Wednesday 11 September 2013

फूल जैसा ये है जीवन.

मुंह अँधेरे सुबह में तुम मुस्कुरा रहे थे,
धूप जैसे ही खिली तुम खिलखिला रहे थे.
दोपहर के ज्वाल में तुम बल खा रहे थे.
शाम को फिर क्या हुआ जो मुंह छिपा रहे थे.
फूल जैसा ये है जीवन बाल यौवन अरु जरा.
फूल की खुशबू कभी तो कील से यह पथ भरा.
पाल मत प्यारे अहम तू एक दिन तू जायेगा.
सारी दौलत संगी साथी काम न कोई आयेगा.
गर किया सद्कर्म वह तू साथ लेकर जायेगा 
तेरे जाने पर भी निशदिन तेरे ही गुण गायेगा

No comments:

Post a Comment