Wednesday 11 September 2013

मोदीमय हुआ देश!

ABP न्यूज़ और नीलसन के सर्वे के अनुसार आज देश का मूड भाजपा के पक्ष में जाता दीख रहा है. सर्वे के अनुसार अगर आज चुनाव हुए तो भाजपा को ३६% और कांग्रेस को मात्र २२% मत मिलेंगे. देश का ४७% मतदाता मोदी को प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहता है. जबकि राहुल गांधी को सिर्फ १८% और मनमोहन सिंह को १४% मतदाता ही प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहता है.
कॉरपोरेट जगत के भी ७५% प्रमुखों ने मोदी में विश्वास व्यक्त किया है. इधर भाजपा के तेज तर्रार नेता अरुण जेटली भी प्रधान मंत्री पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार की घोषणा अभी तक नहीं किये जाने से भाजपा का ही नुकसान देख रहे हैं. आर एस एस भी इस बात की घोषणा भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व से करावा लेना चाहिती है. संभव है १० सितम्बर तक कोई फैसला हो जाय.  
अभी हाल ही में ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस समारोह में जहाँ मोदी जी आमंत्रित थे, एक बच्चे के सवाल के जवाब में मोदी जी ने कहा था – “मैं प्रधान मंत्री बनने का सपना नहीं देखता, जो प्रधान मंत्री का सपना देखता है, वह बर्बाद हो जाता है”... (कहीं उनका इशारा आडवाणी की तरफ तो नहीं था.) विश्लेषक इस कथन का अपने अपने ढंग से अर्थ निकाल रहे हैं. कांग्रेस को छोडिये उनके सहयोगी दल शिवसेना ने चुटकी ली है – मोदी जी को अब समझ में आया है? लेकिन वे अपने ही दल के लोगों को कैसे समझायेंगे?... और अब तो देश का ४७% मतदाता उन्हें प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, उन्हें कैसे समझायेंगे?
योगगुरु बाबा रामदेव ने तो यहाँ तक कह दिया कि मोदी नहीं तो समर्थन नहीं. पूरे देश में हवा चल रही है - ‘मोदी लाओ देश बचाओ’ ... सोसल मीडिया भी ‘मोदीमय’ बहुत पहले से है ...इस आवाज को भाजपा नेता कब समझेंगे? (खासकर आडवाणी जी, सुषमा जी, मुरली मनोहर जोशी जी)
मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ट्विटर के माध्यम से प्रधान मंत्री पद पर कयास लगाना अभी से उचित नहीं नहीं है, कहकर मोदी जी का समर्थन/(या असमंजस की) स्थिति पैदा कर दिया है, तो गोवा के मुख्य मंत्री मनोहर परिकर द्वारा रायटर को दिया बयान और फिर खंडन...  तो छत्तीशगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह ने तो लालकिले को ही अम्बिकापुर में स्थानांतरित कर दिया, लालकिला का प्रारूप(दो करोड़ खर्च से) तैयार कर! ...इससे छतीसगढ़ के विकास का भी दर्शन होता है.   
अम्बिकापुर में नरेंद्र मोदी शुरुआत में ही कहते हैं... कई मुख्य मंत्री(नितीश पर निशाना) दिल्ली जाकर रोते-गाते हैं, हाथ फैलाते हैं. पर डॉ. रमण सिंह दिल्ली नहीं गए, हाथ नहीं फैलाये बल्कि जो संसाधन थे, उसी का विकास किया. डॉ. रमण सिंह आदमी के डाक्टर हैं और मनमोहन सिंह रूपये के डाक्टर - दोनों को दस साल मिले ... दोनों की हालत देखकर आप निर्णय कर सकते हैं कि कौन कैसा डाक्टर है!
अपने शब्द चातुर्य से वे कांग्रेस, राहुल गाँधी.  डॉ. मनमोहन सिंह और नितीश कुमार पर हमला करते रहे और रमण सिंह का गुणगान. अंत में यह कहा कि छत्तीसगढ़ अभी तेरह साल का हुआ है और तेरह साल में किसी बच्चे का पूर्ण विकास नहीं होता बल्कि असली विकास १३ से १८ साल के बीच होता है. इसलिए छत्तीसगढ़ की जनता को डॉ. रमण सिंह को एक मौका और देना चाहिए ताकि छतीसगढ़ का पूर्ण विकास हो सके.
‘गरीबी तो मन की अवस्था है’ - राहुल गाँधी ने कहा था. मतलब ‘गरीबी’ नामकी कोई चीज नहीं होती. इस बात से उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गाँधी की आत्मा को कितनी पीड़ा हुई होगी, जिन्होने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था.
उन्होंने फेसबुक, ट्वीटर आदि सोसल मीडिया आदि का भी जिक्र किया, जिसका इस्तेमाल आजकल के युवा खूब धरल्ले से कर रहे हैं, उसी के द्वारा मोदी जी की लोकप्रियता में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. पर जो युवक १८ साल के हो गये हैं, उन्हें अपने को वोट देने के अधिकार को भी हांसिल करने की आवश्यकता है. यानी वे अपना नाम वोटर लिस्ट में दर्ज करवाएं और उनका सही समय पर सही इस्तेमाल करें.
चाहे जो हो, परिवर्तन की मांग, भाजपा की लहर, और मोदी की लोकप्रियता का लाभ उठाने का यही उचित समय है, जब लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचार और महंगाई से परेशान हैं... जबतक परिवर्तन का डर नहीं रहता, सरकारें निरंकुश हो जाती है. मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री का पद बड़ी आसानी से उधार में मिल गया, जिसका वो भलीभांति निर्वहन नही कर सके ... कभी गठबंधन धर्म, तो कभी दुनिया की मंदी का हवाला देकर, देश का दीवाला निकालते रहे.  पर मोदी जी को अगर प्रधान मंत्री का पद मिलता है, तो यह उनके संघर्ष का परिणाम होगा.  .... (आशाराम की गिरफ्तारी के बाद अन्य हिंदूवादी नेताओं की तरह आशाराम का समर्थन नहीं किया, बल्कि उनकी तुलना राक्षस से कर डाली, इसके बाद ही सभी नेताओं ने अपने कदम पीछे हटा लिए ... यह भी मोदी जी के लिए सकारात्मक साबित हुआ है) 
मोदी का नाम भावी प्रधान मंत्री के उम्मीदवार के रूप में घोषणा के लिए भाजपा के अन्दर ही ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है ... अधिकांश लोग चाहते हैं कि उनकी घोषणा जल से जल्द कर देनी चाहिए ... कुछ वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी के बावजूद भी, हो सकता है, ऐलान कर दिया जाय. परिणाम चाहे जो हो ... राजनीति संभावनाओं का भी नाम है ... कुछ भी संभव है. परिवर्तन अगर कुछ सकारात्मकता लेकर आता है, तो सबको स्वीकार करनी चाहिए इसी आशा के साथ ...

जय हिंदी, जय भारत, जय हिन्द!  

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