Monday 23 March 2020

कोरोना का कहर और बचाव


अयोध्या में भगवान राम को राजगद्दी देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी. भरत ननिहाल गए हुए थे. तभी कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी के कान भरने शुरू किए और कैकेयी न राजा दशरथ के वादे के अनुसार उनसे दो वर मांग लिए. एक – भरत को राजगद्दी और दूसरा – राम के लिए चौदह वर्ष वनवास. राजा दशरथ चूंकि वचनवद्ध थे इसलिए वे अपने वादे से पीछे नहीं हट सकते थे. पर वे श्री राम को चौदह वर्ष वनवास भेजने के संताप को सहन नहीं कर पाए और उसी संताप में उन्होंने अपना दम तोड़ दिया. तब तक राम वन जा चुके थे और भरत को अयोध्या बुलाया गया था. भरत के लिए दो-दो आघात एक साथ था. एक तो उनके बड़े भाई का वनवास और दूसरे उनके देवतुल्य पिता का अचानक देहावसान. इन सारी बातों को दशरथ के कुलगुरु मुनि वशिष्ट ने भरत को समझाते हुए बतलाया. अंत में वे भी दुखी होते हुए भरत को समझाने के लिए ही कहते हैं.
सुनहु भरत भावी प्रबल,  बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ॥
अर्थात मुनिनाथ(वशिष्ट) ने बिलखकर(दुःखी होकर) कहा - हे भरत! सुनो, भावी(होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के हाथ हैं.
आज भी विज्ञान चाहे जितनी प्रगति कर ले पर प्रकृति के आगे बेबस है. चीन, अमेरिका, फ्रांस, ईरान, इटली, स्पेन आदि सभी विकसित देश नोवल कोरोना(COVID -19) नामक वायरस से ग्रस्त हैं. उनके यहाँ से संक्रमित होकर भारत लौटने वाले लोगों में भी यह बीमारी फ़ैली और यहाँ भी लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है. सभी देशों के डॉक्टर और वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं, इसके इलाज और प्रसार के रोक हेतु. अभीतक आंशिक सफलता ही मिली है. भारत जैसे कम संशाधन वाले देश में इसे फैलने से रोक पाना और वायरस ग्रस्त लोगों का इलाज बहुत ही कठिन है. फिर भी WHO के अनुसार जो भी उपाय बताये गए हैं उन्हें हमारी सरकारें भी आम लोगों तक पहुंचा रही है. हम सभी सचेत भी हैं और सरकार के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन भी कर रहे हैं.
भावी प्रबल है इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम अपने कर्म से नाता तोड़ लें. तुलसीदास ने ही रामचरितमानस में कहा है –
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सु तस फल चाखा.
और सकल पदारथ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाही.
इसलिए कर्म तो हमें करना ही होगा, बाधाओं से लड़ना ही होगा. सरकारें अपने स्तर से काम कर रही हैं. हमें भी सहयोग करना ही होगा, जिसमे हमारी और आम जनता यानी देश की भलाई है. हमने हर राष्ट्रीय आपदा को मिलकर सामना किया है आगे भी करते रहेंगे. इसके पहले भी कई तरह की बीमारियाँ/महामारियां फ़ैली है, जिनका हम सबने मिलकर मुकाबला किया है और उसे हराया भी है, उसी तरह कोरोना को भी हराना है.
प्रधान मंत्री श्री मोदी जी के आह्वान पर 22 मार्च दिन रविवार को सुबह ७ बजे से रात नौ बजे तक जनता कर्फ्यू लगाया गया, जिसका देश के लोगों ने अक्षरशः पालन किया. इस कर्फ्यू का मतलब था लोग अपने घरों में रहे और कोरोना वायरस को फ़ैलने से रोकें. कोरोना वायरस कोरोना पीड़ित व्यक्ति के संपर्क से फैलता है. अगर हम एक दिन अपने आपको घरों में बंद रखें तो कोरोना वायरस को फ़ैलने से बहुत हद तक रोका जा सकता है.
इसके अलावा साफ़ सफाई पर पूरा ध्यान दें! पौष्टिक और सात्विक आहार लें, फल और हरी सब्जियों को प्रचुर मात्रा में लें. इम्युनिटी अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ानेवाले वाले आहारों का सेवन करें! सबसे ज्यादा जो जरूरी है, अभी लोगों से दूरी बनाये रक्खें. मास्क पहनें और हाथों को बार बार धोते रहें. कपडे वगैरह भी साफ़ पहनें.
यह तो हुई शारीरिक स्वच्छता की बात. अब अपने अंतर्मन की तरफ भी झांकें और उसकी क्षमता को भी बढ़ाएं. योग और ध्यान करें, सकारात्मक विचार को बढ़ावा दें. मन को मजबूत बनायें. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. प्रकृति को निहारें, उसकी खूबसूरती को देखें और सराहें. परमात्मा अर्थात प्रकृति ने बहुत सारे संसाधन हमें उपलब्ध कराये हैं. हमें उनका सार्थक उपयोग करना है, दुरूपयोग नहीं. पृथ्वी, जल, वायु और आकाश को प्रदूषित होने से बचाएं.
प्राकृतिक संशाधनों के अत्यधिक दोहन से भी विषम परिस्थिति उत्पन्न होती है और प्रकृति संतुलन बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है. हमने अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन, भूकंप आदि विषम परिस्थतियों से भी मुकाबला किया है. कोरोना पर भी विजय प्राप्त कर लेंगे. थोड़ा धैर्य और सावधानी की जरूरत है.
हमारी संस्कृति में बहुत कुछ पहले से विद्यमान है. जैसे सुबह उठाकर ईश्वर और गुरुजनों को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करना. सूर्य, पृथ्वी, जल और वनस्पतियों आदि की पूजा/आराधना कर उन्हें संरक्षित करने का वादा करना. बाहर से आकर हाथ पैर धोकर ही घर में घुंसना. नहा-धोकर पूजा पाठ कर के जलपान करना. धूप-दीप-अगरबत्ती आदि से वातावरण को शुद्ध करना. तुलसी, बेल, पीपल, दूब, पान पत्ता और सुगन्धित पुष्प से पूजा करना यह सब बहुत पुराने ज़माने से हम सब करते आ रहे हैं. आजकल आधुनिकता में हमलोग पुराने संस्कार भूल गए है जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक थे. खैर जो भी देर से ही सही हम लोगों को समझ में तो आ रही है कि सफाई सुथराई का कितना महत्व है. प्रधान मंत्री मोदी का स्वच्छता अभियान बहुत ही सार्थक कदम है. आज यह कितनी जरूरी है सभी को समझ में आ रहा है.
अहिंसा परमो धरम और सर्वे सुखिन: भवन्तु को एक बार फिर से पालन करें. मनोविकार को अन्दर से बाहर निकालें. हम अवश्य सफल होंगे. धार्मिक पुस्तकों का पाठ करें. अच्छी अच्छी प्रेरणात्मक कहानियां पढ़े. भजन सुनें और गुनगुनाएं भी. इन सबसे आतंरिक उर्जा में वृद्धि होगी और हम कठिन से कठिन परिस्थितियों का मुकाबला हंसते हंसते कर सकते हैं.
पुराणों के अनुसार शंकर भगवान ने जन-कल्याण के लिए खुद विषपान किया था. आज भी कोरोना के खिलाफ अमेरिका के वाशिंगटन में जो वैक्सीन तैयार की जा रही है उसके परीक्षण के लिए सिएटल की ४३ वर्षीय जेनिफर हेलर तैयार हुई हैं. परीक्षण से पहले जेनिफर कहती हैं - हम सभी असहाय महसूस कर रहे हैं, ऐसे समय में मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं मानव जीवन के लिए कुछ काम आ सकूं. हालाँकि उसकी पहल के बाद अन्य लोग भी सामने आये हैं. पर शिव के भांति पहल करना ही शिवत्व है. इसीलिए हम शिव को प्रणाम करते हैं –
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं!   
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाश वासं भजेहं!!
ॐ नम: शिवाय!
-        -- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday 4 January 2020

अस्पताल में गरीब बच्चों की मौत और सियासत


अगस्त २०१७ में गोरखपुर के बी आर डी हॉस्पिटल में ६७ बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी. तब जिम्मेदार मंत्री द्वारा कहा गया था – “अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं”. यह खबर भी सुर्ख़ियों में आया था और तब योगी सरकार के ऊपर उंगलियाँ उठी थी.
उसके बाद बाद बिहार के मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल हॉस्पिटल में १४५ बच्चों की मौत जब चमकी बुखार से हो गई तो कहा गया – “लीची खाने से बच्चों की मौत हुई है”. उस समय बिहार की नितीश सरकार पर भी उंगलियाँ उठी थी.
अब राजस्थान के कोटा में जे के लोन अस्पताल जब बच्चों की मौत हो रही है तो मुख्य मंत्री अशोक गहलोत द्वारा आंकड़े दिए रहे हैं – “इस साल पिछले सालों की तुलना में कम बच्चों की मौत हुई है”.
ये सारे बयान संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार करते हैं. दरअसल हमारे सरकारी अस्पतालों में उपकरणों, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफों का घोर अभाव है जिसके मूल में लापरवाही, अफसरशाही और फंड के सही इस्तेमाल न होना है. सरकारी अस्पताल गरीबों के लिए ही होते हैं. जो प्राइवेट अस्पतालों के महंगे खर्च नहीं उठा सकते, वही सरकारी अस्पताल में जाते हैं. प्रधान मंत्री के जन आरोग्य योजना इस पर कहाँ फेल हो रही है, इसपर भी गौर करने की जरूरत है.
राजस्थान के कोटा में जेके लोन अस्पताल में हुए नवजात शिशुओं के मौत को लेकर सीएम गहलोत की मुश्किलें और बढ़ती ही नजर आ रही हैं. अब तक विपक्ष के हमलों का जवाब दे रहे गहलोत पर अपनी ही सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सवाल उठाए हैं. राजस्थान के कोटा में बच्चों की लगातार हो रही मौत पर सचिन पायलट ने कहा है कि मुझे लगता है कि हमें इस मुद्दे पर और ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है. सचिन पायलट ने कहा कि सत्ता में आए हमें 13 महीनों का वक्त हो चुका है और मुझे नहीं लगता है कि अब पुरानी सरकार पर दोष डालने का कोई मतलब है. जवाबदेही तय होनी चाहिए.
सचिन पायलट का यह बयान अपनी ही सरकार के लिए मुसीबत बन गया है. चूंकि इस पूरे मामले पर सीएम गहलोत के बयान विवादित रहे हैं जिन्हें विपक्ष गैरजिम्मेदार करार देता रहा है. ऐसे में सचिन पायलट का यह बयान विपक्ष को और आक्रामक रुख अख्तियार करने का मौका देगा.
ऐसा लगता है कि राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार का फ़ोकस बीजेपी पर निशाना साधने में ही है. अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में कम है. कोटा के जे के लोन अस्पताल का मामला एक हफ़्ते से पब्लिक में है. इसके बाद भी एक्सप्रेस के रिपोर्टर दीप ने पाया है कि इंटेंसिव यूनिट में खुला डस्टबिन है. उसमें कचरा बाहर तक छलक रहा है. क़ायदे से तो दूसरे दिन वहां की सारी व्यवस्था ठीक हो जानी चाहिए थी. लेकिन मीडिया रिपोर्ट से पता चल रहा है कि वहां गंदगी से लेकर ख़राब उपकरणों की स्थिति जस की तस है. जबकि मुख्यमंत्री की बनाई कमिटी ही लौट कर ये सब बता रही है. सवाल है कि क्या एक सरकार एक हफ़्ते के भीतर इन चीजों को ठीक नहीं कर सकती थी?
गहलोत सरकार को अब तक राज्य के दूसरे अस्पतालों की समीक्षा भी करा लेनी चाहिए थी. वहां की साफ़ सफ़ाई से लेकर उपकरणों के हाल से तो पता चलता कि राज्य के पैसे से क़ौन मोटा हो रहा है. आख़िर दिल्ली से हर्षवर्धन को आने की चुनौती दे रहे हैं तो सिर्फ़ आंकड़ों के लिए क्यों? क्यों नहीं इसी बहाने चीजें ठीक की जा रही हैं?
हर्षवर्धन की राजनीतिक सुविधा के लिए जो आंकड़े दिए जा रहे हैं उससे कांग्रेस बनाम बीजेपी की राजनीति ही चमक सकती है, ग़रीब मां-बाप को क्या फ़ायदा. गरीबों के बच्चे जो असमय ही काल कवलित हो गए वे तो लौट कर आने से रहे.
इसलिए नागरिकों को कांग्रेस बनाम बीजेपी से ऊपर उठकर इन सवालों पर सोचना चाहिए. ऊपर उठने का यह मतलब नहीं कि अभी जो मुख्यमंत्री के पद पर हैं वो जवाबदेही से हट जाएगा बल्कि यह समझने के लिए आप कांग्रेस बीजेपी से ऊपर उठ कर देखिए कि स्वास्थ्य के मामले में दोनों का ट्रैक रिकार्ड कितना ख़राब है. काश दोनों के बीच इसे अच्छा बनाने की प्रतियोगिता होती लेकिन तमाम सक्रियता इस बात को लेकर दिखती है कि बयानबाज़ी का मसाला मिल गया है. बच्चे मरे हैं उससे किसी को कुछ लेना देना नहीं.
राजस्थान सरकार ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ इनक्यूबेटर ठीक से काम करने की स्थिति में नहीं थे. इस मामले पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि 'कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बारे में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस साल 963 बच्चों की मौत हुई है, जबकि साल 2015 में 1260 बच्चों ने जान गंवाई थी. वहीं, 2016 में यह आंकड़ा 1193 था, जब राज्य में बीजेपी का शासन था. वहीं, 2018 में 1005 बच्चों की जान गई है.
यह सब आंकड़ेबाजी और राजनीतक बयानबाजी बंद होनी चाहिए. बल्कि उसके बदले धरातल पर काम होना चाहिए, जो कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कर के दिखाया है. रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली पानी सड़क के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य भी हर नागरिक को मिले यह भी किसी भी सरकार का दायित्व होता है. दुर्भाग्य से हमारा देश विकासशील देश तो है ही, पर विकास के रास्ते में इन कमियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. कभी ऐसे भी आंकड़े आते हैं कि हमारा देश हंगर इंडेक्स में भी बहुत अच्छी पोजीशन में नहीं है. जाड़ों में भी गरीब ही ज्यादा मरते हैं. हम सबको और सरकारों को इनपर काम करने की जरूरत है. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों के साथ मूलभूत सुविधा पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है.
एक आम नागरिक की हैसियत से ही मैं यह सवाल उठा रहा हूँ. इन सब बातों को उजागर करनेवाला भी मीडिया ही होता है और सरकार इन पर एक्शन लेती रही है आगे भी लेने की जरूरत है. जन प्रतिनिधियों का भी बहुत बड़ा दायित्त्व होता है कि वे अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को देखें और सुनें साथ ही उनकी परेशानियों को दूर करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.
जयहिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम!  
-      -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर