Wednesday, 21 August 2019

सकारात्मक सोच से धनात्मक उर्जा


एक व्यंग्य
सकारात्मक सोच से धनात्मक उर्जा (positive energy) मिलती है, ऐसा मैंने किसी महापुरुष या संत के मुख से सुना था. तब से मेरी सोच सकारात्मक होने लगी है! और हर चीज के सकारात्मक पहलू के बारे में सोचने लगा हूँ.
अभी हाल ही में मैंने कई मंदिरों के दर्शन किए! मंदिर में स्थापित भगवान और देवी/ देवताओं की आराधना की. जहाँ कहीं भी धार्मिक स्थान दिख जाते हैं, सर अपने आप झुक जाता है. समूह में प्रात: भ्रमण करते-करते जब हम थक जाते हैं, माँ काली के मंदिर में जाकर शीश झुका आते हैं. शक्ति स्वरूपा माँ काली के सामने शीश झुकाते ही शक्ति का संचार होने लगता है और हम फिर कई चक्कर अबाध रूप से लगा लेते हैं.
प्राकृतिक वातावरण में सैर करने/प्रकृति के सूक्ष्म अवलोकन से भी शरीर और आत्मा में नई उर्जा का संचार होता है और हम तरोताजा महसूस करते हैं. काफी लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए भी प्राकृतिक वातावरण की शरण लेते हैं.
भजन गाने/सुनने, रामचरित मानस का पाठ करने से, हनुमान चालीसा पाठ करने से, गीता पाठ करने से भी नया आत्मिक बल प्राप्त होता है.
किसी की आप किसी भी तरीके से मदद पहुंचाते हैं तो आपको स्वान्तः सुखाय का आनंद प्राप्त होता है और आप धनात्मक उर्जा प्राप्त करते हैं. किसी की मदद न सही, आपके द्वारा किसी को कष्ट न पहुंचे – यह भी एक प्रकार का स्वान्तः सुखाय ही है. परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम – महर्षि वेदव्यास ने भी कहा है.
इन्हें या तो सुनी सुनाई बात कह सकते हैं या खुद अनुभव कर सकते हैं. पर एक चीज आजकल स्वयंसिद्ध होती जा रही है जैसे भक्ति का जुनून अगर आप में हो तो आप कुछ भी कर गुजर सकते हैं. जैसे जय श्री राम बोलने मात्र से ही किसी का खून कर देने तक की शक्ति प्राप्त हो जाती है और तथाकथित भक्तों का समर्थन भी हासिल हो जाता है जो उसे जायज भी ठहराने लगते हैं. जय श्री राम कहने मात्र से ही आप राम भक्त और देश भक्त भी हो जाते हैं. जय श्रीराम का नारा पतित-पावनी गंगा की तरह है जिसमे डुबकी लगाते ही आपके सारे पाप धुल जाते हैं.
उसी तरह गोरक्षा का संकल्प(गोपालन नहीं) ही आपको उर्जावान बनाता है. जैसे ही आप संकल्प करते हैं गोमाता कामधेनु बन जाती है और तब आप जो चाहे कर सकते हैं. महर्षि वशिष्ट की भांति विश्वामित्र मुनि की सेना को भी परास्त कर सकते हैं. इसके बाद एक और नारा है भारत माता की जय! और वन्दे मातरम! ये दोनों नारे देश भक्ति सिखाती है और देश की रक्षा के लिए तो हर देश भक्त नागरिक शीश कटाने को तैयार ही रहता है. 
अगर आप यह सब नहीं कर सकते तो भी एक और उपाय है आपके लिए – वह है अपने विरोधियों को जीभर कर गाली देने से भी आपके अन्दर जबरदस्त उर्जा का संचार होता है. यह विरोधी आपका पड़ोसी देश पाकिस्तान भी हो सकता है या विरोधी पार्टी का नेता भी ...
आप दिन भर पाकिस्तान को गाली दीजिए या गाली देते समय तुलसी की माला के सहारे गिनते भी जाइए, एक माला दो माला या १०८ माला गाली दीजिए, और अन्दर से महसूस कीजिए कितनी उर्जा पैदा होती है. बहुत सारे बुजुर्ग जो प्रात: भ्रमण में चार-पांच चक्कर लगाने के बाद थक जाते हैं इसी पाकिस्तान के सहारे 10 चक्कर में भी नहीं थकते. फिर नेहरु गांधी परिवार के सातों पुश्त तो है ही असीम उर्जा का भण्डार! हाँ गांधी से याद आया. आजकल तो ऐसे-ऐसे विडियो आ गए है जिनमे महात्मा गाँधी को घोर हिंसक साबित किया गया है और नाथूराम गोडसे को महात्मा दधीचि. अब तो महात्मा नाथूराम गोडसे- ‘आधुनिक भारत के दधीचि’ को सम्मानित करते हुए कवि सम्मलेन भी आयोजित किये जाने लगे हैं. कहीं-कहीं पर गोडसे भगवान को अवतरित होते दिखाया जाने लगा है और वे फिर से महात्मा गाँधी के पुतले को गोली मारते हैं ताकि गाँधी की आत्मा और गांधी समर्थकों को अधिक से अधिक कष्ट पहुंचा सकें.
मैं तो अब मानने लगा हूँ कि कुंठित अर्थशास्त्री जो ख़राब आर्थिक स्थिति का रोना रो रहे हैं उन सबको उपर्युक्त सकरात्मक उर्जा का प्रयोग करना ही चाहिए ताकि देश की आर्थिक स्थिति में भी पंख लग जाए. सभी उद्योगपतियों को अपने परिसर में कर्मचारियों के साथ ‘जय श्री राम’ से लेकर ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ का कम से कम ३६ घंटे का अखंड जाप करवाना चाहिए, फिर देखिए मंदी की जगह विकास कैसे बुलेट ट्रेन की स्पीड से दौड़ने लगेगा. बीच-बीच में कार रैली, मोटर साइकिल रैली भी आयोजित करते रहना चाहिए और कर्नाटक के बागी विधायकों के जैसे ११ करोड़ की रोल्स रॉयस फैंटम VIII लग्जरी कार गाड़ी खरीद कर दौड़ लगानी चाहिए ताकि ऑटो सेक्टर की मंदी को रोका जा सके.
एक और बात- पूरे देश में एक देश- एक कानून, के साथ एक पार्टी पर भी बल देना चाहिए. बेकार का विपक्ष अड़ंगा लगाता है संसद का समय बर्बाद करता है. एक पार्टी रहेगी तो बार-बार चुनाव करने के झंझट से भी छुटकारा मिलेगा और कर द्वारा अर्जित जनता के पैसे का अपव्यय भी रुकेगा. फिर झूठ-मूठ का आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय आदि संस्थाओं को विरोधी पार्टियों के ऊपर लगाने की तोहमत नहीं उठानी पड़ेगी. मैंने अपनी समझ के अनुसार राय रक्खी है. बाकी तो हमारे शीर्षस्थ और मध्यस्थ नेता खुद ही समझदार हैं, उन्हें भला हम क्या ज्ञान दे सकते हैं.
जय श्री राम! वन्दे मातरम! भारत माता की जय! पाकिस्तान मुर्दाबाद! कांग्रेस मुक्त नया भारत! या भारत का भी कुछ नया नामकरण करने की जरूरत हो तो उस नए नाम के भारत की भी जय!       
मेरा दिल हमेशा सकारात्मक सोचता है. आपलोगों के विचार कुछ अलग हट के हो सकते हैं. उसमे भला मुझे क्यों आपत्ति होगी. यही तो एक स्वतंत्रता मिली है हम सबको. हमलोग अपनी अपनी बात कह सकते हैं, लिख सकते हैं. जयहिंद!
आज इतना ही .......
-       -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 3 August 2019

रवीश कुमार को रैमॉन मैग्सेसे पुरस्कार


५ दिसम्बर १९७४ को बिहार के मोतिहारी में जन्मे रवीश कुमार एक भारतीय टीवी एंकर, लेखक और पत्रकार हैंजो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को मुखरता के साथ जनता के सामने रखते हैं. रवीश एनडीटीवी समाचार नेटवर्क के हिंदी समाचार चैनल NDTV इण्डिया में वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, और चैनल के प्रमुख कार्यक्रमों जैसे 'हमलोगऔर 'रवीश की रिपोर्टके होस्ट रहे हैं. रवीश कुमार का ‘प्राइम टाइम’ शो वर्तमान में काफी लोकप्रिय है. २०१६ में “द इंडियन एक्सप्रेस”  ने अपनी '१०० सबसे प्रभावशाली भारतीयों' की सूची में उन्हें भी शामिल किया था. रवीश कुमार ने हिंदी टेलीविज़न पत्रकारिता को नया मुकाम दिया. उन्होंने लोयोला हाई स्कूल, पटना, से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, फिर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह दिल्ली आ गये. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया.
अबतक उन्हें निम्न पुरस्कारों से विभूषित किया गया है.
१.      हिंदी पत्रिका रंग में गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार २०१० जो उन्हें २०१४ में राष्ट्रपति के हाथों प्रदान किया गया.
२.      पत्रिका रंग में रामनाथ गोयंका पुरस्कार २०१३
३.      इंडियन टेलीविज़न पुरस्कार २०१४ – उत्तम हिंदी एंकर
४.      कुलदीप नायर पुरस्कार २०१७
५.      रेमन मैग्सेसे पुरस्कार – अगस्त २०१९ – ‘रैमॉन मैग्सेसे’ पुरस्कार को एसिया का ‘नोबेल’ पुरस्कार के बराबर माना जाता है.

पत्रकारिता जगत में अपनी अलग पहचान बना चुके एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर रवीश कुमार  को इस बार वर्ष 2019 के 'रैमॉन मैगसेसे' पुरस्कार से सम्मानित किया गया. एनडीटीवी के रवीश कुमार को ये सम्मान हिंदी टीवी पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए मिला है. 'रैमॉन मैगसेसे' को एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है. रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार एशिया के व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमॉन मैगसेसे की याद में दिया जाता है.
पुरस्कार संस्था ने ट्वीट कर बताया कि रवीश कुमार को यह सम्मान "बेआवाजों की आवाज बनने के लिए दिया गया है." रैमॉन मैगसेसे अवार्ड फाउंडेशन ने इस संबंध में कहा, "रवीश कुमार का कार्यक्रम 'प्राइम टाइम' 'आम लोगों की वास्तविक, अनकही समस्याओं को उठाता है." साथ ही प्रशस्ति पत्र में कहा गया, 'अगर आप लोगों की आवाज बन गए हैं, तो आप पत्रकार हैं.'  रवीश कुमार ऐसे छठे पत्रकार हैं जिनको यह पुरस्कार मिला है. इससे पहले अमिताभ चौधरी (1961), बीजी वर्गीज (1975), अरुण शौरी (1982), आरके लक्ष्मण (1984), पी. साईंनाथ (2007) को यह पुरस्कार मिल चुका है.
एनडीटीवी के लिए भी यह एक गौरव का दिन है. रवीश कुमार ने बहुत लंबा सफर तय किया है. बहुत नीचे से उन्होंने शुरुआत की और यहां तक पहुंचे हैं. वर्ष 1996 से रवीश कुमार एनडीटीवी से जुड़े रहे हैं. शुरुआती दिनों में एनडीटीवी में आई चिट्ठियां छांटा करते थे. इसके बाद वो रिपोर्टिंग की ओर मुड़े और उनकी सजग आंख देश और समाज की विडंबनाओं को अचूक ढंग से पहचानती रही. उनका कार्यक्रम 'रवीश की रिपोर्ट' बेहद चर्चित हुआ और हिंदुस्तान के आम लोगों का कार्यक्रम बन गया.
बाद में एंकरिंग करते हुए उन्होंने टीवी पत्रकारिता की जैसे एक नई परिभाषा रची. इस देश में जिसे भी लगता है कि उसकी आवाज कोई नहीं सुनता है, उसे रवीश कुमार से उम्मीद होती है. टीवी पत्रकारिता के इस शोर-शराबे भरे दौर में उन्होंने सरोकार वाली पत्रकारिता का परचम लहराए रखा है. सत्ता के खिलाफ बेखौफ पत्रकारिता करते रहे. आज उनकी पत्रकारिता को एक और बड़ी मान्यता मिली है.
रवीश कुमार के अलावा वर्ष 2019 रैमॉन मैगसेसे अवार्ड के चार अन्य विजेताओं में म्यांमार से को स्वे विन, थाईलैंड से अंगखाना नीलापजीत, फिलीपींस से रेमुंडो पुजांते कैयाब और दक्षिण कोरिया से किम जोंग-की हैं.
यह अवॉर्ड मिलने के बाद चारों ओर से रवीश कुमार को बधाइयां मिल रही हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री व पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन के बाद अब रवीश कुमार को बधाई देने वालों में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का और राहुल गाँधी का नाम भी जुड़ गया है.
फेसबुक और ट्विटर पर अनेक लोग जो उनको जानते और चाहते हैं, बधाइयाँ दी हैं. कुछ लोगों ने अवार्ड की ही आलोचना चालू कर दी है. यह सब अभिव्यक्ति की आजादी है. यही तो वे भी चाहते हैं. पत्रकार को सत्यनिष्ट और सजग होना चाहिए. सत्ता की चाटुकारिता नहीं बल्कि समय समय पर आलोचना भी की जानी चाहिए. आज के समय में अधिकांश मीडिया हाउस को सत्ता द्वारा अपहरण कर लिया गया है, वहां ऐसे निडर और निष्पक्ष पत्रकार की सख्त जरूरत है. पत्रकार वही है, जो जनता की आवाज बन सके, सत्य को सामने रख सके.
सत्ता की आलोचना के चलते रवीश कुमार को पिछले दिनों सोशल मीडिया पर बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. उन्हें सरेआम गालियाँ और धमकियाँ दी जाती रही है. उनके जैसे कई अन्य पत्रकारों को, जिन्होंने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई उन्हें अपनी नौकरी भी गंवानी पडी है. पर उन्हें NDTV ने अपने साथ बनाये रक्खा इसलिए रवीश कुमार ने पूरी टीम के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है. इस सम्मान से वे अभिभूत तो हैं ही, किन्तु उनको वहां तक पहुँचाने में पूरी टीम का हाथ है. अकेला आदमी सब कुछ नहीं कर सकता, उसे टीम ही आगे बढ़ाती है.
अपने प्राइम टाइम के कार्यक्रम में रवीश कुमार ने एक बार नौकरी पर लगातार श्रृंखला चलाई जिससे काफी लोगों को रोजागार और नौकरियाँ मिली. ऐसे बहुत सारे नौजवान रवीश के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हैं. विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थाओं पर भी कई कार्यक्रम किये हैं. दूर दराज के गांवों और शहरों में भी विपरीत परिस्थितयों में रिपोर्टिंग की है. कई बार सचमुच का रोड शो उन्होंने भी क्या है. निचले तबकों के दर्द को खुद महसूस कर उसकी समस्या को उजागर किया है. इससे कई सरकारों, और प्रशासनिक अधिकारियों की आँखें भी खुली है.
कई बार वे क्लिष्ट विषयों को भी आम आदमी के सामने लाते रहे. सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक और पर्यावरण से सम्बंधित विषयों पर भी कार्यक्रम करते रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि प्राइम टाइम करने के पहले वे खुद उसपर अध्ययन और शोध कर चुके होते हैं, तब ही वे कार्यक्रम पेश करते हैं. उन्हें जब धमकियाँ दी जा रही थी तो उन्होंने प्रधान मंत्री के नाम से भी खुला पत्र लिखा था. वे लिखते हैं मैं इस पत्र को आपके पास डाक से भेज रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप इसपर अवश्य ध्यान देंगे.
काफी लोगों ने उन्हें ‘रबिश’ कहा, जातिवादी, वाममार्गी कहा तब भी वे अपनी आवाज को उसी बुलंदी के साथ उठाते रहे. आज भी वे नए पत्रकारों को खूब पढ़ने और खूब मिहनत करने की सलाह देते हैं. पढ़ना और मिहनत करना हर हाल में जरूरी है. सरल रास्तों से चलकर कोई भी उच्च मुकाम तक पहुँच सकता है, पर कठिन रास्तों को लांघते हुए ऊंचाई पर जो पहुंचता है, उसका नाम सभी लेते हैं. हमारी भारत भूमि तमाम ऐसे लोगों से परिपूरित है. समय आने पर वे भी अवश्य खिलते हैं, चमकते हैं, राह दिखाते हैं.
एक बार फिर से बेजुबानों की आवाज उठानेवाले निर्भीक और निडर पत्रकार रवीश कुमार को तहेदिल से बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं. उम्मीद है वे अपने उद्देश्य में आगे भी ऐसे ही लगे रहेंगे! जयहिंद! जय भारत! वन्दे मातरम!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Saturday, 27 July 2019

ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी की मार


ख़बरों के अनुसार घरेलू वाहन बनाने और बेचने वाली कंपनी टाटा मोटर्स को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 3,679.66 करोड़ रुपये का शुद्ध एकीकृत घाटा हुआ है. इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में कंपनी को 1,862.57 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. कंपनी ने हाल ही में  शेयर बाजार को यह जानकारी दी. कंपनी ने बताया कि समीक्षावधि में उसकी कुल आय 61,466.99 करोड़ रुपये रही जो इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में 66,701.05 करोड़ रुपये थी. समीक्षावधि में कंपनी की कुल बिक्री 22.7 फीसद घटकर 1,36,705 इकाई रही. कंपनी की ब्रितानी इकाई जगुआर लैंड रोवर का कर पूर्व नुकसान 39.5 करोड़ पौंड (करीब 3408.91 करोड़ रुपये) रहा जो इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में 26.4 करोड़ पौंड (करीब 2278.36 करोड़ रुपये) था. एकल आधार पर कंपनी 97.10 करोड़ रुपये के शुद्ध नुकसान में है. जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में कंपनी को एकल आधार पर 1,187.65 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था. बीएसई पर कंपनी का शेयर गुरुवार को 4.56 फीसद टूटकर 144.35 रुपये पर बंद हुआ.
जमशेदपुर स्थित टाटा मोटर्स के अधिकांश पार्ट और छोटे-मोटे कल-पुर्जे जमशेदपुर के ही  आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित छोटे और मंझोले स्तर की कंपनियां बनाती हैं. ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी का असर उन कंपनियों पर भी पड़ा है और ३० हजार से ज्यादा कामगार अभी बेरोजगार हो गए हैं.
वाहन कलपुर्जा विनिर्माताओं के अखिल भारतीय संगठन एक्मा(Automotive Component Manufacturing Association of India) ने वाहन क्षेत्र के लिए माल एवं सेवाकर (जीएसटी) की दर एक समान 18 प्रतिशत करने का अनुरोध किया है, ताकि पूरे वाहन उद्योग में मांग को बढ़ाया जा सके जिससे करीब 10 लाख नौकरियां बचाने में मदद मिलेगी. अभी वाहन बिक्री में लगातार मंदी रहने की वजह से यह नौकरियां दांव पर लगी हैं. वाहन कलपुर्जा उद्योग करीब 50 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है. एक्मा ने बैटरी चालित वाहनों की नीति को भी स्पष्ट करने के लिए कहा है.
ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एक्मा) के अध्यक्ष राम वेंकटरमानी ने कहा, 'वाहन उद्योग अभूतपूर्व मंदी का सामना कर रहा है. हर श्रेणी में वाहनों की बिक्री पिछले कई महीनों से भारी दबाव का सामना कर रही है.' उन्होंने कहा कि वाहन कलपुर्जा उद्योग की वृद्धि पूरी तरह से वाहन उद्योग पर निर्भर करती है. मौजूदा स्थिति में वाहन उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की कटौती हुई है जिससे कलपुर्जा उद्योग के सामने संकट खड़ा हो गया है. उन्होंने कहा, 'यदि यही रुख जारी रहता है तो करीब 10 लाख लोग बेरोजगार हो सकते हैं.' वेंकटरमानी ने कहा कि कुछ स्थानों पर छंटनी का काम शुरू भी हो चुका है.
जीएसटी प्रणाली के तहत पहले से ही करीब 70 प्रतिशत वाहन कलपुर्जों पर 18 प्रतिशत की दर से कर लग रहा है. जबकि बाकी बचे 30 प्रतिशत पर 28 प्रतिशत जीएसटी है. इसके अलावा वाहनों पर 28 प्रतिशत जीएसटी के साथ उनकी लंबाई, इंजन के आकार और प्रकार के आधार पर एक से 15 प्रतिशत का उपकर भी लग रहा है. उन्होंने कहा कि मांग में कमी, भारत स्टेज-4(बीएस-4)  से भारत स्टेज-6(BS- 6)  उत्सर्जन मानकों के लिए हाल में किए गए निवेश, ई-वाहन नीति को लेकर अस्पष्टता से वाहन उद्योग का भविष्य अनिश्चित दिख रहा है और इस वजह से भविष्य के सभी निवेश रुक गए हैं. वेंकटरमानी ने कहा, 'सरकार की ओर से तत्काल हस्तक्षेप किए जाने की जरूरत है. हमारी ठोस मांग है कि वाहन और वाहन कलपुर्जा क्षेत्र को 18 प्रतिशत जीएसटी दर के दायरे में लाया जाएगा.'
संगठन ने इसके अलावा स्थिर इलेक्ट्रिक वाहन नीति की जरूरत बतायी. वेंकटरमानी ने कहा कि ई-वाहन को पेश करने के लक्ष्य में और कोई भी बदलाव करने से देश का आयात बिल बढ़ेगा जबकि देश के मौजूदा कलपुर्जा उद्योग को भारी नुकसान होगा.
वैसे कमोबेश हर क्षेत्र में ही मंदी का माहौल है, पढ़े लिखे युवा बेरोजगार हैं या बहुत कम वेतन पर गुजारा कर रहे हैं. सीधी सी बात है कि अगर आमदनी नहीं होगी तो क्रय-शक्ति कहाँ से बढ़ेगी. क्रय-शक्ति नहीं बढ़ेगी तो मांग में गिरावट आयेगी और मंदी की मार झेलनी ही पड़ेगी. इधर मानसून की देरी से और वर्षा की कमी से बिहार, झारखण्ड के अधिकांश हिस्से सुखाड़ की चपेट में हैं. खरीफ की बुवाई नहीं हो पाई है. तो किसानों की आमदनी में भी कमी और उत्पाद की कमी से जिंसों के दाम बढ़ने की पूर्ण संभावना है. कृषि उत्पाद में मंदी से कृषि कार्य में लगने वाले संसाधनों की खपत में भी कमी आयेगी. यानी परेशानी ही परेशानी. उधर उत्तर बिहार और असम में बाढ़ के कारण लाखों लोग बेघर हुए हैं. आपदा चारो तरफ है. पानी की किल्लत की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है. जंगलों के कटने से प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है और जलवायु परिवर्तन का असर लगभग पूरे विश्व में है.
हम चाहे चाँद पर चले जाएँ या मंगल ग्रह पर रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता रहेगी ही. ऊपर से जनसंख्या का दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाना समस्या को बढ़ाता ही है. समस्या है तो समाधान भी है और समाधान के लिए सरकार के साथ-साथ समाज और हर व्यक्ति को सोचना होगा और समाधान निकालने का हर संभव प्रयास करना ही होगा.
दूसरे विकासशील और विकसित देश की सरकारें और वहां की जनता भी देश के उत्थान के बारे में चिंतित और प्रयत्नशील रहती हैं. वैसे ही हम सबको जागरूक होकर प्रयत्न करना होगा. गैरजरूरी और विवादित मुद्दों पर ज्यादा ध्यान न देकर आनेवाले कल की क्या तस्वीर होनेवाली है, इसपर विचार करना ही होगा.
कृषि और किसान हमेशा से उपेक्षित रहा है जबकि इनपर ही हम सभी अवलंबित हैं. कृषि पर अनुसन्धान और उसका जमीनी स्तर तक क्रियान्वयन जरूरी है. कम समय में, कम लागत पर फसलें कैसे अधिक उपजाई जाय, इसपर अनुसन्धान जरूरी है. साथ ही कृषकों को उसके उत्पाद की सही कीमत मिले यह भी जरूरी है, अन्यथा बहुत सारे किसान या तो आत्महत्या कर रहे हैं या कृषि कार्य से विमुख होकर शहर की तरफ कोई रोजगार के लिए भाग रहे हैं.
मेरा निवेदन तमाम अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों और समाजशास्त्रियों से है कि सब लोग मिल बैठकर समस्या का हल ढूढें और देश को प्रगति के पथ पर आरूढ़ करें. तभी हमारा देश समृद्ध संपन्न और विश्वगुरु बनने की तरफ बढ़ेगा. अपराध पर लगाम लगेगा. तमाम बेरोजगार लोग ही गलत कार्यों में लगाये जाते हैं, वे ही नक्सली या आतंकवादी बनते हैं. इसलिए चाहिए हर हाथ को काम और उचित मजदूरी. आप अगर अपने काम में व्यस्त हैं तो गलत काम की तरफ झुकाव नहीं होगा. अन्यथा ‘खाली मन शैतान का घर’ होता है यह तो सभी जानते हैं. ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया’ यही तो हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है. यही हम प्रार्थना भी करते हैं. आइये हम सब मिलकर भारत को समृद्ध और संपन्न बनायें. आपसी सौहार्द्र का वातावरण बनायें और प्रेम को बढ़ावा दें. प्रेम अमूल्य वरदान है जो हम सबको आपस में जोड़े रखता है.
जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Sunday, 30 June 2019

मानसून की देरी और वर्षा की कमी से परेशानी


हम सभी मित्रगण शाम को एक जगह मैदान में बैठे थे. यह एक कैंपस की खुली जगह है जहाँ छोटे बच्चे क्रिकेट भी खेल लेते हैं और दुर्गा पूजा के समय एक समारोह भी हो जाता है. एक दो बूँद झींसी गिर रही थी. बादल जमकर छाये थे पर वर्षा नहीं के बराबर हुई. बल्कि जो पानी गिरा भाप बन कर उड़ गया और वातावरण में ऊमस व्याप्त हो गया. मॉनसून पर ही चर्चा चल रही थी. अचानक एक मित्र ने कहा- यार इधर एक भी बड़ा पेड़ नहीं है. छोटे छोटे पौधे तो हैं पर बड़ा पेड़ नहीं है. इसी शहर के दुसरे इलाके में अच्छी वर्षा हो गई पर हमारे इलाके में आकर उड़ गई. दरअसल बड़े पेड़ ही बादलों को अपनी और आकर्षित करते हैं. तभी वर्षा होती है. हमने भी देखा है पहाड़ों पर जहाँ बड़े बड़े वृक्ष के घनघोर जंगल हैं, हमेशा अच्छी वर्षा हो जाती है. उधर बादल पहाड़ों, पेड़ों से अठखेलियाँ करते हुए बरस जाते हैं. ये बादल सड़कों पर भी बिखड़े रहते हैं, पर्यटक ऐसी जगहों पर जाने के लिए, लुत्फ़ उठाने के लिए लालायित रहते हैं. हालाँकि वहां भी वे सभी सुविधा चाहते हैं, फलस्वरूप वहां भी पहाड़ो और जंगलों को काटकर सड़कें, होटल, लॉज आदि बनाये जा रहे हैं और बस्तियां बसती जा रही है. इस प्रकार प्रकृति का क्षरण तो वहां भी हो ही रहा है. पर अभी भी पर्याप्त जंगल और पहाड़ हैं.
जैसे जी हम विकसित हो रहे हैं, कंक्रीट के जंगलों से घिरते जा रहे हैं. वर्षा कम होती जा रही है. वर्षा होती भी है तो पानी जमीन के अन्दर नहीं जा पाता है. नालों नदियों से होता हुआ समुद्र माँ चला जाता है. फलस्वरूप पानी की कमी से पूरा देश त्राहिमाम कर रहा है. भूगर्भ जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है. इस संकट से सबसे ज्यादा चेन्नई जूझ रहा है. वहां टैंकर से सीमित मात्रा में पानी लोगों तक पहुँचाया जा रहा है. लोग घंटों कतार में लगकर अपने लिए पानी जुटा पाते हैं, वह भी सीमित मात्रा में.  
इस बार केरल में भी मानसून देर से आया पूरे भारत में भी देर से आने और कम वर्षा होने की भविष्यवाणी की जा रही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार- मानसून के गुजरात पहुंचने के साथ ही सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में मूसलाधार बारिश हुई है. उसने बताया कि राज्य के अन्य जिलों में भी बारिश हुई है. एसईओसी से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटों में, बुधवार सुबह तक 30 तालुका में 25 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई है. इनमें से ज्यादातर तालुका सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात क्षेत्र में हैं.
वहीं देश के पश्चिमी और पूर्वी भाग में कई इलाकों में बारिश हुई लेकिन उत्तरी इलाकों में गर्मी का प्रकोप जारी है. गोवा के दूरदराज के इलाकों में भारी बारिश हुई. इसके अलावा पश्विम बंगाल और सिक्किम में भी खूब बादल बरसे. दिल्ली में अधिकतम तापमान 41 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. मौसम विभाग के अनुसार अगले दो चार दिन मौसम के ऐसे ही बने रहने की संभावना है और रविवार को बारिश होने के आसार हैं. पश्चिमी राजस्थान में हल्की से मध्यम बारिश हुई और इससे गर्मी के प्रकोप को झेल रहे लोगों को राहत मिली. बीकानेर में पारा 43.5 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. 
उत्तर प्रदेश में कई जगह बारिश होने का अनुमान है. राज्य में प्रयागराज सबसे गर्म रहा. यहां पर तापमान सामान्य से छह डिग्री अधिक होकर 42.3 डिग्री सेल्सियस पर आ गया. जम्मू भी गर्म हवाओं की चपेट में रहा. यहां पारा सामान्य से चार डिग्री अधिक होकर 41.6 डिग्री सेल्सियस पर आ गया. चंडीगढ़ में अधिकतम तापमान 38.7 डिग्री सेल्सियस रहा. पंजाब के अमृतसर में अधिकतम तापमान 41.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. हिमाचल प्रदेश का ऊना प्रदेश में सर्वाधिक गर्म रहा. यहां पर पारा 39.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि शिमला में तापमान 26.3 डिग्री सेल्सियस रहा.
बिहार की राजधानी पटना सहित राज्य के कई हिस्सों में पिछले 24 घंटे में हुई हल्की बारिश के बाद तापमान में गिरावट दर्ज की गई है. पटना तथा आसपास के हिस्सों में आंशिक बादल छाए हुए हैं. पटना का गुरुवार को न्यूनतम तापमान 26.0 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. मौसम विभाग ने अपने पूर्वानुमान में बताया है कि राज्य के कई हिस्सों में अगले एक-दो दिनों में हल्की बारिश हो सकती है, लेकिन झमाझम बारिश के लिए लोगों को जुलाई का ही इंतजार करना होगा. इस दौरान, राज्य के अधिकांश हस्सों में हल्के बादल छाए रहेंगे. 
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित राज्य के कई अन्य हिस्सों में हल्के बादल छाने से ऊमस का असर बढ़ गया है. राज्य के निमांड-मालवा अंचल सहित अन्य हिस्सों में मानसून दस्तक दे चुका है. बीते 24 घंटों के दौरान कई हिस्सों में बारिश हुई. वहीं गुरुवार की सुबह से हल्के बादल छाए हुए हैं, गर्मी का असर कम है मगर उमस परेशान करने वाली है. मौसम विभाग के अनुसार, आगामी 24 घंटों में राज्य के कई हिस्सों में बादल बरस सकते हैं.  
राज्य के मौसम में बदलाव का क्रम बना हुआ है.
झाड़खंड प्रदेश हालाँकि जंगल और पहाड़ों से घिरा है, पर इस बार मानसून की देरी से किसानों के साथ आमजन भी गर्मी से परेशान हैं. झाड़खंड में इस साल जून में सामान्य से 55 फीसदी कम बारिश हुई है। राज्य में मानसून के अचानक कमजोर होने से अभी ज्यादा बारिश के आसार भी नहीं हैं। ऐसे में राज्य में सूखे के खतरे की आशंका बढ़ गई है। जानकारी के अनुसार से देर से मानसून आने के कारण पूरे राज्य में एक जून से अब तक केवल 62.7 मिमी बारिश हुई है जबकि राज्य में 30 जून तक 197.5 मिलीमीटर बारिश सामान्य रूप से होती है. पानी की किल्लत यहाँ भी है. कल कारखाने और विकास के क्रम में कंक्रीट के जंगल हाल फिलहाल में खूब विकसित हुए हैं.
कुछ लोग वायु तूफ़ान को भी मानसून को देर से आने में हाथ बता रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट (दैनिक भास्कर) के अनुसार पिछले आठ से दस सालों में लगातार मानसून देर से आ रहा है और औसत बारिश में २०% से ५०% की कमी दर्ज की गई है. और इस कमी को पेड़ों की कमी से जोड़कर देखा जाना चाहिए. कल कारखानों के साथ शहर और गाँव भी विकसित हो रहे हैं. लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं और उस अनुपात में लगाये नहीं जा रहे हैं. फलत: वर्षा की कमी, तापमान में बृद्धि, भूगर्भ जल का लगातार गिरता स्तर, साथ ही प्रदूषित वातावरण को झेलने को हम सब मजबूर हैं.
प्रधान मंत्री श्री मोदी वैश्विक स्तर पर भी ग्लोबल वार्मिंग और आतंकवाद को सबसे बड़ी चुनौती को व्यक्त कर चुके हैं. हम सबको मिलजुलकर सोचना ही होगा की कैसे खाली जगहों में वृक्षारोपण कर वातावरण को प्रदूषण से बचाया जाय. व्यक्तिगत वाहनों के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल किया जाय. जल की बर्बादी को रोका जाय. वर्षा जल संचयन के अधिक से अधिक उपाय किये जाएँ. अंत में कुछ पंक्तियाँ
कुछ पादप अगर बड़े होते, धरती पर स्वयम खड़े होते.
छाया देते गर्मी में वे, फल प्राणवायु भी देते वे.
हमने ही उनको काटा है, अब ठिंगना सा कुछ नाटा है.
गर होते घने बड़े जंगल, तब होता मंगल ही मंगल
अब भी मानव तुम चेतो भी, कुछ पेड़ लगाओ अभी अभी.
कुछ पेड़ लगाओ अभी अभी.
-      - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday, 22 June 2019

मेघालय की राजधानी शिलॉंग – पर्यटन के लिए बेहतर


मेघालय यानी ‘मेघों का आलय’ ‘मेघों का घर’. जंगल और पहाड़ों के बीच बसा मेघालय बड़ा ही रमणीक है. गर्मी की छुट्टियों में सपरिवार वहां जाना और विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करना स्वयं को आनंदित कर देता है. यहाँ के झरने, गुफाएं, घाटियाँ, पहाड़ों पर बने साफ़ सुथरे मकान, पर्वतों की ऊँचाइयाँ, मन को मोहित करती हैं तो विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे से परिपूरित, मेघालय में वानस्पतिक जडी बूटियों की भी भरमार है. यहाँ के वातावरण में फूलों की खुशबू, वनस्पतियों की आभा, झरनों और झीलों की कलकल निनाद सबकुछ आपको आकर्षित करती है. आप यहाँ खूब जोर-जोर से सांस लेकर अपने फेफड़े को ताजी हवा से भर सकते हैं. यहाँ के लजीज व्यंजन और ताजे पके फल खाकर भी अपने स्वास्थ्य को सुगढ़ बना सकते हैं.
यहाँ की सड़कें जो पहाड़ों को काटकर बड़े ही अच्छे ढंग से बनाई गई है, अच्छी और रख-रखाव से व्यवस्थित है. यहाँ के लोग बड़े ही अनुशासित और नियम को पालन करनेवाले हैं. गाड़ियों की कतारें लग जाती हैं, पर सभी लोग अपने ‘लेन’ में ही रहते हैं. गाड़ियाँ धीरे-धीरे ही सही पर आगे बढ़ती जातीं हैं. बिना ट्रैफिक पुलिस के भी लोग यातायात नियमों का पालन करते हैं. सफाई के लिए मशहूर भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसा मेघालय का मावलिननोंग 2003 से लगातार एशिया का सबसे स्वच्छ गांव बना हुआ है . डीएनए की एक ख़बर के मुताबिक मेघालय के ईस्ट-खासी हिल जिले में बसे इस गांव की आबादी महज 500 है. यहाँ बांस के बने सीढीनुमा मचान है जहाँ से आप बंगला देश के सीमावर्ती क्षेत्र देख सकते हैं. बांस के मचान पर चढ़ना भी एक रोमांच का अनुभव देता है. सफाई के प्रति यहाँ के लोग जागरूक हैं न खुद गन्दा करते हैं न गन्दा करने देते हैं. सैलानियों को भी यहाँ बताया जाता है, हर जगह कूड़ा कचड़ा न फेंकें. कूड़ा कचड़ा फेंकने के लिए जगह-जगह कूड़ेदान बने हुए हैं. शौचालय की भी जगह-जगह उचित व्यवस्था है.
इसके अलावा कुछ और भी दर्शनीय स्थान हैं जिनकी सूची आपको गूगल पर मिल जायेगी. मैं कुछ स्थानों के बारे में यहाँ चर्चा भर कर रहा हूँ.
१.      डबल डेकर लिविंग रूट ब्रिज – बरगद के साथ अन्य जंगली पेड़ों के जड़ इस प्रकार आपस में गुंथे हुए हैं, प्रकृति के साथ मनुष्य की भी कारीगरी ही कही जायेगी कि इस रूट ब्रिज से होकर आप झरना नुमा नदी को पार कर सकते हैं. हालाँकि वहां के लोग ज्यादा देर पुल पर ठहरने से मना करते हैं. वहां तक पहुँचने के लिए पत्थर की ही सीढ़ियाँ बनी हुई है. आप कल कल बहती हुई पहाड़ी नदी को देख कर आनंदित महसूस करेंगे.
२.      नोह्कलिकाई वाटर फॉल – चेरापूंजी से करीब ७ किलोमीटर दूर नोह्कलिकाई फॉल भारत का ५वाँ सबसे ऊंचा वाटर फॉल है. इस वाटर फाल के पीछे एक कहानी है. कहते हैं कि का लिकाई नाम की एक महिला जिसने अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी की. पहले पति से उसकी एक बेटी थी. का लिकाई अपनी बेटी से बहुत प्यार करती थी. दूसरे पति को यह पसंद नहीं था. एक दिन लिकाई किसी काम से बहार गई हुई थी. उसके दुसरे पति ने उसकी बेटी की हत्या कर उसके टुकड़े को भोजन में डालकर पका दिया. लिकाई लौटी तो उसे घर में बेटी की उंगली मिली जिससे पूरा मामला खुला. कहते हैं कि  इसके बाद लिकाई ने इसी वॉटरफॉल में कूदकर अपनी जान दे दी. उसके बाद से ही इस फॉल का नाम नोह्कलिकाई फॉल पड़ गया. ‘खासी’ भाषा में ‘नोह’ का मतलब कूदना होता है.
३.      एलिफैंट फॉल – यह शिलोंग शहर से करीब १२ किलोमीटर दूर है. इसकी ख़ूबसूरती भी देखते ही बनती है. इसका असली नाम का शैद लाई पटेंग खोशी यानी तीन हिस्से वाला फॉल है. बाद में अंग्रेजों ने इसका नाम बदलकर एलीफैंट फॉल रख दिया. इस फॉल के पास एक पत्थर है जो हाथी जैसा दीखता था. हालाँकि १८९७ में आये भूकंप में वो पत्थर नष्ट हो गया, लेकिन फॉल का नाम नहीं बदला गया.
४.      स्वीट फॉल – शिलोंग में स्थित स्वीट फॉल इस शहर का सबसे खूबसूरत वाटर फॉल माना जाता है. लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है की सबसे ज्यादा खुदखुशी और मौत की घटनाएँ इसी वाटर फॉल में हुई है.
५.      कामाख्या देवी मंदिर – असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित माँ कामाख्या देवी का मंदिर नीलाचल पहाड़ियों पर है. कामख्या देवी का मंदिर ५१ शक्ति पीठों में से एक है. पौराणिक कथा के अनुसार अम्बुवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और और माँ भगवती के गर्भ गृह स्थित महामुद्रा(योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है. दरअसल हमारा पारिवारिक कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य माँ कामाख्या देवी का दर्शन ही था. ३१ मई के दिन हमलोग सभी सुबह ही मंदिर के प्रांगण पहुँच गए थे. वी आई पी दर्शन के सारे टिकट बिक चुके थे. डिफेन्स कोटे वाले चल रहे थे. चुनाव के बाद और गर्मी की छुट्टियों की वजह से काफी लोग यहाँ दर्शन हेतु पधार रहे थे. इसलिए हमलोगों को सामान्य कतार में ही लगना पड़ा जिसमे काफी भीड़ थी. दर्शन करने में सुबह से शाम हो गए. हालाँकि वहां कतार में भी बैठने की ब्यवस्था थी. चाय, फल आदि ले सकते थे. पंखे, कूलर और ए सी के साथ भजन और धार्मिक सीरियल भी हाल में लगे टी वी पर दिखलाये जा रहे थे. शाम की गोधूलि वेला में दर्शन और जल स्पर्श रोमांच के साथ आस्था से परिपूर्ण लगा. उसके बाद हमलोगों ने वहीं पर खाना खाया. दूसरे दिन ही हम लोग चेरापूंजी (अब सोहरा) के लिए रवाना हुए.
६.      जयन्ती माता का मंदिर – जयन्ती शक्तिपीठ भी ५१ शक्तिपीठों में से एक है. पुराणों के अनुसार जहाँ सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वहां वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये. मेघालय तीन पहाड़ों गारो, कहसी, और जयंतिया पर बसा हुआ है. जयंतिया पहाडी पर ही जयन्ती शक्तिपीठ है, जहाँ सती के वाम जांघ का निपट हुआ था. यह शक्ति पीठ शिलोंग से ५३ किलोमीटर दूर जयंतिया पर्वत के बाउर भाग ग्राम में स्थित है. यहाँ की सती जयंती और शिव क्रम्दीश्वर हैं. यहाँ हम नहीं जा सके.
७.      शिलोंग पीक – समुद्र तल से करीब १९०० मीटर ऊंची शिलोंग पीक शिलोंग की सबसे ऊंची चोटी है. यहाँ से आप पूरे शहर का नजारा देख सकते हैं. यहाँ के लोगों का मानना है कि उनके देवता ली शिलोंग इस पर्वत पर रहते हैं. यहाँ से वह पूरे शहर पर नजर रखते हैं और लोगों को हर मुसीबत से बचाते हैं. शिलोंग पीक के शानदार व्यू पॉइंट के अलावा यहाँ इंडियन एयर फोर्स का रडार भी स्थापित है.
इन सबके अलावा और भी बहुत कुछ जैसे, गुफाएं, झरने, जंगल, पहाड़ और इन सबके बीच सभी सुविधाओं से लैस रिसोर्ट के अलावा काफी गेस्ट हाउसेस और होटल हैं. कहा जाता है कि यहाँ के लोग बहुत कम बीमार पड़ते हैं. शुद्ध और प्राकृतिक वातावरण में रहने के अलावा ये लोग काफी मिहनती भी हैं. ये लोग पर्यटकों को कुछ बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं. ये भीख नहीं माँगते और अपने आप में ईमानदार हैं. अब बाहरी लोगों का भी वहां दखल हो गया है. यहाँ अभी भी मातृसत्ता चलती है.
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर