से नाराज बैठे थे. तीन महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव से पहले किसानों के आंदोलन से सरकार को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. वे फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दोगुना किए जाने की मांग कर रहे थे. सरकार की घोषणाओं से वे संतुष्ट नहीं थे. इसलिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने उन्हें लुभाने की पूरी तैयारी कर ली है. वित्त मंत्री ने दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों के खाते में छह हज़ार रुपये हर साल डालने की घोषणा की. इसके तहत दो हज़ार रुपये प्रति फसल, तीन फ़सलों के लिए दिए जाऐंगे. चूंकि यह फैसला दिसंबर से लागू होगा, इसलिए लग रहा है कि पहली किस्त के 2000 रुपए तो हर किसान के खाते में चुनाव होने से पहले पहुंच जाएंगे. पीयूष गोयल के मुताबिक़, इस योजना का फ़ायदा देश के तक़रीबन 12 करोड़ छोटे और ग़रीब किसान परिवारों को मिलेगा. आम तौर पर एक भारतीय परिवार में औसतन पांच सदस्य होते हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो इस स्कीम से तक़रीबन 60 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा. 60 करोड़ लोग यानी वोट देने वाली आबादी का लगभग आधा हिस्सा.

गोवंश रक्षा के जरिए हिंदुत्व के एंजेडे पर काम - इसी तरह राष्ट्रीय गोकुल आयोग की स्थापना कर ७५० करोड़ रुपये की धनराशि के जरिए राष्ट्रीय कामधेनु मिशन के तहत गौमाता की रक्षा का प्रण किया. यह भाजपा और संघ परिवार के हिंदुत्व के एजेंडे के एजेंडे को बढाने वाला फैसला है.
वित्त मंत्री ने अगले 10 सालों के विकास का खाका खींच कर न सिर्फ ख़ुद को आत्मविश्वास से भरपूर दिखाया, साथ ही लोगों की उम्मीदों को भी पंख लगा दिए. उन्होंने कहा कि अगले पांच सालों में 5 ट्रिलियन डॉलर(3600 करोड़ रुपए) की और 8 सालों में 10 ट्रिलियन डॉलर (यानी 7200 करोड़ रुपए) की अर्थव्यवस्था बन जाएगी.
अपने तक़रीबन एक घंटे 45 मिनट के बजट भाषण में कार्यकारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बॉलीवुड फ़िल्म 'उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइक' का ज़िक्र किया और बताया कि वो सिनेमा हॉल में दर्शकों का 'जोश' देखकर प्रभावित हुए. ये फ़िल्म कुछ साल पहले भारतीय सेना की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक की पृष्ठभूमि पर आधारित है. फ़िल्म ने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया. इस फ़िल्म में अंध-राष्ट्रवाद (जिंगोइज़म) दिखाया गया है, जो लोगों को सिनेमा हॉल तक खींच पाने में सफल रहा.
कुल मिलाकर बजट में कृषि, सैन्य, वेतनभोगी और गैर संगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों को खुश करने की कोशिश हुई है. सूक्ष्म और मध्यम उद्यम से जुड़ी महिलाओं से अगर कुछ खरीदारी की जाती है तो जीएसटी में कुछ लाभ दिया जाएगा. बजट में नरेंद्र मोदी की सरकार ने हर क्षेत्र को कुछ न कुछ देने की कोशिश की है. अब सवाल यह उठता है कि जिस हिस्से को ध्यान में रख कर बजट में घोषणाएं हुई हैं, वो भाजपा को आगामी चुनावों में फायदा दिला पाएगी? जहां तक किसानी वर्ग की बात है तो कर्जमाफी का असर ऐसी घोषणाओं से कहीं अधिक होता है. सरकार देश के बड़े हिस्से में उपजे कृषि संकट से निबटने की कोशिश कर रही है. एक और दिलचस्प बात ये है कि इसी हफ़्ते देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्ता में आने पर सबके लिए एक न्यूनतम आय गारंटी स्कीम लाने का वादा किया था. दूसरी तरफ़ मोदी सरकार की स्कीम में सबसे ज़्यादा मुश्किल है ये पता लगाना कि किसे स्कीम का फ़ायदा मिलना चाहिए और किसे नहीं. भारत के ज़्यादातर हिस्सों में ज़मीन का लेखा-जोखा बहुत ज़्यादा विश्वसनीय नहीं है. इसके अलावा दूसरा बड़ा सवाल वही है जो हमेशा कायम रहता है- इतने सारे पैसे आएंगे कहां से?
अर्थशास्त्र मानता है कि कोई भी चीज़ मुफ़्त में नहीं मिलती. अगर किसानों को ये पैसे दिए जाएंगे तो किसी न किसी को इसे ज़्यादा टैक्स के रूप में चुकाना ही होगा. ज़ाहिर है ये चुकाने वाला होगा भारत का छोटा मिडिल क्लास. इसके अलावा पीयूष गोयल ने देश के बड़े असंगठित क्षेत्र के लिए एक पेंशन स्कीम की घोषणा भी की. वित्त मंत्री ने अपने भाषण में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की संख्या 42 करोड़ बताई. इस योजना में असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए 60 साल की उम्र के बाद हर महीने तीन हज़ार रुपये पेंशन का प्रस्ताव दिया गया है. ये स्कीम उन्हीं लोगों के लिए होगी, जिनकी मासिक आय 15 हज़ार रुपये या इससे कम है. हालांकि इस स्कीम का फ़ायदा उठाने के लिए लाभार्थी को अपने भी कुछ पैसे लगाने होंगे. असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले एक 18 साल के शख्स को हर महीने 55 रुपये जमा करने होंगे. सरकार भी उतनी ही रक़म अपनी तरफ़ से डालेगी, तभी वो 60 साल की उम्र के बाद इस पेंशन का हक़दार होगा. अब एक बार फिर इस स्कीम को लागू करने में कई बड़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ेगा. असंगठित क्षेत्र मे काम करने वाले एक बड़े तबके को कैश में भुगतान किया जाता है. इसके अलावा उन्हें मिलने वाले पैसों में भी बहुत असमानता है. ऐसी स्थिति में सरकार कैसे पता लगाएगी कि किसे इस पेंशन स्कीम के दायरे में रखा जाना चाहिए और किसे नहीं. अब रही बात सैन्य बजट की तो इसमें काफी बढ़ोत्तरी की गई है. जो देश की सुरक्षा और सैनिकों की सुरक्षा दोनों के लिए ही आवश्यक है. देश सर्वोपरि है, यह तो सभी मानेंगे.
फ़िलहाल मोटे तौर पर अगर देखा जाय तो प्रधान मंत्री मोदी ने एक बड़े वर्ग को फायदा पहुँचाने की घोषणा कर विपक्ष को धराशायी कर दिया है. उधर पश्चिम बंगाल में प्रधान मंत्री की सभाओं में अप्रत्याशित और बेकाबू भीड़ भी बहुत कुछ सन्देश देती है. यानी ममता दीदी के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश. अब देखना यह होगा कि असंगठित और नेता विहीन विपक्ष कैसे वर्तमान सरकार को हराने में सक्षम होती है. प्रधान मंत्री अपनी सभी सभाओं में अपनी उपलब्धियों और बजट के प्रावधानों की चर्चा करेंगे ही. जब संसद में मोदी मोदी के नारे लग सकते हैं तो भीड़ का क्या कहना! फिर भी बजट की बारीकियों को भी लोग अध्ययन कर ही रहे हैं. अगर सचमुच फायदा होता है तो जनता तो अपना हित ही सोचेगी न. एक बहुत बड़ी समस्या बेरोजगारी की है, साथ ही किसानों के उसके उपज की सही कीमत मिलने की बात है. कर्ज माफी मोदी सरकार भी यथासंभव कर ही रही है. देखना यह होगा कि हमारे भ्रष्ट सिस्टम में यह लाभ आम जनता तक कितना पहुंचता है. नोट-बंदी के बाद बहुत बड़ा मार रोजगार देने वाले छोटे छोटे उद्योगों पर पड़ा था. हाल के दिनों में बेरोजगारी के जारी आंकड़े भयावह स्थिति दर्शाते हैं. ये बेरोजगार लोग ही रैलियों में कुछ पैसों की लालच में भीड़ बढ़ाते है और असामाजिक गतिविधियों के साथ-साथ हिंसा पर भी तुरंत उतारू हो जाते हैं. अगर सभी को यथायोग्य रोजगार मिल जाए तो वे अपने ही काम में ब्यस्त रहेंगे. आलम यह है कि जो किसी भी प्राइवेट संस्थान में कार्यरत है वह ओवरलोडेड है क्योंकि मैन-पॉवर कम रखने का दबाव हर क्षेत्र पर है, ताकि लागत खर्च को घटाया जा सके. नयी तकनीक और ऑटोमेशन से भी मैन पॉवर की मांग घटी है. यह सब मूल-भूत समस्याएं हैं, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही जनसँख्या वृद्धि को हर हाल में रोकना होगा क्योंकि जो भी प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं वे कम पड़ते जा रहे हैं. बीच बीच में प्राकृतिक आपदा भी तबाही का कारण बनती है और उससे भी सरकार और आम लोगों को जूझना ही पड़ता है. एक और बहुत बड़ी समस्या जो विकराल रूप धारण करती जा रही है, वह है कचरा निस्तारण की और अशुद्ध और उपयुक्त जल को साफ और शुद्ध कर पुनरुपयोग करने की. इसके लिए सरकारी स्तर पर ही समाधान निकलने की जरूरत है, तभी स्वच्छ भारत और स्वच्छ पर्यावरण का सपना साकार होगा. एक और बात सबको उचित शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराने की है. यह हर नागरिक के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के बाद प्राथमिक आवश्यकता है. सभी सरकारें इस दिशा में काम कर रही है, पर शायद अभी पर्याप्त नहीं है. वायदे को धरातल पर उतरना जरूरी है. तभी होगा सबका साथ और सबका विकास!      जय हिन्द! जय भारत!.   - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.