Sunday 25 November 2018

पुस्तक पढ़ने के प्रति कम होता आकर्षण


एक बार फिर किताबों से दोस्ती करने का बेहतरीन मौका मिला. १६ नवम्बर को जमशेदपुर सिटी में पुस्तक मेला का धूमधाम से आगाज हुआ. इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद कोलकाता की प्रसिद्ध लेखिका व फिल्म निर्माता शतरुपा सान्याल ने कहा कि किताब से कीमती उपहार कुछ नहीं हो सकता. पुस्तकों के बिना जीवन अधूरा है. किताबों से दोस्ती करने पर बुरी आदतों से छुटकारा मिलेगा. किताबों से दूरी चिंता का विषय है. इस कारण नई पीढ़ी सभ्यता, संस्कृति और मूल्यों को समझ नहीं पा रही है. लोकमान्य तिलक ने भी कहा था- मैं नरक में भी अच्छी पुस्तकों का स्वागत करूंगा क्योंकि जहाँ यह रहेंगी वहां स्वयम ही स्वर्ग बन जाएगा. इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत टैगोर सोसाइटी के चेयरमैन डॉ. एचएस पाल ने किया. महासचिव आशीष चौधरी ने पुस्तक मेला के इतिहास पर प्रकाश डाला. श्री आशीष चौधरी ने सेक्रेटरी रिपोर्ट में कहा कि दो वर्षों से खराब मौसम के कारण पुस्तक मेला प्रभावित रहा. बीते वर्ष 40 हजार पुस्तकप्रेमी आए थे. 50 लाख का कारोबार हुआ था. 25 नवंबर तक चलनेवाले पुस्तक मेले में 71 प्रकाशक किताबों का खजाना लेकर आए हैं. कई नए प्रकाशक इस बार पहली बार स्टॉल में आये. इनमें वुडपेकर, सेल रकाब पुठी सेंटर, एनलिवेन, पेंगुईन पब्लिशर्स के नाम प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि इस बार मेले में 71 प्रकाशकों ने स्टॉल लगाए हैं. इसमें युवा वर्ग, बच्चों, पुरुष, महिलाओं के अलावा साहित्य प्रेमियों को पसंद आने वाली किताबें शामिल थीं.
स्थानीय प्रकाशकों में ‘सहयोग’ नामक संस्था को आयोजकों ने नि:शुल्क स्टॉल उपलब्ध कराया है, ताकि शहर में लेखकों की प्रतिभा को एक मंच मिल सके. इसके अलावा सेल्यूलाइड चैचटर, रामकृष्ण मिशन, पुस्तक मंजूषा, योगदा सत्संग सोसाइटी, आजाद किताब चार, ओशो सुरती मेडिटेशन सेंटर, गुरमत प्रचार सेंटर, टैगोर, चिन्मया वाणीको लोटस पब्लिकेशन, पेंगुइन हाउस, मार्शल बामरा, एसएस पब्लिकेशंस, भारत पुस्तक भंडार, राय बुक, माई बुक एंड नोबेल को स्टॉल उपलब्ध कराया गया. मेले में धार्मिक, सामाजिक, खेल-कूद, स्कूल कॉलेज के सिलेबस से सम्बंधित और बच्चों बुजुर्गों हर किसी से सम्बंधित लगभग सभी विषयों की पुस्तकें उपलब्ध थी.
हिन्दी के प्रकाशक : सस्ता साहित्य मंडल, राही प्रकाशन, किताब घर प्रकाशन, प्रकाशन संस्थान, पूजा बुक हाउस, राजकमल प्रकाशन 25 नवंबर तक चलने वाले मेले का प्रवेश शुल्क पांच रुपए रखा गया. यूनिफार्म में आने वाले स्कूली विद्यार्थियों से दो रुपए शुल्क लिया गया. युवाओं को पुस्तकों से जोड़ने के लिए इंटर स्कूल क्विज का आयोजन 18 नवंबर को किया गया जिसमे शहर के विभिन्न स्कूलों के छात्रों ने अपनी हिस्सेदारी दिखलाई. रोजाना यह पुस्तक मेला दो बजे से रात के 8:30 बजे तक लोगों के लिए खुला रहा. शनिवार और रविवार को यह सुबह के दस बजे से रात के 8:30 बजे तक खुला रहा. २५ नवम्बर को रात्रि ९ बजे इस पुस्तक मेले का समापन हुआ. पुस्तक मेला में बुजुर्गो एवं असहाय लोगों के लिए व्हील चेयर की भी व्यवस्था की गयी थी. 10 दिनों तक चलने वाले इस मेले में हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा बांग्ला, उर्दू, संथाली, हो, कुरमाली और गुरमुखी भाषा की पुस्तकें भी देखने को मिली. प्रकाशक दिल्ली, कोलकाता, मुंबई समेत देश के विभिन्न शहरों से आये थे.
वाजपेयी की किताबें बेस्टसेलर
किताब घर प्रकाशन के श्री जेपी शर्मा ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद मेरी 51 कविताएं की नौ हजार से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं. वाजपेयी की शक्ति से शांति, ‘विचार बिंदू,”बिंदू बिंदू विचार, ‘कुछ लेख कुछ भाषण, ‘न दैन्यं न पलायनम और नई चुनौती नया अवसर किताबों की मांग है. भगवान सिंह की भारतीय राजनीति में मोदी फैक्टर आकर्षण का केंद्र है.
गुरमत प्रचार केंद्र ने पुस्तक मेला में धार्मिक बुक स्टाल लगाया है. अकाली दल के जत्थेदार जरनैल सिंह ने अरदास की. केंद्र के प्रचारक हरविंदर सिंह जमशेदपुरी ने बताया कि धार्मिक किताबों पर सिख संगत को 10 फीसदी और नौजवान भाई-बहनों को 20 फीसदी छूट है.
18 नवंबर को इंटर स्कूल क्विज हुआ, जिसका विषय भारतीय साहित्यही रखा गया था. इसमें शहर के 15 स्कूलों की टीमों ने शिरकत की. 21 नवंबर को हिन्दी सेमिनार हुआ, जिसमें साहित्य और पत्रकारिता के संबंधों पर चर्चा हुई. इस परिचर्चा में भाग लेते हुए शहर के प्रख्यात कथाकार श्री जयनंदन ने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य में चोली दमन का सम्बन्ध है क्योंकि दोनों ही समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं. अंतर इतना है कि साहित्य में कल्पना के साथ सृजन भी होता पत्रकार सत्य को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करते हैं. पर आज पत्रकारिता का व्यवसायीकरण हो गया है और कुछ पत्रकार बंधु किसी संस्था या राजनीति के पक्षकार बने बैठे हैं. 

पटना का ऐतिहासिक पुस्तक मेला इस साल नहीं लगेगा. बताया जाता है कि 6-17 दिस्मबर को आयोजित होने वाली इस पुस्तक मेला को कैंसिल कर दिया गया है. पटना पुस्तक मेला के संयोजक अमित झा ने बताया कि - पिछले 33 वर्षों से लगनेवाला सांस्कृतिक महोत्सव CRD पटना पुस्तक मेला का 25 वां संस्करण 6 से 17 दिसंबर 2018 निर्धारित था. देश का यह चर्चित आयोजन पिछले साल की तरह इस बार भी ज्ञान भवन में होना तय हुआ था. अभी पिछले दिनों ज्ञात हुआ कि ज्ञान भवन का किराया पिछले साल की तुलना में इस बार ढाई गुणा बढ़ कर 1 लाख रुपये प्रतिदिन से 2.5 लाख रुपये प्रतिदिन हो गया है. पुस्तक मेला 12 दिन का होता है पर उसकी तैयारी और अंत में हटाने केलिए कम-से-कम 6 दिन का समय लगता है. यानी 18 दिन का 18 लाख. इसके 2.5 लाख होने के कारण इस बार किराया 18 लाख से बढ़ कर करीब 50 लाख पहुँच गया है. यानी पटना में इस बार पुस्तक प्रेमियों को अच्छी-अच्छी पुस्तकें देखने को नहीं मिलेगी.
मैंने भी जमशेदपुर पुस्तक मेले का कई बार भ्रमण किया. कुछ गतिविधियों का साक्ष्य भी बना. २३ नवम्बर को मुख्य रूप से महिलाओं की बहुभाषीय संस्था ‘सहयोग’ के द्वारा दो पुस्तकों उनकी ‘कहानी उनकी जुबानी’ और ‘कंटीले कैक्टस के फूल’ का लोकार्पण झारखण्ड सरकार के मंत्री श्री सरयू राय के द्वारा किया गया और प्रतिभागी महिलाओं को सम्मानित किया गया. मंत्री श्री सरयू राय ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि झारखण्ड में भी महिला साहित्यकार कम नहीं है.
२४ नवम्बर को पूर्व मुख्य मंत्री अर्जुन मुंडा के हाथों डॉ. कमलकांत द्वारा लिखित ‘अपराध का बोध’ का लोकार्पण किया गया जिसमे शहर के जाने माने कथाकार, साहित्यकार और पत्रकारों ने भाग लिया. सबों में श्री अर्जुन मुंडा से साहित्यकारों के लिए सरकारी सहयोग की अपेक्षा की. पर सांसद अर्जुन मुंडा का जवाब गोल-मोल रहा. उन्होंने मुख्य बात जो कही वह हर कोई जानता है. वह है कि आज के डिजिटल युग में लोगों की किताबों के प्रति रूचि घटी है. क्रिकेट, फुटबॉल तथा अन्य खेल कूद तथा दूसरी सांस्कृतिक गतिविधियों में, धार्मिक जुलूसों में लोगों की भागीदारी ज्यादा बढ़-चढ़कर  होती है. पर पुस्तकों के प्रति लोगों में अभिरूचि का अभाव देखा जा रहा है. पहले जहाँ इसी पुस्तक मेला में काफी भीड़ देखी जाती थी. हमारे कई मित्र दो-तीन हजार की पुस्तकें खरीद लेते थे. इस बार नदारद रहे. अन्य कई मित्र व्यस्तता के कारण मेले में नहीं जा सके. कई पुस्तक स्टाल के संचालकों से बात चीत कर पता चला कि वे लोग इस बार काफी कम बिक्री होने से निराश हैं. खर्चा निकालना मुश्किल हो रहा है. कारण है – बढ़ते हुए मूल्यों के कारण पुस्तकों की छपाई में भी खर्चे अधिक हो रहे हैं और खरीदनेवाले दाम देखकर पुस्तक नहीं खरीद पाते. हम इस बाजारवादी युग में दूसरे खर्च तो कर रहे हैं. घर को सजाने संवारने में तथा हर साल नए नए मोबाइल तथा दूसरे विलासिता के उपकरणों में तो खर्च कर रहे हैं पर पुस्तकों की खरीद पर नहीं. खरीद कर भी पढ़ने के प्रति झुकाव कम हो रहा है. जब तक हम पढेंगे नहीं एक दूसरों की भावनाओं और विचारों से परिचित कैसे होंगे? नव-लेखकों में सृजन के प्रति उत्साह-वर्धन कैसे होगा? सरकार तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों को इसमें जागरूकता बढ़ानी होगी. मोदी जी ने भी कहा था- गूगल से ज्ञान नहीं होता. ज्ञान का स्रोत पुस्तकें ही हैं. इस आलेख के माध्यम से मेरा निवेदन यही है कि हमलोगों में पुस्तकें पढ़ने की रूचि जगाई जानी चाहिए और इस प्रकार के आयोजनों में अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए.
-     - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.  

Saturday 3 November 2018

राम मंदिर निर्माण का मुद्दा: गेंद सरकार के पाले में


मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हमारे आराध्य हैं और जन-जन के ह्रदय में विराजमान हैं, इससे कौन इनकार कर सकता है? श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए भी कहा गया है क्योंकि उन्होंने मानव रूप के मर्यादा में रहकर एक पुत्र धर्म, अग्रज धर्म, शिष्य धर्म, एवं राज धर्म का पालन किया. मर्यादा में रहकर ही उन्होंने ऋषि-मुनियों, देवताओं, और वानर भालुओं की सहायता से रावण सहित सभी दुष्कर्मी, अधर्मी राक्षसों का संहार किया और अयोध्या में राम राज्य की स्थापना की. ऐसा राम राज्य जहाँ बाघ, बकरी एक घाट पर पानी पीते थे. वैसा राम राज्य जहाँ हर प्रजा की बात सुनी जाती थी. यहाँ तक कि एक धोबी के आरोप मात्र से जगतजननी और अयोध्या के राजा श्रीराम (यानी कि स्वयं) की पत्नी का भी परित्याग कर दिया और गर्भावस्था में वन में भेज दिया. ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम-जन जन में व्याप्त हैं. उनके मंदिर भी हर स्थान पर हैं, पर कहते हैं कि अयोध्या में भी उनका बहुत ही पुराना मंदिर था जिसे बाबर ने ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनवा दी. बाद में वह बाबरी-मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा. १९९२ में अयोध्या राममंदिर के निर्माण के लिए तब के लौहपुरुष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से रथ यात्रा आरम्भ की और कार सेवकों की मदद से 6 दिसम्बर के दिन बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर वहां भगवान राम की मूर्ति की पुनर्स्थापना कर दी. राम मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ हो गया पर अदालत के हस्तक्षेप से निर्माण कार्य रुक गया और तब से अबतक यथास्थिति वर्तमान है. भगवान राम की मूर्ति तो स्थापित है, पर उनके ऊपर छत की जगह तिरपाल है उसी अवस्था में पूजा-पाठ होती है, पर विश्व हिंदू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ के साथ भाजपा का भी मुख्य मुद्दा है- अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भव्य मंदिर बनना चाहिए इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रस्तरों और शिला-खण्डों पर नक्कासी का कार्यक्रम बदस्तूर जारी है.
मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. अभी हाल ही में सुनवाई हुई तो तीन मिनट में तीन  महीने के लिए स्थगित कर अगली तारीख जनवरी में कर दी. तब से पूरे देश में भाजपा समर्थित और राम मंदिर निर्माण समर्थकों में एक उबाल सा आ गया है. सभी लोग अपने अपने ढंग से बयान और प्रतिक्रिया दे रहे हैं.     
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर ने शुक्रवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय में मामला लंबित होने के बावजूद सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बना सकती है. उन्होंने कहा कि विधायी प्रक्रिया द्वारा अदालती फैसलों में अवरोध पैदा करने के उदाहरण पहले भी रहे हैं. न्यायमूर्ति चेम्लेश्वर ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक कानून बनाने की मांग संघ परिवार में बढ़ती जा रही है. कांग्रेस पार्टी से जुड़े संगठन ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस (एआईपीसी) की ओर से आयोजित एक परिचर्चा सत्र में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने यह टिप्पणी की. 
चेलमेश्वर ने कावेरी जल विवाद पर उच्चतम न्यायालय का आदेश पलटने के लिए कर्नाटक विधानसभा द्वारा एक कानून पारित करने का उदाहरण दिया। उन्होंने राजस्थान, पंजाब एवं हरियाणा के बीच अंतर-राज्यीय जल विवाद से जुड़ी ऐसी ही एक घटना का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘‘देश को इन चीजों को लेकर बहुत पहले ही खुला रुख अपनाना चाहिए था....यह (राम मंदिर पर कानून) संभव है, क्योंकि हमने इसे उस वक्त नहीं रोका''. 

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने  राम मंदिर के मुद्दे पर हो रही राजनीति पर आरएसएस को घेरा है. उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को कहा कि अगर राम मंदिर के लिए आरएसएस को देश में आंदोलन की जरूरत है तो वह केंद्र की सरकार को ही क्यों नहीं गिरा देती. ठाकरे ने कहा कि मोदी सरकार ने आरएसएस के समूचे एजेंडे को नजरअंदाज किया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद राम मंदिर का मुद्दा दरकिनार कर दिया गया. जब शिवसेना ने मुद्दा उठाया और मंदिर निर्माण पर जोर देने का फैसला किया तो आरएसएस अब इस मांग पर जोर देने के लिए आंदोलन की जरूरत महसूस कर रहा है. ठाकरे ने कहा कि एक मजबूत सरकार होने के बावजूद अगर आप (आरएसएस) किसी आंदोलन की जरूरत महसूस करते हैं तो इस सरकार को गिरा क्यों नहीं देते. शिवसेना प्रमुख ने कहा कि आरएसएस के कठिन-कठोर काम के चलते भाजपा केन्द्र में सत्ता में आई, लेकिन उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान का अनुच्छेद 370 निरस्त करने और समान नागरिक संहिता लागू करने समेत संघ के समूचे एजेंडा को अब ताक पर रख दिया गया है. ठाकरे ने दावा किया कि जब मैंने राम मंदिर का मुद्दा उठाया और 25 नवंबर अयोध्या जाने की घोषणा की तो दूसरे लोगों ने भी मुद्दे पर चर्चा करना शुरू कर दिया
जब चेलमेश्वर से पूछा गया कि उच्चतम न्यायालय में मामला लंबित रहने के दौरान क्या संसद राम मंदिर के लिए कानून पारित कर सकती है, इस पर उन्होंने कहा कि ऐसा हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘यह एक पहलू है कि कानूनी तौर पर यह हो सकता है (या नहीं). दूसरा यह है कि यह होगा (या नहीं)। मुझे कुछ ऐसे मामले पता हैं जो पहले हो चुके हैं, जिनमें विधायी प्रक्रिया ने उच्चतम न्यायालय के निर्णयों में अवरोध पैदा किया था''.
मुंबई से सटे उत्तन में चल रहे आरएसएस के तीन दिवसीय शिविर के समापन के मौके पर महासचिव भैयाजी जोशी ने कहा है कि राम मंदिर को लेकर अगर आवश्यकता पड़ी तो 1992 जैसा आंदोलन करेंगे. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर अध्यादेश जिनको मांगना है वो मांगेंगे, ला सकते हैं या नहीं यह फैसला सरकार को करना है. जोशी ने कहा कि राम सबके दिल में रहते हैं पर वह प्रकट होते हैं मंदिरों के द्वारा. हम चाहते हैं कि मंदिर बने. उन्होंने कहा, 'काम में कुछ बाधाएं अवश्य हैं और हम आशा करते हैं कोर्ट हिंदुओं की भावनाओं का समझ कर निर्णय करेगा.  आरएसएस के महासचिव ने कहा कि हम चाहते थे कि दीपावली के पहले कोई शुभ समाचार मिल जाए.
राम मंदिर पर बाबा रामदेव ने कहा है कि यदि न्यायालय के निर्णय में देर हुई तो संसद में जरूर इसका बिल आएगा, आना ही चाहिए. रामदेव ने आगे कहा है कि संतो और रामभक्तों ने संकल्प किया है अब राम मंदिर में और देर नहीं. वहीं राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष राम विलास वेदांती का दावा है कि राम मंदिर का निर्माण दिसंबर में शुरू हो जाएगा. उनका कहना है कि बिना किसी अध्यादेश के आपसी सहमति के आधार पर मंदिर का निर्माण किया जाएगा. अयोध्या में राम मंदिर बनेगा और लखनऊ में मस्जिद बनेगी.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में सुनवाई को टाल दिया है. इसके बाद आरएसएस ने सरकार से मांग की है कि वह संसद में कानून बनाकर जमीन का अधिग्रहण करे और मंदिर बनाने का रास्ता साफ करे. वहीं शुक्रवार को आरएसएस के शिविर में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, मोहन भागवत से मिलने पहुंचे. वहीं राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने राम मंदिर के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में प्राइवेट बिल लाने का भी ऐलान किया है. फिलहाल ऐसा लग रहा है चुनावी साल में राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर से गरमा रहा है.
आब उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी जी और उप मुख्य मंत्री ने अभी हाल में ऐलान कर दिया कि जबतक कोर्ट का फैसला आता है हम सरयू तट पर १५१ मीटर ऊंची भगवान श्री  राम की मूर्ति को स्थापित करेंगे जो कि दुनिया भर में भगवान् राम की सबसे बड़ी और ऊंची  मूर्ति होगी. संभवत: दीवाली के अवसर पर योगी जी इसकी औपचारिक घोषणा कर सकते हैं. मंदिर न सही मूर्ति तो बनाई जा सकती है. अभी हाल ही में श्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की १८२ मीटर मूर्ति का अनवारण किया जो अपने आप में अनूठी है. योगी जी मोदी जी के बाद संभावित प्रधान मंत्री की सूची में हैं तो यह पहल तो उन्हें भी करनी ही चाहिए ताकि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके. यह मुद्दा भावनात्मक से ज्यादा राजनीतिक है, जिसमे भाजपा अपना हित देख रही है... अब तक तो ऐसा ही महसूस हो रहा है क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव के साथ २०१९ में लोकसभा का चुनाव होना है तो कुछ तो भवनात्मक मुद्दा होना चाहिए जिससे हिन्दू मतदाताओं को अपनी तरफ मोड़ा जा सके.
इस प्रकार अब मंदिर मुद्दा सरकार के पाले में है और सरकार येन केन प्रकारेण इस मुद्दे को भुनाना चाहेगी. मंदिर बनाने की अगर सचमुच ईच्छा होती तो जो बिल अभी लाने की बात हो रही है वह बिल 4 साल पहले भी लाया जा सकता था. लोकसभा में सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त है ... संभवत: विरोधी पार्टियाँ भी इस बिल का विरोध नहीं करती क्योंकि अब राहुल गाँधी भी मंदिरों का चक्कर काट रहे हैं, जिसे भाजपा ढोंग बताने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. मंदिर और हिंदुत्व का ठेका तो भाजपा और भाजपा समर्थित पार्टियों का है.
अब दीवाली का त्योहार आ चुका है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम के रावण वध के बाद १४ वर्ष वनवास की अवधि पूरा कर अयोध्या पुनरागमन के अवसर पर ही दीवाली का त्योहार मनाया जाता है. इसलिए इस बार दीवाली भगवान राम के साथ- हर दिया भगवान राम के नाम .... जय श्री राम ! जय श्री राम !
-      -- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर