Sunday 17 March 2019

आम आदमी के ‘पोस्टर बॉय’ मनोहर पर्रिकर को भावभीनी श्रद्धांजलि!


13 दिसंबर 1955 को गोवा के मापुसा में एक मध्यमवर्गीय परिवार मे जन्मे मनोहर गोपालकृष्ण प्रभु पर्रिकर ने सामान्य परिवेश से निकलर आईआईटी मुंबई से शिक्षित होने से लेकर गोवा के मुख्यमंत्री, रक्षा मंत्री और फिर गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर 17 मार्च 2019 को शाम में आखिरी सांस ली. पर्रिकर की जिंदगी एक आम आदमी के पोस्टर बॉय बनने की कहानी की जबरदस्त मिसाल है. गोवा के इस दिग्गज राजनेता को राष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी सादगी और जीवटता के लिए याद किया जाता है आगे भी याद किया जाता रहेगा. अग्नाशय के कैंसर की दुर्गम लड़ाई से लड़ते हुए उन्होंने आखिरी सांस ली. जीवन के आखिरी वक्त तक वह सक्रिय रहे और कैंसर से लड़ते हुए मुख्यमंत्री के दायित्व निभाते रहे. गोवा की राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में पर्रिकर रक्षा मंत्री के तौर पर शामिल हुए. रक्षा मंत्री रहने के दौरान देश के दूर-दराज के इलाकों में भी लोग उनकी सादगी के कारण उन्हें बेहद पसंद करते थे. आधी बांह के ट्रेडमार्क शर्ट-पैंट, चश्मे और सिंपल घड़ी में नजर आनेवाले पर्रिकर की सादगी, लेकिन तकनीक और विज्ञान के लिए दिलचस्पी ने उन्हें देशभर के युवाओं का फैन बना दिया. 
मनोहर पर्रिकर की पत्नी की भी 2001 में कैंसर से लड़ते हुए मौत हो गई थी. उस वक्त पर्रिकर गोवा के सीएम भी थे. हालांकि, इस निजी त्रासदी से ऊबरकर न सिर्फ उन्होंने बतौर सीएम अपना दायित्व निभाया, बल्कि दोनों युवा बेटों की परवरिश भी शानदार तरीके से अकेले ही की.
मनोहर पर्रिकर को देश में राजनीति के भविष्य के संकेतों को समझनेवाले के तौर पर भी देखा जाएगा. 2013 में पर्रिकर बीजेपी के पहले अग्रणी नेताओं में से थे जिन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी का नाम उस वक्त बीजेपी के पीएम कैंडिडेट के तौर पर आगे किया था. गोवा में बीजेपी की सत्ता में वापसी कराने और गठबंधन के साथ सरकार चलाने के लिए भी बीजेपी आलाकमान ने पर्रिकर पर ही भरोसा किया. 2017 में गोवा चुनाव के बाद बीजेपी के पास बहुमत नहीं था, लेकिन पर्रिकर दिल्ली से गोवा पहुंचे और आखिरकार जोड़तोड़ के बाद सरकार बनाने में कामयाब रहे. 
संघ के एक अनुशासित कार्यकर्ता पर्रिकर का आरएसएस से जुड़ाव उनके बचपन के दिनों में ही हो गया था जो बाद में और मजबूत होता गया. आईआईटी-बॉम्बे में पढ़ाई के दौरान भी उनका संघ से नाता रहा. आईआईटी-बॉम्बे में पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई बीच में छोड़कर जब गोवा वापस आ गए तो पर्रिकर संघचालक के तौर पर अपनी सेवा देते रहे. बाद में संघ ने उनको राजनीति में उतारने का फैसला किया.
राजनीति में करियर -पर्रिकर की राजनीतिक शुरुआत मजबूत तो नहीं रही लेकिन बाद में उनका राजनीतिक कद मजबूत होता गया. 1988 में संघ ने पर्रिकर को पार्टी में भेजने का फैसला किया. 1991 में बीजेपी ने उनसे उत्तरी गोवा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को कहा. उस समय बीजेपी की राज्य की राजनीति में मौजूदगी न के बराबर थी. लोकसभा के पहले चुनाव में उनको करीब 25,000 वोट पड़े. इससे पार्टी का उत्साह बढ़ा और उनको सक्रिय राजनीति में लाने का फैसला किया. आयुष मंत्री और उत्तरी गोवा के सांसद श्रीपद नाईक ने कहा -  '1991 में जब मैं पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष था तो उनको महासचिव बनाया गया.तीन साल के अंदर ही पर्रिकर मंझे हुए राजनीतिज्ञ बन गए और बाद में पणजी विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए. मापुसा के रहने वाले पर्रिकर ने 1994 में कांग्रेस की सीट पर अपना परचम लहरा दिया. तब से पणजी की सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ रही. साल 1994 बीजेपी और पर्रिकर के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक था. उसी साल बीजेपी का चार विधायकों के साथ गोवा विधानसभा में प्रवेश हुआ. पणजी के वह पहले विधायक थे जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा के तौर पर गोवा के राजनीतिक इतिहास को नए सिरे से लिखा. नाईक बताते हैं, 'पर्रिकर की फायरब्रैंड शख्सियत, विधानसभा में सत्ताधारी पक्ष पर हावी होने का आत्मविश्वास और उनके घपले का पर्दाफाश करने की हिम्मत ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया.'
सोशल इंजिनियरिंग के माहिर- पर्रिकर सोशल इंजिनियरिंग के माहिर थे. उन्होंने जाति और धर्म से ऊपर उठकर एक लकीर खींच दी. संघ से विरासत में मिली सादगी और अनुशासन को उन्होंने बरकरार रखा लेकिन जब राजनीतिक समीकरण की बात आई तो व्यावहारिक कदम उठाया. नामांकन पर्चा दाखिल करने से पहले आशीर्वाद लेने के लिए चर्च जाना हो या फिर राज्य के कैथोलिक समुदाय के बीच पैठ बनाना हो, पर्रिकर ने आरएसएस कार्यकर्ता की छवि से बाहर निकलने के लिए अपने आईआईटियन टैग और बौद्धिक प्रतिभा का इस्तेमाल किया. उनके अंदर विरोधियों की चाल को पहले ही भांप लेने और उनको मात देने की अद्भुत प्रतिभा थी. उन्होंने अपनी इन प्रतिभाओं के बल पर जल्द ही पूरे राज्य में बीजेपी को स्थापित कर दिया. उन्होंने राज्य की राजनीति को अच्छी तरह से भांप लिया. राज्य में 27 फीसदी क्रिस्चन आबादी थी. उन्होंने चर्च से शीघ्र खाई को पाटा और ऐसा रुख अपनाया जो पार्टी के विचार के विपरीत था. उन्होंने अपने ढंग से अल्पसंख्यकों, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को खुश करने के लिए काम किया. वह 'सबका साथ, सबका विकास' के असल पुरोधा थे. संघ के मनपसंद होने के साथ-साथ उन्होंने अल्पसंख्यकों के बीच भी अच्छी पैठ बनाई. 2012 के राज्य विधानसभा चुनाव में जब पार्टी को अपने दम पर 40 सदस्यों वाली विधानसभा में 21 सीटों के साथ बहुमत मिला तो करीब एक तिहाई विधायक अल्पसंख्यक समुदाय से थे. उनके काफी करीबी और पार्टी के लिए साथ काम करने वाले पार्टी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, 'उनकी शैक्षिक योग्यताएं, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत और राज्य के विकास के लिए एक विजन ने पार्टी को मजबूत होने में मदद की.'
इसलिए जब 2000 में वह 44 साल की कम उम्र में देश के पहले आईआईटियन मुख्यमंत्री बने तो गोवा के बहुत से लोगों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. वह जब मुख्यमंत्री बने तो सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं था. लेकिना फाइलों और समस्याओं के अध्ययन में गहरी दिलचस्पी और लोगों की नब्ज पकड़ने की उनकी प्रतिभा ने उनकी मदद की.
सादगी से बढ़ी लोकप्रियता - मुख्यमंत्री बनने के बाद भी पर्रिकर नहीं बदले जिससे वह जनमानस के चहेते बन गए. उनकी लोकप्रियता न सिर्फ राज्य बल्कि देशभर में फैल गई. उनकी पोशाक साधारण होती थी और हमेशा उनके पैरों में ट्रेडमार्क चप्पल ने उनके व्यक्तित्व को बुलंद किया. उन्होंने अपनी आधिकारिक कार में बत्ती लगाने की परंपरा को न कहा, अपनी आधिकारिक गाड़ी में ड्राइवर के बगल में बैठना शुरू किया, गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद लोगों की पहुंच में रहने वाले मुख्यमंत्री बने, नई-नई योजनाएं शुरू कीं और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को गिरफ्तार करने की साहस एवं ताकत दिखाई. इससे उनकी लोकप्रियता का ग्राफ और बढ़ता चला गया.
उनके निधन पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राहुल गाँधी सहित तमाम लोगों ने शोक जताया - राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को उन्हें असाधारण नेता और सच्चा देशभक्त बताया. इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित तमाम नेताओं ने भी पर्रिकर के निधन पर शोक जताया है. फरवरी 2018 से बीमार चल रहे पर्रिकर का स्वास्थ्य पिछले दो दिन में काफी बिगड़ गया था. रविवार शाम उन्होंने अपने निजी आवास पर अंतिम सांस ली. राष्ट्रपति कोविंद ने ट्वीट किया, ‘‘गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन की सूचना पाकर शोकाकुल हूं.’’ उन्होंने कहा कि सार्वजनिक जीवन में वह ईमानदारी और समर्पण के मिसाल हैं और गोवा तथा भारत की जनता के लिए उनके काम को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘‘मनोहर पर्रिकर बेमिसाल नेता थे. एक सच्चे देशभक्त और असाधारण प्रशासक थे, सभी उनका सम्मान करते थे. देश के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवा पीढ़ियों तक याद रखी जाएगी. उनके निधन से बहुत दुखी हूं. उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदनाएं. शांति.’’
राजनीतिक हस्तियों के साथ ही साथ पूरा देश शोकाकुल है. उनके निधन पर राष्ट्रीय शोक की घोषणा सरकार द्वारा की गयी है. हम सब उनके व्यक्तित्व को नमन करते हुए श्रद्धांजलि व्यक्त करते हैं. साथ ही यह कामना करते हैं कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें. वैसे सच्ची श्रंद्धांजलि तो तभी होगी जब दूसरे राजनीतिक लोग उनका अनुकरण करेंगे. उनकी सादगी और ईमानदारी का अनुसरण करते हुए निर्विवादित नेता का ख़िताब उनके बाद किसे मिलता है, यह देखनेवाली बात होगी! वैसे त्रिपुरा के माकपा नेता और निवर्तमान मुख्य मंत्री माणिक सरकार भी सादगी के प्रतीक हैं, जिन्हें प्रधान मंत्री मोदी ने सार्वजनिक रूप से आदर और सम्मान दिया था.
-      - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर