Saturday 28 December 2019

पूस की रात


पूस की रात प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में से एक है. प्रधान मंत्री मोदी ने पिछले दिनों अपने मन की बात में इस कहानी की चर्चा भी की थी. कम जोत वाले एक किसान की हालत क्या होती है, प्रेमचंद से बेहतर भला कौन जान सकता है. यह कहानी आजादी से पहले की है. तब से अब तक किसानों की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है, ऐसी बात नहीं है. आज भी छोटे या मध्यम दर्जे के किसान कर्ज में डूबे है तो मौसम के साथ महाजन और सरकार की मार भी अक्सर उन्ही पर पड़ती रहती है.
आज भी किसानों के खेतों में जब अच्छी पैदावार हो जाती है तो उनके दाम बाजार में काफी गिर जाते हैं. जब मौसम की मार के चलते पैदावार को नुक्सान हुआ तो उस वस्तु के दाम बाजार में काफी बढ़ जाती है. उसका लाभ भी साहूकार और बड़े व्यापारी ही उठा ले जाते हैं. इस साल प्याज की फसल बर्बाद हुई तो आयात के बाद भी प्याज अभी तक 100 रुपये प्रति किलो के भाव पर ही अंटका है. जब तक नई फसल आयेगी, जिसके पुनरुत्पादन में ज्यादा लागत लगी होगी, उस समय दाम फिर गिर जायेंगे और किसान अपनी पुरानी स्थिति में ही रहेगा. फिर आधे भारत में ठंढ बढ़ी हुई है जगह जगह बर्फवारी हो रही है... उसका नुकसान भी तो किसानो का ही होना है. फसलें फिर बर्बाद होंगी. दाम बढ़ेंगे ... मध्यम दर्जे के आदमी पर ही मार पड़ेगी. ठंढ में भी गरीब वर्ग के लोग ही ज्यादा मरते हैं.
अभी जमशेदपुर के बगल के गांवों में टमाटर की अच्छी पैदावार हुई है. गांवों में लोग टमाटर को सड़कों पर फेंक रहे हैं क्योंकि उनका सही दाम उनको खेत में नहीं मिल रहा. वही टमाटर बाजारों में २० रुपये प्रति किलो से कम नहीं मिल रहा है. फायदा कौन उठा रहा है? किसान या बिचौलिए?
प्रेमचंद की कहानी में हरखू एक गरीब किसान है जो कर्ज में डूबा होने के कारण पूस के महीने में भी बिना कम्बल के ही अपने खेत की रखवाली कर रहा है. उसके साथ उसका कुत्ता जबरा है. ठंढ से बचने के लिए उसने बगीचे की पत्तियां बटोरी और आग जला कर राहत की साँस ली है. उसके बाद .... प्रेमचंद के ही शब्दों में ...
पत्तियाँ जल चुकी थीं. बगीचे में फिर अँधेरा छाया था. राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जाग उठती थी, पर एक क्षण में फिर आँखें बंद कर लेती थी. हल्कू ने फिर चादर ओढ़ ली और गर्म राख के पास बैठा एक गीत गुनगुनाने लगा. उसके बदन में गर्मी आ गई थी. ज्यों-ज्यों शीत बढ़ती जाती थी, उसे आलस्य दबाए लेता था.
जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागा. हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुंड उसके खेत में आया है. शायद नीलगायों का झुंड था. उनके कूदने-दौड़ने की आवाजें साफ कान में आ रही थीं. फिर ऐसा मालूम हुआ कि वह खेत में चर रही हैं. उनके चरने की आवाज चर-चर सुनाई देने लगी. उसने दिल में कहा- नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता. नोच ही डाले. मुझे भ्रम हो रहा है. कहाँ? अब तो कुछ नहीं सुनाई देता. मुझे भी कैसा धोखा हुआ.
उसने जोर से आवाज लगाई-जबरा, जबरा! जबरा भौंकता रहा. उसके पास न आया. 
फिर खेत में चरे जाने की आहट मिली. अब वह अपने को धोखा न दे सका. उसे अपनी जगह से हिलना जहर लग रहा था. कैसा ठंढाया हुआ बैठा था. इस जाड़े-पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना, असूझ जान पड़ा. वह अपनी जगह से न हिला. 
उसने जोर में आवाज लगाई-होलि-होलि! होलि! जबरा फिर भौंक उठा. जानवर खेत चर रहे थे. फसल तैयार है. कैसी अच्छी खेती थी, पर ये दुष्ट जानवर उसका सर्वनाश किए डालते हैं. हल्कू पक्का इरादा करके उठा और दो-तीन कदम चला, एकाएक हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का सा झोंका लगा कि वह फिर बुझते हुए अलाव के पास आ बैठा और राख को कुरेदकर अपनी ठंडी देह को गर्माने लगा. वह उसी राख के पास गर्म जमीन पर चादर ओढ़कर सो गया. 
जबरा अपना गला फाड़े डालता था, नीलगायें खेत का सफाया किए डालती थीं और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था. अकर्मण्यता ने रस्सियों की भाँति उसे चारों तरफ से जकड़ रखा था. 
सवेरे जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ धूप फैल गई थी. और मुन्नी कह रही थी-क्या आज सोते ही रहोगे? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया. 
हल्कू ने उठकर कहा-क्या तू खेत से होकर आ रही है? मुन्नी बोली-हाँ, सारे खेत का सत्यानाश हो गया. भला ऐसा भी कोई सोता है. तुम्हारे यहाँ मड़ैया डालने से क्या हुआ
हल्कू ने बहाना किया-मैं मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है. पेट में ऐसा दर्द हुआ कि मैं ही जानता हूँ. 
दोनों फिर खेत की डाँड़ पर आए. देखा, सारा खेत रौंदा पड़ा हुआ है और जबरा मड़ैया के नीचे चित्त लेटा है, मानो प्राण ही न हों. दोनों खेत की दशा देख रहे थे. 
मुन्नी के मुख पर उदासी छाई थी. पर हल्कू प्रसन्न था.
मुन्नी ने चिंतित होकर कहा-अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी. 
हल्कू ने प्रसन्न मुख से कहा-रात की ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा.
आज स्थिति क्या है. देश की अर्थव्यवस्था चिंतनीय अवस्था में है. पढ़े लिखे नौजवानों को नौकरी नहीं है. सभी तंगहाल है तभी नागरिकता कानून... और उसे लागू करने की सरकार की जल्दी ने लोगों को इस ठंढ में भी जगा दिया है. लोग सड़कों पर आन्दोलन कर रहे हैं. पुलिस की लाठियां खा रहे हैं. कुछ महिलाएं दिनरात धरने पर बैठी हैं.... यह सब किसलिए अपने स्वत्व को बचाने के लिए. इसी बीच बलवाई रूपी नीलगायें उन्ही के खेत में चर रही हैं. खेत यानी देश को चौपट कर रही हैं. फिर भी आम आदमी हरखू की तरह घुटने में सर छुपाये बैठा है. क्या होगा... इससे बुरा क्या होगा?
देश के कर्णधार, नेतागण, बुद्धिजीवी, पत्रकार, मीडिया आमजन आदि सबको पता है ...क्या होनेवाला है ... और क्या नहीं होनेवाला है.... बस दिखना चाहिए कि कुछ हो रहा है... देश चल पड़ा है... आगे और आगे... पीछे लौटने का सवाल ही नहीं...
वन्दे मातरम! जय भारत! भारत माता की जय!
-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.


Sunday 22 December 2019

देश को बचाने की कवायद – हिंसा रोकें


पहले नोटबंदी लागू करो, फिर उसके फायदे गिनाओ. लोगों को लाइन में लगाओ, बेरोजगार बनाओ. छोटे-छोटे उद्योग धंधों को बंद करो. फिर उन्हें गलत साबित करो. उसी तरह पहले GST लागू करो. उसके फायदे बताओ. एक देश एक टैक्स! का प्रचार करो. उसमे सुधार पर सुधार करते जाओ. अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठता है तो बैठे, लोग बेरोजगार हों तो हों! ऊपर से महंगाई बढ़ाते जाओ. लोगों को प्याज, दाल, दूध, पेट्रोल, डीजल और अन्य महंगे सामानों के अवगुण बताते चलो. जब जनता के हित के सारे मुद्दे फेल हो जाएँ तो कोई न कोई राष्ट्रीय मुद्दा उछाल दो. जनता इस नए मुद्दे में उलझी रहेगी, और बस सरकार का काम हो गया!
CAA और NRC ऐसा ही कुछ है. इसके फलाफल क्या होनेवाला है, यह भविष्य के गर्भ में है, पर सड़कों पर बवाल जारी है. राष्ट्रीय और व्यक्तिगत सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है. कई जानें भी जा रही हैं. पर सरकार क्यों अपना कदम पीछे करेगी? उसे तो बहुमत प्राप्त है और बहुमत से ही इस बिल को संसद से पास कराया है, जो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन चुका है. यह बात अलग है कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. कोर्ट ही समुचित फैसला देगा.
उधर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष शरद पवार ने राजग सरकार पर हमला बोला और उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (Citizenship Amendment Act) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) देश को त्रस्त कर रहे गंभीर मुद्दों से ध्यान हटाने की चाल है. इससे न सिर्फ अल्पसंख्यक बल्कि जो लोग देश की एकता एवं प्रगति की चिंता करते हैं, वे सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे हैं. नया नागरिकता कानून देश की धार्मिक, सामाजिक एकता और सौहार्द को बिगाड़ेगा.पवार ने पूछा कि संशोधित कानून के तहत केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के शरणार्थियों को ही नागरिकता क्यों दी जाएगी और श्रीलंका के तमिलों को क्यों नहीं. पवार ने कहा कि बिहार समेत आठ राज्यों ने कानून को लागू करने से इनकार कर दिया है और महाराष्ट्र का भी रुख यही रहना चाहिए. उन्होंने पूछा, “सीएए भले ही केंद्रीय कानून हो लेकिन इसको लागू राज्यों को करना है. लेकिन क्या राज्यों के पास ऐसा करने के लिए संसाधन एवं तंत्र है?
दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल और राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव, दिल्ली के पूर्व राज्यपाल नजीब जंग आदि ने भी इसपर सवाल उठाये हैं.
अब जो पूरे देश में विरोध हो रहा है उनमे असामाजिक तत्व और राजनीतिक पार्टियाँ भी घुस गई है जो इन्हें अपने हक़ में भुनाने का प्रयास कर रही है. कई जगहों पर विरोध शांतिपूर्वक हो रहा है तो कहीं हिंसक वारदातें भी हो रही हैं.
बहुत सारे वीडियो आए हैं जिनमें पुलिस की बर्बरता दर्ज हुई है. वह एकतरफ़ा तरीक़े से लोगों के घरों में घुसकर मार रही है. कोई अकेला पुलिस से घिरा हुआ है और उस पर चारों तरफ़ से लाठियां बरसाई जा रही है. एक वीडियो में लोग एक दूसरे पर गिरे पड़े हैं और उन पर पुलिस बेरहमी से लाठियां बरसाती जा रही है. जब कोई पकड़े जाने की स्थिति में हैं तो उसे मारने का क्या मतलब? जब कोई घर में है और वहां हिंसा नहीं कर रहा है तो फिर घर में मारने का क्या मतलब? ज़ाहिर है पुलिस की दिलचस्पी आम गरीब लोगों को मारने में ज़्यादा है. उसके पास किसी को भी उपद्रवी बताकर पीटने का लाइसेंस है.
कई सारे वीडियो में पुलिस बदला लेती दिख रही है. वह आस पास की संपत्तियों को नुक़सान पहुंचा रही है. वहां खड़ी मोटरसाइकिल को तोड़ रही है. दुकानें तोड़ रही है. पत्थर चला रही है. इसका कोई आंकलन नहीं है कि पुलिस की हिंसा और तोड़फोड़ से कितने का नुक़सान हुआ है? यूनिवर्सिटी के भीतर तो शांति थी, लाइब्रेरी में तो हिंसा नहीं हो रही थी? यूपी में सात लोग गोली से मरे हैं. पुलिस आराम से कह देती है कि उसने गोली नहीं चलाई तो फिर वहां पर मौजूद वह क्या कर रही थी? उसके पास भी तो कैमरे होते हैं वही बता दें कि गोली कहां से और कैसे चल रही थी? जामिया मिल्लिया की हिंसा में तीन गोलियां चली हैं. फिर जब वीडियो आया जिसमें पुलिस ही गोली चलाते दिख रही है उसके बाद पुलिस और ज्यादातर मीडिया वाले चुप्पी मर गए.
जो भी है कुछ प्रदर्शनों में कुछ लोगों को बेलगाम होते देखा जा सकता है. उनके बीच से पत्थर चलाए जा रहे हैं. ऐसे लोग अपनी उत्तेजना से माहौल को तनावपूर्ण बना रहे हैं. वो अपनी गली में पत्थर चला कर दूसरे शहरों के प्रदर्शनों को कमजोर करते है. लोगों की उत्तेजना से पुलिस को कुछ भयंकर होने की आशंका में सतर्क और अतिसक्रिय होने का मौक़ा मिलता है. एक वीडियो अहमदाबाद का आया है. लोगों ने पुलिस को ही दबोच लिया है. मगर उसी भीड़ से सात नौजवान निकल कर आते हैं और पुलिस को बचाते भी हैं. इस वीडियो की खूब चर्चा हुई. वायरल जगत और मीडिया दोनों में लेकिन जिस वीडियो में कई सारे पुलिस वाले एक आदमी पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसा रहे हैं उस पर चर्चा नहीं. दरियागंज से दो वीडियो घूम रहे हैं. उसमें पुलिस के लोग छत पर ईंटें तोड़ते देखे जा सकते हैं. एक वीडियो रात का है जिसमें गली में किसी को घेर कर मार रहे हैं. वो चीख रहा है फिर भी मारे जा रहे हैं.
दरियागंज का एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पुलिस वाले डंडे से कार के शीशे तोड़ रहे हैं. यही दिल्ली पुलिस है जो चुपचाप तीस हज़ारी कोर्ट से चली आई. वकीलों ने तो कथित रूप से लॉकअप में आग लगा दी थी. पुलिस वालों को मारा था तब क्या आपने देखा था कि दिल्ली पुलिस उनके घरों और कमरों से खोज कर ला रही है? जो भी है पुलिस को हिंसा की छूट है. आत्मरक्षा के नाम पर उसकी हिंसा को सही मान लिया जाता है. कई वीडियो में पुलिस गालियां देती दिख रही है. लोगों को सांप्रदायिक बातें कह रही हैं. जामिया में लड़कियों को जिन्ना का पिल्ला कहा गया. बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि दवा डालने पर कीड़े मकोड़े बिलबिला कर बाहर आ रहे हैं. यह समझ लेना चाहिए कि जिन लोगों का सत्ता पर नियंत्रण है उनकी भाषा ऐसी है. नागरिकता रजिस्टर और क़ानून का विरोध प्रदर्शन नेता विहीन है इसलिए हिंसा से बचाना लोगों की ही ज़िम्मेदारी है. जान-माल का नुक़सान ठीक नहीं है. हिंसा होने पर किसी को कोई इंसाफ़ नहीं होता है. लोगों को समझना चाहिए क़ानून बन चुका है. NRC आएगी तो यह मामला एक दिन का नहीं है. जो लोग इसके विरोध में हैं उनके धीरज और हौसले का इम्तहान है. एक दिन के लिए दौड़ लगाकर आ जाना आसान होता है. सरकार भी इंतज़ार में है कि दो चार दिनों में थक जाएंगे या फिर इतने लोग पुलिस की गोली से मार दिए जाएंगे कि प्रदर्शन का मक़सद ही समाप्त हो जाएगा.
इतना सब होने के बाद प्रधान मंत्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान से देश वासियों को संबोधित करते हुए कहा कि विपक्ष द्वारा भ्रांतियां फैलाई जा रही है. NRC की कहीं कोई चर्चा नहीं है. यानी कि उन्होंने अमित शाह के बयान को झूठा कहा, जिसे संसद में अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि बहुत जल्द NRC बिल आया रहा है इसी संसद से उसे पास कराएँगे. धनी हैं हमारे प्रधान मंत्री और धनी है हमारे गृह मंत्री. जनता के समझती है और क्या फैसला लेती है यह तो वही जाने. पर पर प्रधान मंत्री NRC पर फ़िलहाल यु टर्न लेते हुए दिखलाई पड़ रहे हैं. चाहे जो हो फ़िलहाल जो मुद्दा गर्म है वह शांत हो तो अच्छा है. उन्होंने सभी देश वासियों से हिंसा न करने और शांति बनाये रखने की अपील की, इसे सराहा जाना चाहिए. यही बात प्रधान मंत्री को पहले दिन कहनी चाहिए थी. तब तो वे कपड़े देखकर पह्चाहनने की बात कर रहे थे. हर तरीके से वोट हासिल करने के तरीकों में माहिर हैं हमारे प्रधान मंत्री. जयहिंद!
-    -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday 1 December 2019

महिलाओं से होते दुष्कर्म और जघन्य हत्याएं


रांची के कांके में एक 25 वर्षीय लॉ कॉलेज की छात्रा अपने मित्र के साथ रिंग रोड किनारे बैठकर बातचीत कर रही थी। इसी दौरान आस-पास के कुछ अज्ञात युवकों ने जबरन उसके मित्र को रोककर छात्रा को बगल के ईंट भट्टे में ले जाकर सामूहिक दुष्कर्म किया। कल झारखंड पुलिस ने इस जघन्य अपराध के जिम्मेदार 12 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। नाम भी जान लीजिए,धर्म का अंदाजा लगा लीजिये। इस गैंग रेप मे सुनील मुंडा, कुलदीप उरांव, सुनील उरांव, संदीप तिर्की, अजय मुंडा, राजन उरांव, नवीन उरांव, अमन उरांव, बसंत कच्छप, रवि उरांव, रोहित उरांव और ऋषि उरांव शामिल थे। जांच जारी है.
उसी दिन तमिलनाडु के कांचीपुरम में एक लड़की का गैंग रेप करके हत्या कर दी गयी। अभी आरोपियों के नाम और धर्म का पता नही चला है।
चंडीगढ़ में भी एक नाबालिग से रेप का मामला सामने आया है। ऑटो रिक्शा ड्राइवर लड़की को फुसलाकर अपने घर ले गया और रेप कर डाला। दोनो हिन्दू हैं।
हैदराबाद पुलिस ने महिला वेटनरी डॉक्टर का गैंग रेप करने और जला कर हत्या करने के आरोप में मुहम्मद पाशा, नवीन ,केशवुल्लू और शिवा को गिरफ्तार किया है। यह मामला निर्भय कांड जैसे लोगों को झकझोर गया है ... हालाँकि इसमें भी कुछ लोग धर्म तलाश कर रहे हैं...
ये सब घटनाएं एक ही दिन की हैं। चलिए अपने अपने हिसाब से जाति धर्म देखकर निंदा कीजिये। शर्म आती है जो रेप और हत्याकांड जैसी दरिंदगी में भी हिन्दू मुस्लिम ढूंढकर अपनी दुकान सजाते हैं। ट्वीटर पर टॉप ट्रेंड करवाते हैं। ऐसे लोगों को पहचान लीजिये। इन्हें रेप पीड़िता से कोई सहानुभूति नही है बस किसी धर्म विशेष के खिलाफ जहर उगलने का बहाना चाहिए। इग्नोर कीजिये या फिर उनकी पोस्ट पर जाकर धिक्कार लिख आइए। 2014 के बाद बहुत लोग मानसिक बीमार हो चुके हैं। अफसोस !
नोट: माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार रेप विक्टिम की फोटो और नाम सार्वजनिक करना कानून के विरुद्ध है। फिर भी उस महिला डॉक्टर का नम और चेहरा सोशल मीडिया पर खूब दिखलाया जा रहा है. एक बार अपने दिल की आत्मा को झकझोर है और फिर सोचिए कि हम किस दौर में आ गए हैं।
दिल दहला देने वाली हैदराबाद की घटना पर ही विशेष ध्यान देते हैं.
हैदराबाद (Hyderabad) के सरकारी अस्‍पताल में वेटनरी महिला डॉक्‍टर के गैंगरेप और मर्डर केस (Hyderabad Gangrape And Murder) में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं.  रिमांड रिपोर्ट में कहा गया है कि गैंगरेप और मर्डर से पहले महिला डॉक्‍टर को आरोपियों ने जबरन शराब पिलाई थी. इसके बाद पीड़िता को पेट्रोल और डीजल, दोनों की मदद से जला दिया था. पुलिस की रिमांड रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रक चालक और क्‍लीनर का काम करने वाले चारों आरोपियों मोहम्मद आरिफ, नवीन, चिंताकुंता केशावुलु और शिवा ने ही महिला डॉक्‍टर के दोपहिया वाहन का एक टायर जानबूझकर पंचर किया था. जिसे डॉक्‍टर ने टोल प्‍लाजा पर खड़ा किया था. इसके बाद वह टैक्‍सी से गई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक जब तीन घंटे बाद वह वापस लौटीं तो उन्‍होंने देखा था कि उनकी स्‍कूटी पंचर है. इस दौरान चारों आरोपियों ने उनसे मदद करने की बात कही थी. चार में से तीन आरोपियों ने उन्‍हें झाड़ियों में धकेल दिया था और उनका मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया था. चारों आरोपियों के बयान के आधार पर तैयार हुई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला डॉक्‍टर से रेप के पहले आरोपियों ने उन्‍हें जबरन शराब पिलाई थी. इस दौरान पीड़िता बेसुध हो गई थी और उसके ब्‍लीडिंग होने लगी थी. रेप के बाद आरोपियों ने उसकी हत्‍या की. उसके शव को एक कंबल में लपेटा और ट्रक पर रख दिया. चारों आरोपी महिला डॉक्‍टर के शव को ट्रक से लेकर चटनपल्‍ली तक गए. इसके बाद वहां एक ब्रिज के नीचे पीड़िता के शव को पेट्रोल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया. रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा है कि आरोपियों ने शव को पेट्रोल और डीजल डालकर आग लगाई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक व्‍यक्ति ने पुलिस से इस बाबत संपर्क करके बताया था कि घटना के एक दिन पहले दो व्‍यक्ति उसके पास पेट्रोल खरीदने आए थे. लेकिन दोनों संदिग्‍ध लग रहे थे तो उसने पेट्रोल देने से मना कर दिया था. इसके बाद उन्‍होंने दूसरी जगह से पेट्रोल खरीदा था. चार में से एक आरोपी ने शव पर पेट्रोल छिड़का था, वहीं दूसरे आरोपी ने शव पर डीजल छिड़का था. उन्‍होंने डॉक्‍टर का सिम कार्ड भी जला दिया था.
इस घटना से आम लोगों में घोर नाराजगी है. हरेक शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं. पुलिस और प्रशासन जांच में लगा है. पर न्याय कब मिलेगा – किसी को नहीं मालूम?
लोगों के हाथों में तख्तियां हैं जिस पर लिखा था- नो मीडिया, नो पुलिस, नो आउटसाइडर्स, नो सिमपैथी, ओनली एक्शन, जस्टिस. ये लोग परिवारवालों के लिए सिर्फ और सिर्फ न्याय की मांग कर रहे हैं. यहां मीडिया की एंट्री पर भी रोक लगा दी गई है.
लोग इस बात से भी नाराज़ हैं कि वहां के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अभी तक इतनी बड़ी घटना पर क्यों नहीं कुछ कहा है. कॉलोनी की एक महिला ने कहा, 'पुलिस ने चार अपराधियों को पकड़ा है और उन्होंने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया है. मंत्रियों को तुरंत न्याय दिलाना चाहिए.' हालाँकि बाद में मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने अपराधियों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट से सजा दिलवाने की बात कही है. यह फ़ास्ट ट्रैक कितने दिनों में काम करता है देखना है.
अब जबकि चारो आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं और उनसे लगातार पूछताछ जारी है.
अंत में एक कविता जो मैंने काफी पहले लिखी थी इसी तरह की घटनाओं से चिंतित होकर ... चिंतन मनन और समाधान जरूरी है.
नारी शक्ति, जाग जाओ! एक आह्वान! बहनों और बेटियों के नाम!
घोर चिंता का विषय, दुष्कर्म बनता जा रहा!
बात गैरों की नहीं, अपनों का डर सता रहा!
भारत-इण्डिया, लक्ष्मण-रेखा, नारियों के ही लिए !
समाधान, इन्साफ हो, चिंता भी इसकी कीजिये!
अमन व कानून के, रक्षक ही अब भक्षक बने!
ट्रेन से फेंका युवती को, आप यूं चलते बने!
इस धरा की नारियां, अब शस्त्र लेकर हाथ में,
जुल्म की वे दें सजा, 'रूपम' बने खुद आपमें!
मोमबत्ती, भीड़ से अब हो नहीं सकता भला.
काट दो उस हाथ को, नारी नहीं है अबला!
"
छीनता हो स्वत्व कोई, और तू त्याग तप से काम ले यह पाप है
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है"
दिनकर की ऐसी पक्तियां आज भी उपयुक्त है
शक्ति की देवी है तू, दे दंड गर तू भुक्त है
घर से बाहर तू निकल, शालीनता को साथ ले.
अनाचारी गर मिले, तो झट उसी का माथ ले.
काली, दुर्गा, लक्ष्मीबाई, सब तेरे ही रूप हैं
घर से बाहर आ निकल, ये जग नहीं कोई कूप है
लोक लज्जा क्या भला बस बेटियां सहती रहे.
और अपराधी दुराचारी सुवन घर में रहे!
हो नहीं सकता भला इस दानवी संसार में,
छोड़ ये मोमबत्तियां कटार लो अब हाथ में!
अम्ल की लो बोतलें, डालो रिपु के अंग पर!
पावडर मिर्ची की झोंको, नयन में उसे अंध कर!
आत्मरक्षा आप कर लो, रोकता अब कौन है?
कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, क़ानून खुद मौन है!
कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, क़ानून खुद मौन है!
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जवाहर लाल सिंह- जमशेदपुर


Sunday 10 November 2019

न्यायालय का फैसला, करते सब स्वीकार. नहीं किसी की जीत है, नहीं किसी की हार!


९ नवम्बर २०१९ भारत के लिए ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा. न्यायिक इतिहास में ऐसा ऐतिहासिक फैसला, जो देश को राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों को एकजुटता के सूत्र में पिरोयेगी. ऐसा फैसला जिसे सभी सम्प्रदाय, पथों और धर्मों के आम और ख़ास लोगों ने दिल से स्वीकार किया. पक्ष-विपक्ष, वादी-प्रतिवादी, आस्था और साक्ष्यों आदि सभी का भरपूर मान रक्खा. यह देश का सबसे संवेदनशील मामला तो था ही, दुनिया के भी महत्त्वपूर्ण मामलों में से एक था. अंतत: अयोध्या का रामजन्म भूमि स्थल जिसे कई दसकों से विवादित स्थल के रूप में जाना जा रहा था, भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकारी न्यास (जिसे तीन महीने के अन्दर सरकार द्वारा गठित किया जाना है) के जिम्मे सुपुर्द कर दिया गया. यह सरकारी न्यास अब राम मंदिर निर्माण में आगे का कदम उठायेगी और देश के करोड़ों लोगों के आस्था और विश्वास को भी मान्यता प्रदान करेगी.
प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास ने भी अपने रामचरित मानस में लिखा है -
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥
अर्थात - जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं॥
शायद इसी दिन का इंतज़ार इस फैसले के लिए भी किया जा रहा होगा. सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों को लोगों ने पञ्च परमेश्वर की उपाधि से भी नवाजा, और उनके फैसले को सर्वोत्तम माना.
या कहें - जैसा जब जब होना है वैसा तब तब होता है.
मोदी जी ने फैसले के बाद अपने संबोधन में कहा है कि ९ नवम्बर अपने आप में महत्त्वपूर्ण है. इसी दिन यानी ९ नवम्बर १९८९ को बर्लिन की दीवार शांतिपूर्ण तरीके से गिरा दी गई थी और पूर्वी एवं पश्चिमी बर्लिन के लोग फिर से एक हो गए थे. दोनों के बीच एक शीत युद्ध का अंत हुआ था. इस फैसले को उस तरीके से भी जोड़कर देखा जा सकता है मानो दो भाइयों के बीच की दूरियां ख़त्म हुई और आपस में भाईचारा और सौहार्द्र की वृद्धि हुई.
९ नवम्बर १९८९ को ही मंदिर के लिए शिलान्यास हुआ था. ९ मई २०११ को यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और ९ नवम्बर २०१९ को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. यह काफी महत्त्वपूर्ण है.
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इस फैसले के अनुसार राम जन्मभूमि का अन्दर और बाहरी अहाता यानी पूरी जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी गई. केंद्र सरकार तीन महीने के अन्दर न्यास या बोर्ड का गठन करेगी. इस न्यास यानी ट्रस्ट को मंदिर निर्माण से लेकर बाकी सभी अधिकार होंगे. गैरकानूनी ढंग से मुसलमानों की मस्जिद तोड़े जाने के एवज में उसे पुनर्वासित करने के लिए कोर्ट ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन वैकल्पिक जगह पर आवंटित करने का भी आदेश दिया जहाँ वे मस्जिद का निर्माण कर सकें.
इस फैसले का आधार और साक्ष्य ASI की उत्खनन रिपोर्ट को माना गया. ASI के अनुसार १२ सदी में हिन्दू आस्था मूल के धार्मिक स्थल थे, जिसके दीवारों पर ही कथित मस्जिद बनाई गई. मस्जिद के लिए अलग से नींव की खुदाई नहीं की गई थी. ४० दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई हुई और १०४५ पन्नों के फैसले को ३८ मिनट में सुनाया गया.
इस अयोध्या विवाद के अतीत में जाने से मालूम होता है कि २१ मार्च १५२८ को बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर को तोप से ध्वस्त कर दिया था. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम के स्वधाम गमन के बाद सरयू में आई भीषण बाढ़ से अयोध्या के भव्य विरासत को काफी क्षति पहुँची थी. भगवान राम के पुत्र कुश ने अयोध्या की विरासत को नए सिरे से सहेजने का प्रयास किया और राम जन्म भूमि पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया. युगों के सफ़र के बाद यह मंदिर जीर्ण शीर्ण हो गया तो विक्रमादित्य(ईसापूर्व १०१) ने इसका पुनरुद्धार कराया. डेढ़ हजार साल से अधिक समय तक यह मंदिर हिन्दुओं के आस्था और अस्मिता का शीर्षस्थ केंद्र रहा. मुग़ल काल में इस मंदिर को क्षति पहुंचाकर वहां मस्जिद का निर्माण कराया गया तब से यह स्थल विवादित बन गया. हिन्दू राजाओं ने इस मंदिर की वापसी के लिए कई लड़ाईयां लड़ीं. इन लड़ाइयों के परिणाम स्वरुप, कहते हैं अकबर ने बीरबर और टोडरमल की राय से बाबरी मस्जिद के सामने चबूतरे पर मंदिर निर्माण की अनुमति दे दी. पर औरंगजेब और ज्यादा कट्टर निकला. उसके साथ भी हिन्दू राजाओं ने कई लड़ाइयां लड़ीं पर औरंगजेब के सामने अंत में परास्त हो गए.  
बाल्मीकि रामायण और स्कंध पुराण के श्लोकों का दृष्टान्त देकर भी यह समझाया गया कि अयोध्या ही वह पवित्र भूमि है जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था. कई विदेशी यात्रियों के दस्तावेजों से भी यह प्रमाणित होता है कि अयोध्या में भगवान राम का यही जन्म स्थान था और यहाँ मौजूद मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण हुआ था.
अब जबकि भव्य राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया है, तब यह उम्मीद की जाने लगी है कि बहुत जल्द अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनेगा. इस मंदिर के प्रमुख शिल्पकार चंद्रकांत सोमपुरा के अनुसार २०२२ तक मंदिर निर्माण का काम पूरा हो जायेगा. प्रारूप के अनुसार इनमे पांच प्रकाहंद होंगे- अग्रभाग, सिंहद्वार, नृत्य मंडप, रंग मंडप और गर्भगृह. आस्थावान हिन्दू शीघ्र ही भगवान राम के भव्य मंदिर का दर्शन कर उसमे पूजा अर्चना कर सकेंगे. राजनीतिक दल भाजपा, विश्व हिदू परिषद्, बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ आदि हिंदूवादी संस्थाओं के आधार मजबूत होंगे. हिन्दू आस्था को बल मिलेगा.
उम्मीद की जानी चाहिए कि श्री राम मंदिर के निर्माण के क्रम में और निर्माण के बाद भी हम सभी श्री राम के आदर्शों पर चलकर अपनी आस्था को और मजबूत करेंगे. मर्यादा का पालन करेंगे, आपसी भाईचारा और सौहार्द्र को बढ़ावा देंगे और मुस्लिम भाइयों के साथ प्रेम सम्बन्ध को बनाये रखने के लिए उनके लिए मस्जिद के निर्माण में भी हर संभव सहायता करेंगे. शांति व्यवस्था और सौहार्द्र को कायम रक्खेंगे! यही हमारे भारतवर्ष की गंगा यमुनी तहजीब है. यही हमारे ऋषि-मुनियों और साधु-संतों का भी आदर्श है.
जय श्री राम! सियावर राम चन्द्र की जय! पवनसुत हनुमान की जय! भारत माता की जय!
-   ---  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.  

Sunday 27 October 2019

धनतेरस, दीपावली और छठ के त्योहार – सावधानी और बचाव


धनतेरस और दीपावली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया. अनेक शहरों में करोड़ों की खरीददारी भी हुई. सोने, चांदी और हीरों के गहनों के अलावा  पीतल, स्टील, अल्युमिनियम आदि धातु के बर्तनों, घर के लिए उपयोगी सामानों के साथ-साथ दो पहिया और चौपहिया वाहनों की भी खूब बिक्री हुई. मंदी को मात देते हुए हर वर्ग के लोगों ने अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खरीददारी की. अपने घरों को साफ़ सुथरा कर सजाया संवारा. हर घरों में श्री लक्ष्मी-गणेश की पूजा के साथ साथ काली पूजा की भी धूम रही. धनतेरस के एक दिन पहले से ही बाजारों और सडकों पर इतनी भीड़ उमड़ी कि सड़कों और रास्ते पर जाम की स्थिति बन गई. पैदल चलना भी मुश्किल हो गया. लोगों ने जमकर खरीददारी की. दीप जलाया, लड़ियों से अपने घरों को सजाया. श्री लक्ष्मी-गणेश की पूजा की, लावा के साथ मिठाइयाँ खाई और खिलाई. 
गांवों में घर आंगन को सफाई कर मिट्टी और गोबर से लीपा जाता था. मिट्टी के घर भी बनाये जाते थे, जिनपर दिए सजाये जाते थे. आज शहरों में थर्मोकोल और कागज के बने बनाये घर मिल जाते हैं. बिजली के बल्ब टिमटिमाते हैं. पर दीयों की महत्ता आज भी कम नहीं हुई. काफी लोग मिट्टी के दिए खरीदते हैं और अपने घरों में जलाते हैं. अयोध्या में योगी जी ने 6.11 लाख दिए जलाकर विश्व में कीर्तिमान बनाया. पूरी अयोध्या नगरी सज गई जैसे राजा राम के वनवास से लौटने के बाद सजी होगी. वस्तुत: दीपावली तो भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद स्वागत में ही मनायी जाती है, ऐसी मान्यता है.
बिहार के मूलवासी जो बाहर रोजगार के लिए गए हुए हैं, संभवत: दीपावली और छठ के अवसर पर अपने घर लौटकर पूरे परिवार के साथ दीवाली और छठ का त्योहार मनाना चाहते हैं, उनके लिए ट्रेनें और बसें कम पड़ रही हैं, फिर भी किसी न किसी तरह ठुंस कर घरों को लौट रहे हैं. त्योहार का आनंद ही कुछ ऐसा होता है कि सारे कष्ट सहकर भी हम त्योहार अवश्य मनाते हैं. त्योहारों का एक उद्देश्य यह भी है शायद कि आपसी भाईचारे में वृद्धि हो, हमारे बीच की दूरियां कम हों.
पिछले कुछ दिनों से मंदी की जो ख़बरें चल रही थी, दीपावली के अवसर पर ऐसा लगता है, मंदी का कोई असर नहीं है. पर यह मध्यम और उच्च वर्गों के लिए है, जो इस मंदी में भी अपना जीवन-यापन ढंग से कर पा रहे हैं. पर वाहन उद्योग की मंदी कम नहीं हुई है. टाटा मोटर्स में ‘ब्लाक क्लोज़र’ जारी है. अन्य सालों की अपेक्षा इस साल ज्यादा ही ब्लॉक क्लोज़र हुए हैं. अबतक 39-40 दिनों का ‘ब्लॉक क्लोज़र’ हो चुका है. परिणामस्वरूप टाटा मोटर्स पर आश्रित लघु उद्योग भी बंद पड़े हैं या सुस्त गति से चल रहे हैं. इसका प्रभाव उनमे काम करनेवाले मजदूरों पर तो पड़ता ही है. कोई उनसे जाकर पूछे कि कैसी दीपावली और धनतेरस बीती तो वे भला क्या जवाब देंगे?
वहीं वृद्धाश्रम में पड़े बुजुर्गों की हालात का जायजा भी कुछ सामाजिक संस्थाओं ने लिया है, उनके दर्द बांटने का प्रयास किया है. कुछ सामाजिक संस्थाओं ने स्लम बस्तियों में जाकर उनके बीच नए कपड़े, मिठाइयाँ और दिए, खिलौने आदि बांटे हैं. पर क्या वे पर्याप्त हैं. कुछ अधिकारी वर्ग और कर्मचारी वर्ग के लोग भी किसी-किसी का सहारा बने हैं जो काबिले-तारीफ हैं. यह बहुत अच्छी बात है कि संवेदनाएं अभी जिन्दा हैं. पर भौतिकता इतनी हावी हो गई है कि हमारे पास समय का अभाव हो गया है. हम ‘फेसबुक’ और ‘व्हाट्सएप्प’ आदि सोशल साईट पर खूब बधाई सन्देश भेजते हैं, पर आपस में मिल नहीं पाते. मिलना भी बहुत जरूरी है.
होना तो यह चाहिए कि हम सभी जो सक्षम हैं, अपनी आय का एक हिस्सा गरीबों और असहायों को मदद करने में लगायें. सरकार को भी एक कोष अवश्य बनाना चाहिए ताकि असहाय गरीब लोगों का कल्याण किया जा सके. सरकार के पास योजनायें भी हैं, क्रियान्वित भी हो रही है, पर वही अफसरशाही और सदियों से व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ हर जरूरतमंद तक नहीं पहुँच पाता, नही तो क्यों भात-भात करते संतोषी मर जाती और अनेक गरीबों को अपने भोजन के लिए किसी अस्पताल में भर्ती होना पड़ता? समाचार पत्रों के अनुसार ही कुछ मरीज जो ठीक हो चुके हैं, पर उने कोई लेने नहीं आता. वे भी वहां पड़े रहते हैं, क्योंकि वहां उन्हें दोनों शाम का खाना तो मिल जाता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. दिल्ली की केजरीवाल सरकार एक उदाहरण पेश कर रही है. वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, आदि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. प्रदूषण कम करने के लिए पटाखे न जलाने की अपील की जा रही है. लोग समझ भी रहे हैं और अमल भी कर रहे हैं. यही चेतना हर शहरों और गांवों में होने चाहिए. स्वच्छता मोदी जी का मिशन है. दिल्ली सरकार ने कनाट प्लेस में खूबसूरत लेज़र शो का आयोजन किया है. लोग उसे देखने जा रहे हैं. क्या इस तरह का आयोजन अन्य सरकारें नहीं कर सकतीं? कर सकतीं हैं. जब 6.11 लाख दिए जला सकती है तो और अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं, जिनसे प्रदूषण कम हो और लोगों को आनंद भी आये. पटाखों से कई बार दुर्घटनाएं भी घट जाती हैं. पूरी सावधानी की जरूरत है. हर एक को सजग रहने की जरूरत है. आप त्यौहार अवश्य मनाएं पर इतना ध्यान अवश्य रक्खें कि अपने साथ-साथ दूसरे का भी अहित न हो. हम सब आपस में बैठकर विचार-विमर्श तो कर ही सकते हैं. विमर्श के बाद अवश्य हल निकलेगा. पटाखों से वायु प्रदूषण के साथ साथ ध्वनि प्रदूषण भी होता है. पटाखों के तेज आवाज से कान के परदे फट सकते हैं और बहरापन भी हो सकता है. इसलिए अपने मन में अवश्य विचारें, पटाखें जलाना कितना युक्तिपरक है. अब तो पटाखें छठ पर्व के अवसर पर भी जलाये जाने लगे हैं जो कही से भी तर्कसंगत नहीं लगता, पर अंधाधुंध नक़ल में हम सभी पीछे नहीं रहनेवाले.
जनता अपना मत देती है. अपना प्रतिनिधि चुनती है. जो प्रतिनिधि चुनकर आते हैं वही सरकार बनाते हैं और जनता के भाग्य-विधाता बनते हैं. हमें स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार का ही चयन करना चाहिए जो जनता के काम ईमानदारी से करें. सभी संविधान की शपथ लेते हैं और उन्हें अपना शपथ याद रखना चाहिए. किसी भी क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति हो, अगर वे अपना काम ईमानदारी पूर्वक कर रहे हैं तो वे भी अपने देश की भलाई में योगदान दे रहे हैं. हमें अपना कर्तव्य अवश्य करना चाहिए साथ ही अपने अधिकारों के प्रति भी सजग रहना चाहिए. गलत का विरोध भी होना चाहिए. पर कोई भी काम बिना पूरी तरह समझे नहीं करनी चाहिए. भीड़ के उकसावे या अफवाहों को बिना जांचे-परखे कभी भी उन्माद को बढ़ावा न दें. हमेशा अच्छे लोगों के बीच समय गुजारें और काव्य-शास्त्र आदि की चर्चा करें.
कहा भी गया है - काव्य शास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्।
             व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रयाकलहेन वा। ।
बुद्‌धिमान लोग अपना समय काव्य-शास्त्र अर्थात् पठन-पाठन में व्यतीत करते हैं वहीं मूर्ख लोगों का समय व्यसन, निद्रा अथवा कलह में बीतता है।
आप सभी को धनतेरस, दीपावली, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजा, और छठ पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ. जय हिन्द! वन्दे मातरम!
-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.