Sunday, 26 October 2014

मोदी की दीवाली

दीवाली के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सैनिकों के साथ कुछ समय बिताया। मोदी ने वहां संदेश दिया कि सभी भारतीय उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। बर्फीली ऊंची चोटियों से मोदी ने दीपावली के मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सेना के अधिकारियों-जवानों को बधाई दी। इसके बाद प्रधानमंत्री श्रीनगर पहुंचे जहां वह बाढ़ पीड़ितों के साथ दिवाली मनाएंगे। मोदी ने जम्मू ऐंड कश्मीर में आई प्राकृतिक आपदा में राहत के लिए 745 करोड़ रुपए की सहायता देने की घोषणा की।
सियाचिन पहुंचकर मोदी ने ट्वीट किया, ‘शायद पहली बार किसी प्रधानमंत्री को दीपावली के शुभ दिन हमारे जवानों के साथ समय बिताने का अवसर मिला है। बर्फ की ऊंची चोटियों से और अपने बहादुर जवानों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों को मैं शुभ दीपावली की कामना करता हूं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सियाचिन से शुभ दिपावली की शुभकामना। मैं समझता हूं कि प्रणब दा को मिली बधाइयों में यह अनोखी होगा।’
दिल्ली से रवाना होने से पहले मोदी ने कहा, ‘मैं प्रत्येक भारतीय की ओर से यह संदेश लेकर सियाचिन जा रहा हूं कि हम आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।’ देश के प्रहरियों की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, चाहे यह ऊंचाई हो या भीषण ठंड, हमारे सैनिकों को कोई नहीं रोक सकता। वे वहां खड़े हैं और देश की सेवा कर रहे हैं। वे हमें सही मायने में गौरवान्वित कर रहे हैं।
सियाचिन के संक्षिप्त दौरे के बाद मोदी श्रीनगर रवाना हो गए। यहां मोदी का जम्मू व कश्मीर में पिछले महीने आई विनाशकारी बाढ़ के पीड़ितों के साथ दिवाली मनाने का कार्यक्रम है। मोदी ने इस प्राकृतिक आपदा में क्षतिग्रस्त हुए मकानों की मरम्मत के लिए 570 करोड़ रुपए और बाढ़ प्रभावित छह प्रमुख अस्पतालों के नवीकरण के लिए 175 करोड़ रुपये की सहायता देने की घोषणा की। उन्होंने राज्य की जनता को आश्वासन दिया कि बाढ़ प्रभावितों के सहायता क्रार्य में केंद्र सरकार प्रदेश सरकार के साथ पूरे मनोयोग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करेगी। उन्होंने राज्य के बच्चों को पुस्तक सामग्री उपलब्ध कराने की बात भी कही जो बाढ़ के कारण नष्ट हो गई हैं।
अपने देश का शायद ये पहले प्रधान मंत्री होंगे जो इस तरह दीवाली मनाएं हैं. क्या होता अगर वे अपने दफ्तर से ही शुभकामना सन्देश भेज देते ? पर उन्होंने ऐसा नहीं किया सियाचीन की ठंढक और जवानों की गर्मी को महसूस करने स्वयं पहुँच गए. जम्मू कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुँच कर उनके मदद की घोषणा करना यह भी एक अनूठी पहल है. इसे कहते हैं अँधेरे को रोशन करना.
हम सबों ने खूब दिए जलाये, पटाखे फोड़े … पर शायद ही यह ख्याल किसी के मन में आया होगा कि किसी जरूरत मंद, कमजोर, निर्धन को मदद कर भी दीवाली मनाई जा सकती है. ये है हमारे प्रधान मंत्री/प्रधान सेवक का मानवीय पहलू जो जनता के दिल में जगह बनाये रखने के लिए काफी है. अभी हाल ही में हुद हुद तूफ़ान के समय विशाखा पटनम में राहत कार्यक्रमों को देखा और १००० करोड़ की मदद की भी घोषणा की. आगे भी वे देश के हर हिस्से की जरूरत को देखते हुए मदद करने का हर सम्भव प्रयास करते रहेंगे. ऐसी आशा की जानी चाहिुए.
वैसे पाकिस्तान ने सरहदों पर पटाखे तो फोड़े ही, पाकिस्तानी संसद ने भी भारत पर गोले दागने का ही काम किया, क्या करें? उनके पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है. पूरे भारत देश में दीवाली जम कर मनाई गयी. प्रदूषण और दीवाली के बाद आतिशबाजियों से हुई गन्दगी का किसे परवाह. वैसे हर पर्व खासकर दीवाली तो सफाई के सन्देश के साथ आता है और अंत में कुछ गंदगी छोड़ जाता है. हमारे पर्व त्योहार के दोनों पक्ष है. एक तरफ सफाई, खुशी और भाई-चारे का सन्देश तो कुछ स्याह पहलू भी हैं. कभी गंदगी, राजनीति तो कभी वैभनस्य और हादसे भी छोड़ जाता है. इस बार भी कई जगह पटाखों के दुकानों में आग लगी और जान माल का नुक्सान भी हुआ.
वैसे श्री मोदी की दीवाली तो १९ अक्टूबर को हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम आने के साथ ही शुरू हो गयी थी. २५ अक्टूबर को दिल्ली में पत्रकारों से मिलते हुए उन्होंने पत्रकारों की सराहना की और कहा कि, कलम में, कैमरे में बड़ी शक्ति होती है, ये चाहें तो सरकारें बदल सकती है, बना सकती है, गिरा सकती है. साथ ही स्वच्छता अभियान पर पत्रकारों के कैमरे और कलम दोनों को सराहा. मोदी के स्वच्छता अभियान में सचिन तेंदुलकर से लेकर मारी कॉम तक, सलमान खान के साथ-साथ पूरा बॉलीवुड झाड़ू लगाने आगे आया और अब तो शशि थरूर भी. इसे कहते है बदलाव. २६ अक्टूबर को एन डी ए के सांसदों का प्रधान मंत्री के साथ दीवाली मिलन के कार्यक्रम में भी उन्होंने सभी सांसदों को जनता और गरीबों के हितों के लिए काम करने का ही मन्त्र दिया, साथ हे कुछ मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड भी देख लिए.
हरियाणा और महाराष्ट्र के विधान सभाओं में जीत यह दर्शाता है कि जनता अभी भी मोदी को ही आशा भरी नजरों से देख रही है. धीरे धीरे कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व कम होता जायेगा और मोदी भाजपा के सर्वमान्य नेता बने रहेंगे. निरंतर सुधार की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है इसीलिये उन्हें कानून ब्यवस्था, महिला उत्पीड़न और दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर लगाम लगाने के हर सम्भव प्रयास करने चाहिए. भ्रष्ट नेताओं को जनता ही सबक सीखा रही है, जैसा कि पिछले चुनावों में हुआ है. काला धन रखने वाले कम से कम तीन कारोबारियों के नाम तो उजागर हुए हैं. अर्थात मोदी सरकार कार्यरत है यह तो जाहिर हो रहा है.
लोकप्रियता के पैमाने पर अगर देखा जाय तो अमिताभ बच्चन भी कम नहीं हैं. देश का हर आदमी उनसे बात कर, मिलकर अपने आप को धन्य समझता है. कौन बनेगा करोड़पति के माध्यम से वे हर प्रकार/श्रेणी के लोगों से मिलते हैं, उनका उत्साह बढ़ाते हैं और उनके साथ, गले लगाने से लेकर डांस करने भी नहीं हिचकते. यह सब मानवीय पहलू है, जो लोगों को आम लोगों से अलग करता है.
लोकप्रियता के मामले में हास्य कलाकार और हाजिर जवाब कपिल शर्मा भी उभरकर सामने आए हैं. लोगों को हँसाना/ खुश करना साधारण बात नहीं है. कपिल आज उच्च कोटि के हास्य कलाकार बने हैं और काफी पॉपुलर अभिनेता/अभिनेत्रियां उनके शो पर अपने फिल्म का प्रोमोसन करने के लिए आ रहे हैं. सुनील गावस्कर से लेकर युवराज सिंह तक क्रिकेट प्लेयर भी उनके शो पर आ रहे हैं और अपने खुशी के पल बाँटते हैं.
मनुष्य के जीवन में सुख और दुःख आते रहते हैं, दुखों में न घबराकर सुख में आनंद के क्षण को साझा करना दूसरों को खुश कर देना बहुत बड़ा गुण है ऐसे गुण जिनमे आ जाय वे व्यक्ति महान बन जाते हैं.
टी वी चैनेल के कुछ कार्यक्रम अच्छे और शिक्षाप्रद होते हैं, पर कुछ चैनल अश्लीलता और फूहड़ता फ़ैलाने में भी आगे हैं. टी वी और फ़िल्में मनोरंजन का साधन तो है ही उनके द्वारा समाज को सार्थक सन्देश भी दिया जा रहा है. अक्सर भले और बुरे लोग आजकल फ़िल्में या टी वी के कार्यक्रम देखकर बन रहे हैं. पर बाजारवाद इतना हावी हो गया है कि सभी चैनेल अपनी टी आर पी बढ़ाने और विज्ञापन बटोड़ने के जुगाड़ में लगे रहते हैं. थोड़ा जन-कल्याण की तरफ़ भी इन्हे ध्यान देना चाहिए. सूचना तंत्र आज जितना विकसित हुआ है, उसका फायदा और नुक्सान दोनों सामने है. हमें सकारात्मकता की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
आज से शुरू होने वाले बिहार, झारखण्ड और पूर्वांचल में होने वाले लोक-आस्था के महान पर्व छठ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday, 19 October 2014

पगार, पोंगा और पकौड़ी

रंग कोयले का काला है, जलकर दिया उजाला है,
तापित होकर ठंढा पानी, भाप की शक्ति सबने जानी.
बिजली भले नहीं दिखती है, इससे मृत भी नृत्य करती है.
बड़े छोटे सब कल करखाने, बिजली की लीला सब जाने.
रेल क्रेन या अन्य मशीने, मृत बने गर बिजली छीने
कारीगर हो या मजदूर, घर से रहता हरदम दूर.
साइरन की मीठी धुन सुन, बिस्तर छोड़े होकर निर्गुण.
चश्मा हेलमेट बूट पहनकर, आता वह साइकिल पर चढ़कर.
हाजिरी लेती सजग यन्त्रिका, देरी से हो स्वत: दण्डिता.
घर्र घर्र आवाजे करती, अनेक मशीनें चलती रहती. .
पाना, पेंचकस, और हथौड़ा, सामने टेबुल लम्बा चौड़ा.
पढ़े लिखे कुछ मन में सोचे, अनपढ़ अपना हाथ न खींचे.
टाइम टेबुल बनी हुई है, बॉस की भौहें तनी हुई है.
अपनी गति से चले मशीने, मानव देह से बहे पसीने.
गलती छोटी गर हो जाती, खून करीगर की बह जाती.
तापित लोहा द्रव बन जाता, सोलह डिग्री पर खौलाता
अपनी ड्यटी नित्य निभाए, सकुशल अगर वो घर आ जाए,
पत्नी बच्चे खुश हो जाते, बैठ के थोड़ा वे सुस्ताते.
मिहनत का फल उसको मिलता, एक मास जिस दिन हो जाता.
घर का राशन लाना होगा, कर्जा किश्त चुकाना होगा.
पत्नी को साड़ी की आशा, नए खिलौने ला दे पापा.
बोनस जिस दिन वह पाता है, सबसे ज्यादा सुख पाता है.
कपड़े नए बनाने होंगे, घर पर कुछ भिजवाने होंगे.
भूल के सारे रीति रिवाज, बॉस की सुनता बस आवाज.
अर्थ नीति का पालन करता, देश विकास में इक पग धरता
नेता अवसर खूब भुनाता, मालिक से चंदा जो पाता,
लेखक कवि जो भाव जगाये, सुन्दर शब्द कहाँ से पाये,
बातें करता लम्बी चौड़ी, पगार, पोंगा और पकौड़ी
‘तीन शब्द’ से गहरा नाता, ‘पोंगा’ उसको समय बताता
चाय संग खाए ‘पकौड़ी’, ख़त्म ‘पगार’ बचे न कौड़ी

श्रम एव जयते

वर्षों पहले मैंने अपने मित्र और विख्यात कथाकार श्री जयनंदन की पुस्तक (उपन्यास) ‘श्रम एव जयते’ पढ़ी थी. जिसमे श्री जयनंदन ने एक प्रतिष्ठित कारखाने और उसके मजदूरों का विस्तृत विवरण, कथा के रूप में लिखा था. इसमे मजदूरों की ख़राब स्थिति और साथ ही सुधार के उपायों का भी जिक्र किया गया था. कुछ अच्छे कदम बताये गए थे. जिससे मजदूर और मालिक के सम्बन्ध बेहतर हो सकते हैं. बड़ी ही व्यावहारिक और सत्य घटनाओं पर आधारित कहानी थी. श्री जयनंदन को १९९१ में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा युवा पीढ़ी प्रकाशन योजना के तहत सर्वश्रेष्ठ चयन के आधार पर उपन्यास श्रम एव जयतेका चयन और प्रकाशन, युवा साहित्यकार के रूप में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. आज मेरे वे मित्र निश्चित ही गद-गद होंगे क्योंकि उनकी कल्पना के कुछ अंश साकार होते दीख रहे हैं. नाम भी ठीक वही जो उस उपन्यास का था.  देश के प्रधान सेवक, मजदूर नंबर वन ने श्रमेव जयते कार्यक्रम की घोषणा कर अब सभी मजदूरों,  नौकरी पेशावाले निचले और मध्यम दर्जे के कर्मचारियों का दिल जीत लिया. कुछ सुधार, तो कुछ प्रोत्शाहन, और मान सम्मान भी बढ़ाया है. लेनिन ने नारा दिया था दुनियां के मजदूरों एक हो! अब मोदी जी ने सभी कामगारों, श्रमिकों, को नए सूत्र मे पिरोया है. जैसे कि  कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के लिए यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) के जरिये पोर्टेबिलिटी, श्रम मंत्रालय के साथ कामकाज में सहूलियत प्रदान करने के लिए सिंगल विंडो व्यवस्था के लिए पोर्टल और यूनिफाइड लेबर इन्सपेक्शन स्कीम शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंस्पेक्टर राज व्यवस्था को समाप्त करने के उपायों समेत अनेक श्रम सुधार कार्यक्रम पेश किए और कहा कि 'मेक इन इंडिया' कैंपेन की सफलता के लिए कारोबार के अनुकूल माहौल बनाना जरूरी है। श्री मोदी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम के तहत कई योजनाएं पेश कीं, जिनमें कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के लिए यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) के जरिये पोर्टेबिलिटी, श्रम मंत्रालय के साथ कामकाज में सहूलियत प्रदान करने के लिए सिंगल विंडो व्यवस्था के लिए पोर्टल और यूनिफाइड लेबर इन्सपेक्शन स्कीम शामिल हैं।
दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री ने इन योजनाओं की शुरुआत करते हुए कहा कि ये सभी कदम उनकी सरकार के 'न्यूनतम सरकार और अधिकमत सुशासन' की पहल को बताते हैं। लेबर इन्सपेक्शन में पारदर्शिता लाकर इंस्पेक्टर राज खत्म करने और अधिकारियों द्वारा परेशान करने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि एकाधिकार से जुडी प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए पारदर्शी लेबर इन्सपेक्शन स्कीम तैयार की जा रही है। अभी इन्सपेक्शन के लिए इकाइयों का चयन स्थानीय स्तर पर किया जाता है, जिसमें व्यावहारिक मापदंड का अभाव पाया जाता है। नई योजना के तहत गंभीर मामले अनिवार्य इन्सपेक्शन की सूची में आएंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जितनी ताकत सत्यमेव जयते की है, उतनी ही ताकत श्रमेव जयते की है। उन्होंने कहा, 'गरीबों के 27 हजार करोड़ रुपये ईपीएफ में पड़े हैं, जिसके लिए किसी ने दावा नहीं किया है। यह गरीब कर्मचारियों की मेहनत का पैसा है और मुझे इसे उन्हें वापस लौटाना है।' छोटे कारोबारियों के लिए बड़ी राहत की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फॉर्म के झंझट से मुक्ति मिलेगी, अब 16 की जगह एक फॉर्म भरने होंगे और यह ऑनलाइन उपलब्ध है। मोदी ने ऐलान किया कि अब कम्प्यूटर पर ड्रॉ के जरिये यह तय होगा कि कौन लेबर इंस्पेक्टर किस फैक्टरी का इन्सपेक्शन करने के लिए जाएगा और उसे 72 घंटे के भीतर ऑनलाइन रिपोर्ट आपलोड करना होगा। वैसे भी कहा जाता है परिश्रम कभी भी बेकार नहीं जाता और मौजूदा प्रधान मंत्री ने इसे साबित भी किया है|

पीएम ने कहा, '2020 तक दुनिया में करोड़ों कामगारों की जरूरत होगी। हमें श्रम को देखने का नजरिया बदलना चाहिए। आईटीआई वालों को हीन भावना से देखा जाता है,यह सही नहीं है।' योजनाओं की शुरुआत के मौके पर औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआई) में ट्रेनिंग ले रहे 4.2 लाख छात्रों को पीएम की ओर से एसएमएस भेजकर उनका उत्साह बढ़ाया गया। एसएमएस में प्रधानमंत्री इन छात्रों को विशिष्ट बताते हुए उन्हें स्किल डिवलेपमेंट का ब्रैंड ऐंबैसडर बनने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पिछले सालों में बड़ी उपलब्धियां हासिल करने वाले आईटीआई से पास चुनिंदा व्यक्तियों की उपलब्धियों से संबंधित पुस्तिका का विमोचन किया।
छात्रों के अलावा करीब एक करोड़ ईपीएफओ उपभोक्ताओं को यूनिवर्सल अकाउंट नंबर के जरिये पोर्टेबिलिटी के बारे में एसएमएस भेजा गया। यूएएन के जरिए उपभोक्ता अपने ईपीएफ खाते की ऑनलाइन जानकारी प्राप्त करने के साथ ही फंड निकालने के लिए ऑनलाइन आवेदन भी कर सकेंगे। उन्हें अपने एंप्लॉयर से आवेदन फॉरवर्ड कराने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। नौकरी बदलने के बाद भी कर्मचारी का यूएएन नंबर वही रहेगा। उसे केवल नए एंप्लॉयर के पास अपना यूएएन दर्ज कराना होगा। ईपीएफओ अब तक लगभग 4.17 करोड़ ईपीएफ ग्राहकों के यूएएन तैयार कर चुका है, जो 15 अक्टूबर से ऑपरेशनल हो गए।
तीसरी स्कीम का संबंध श्रम सुधारों से है। इसके तहत श्रम मंत्रालय द्वारा तैयार एकीकृत श्रम पोर्टल और यूनिफाइड लेबर इन्सपेक्शन स्कीम की शुरुआत हुई। आगे चल कर यूनिक लेबर आइडेंटिफिकेशन नंबर (एलआईएन) के जरिए प्रत्येक औद्योगिक इकाई का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन संभव होगा। वे आसानी से अपना एकल रिटर्न दाखिल कर सकेंगी। लेबर इंस्पेक्टर भी इस पर अपनी निरीक्षण रिपोर्ट अपलोड कर शिकायतों का त्वरित समाधान कर सकेंगे। जल्द ही 6-7 लाख इकाइयों को एलआईएन जारी किए जाने की संभावना है।
चौथी और अंतिम स्कीम स्किल डिवलेपमेंट अप्रेंटिसशिप से ताल्लुक रखती है। इस समय देश में उद्यमिता प्रशिक्षण के लिए 4.9 लाख सीटें उपलब्ध हैं। इसके बावजूद महज 2.82 लाख अप्रेंटिस ही प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है। इसके लिए अप्रेंटिस प्रोत्साहन योजना शुरू की गई है। योजना के तहत प्रशिक्षुओं का स्टाइपेंड (मानदेय) बढ़ाने के साथ-साथ सिलेबस में भी बदलाव होगा। इससे मार्च, 2017 तक एक लाख प्रशिक्षुओं को फायदा मिलने की उम्मीद है। अगले कुछ वर्षो में प्रशिक्षु सीटों की संख्या बढ़कर 20 लाख होने की संभावना है।
निश्चित ही श्री मोदी अपने वोटरों के बड़े वर्ग को प्रभावित करने का काम किया है. सफाई अभियान से सभी को जोड़कर सफाई और सफाई कर्मचारियों के महत्व को इंगित किया और अब श्रमिकों के बड़े वर्ग को| श्री मोदी में इस तरह की कलाएं कूट कूट कर भरी है| मंगल मिशन की सफलता के समय वैज्ञानिकों  का हौसला बढ़ाते हैं, तो सैन्य कमांडरों के सालाना सामूहिक सम्मेलन को संबोधन में मोदी ने कहा कि सुरक्षा बल भारत के प्रति दूसरों के बर्ताव को प्रभावित करेंगे।
तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ अपने पहले संवाद में प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्ण युद्ध शायद ही होंगे, लेकिन प्रतिरोध तथा दूसरों का बर्ताव प्रभावित करने के हथियार के तौर पर बल अपनी भूमिका निभाते रहेंगे।
संघर्षों की अवधि छोटी होगी। खतरे ज्ञात हो सकते हैं, लेकिन शत्रु अदृश्य हो सकता है। प्रधानमंत्री का यह बयान हाल में पाकिस्तान की ओर से एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्षविराम उल्लंघन और लद्दाख में चीनी घुसपैठ की पृष्ठभूमि में अहम है।
मोदी ने कहा कि आर्थिक, राजनैतिक और सुरक्षा नीतियों को लेकर बदलता वैश्विक परिदृश्य हमें नई तैयारियों के लिए आगाह कर रहा है। वर्तमान से इतर, भविष्य की चुनौतियां ज्यादा मायने रखती हैं जहां हालात बड़ी आसानी से बदल सकते हैं, क्योंकि वहां टेक्नॉलजी अपना काम कर रही होगी।
हमें उम्मीद ही नहीं पूर्ण भरोसा करनी चाहिए किमोदी के नेतृत्व में देश बहुत आगे बढ़ेगा. सभी लोग ज्ञानवान, धनवान, और बुद्धिमान होंगे. सभी देश के प्रति समर्पित भाव से अपना काम करते हुए देश सेवा करेंगे.
मिला जुलाकर देखा जाय तो श्री मोदी विकास के प्रति उन्मुख हैं| विकास के लिए जरूरी है निर्माण और निर्माण में लगते है कारीगरों, श्रमिकों, मजदूरों के हाथ| इन्ही हाथों की बदौलत हम अपनी आवश्यकता और सुविधा के सामानों से लैश होते हैं. ये सभी सुख- सुविधाएँ मिलाती रहे इसके लिए जरूरी है श्रमिकों का सम्मान, उनके हितों की रक्षा और सरक्षण| श्रमिकों और उद्योगपतियों (मालिकों) के बीच रिश्ते भी मधुर होने चाहिए ताकि दोनों एक दूसरे के हितों का ख्याल रक्खें. इसी में हम सबका और देश भी भला है| हम सभी देश में निर्मित सामग्री ही खरीदें ताकि हमारे अपने देश के कारीगर खुशहाल हों इसी सन्देश के साथ सभी मित्रों/पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं! ...

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर    

Sunday, 5 October 2014

धार्मिक आयोजन और भगदड़

भारत में बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ की घटनाएं अक्सर होती रही हैं.
आइये कुछ आंकडे देखते हैं, जो अंतर्जाल से लिए गए हैं.
त्योहारों और विशेष आयोजनों के मौकों पर धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं की भीड़ भारत में आम बात है लेकिन कई बार भगदड़ मचने से रंग में भंग हो जाता है ... 1986 - हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई.
14-01-2011 - ... 100 लोगों की मौत हो गई है. श्रृद्धालुओं को लेकर जा रही जीप के नियंत्रण खो देने और लोगों से टकरा जाने के बाद मची भगदड़ से हुआ हादसा. ...
08-11-2011 - हरिद्वार में हुई एक भगदड़ के दौरान कम से कम 16 लोग मारे गए और 40 जख्मी हुए हैं. गंगा के किनारे शांतिकुंज आश्रम के एक आयोजन के दौरान मुख्य समारोह स्थल के एक गेट पर भगदड़ मची. ... भगदड़ उस समय हुई जब कुछ श्रद्धालुओं ने गायत्री परिवार के धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लेने की जल्दी की.
14-01-2012 - मध्यप्रदेश के रतलाम में शहीदे कर्बला के 40 वें दिन हुए धार्मिक आयोजन के दौरान अचानक भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में बारह लोगों की मौत हो गई और कई अन्य जख्मी हो गए।
20-02-2012 - गुजरात में भगदड़, 6 लोगों की मौत गुजरात के जूनागढ़ में आयोजित शिवरात्रि मेले में रविवार रात हुई भगदड़ में 6 लोगों ... के लिए लाखों श्रद्धालुओं की एकत्रित भीड़ में अचानक हुई भगदड़ से 6 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 3 महिलाएं और 1 बच्चा शामिल हैं।
24-09-2012 ... देवघर में अनुकूल चन्द्र ठाकुर की 125वीं जयंती पर सत्संग आश्रम में आयोजित समारोह में भगदड़ मे कम से कम 9 यात्रियों की मृत्यु और अनेक के घायल होने की घटना
11-02-2013 - बारह वर्षों में होने वाले कुंभ मेले में कल रविवार को मौनी अमावस्‍या के दिन इलाहाबाद के रेलवे स्‍टेशन पर भगदड़ मच जाने से लगभग 36 लोगों की मौत हो गयी।
26 अगस्त 2014 ... मथुरा के बरसाना और देवघर के श्री ठाकुर आश्रम में मची भगदड़ से लगभग एक दर्जन श्रद्धालु मारे गए थे।
०४.१०.२०१४ को आंध्रप्र्रदेश के कुर्नूल जिले में एक मंदिर में आयोजित एक धार्मिक समारोह में भगदड़ मच गई। भगदड़ में 12 साल के एक बच्चे की मौत हो गई जबकि 37 श्रद्धालु घायल हो गए।
०३.१०.२०१४ बिहार की राजधानी पटना में रावण दहन के बाद भगदड़ में मरने वालों की अधिकारिक  संख्या 3बतायी जा रही है. पटना के गांधी मैदान में हुई इस घटना पर राज्य के गृह सचिव आमिर सुभानी ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के सीएम जीतन राम मांझी से फोन पर बात की है. पीएम ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है.
घटना एक्जीबिशन रोड इलाके में रामगुलाम चौक के पास उस वक्त हुई जब अफवाह की वजह से भगदड़ मच गई. घायलों को पीएमसीएच में भर्ती कराया गया है. पटना के डीएम मनीष वर्मा ने बताया कि हादसे में मरने वालों में अध‍िकतर महिलाएं और बच्चे हैं. डीएम का कहना है कि हादसे की वजह की जांच की जा रही है.
पुलिस के मुताबिक लोग गांधी मैदान में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम से लौट रहे थे. वहीं, मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के लिए भी इसी रास्ते पर सैंकड़ों की तादाद में लोग मौजूद थे. बताया जा रहा है कि इस दौरान किसी ने बिजली का तार गिरने की अफवाह फैला दी. चश्मदीदों के मुताबिक जिस वक्त भगदड़ मची उस वक्त गांधी मैदान का सिर्फ एक गेट ही खुला था और एक्जीबिशन रोड पर काफी भीड़ थी. हादसे के बाद कई लोग लापता हैं जिनके परिजन तलाश कर रहे हैं. चश्मदीदों का कहना है कि जिस वक्त घटना हुई, उस वक्त मौके पर रोशनी न के बराबर थी. घटनास्थल के पास अब भी लोगों के चप्पल जूते बिखरे पड़े हैं.
हादसे के बाद सियासत भी शुरू हो गई है. बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव ने राज्य की जेडी(यू) नीत सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है. बीजेपी नेता सीपी ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन भीड़ की तुलना में इंतजाम करने में विफल रहे हैं. पूर्व सीएम लालू यादव ने कहा है कि भगदड़ प्रशासनिक चूक का मामला है.
पटना में उसी दिन सुबह ही एक सड़क हादसा हुआ था जब फुलवारीशरीफ में एक कार ने आठ लोगों को रौंद दिया. इस हादसे में चार लोगों की मौत हो गई. गौरतलब है कि साल 2012 में छठ पर्व के दौरान भी पटना के गंगा घाट पर भगदड़ मच गई थी जिसमें कई लोग मारे गए थे.
दो वर्ष पूर्व छठ पर्व के दौरान भी पटना में इसी तरह भगदड़ मची थी लेकिन उससे कोई सबक न लेते हुए इस बार भी प्रशासन की इंतजाम नाकाफी थे। हादसे के बाद नाराज लोगों ने घटनास्थल पर और पीएमसीएच के बाहर हंगामा किया। गृह मंत्रालय ने हादसे पर रिपोर्ट तलब की है।
पांच लाख से ज्यादा की भीड़ से खचाखच भरे गांधी मैदान में 60 फीट ऊंचा रावण का पुतला बनाया गया था। पुतला दहन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी शिरकत की थी। बताया गया है कि रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतलों में आग लगने के बाद जैसे ही लोग मैदान से बाहर जाने लगे, तभी भगदड़ मची। मैदान के अंतर्गत रामगुलाम चौक के नजदीक मची भगदड़ में अंधेरा होने के कारण लोग चपेट में आते चले गए। बताते हैं कि भगदड़ बिजली का तार टूटने की अफवाह फैलने के बाद मची। सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। घटना के बाद बचाव के उपाय न होने से लोगों में काफी आक्रोश था। वे हंगामे पर उतारू हो गए। मुख्यमंत्री ने घटना की जांच का आदेश दिया है। गृह सचिव और एडीजी घटना की जांच करेंगे।
यह वही गांधी मैदान है जहां पर अक्टूबर, 2013 में नरेंद्र मोदी की रैली हुई थी और उस दौरान बम विस्फोट हुए थे। बावजूद इस सबके प्रशासन ने कोई सतर्कता नहीं बरती।
80 के दशक में जमशेदपुर में भी विजयादशमी के दिन भगदड़ मची थी और कई लोग मारे गए थे. उसके बाद जमशेदपुर में भगदड़ का इतिहास नहीं है. यहाँ के प्रशासन और अनुशासित नागरिकों ने भी सबक ले लिया.
दिक्कत यह है कि ऐसी घटनाएं होने के बाद भी न धार्मिक आयोजनों के आयोजक और न ही स्थानीय प्रशासन सावधान रहता है। स्थानीय प्रशासन इसलिए इन आयोजनों में हस्तक्षेप नहीं करता, क्योंकि इससे धार्मिक भावनाएं भड़कने का खतरा होता है। इनके आयोजकों में भी इसलिए लापरवाही होती है, क्योंकि वे जानते हैं कि धार्मिक आयोजन होने के नाते वे काफी छूट ले सकते हैं। कम ही धार्मिक प्रतिष्ठान हैं, जो आम लोगों की सुविधा और सुरक्षा के नजरिये से योजनाबद्ध तरीके से आयोजन करते हों।
ज्यादातर जगहों पर आने-जाने के मार्ग इतने संकरे होते हैं कि भगदड़ होने पर लोगों के कुचले जाने का खतरा होता है। इन दिनों भीड़ के नियंत्रण के लिए धार्मिक प्रतिष्ठानों में ऐसे बैरिकेड लगा दिए जाते हैं कि भगदड़ होने पर कोई इधर-उधर नहीं हो सकता। ज्यादातर मंदिरों या अन्य धार्मिक प्रतिष्ठानों का निर्माण तब हुआ था, जब देश की आबादी इतनी नहीं थी और यातायात के साधन भी सुगम नहीं थे। अब तो दूरदराज के मंदिरों में भी आसानी से लाखों लोग पहुंच जाते हैं। कई मंदिरों में पहले कुछ विशेष अवसरों पर ही थोड़ी-बहुत भीड़ होती थी, अब रोज वहां मीलों लंबी लाइनें देखने को मिलती हैं।
हमारा आम रवैया यह होता है कि जब तक दुर्घटना नहीं हो जाती, तब तक कुछ नहीं करते और अगर दुर्घटना हो जाती है, तो दूसरों पर जिम्मेदारी डाल देते हैं। अब संचार और यातायात की सुविधा की वजह से लाखों लोगों का किसी आयोजन में इकट्ठा होना कोई मुश्किल नहीं है, इसलिए सुरक्षा के मामले में लापरवाही का रवैया चल नहीं सकता और यह बात सिर्फ आयोजकों को नहीं, वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को भी समझनी होगी। कोई नहीं चाहता कि श्रद्धा से की गई तीर्थयात्रा किसी के लिए मृत्यु का कारण बने, लेकिन धार्मिक आयोजन तभी सुरक्षित होंगे, जब आयोजक और श्रद्धालु, दोनों व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी को समझें।
आजकल अन्धानुकरण भी काफी बढ़ गया है, सभी लोग इन धार्मिक आयोजनों में शामिल होकर अपने पाप धो डालना चाहते हैं या पुण्य कमाकर सीधे स्वर्ग जाने की कामना रखते हैं. इसमे किसी को भी जरा सा धैर्य नहीं होता. आखिर हम सब विकसित होकर क्या सीख रहे हैं. आस्था होना अलग बात है और अन्धानुकरण अलग. हमें इनमे फर्क करना सीखना होगा. खासकर इन दुर्घटनाओं में बच्चे और महिलाएं ही ज्यादा हताहत होते हैं कम से कम उन्हें तो इस भीड़-भाड़ से बचाए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. जांच होगी राजनीति भी होगी. मुआवजा भी मिलेगा, पर जिन्दगी वापस नहीं मिलेगी. हम सब मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना ही कर सकते हैं.
-       -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.


     

Sunday, 21 September 2014

एक बार फिर भाई-भाई!

“हिन्दी चीनी भाई-भाई”- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय है, पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है, तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे 1962 में थे अथवा नहीं? क्या चीन की सोच भारत के लिये बदली है?
बदले हुए माहौल में भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह एक-दूसरे के प्रति विश्वास जताया है, वह एशिया ही नहीं पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बातचीत में कई जरूरी मुद्दे उठे और आपसी सहयोग पर सहमति बनी। चीन फिलहाल भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए तैयार हुआ है। सिविल न्यूक्लियर मामले में सहयोग के लिए दोनों देश बातचीत करने पर सहमत हुए हैं। शिखर वार्ता में दोनों देशों के बीच 12 समझौते हुए, जिनमें पांच साल के आर्थिक प्लान पर हुआ करार बेहद अहम है। कैलाश यात्रा के लिए नए रूट, ऑडियो वीडियो मीडिया, रेलवे के आधुनिकीकरण, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी समझौता हुआ। कस्टम को आसान करने का करार हुआ है। मुंबई को शंघाई की तरह विकसित करने में चीन मदद करेगा और गुजरात तथा महाराष्ट्र में दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाएगा। जाहिर है, भारत के तेज विकास और आधुनिकीकरण में चीन की भूमिका बढ़ने वाली है। निश्चय ही इसका लाभ चीनी इकॉनमी को भी मिलेगा। कारोबारी गतिविधियां तभी सुचारू रूप से चल पाती हैं जब दो मुल्कों के सियासी और कूटनीतिक रिश्ते बेहतर होते रहें। अभी जो भरोसा राजनयिक स्तर पर कायम हुआ है, वह दोनों देशों की जनता के बीच भी बनना चाहिए, तभी आर्थिक समझौतों का कोई मतलब है। इसके लिए दोतरफा सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाना एक अच्छा रास्ता है। दुर्भाग्य से शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान ही जम्मू-कश्मीर के चुमार इलाके में चीनी सेना की घुसपैठ का मामला सामने आ गया। शिखर वार्ता में यह मसला भी उठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्होंने चीन से अपनी वीजा नीति पर भी स्टैंड साफ करने को कहा। यह मसला अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर के लोगों को स्टेपल्ड वीजा दिए जाने को लेकर उठता रहा है। चीनी राष्ट्रपति का मानना है(कूटनीतिक जवाब) कि भारत-चीन की सीमा चिह्नित न होने के कारण वहां कुछ ऐसी गतिविधियां होती हैं, जिससे गलतफहमी फैलती है। शी ने इस मुद्दे को सुलझाने का आश्वासन भी दिया है। दोनों देशों को यह बात समझनी होगी कि सीमा पर स्थायी शांति कायम करके ही आर्थिक रिश्तों को दूर तक ले जाया जा सकेगा। भारत के आम लोगों में जब तक चीन को लेकर पॉजिटिव राय नहीं बनेगी, तब तक उसका निवेश यहां अन्य देशों जितना सुरक्षित नहीं रह सकता। इसलिए आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में अलग से पहल होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की वार्ता के कुछ ही घंटे बाद चीन के सैनिकों ने लद्दाख के चुमार में भारतीय इलाके से पीछे हटना शुरू कर दिया। हालांकि, चीनी सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पूरी तरह पीछे हो जाने की पुष्टि नहीं हो पाई है। डेमचोक में अभी भी गतिरोध बना हुआ है। घटना के बारे में बताया जाता है कि चीनी एल.ए.सी. के उस पार अपने क्षेत्र में सड़क बना रहे थे, लेकिन रविवार को उसके कामगार भारतीय क्षेत्र में घुस गए। विरोध करने पर करीब सौ भारतीय सैनिकों को 300 चीनी सैनिकों ने घेर लिया था और चार दिनों से अवैध रूप से जमे हुए थे। गुरुवार तक चीनी सैनिकों की संख्या बढ़कर 1000 के करीब हो गई थी। इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी। इससे तनाव काफी बढ़ गया। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार रात करीब 9:45 बजे चीन के सैनिक लौटने लगे। इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों की संख्या घटा दी, लेकिन पैनी नजर रखी जा रही है, क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के नजदीक चीन की आर्मी ने कैंप लगा रखे हैं। हालात की समीक्षा की जाएगी। चुमार से करीब आठ किमी दूर डेमचक इलाके में चीनी खानाबदोश जाति ‘रेबोस’ के घुसने और भारतीय क्षेत्र में चल रहे नहर निर्माण कार्य को रुकवाने की कोशिश के कारण बनी तनाव की स्थिति जस की तस है।
मोदी ने द्विपक्षीय बातचीत में चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग के सामने सीमा विवाद और चीनी सैनिकों की घुसपैठ का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। मोदी ने चीन से कहा कि वह भारत की संवेदनशीलता का सम्मान करे ताकि दोनों देशों के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच सकें। मोदी ने इस बात पर भी ऐतराज जताया कि चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को स्टेपल्ड वीजा जारी करता है।
पीएम नरेंद्र मोदी और चीन से राष्ट्रपति शी जिनफिंग के बीच कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए एक ‘अल्टरनेटिव रूट’ बनाने पर सहमति के बाद इससे जुड़ा एक गंभीर विवाद खड़ा हो गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस नए रूट का विरोध करते हुए कहा है कि यह शास्त्र सम्मत नहीं है। नए रूट के तहत कैलाश मानसरोवर की इस धार्मिक यात्रा को नाथुला पास के जरिये कराए जाने पर सहमति बनी है। हरीश रावत का कहना है कि यह नया रूट धर्म सम्मत और शास्त्र सम्मत नहीं है। उनका कहना है कि यह लोगों की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है। – अब रावत साहब की अपनी अलग राय हो सकती है, वैसे भी विपक्ष के नेता कुछ तो कहेंगे ही.
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारतीय मुस्लिमों की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए अपने पहले इंटरनैशनल इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि भारतीय मुस्लिम देश के लिए ही जिएंगे और देश के लिए ही मरेंगे। उन्होंने कहा कि अल कायदा को इस बात का भ्रम है कि वे उसके इशारों पर नाचेंगे। सीएनएन से बातचीत में अलकायदा द्वारा हाल में जारी विडियो के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में मोदी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि वे हमारे देश के मुसलमानों के साथ अन्याय कर रहे हैं। अगर कोई यह सोचता है कि मुसलमान उनके इशारों पर नाचेंगे तो यह उनका भ्रम है। भारत के मुसलमान जान दे देंगे लेकिन भारत के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। वे भारत के लिए बुरा नहीं सोचेंगे।’ यह इंटरव्यू भारतीय मूल के जाने माने पत्रकार फरीद जकारिया ने लिया है। उन्होंने भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति के समर्थन में तर्क देते हुए कहा, ‘भारत के पड़ोस में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अलकायदा का अच्छा प्रभाव है। भारत में करीब 17 करोड़ मुसलमान हैं, लेकिन उनमें से अलकायदा के सदस्य न के बराबर हैं।’ उन्होंने अलकायदा को मानवता के खिलाफ संकट बताते हुए इसके खिलाफ मिलकर लड़ने की बात कही। मोदी ने अमेरिका और भारत के बीच संबंध को और मजबूत बनाने पर जोर दिया। सितंबर के अंतिम सप्ताह में मोदी अमेरिका के दौरे पर जाने वाले हैं।
सवाल फिर वही है कि श्री नरेंद्र मोदी क्या नेहरू के कदमों पर चल पड़े हैं. १९६२ की तरह चीन फिर से धोखा तो नहीं देगा ? वैसे इसकी संभावना कम नजर आती है, क्योंकि तब और अब की स्थितियों में काफी बदलाव आया है. अब कोई भी देश जल्दी युद्ध नहीं चाहता. हाँ एक दूसरे पर दबाव बनाने की जद्दो-जहद कायम रहती है. सबको एक दूसरे की जरूरत भी है. बदले हुए ग्लोबल माहौल में ब्यापार और प्रसार बढ़ाने के लिए यह जरूरी भी है, साथ ही आतंकवाद जैसे हथकंडों से मिलकर मुकाबला करना अत्यंत ही आवश्यक है. कुछ दिन पहले तक भाजपा के कुछ नेता मुस्लिमों पर दनादन जुबानी हमले किये जा रहे थे, पर उपचुनाव में पासा पलट जाने से कदम खींच लेने में ही बुद्धिमानी है, यह मोदी जी अच्छी तरह जानते हैं. साथ ही अमेरिका जाने से पहले अपनी छवि को नया रूप देना ही होगा.
१९६२ के समय में ही भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित नेहरू और अमरीका के राष्ट्रपति जॉन केनेडी के साथ भी अच्छे ताल्लुकात थे. नेहरू भारतीय उद्योग के जन्मदाता कहे जाते हैं तो मोदी आधुनिक विकास के समर्थक. अब तो चाचा नेहरू की तरह मोदी भी ‘बच्चों के चाचा’ बन ही गए हैं.
चाहे जो हो मोदी जी हर कला में माहिर हैं और लगातार सफलता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे हैं. अब तो बिल गेट्स भी आ गए है, बाढ़ पीड़ित कश्मीरियों की मदद के लिये, साथ सात लाख अमरीकी डॉलर लेकर; साथ ही प्रधान मंत्री जन-धन योजना की निगरानी रखने की भी पेशकश कर रहे हैं, जिसके लिए आर बी आई ने पिछले दिनों चिंता व्यक्त की थी. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि उनके साथी, सहयोगी भी उनके साथ चलेंगे. वैसे श्री मोदी को विदेश मंत्रालय अपने पास ही रखना चाहिए था. विदेश मंत्री बेचारी सुषमा स्वराज कहीं भी नजर नहीं आतीं. जब विदेशों से बातें चल रही होती हैं, तो वह बिहार के नालंदा में सास्कृतिक धरोहर खोजती नजर आती हैं. वैसे अब खबर है की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 24 सितंबर से शुरू हो रही 10 दिन की अमेरिका यात्रा में करीब 100 देशों के विदेश मंत्रियों से मुलाकात करेंगी।
योगी आदित्य नाथ अब क्या बोलेंगे वे ही जाने. वैसे उनके बारे में यही कहा जाता है, वे अपनी बात को ही सही मानते हैं.
जय भारत! जय हिन्द!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday, 15 September 2014

कोशी, केदार और कश्मीर का कहर

कोशी नेपाल एवं भारत के बीच बहनेवाली, गंगा की सहायक नदी है, जिसका जलग्रहण क्षेत्र करीब 69300 वर्ग किलोमीटर नेपाल में है। यह कंचनजंगा की पश्चिम की ओर से नेपाल की पहाड़ियों से उतर कर भीमनगर होते हुए बिहार के मैदानी इलाके में प्रवेश करती है। यह एक बारहमासी नदी है प्रत्येक वर्ष कोसी नदी में बह रही गाद के कारण नदी के तट का स्तर बांध के बाहर की जमीन से ऊपर हो गया है।
कोसी बराज से ऊपर 12 किमी दूरी पर 18 अगस्त 2008 को पूर्वी बांध में दरार हुआ। नदी बांध की दरार को और तोड़ती हुई नये मार्ग में बहने लगी। इस नये प्रवाह से करीब 3000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र का सर्वनाश हुआ। आवास, विद्यालय, सड़क, चिकित्सालय सभी नदी के प्रवाह से क्षतिग्रस्त हुए। यद्यपि केन्द्र सरकार, निजी क्षेत्र के लोगों एवं गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा राज्य सरकार की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया गया.
कोसी नदी की बाढ़ से तबाह इलाकों का 14 हजार 808 करोड़ रु. की लागत से पुनर्निर्माण की घोषणा की गयी। उत्तर बिहार में कोसी की बाढ़ से भारी तबाही के बाद राहत व बचाव के पश्चात अब प्रभावित आबादी के दीर्घकालीन पुनर्वास, इलाके के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। क्यों आती है बाढ़?
पर्यावरणविदों का कहना है कि नेपाल स्थित कोसी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (हिमालय)में प्राकृतिक और मानवीय कारणों के चलते मृदा अपरदन (जमीन की ऊपरी परत अपनी जगह से हट जाना) और भूस्खलन होने से मैदानी इलाकों को प्रतिवर्ष बाढ़ की समस्या से रुबरु होना पड़ता है। ऊपरी पहाड़ी इलाके से निकलने के कारण वर्षा ऋतु के समय कोसी का बहाव अपने सामान्य बहाव से 18 गुना ज्यादा हो जाता है। ऐसे में कोसी तीव्र बहाव के साथ जमीन की ऊपरी परत को गाद के तौर पर साथ लेती आती है।
कोसी का बहाव मैदानी इलाकों में कम होने पर यह गाद नदी की सतह पर जमा होना शुरु हो जाती है। ऐसे में वर्षा होने पर नदी का जलस्तर बढ़ने लगता है। और नदी अपना प्रवाह क्षेत्र या मार्ग बदलने लगती है। जिसकी वजह से बाढ़ आ जाती है। पिछले 100 सालों में यह नदी अपने मार्ग को 200 किलोमीटर तक बदल चुकी है।
हमेशा की तरह इस साल भी कोसी का कहर बिहार के लिए शोक बनने वाली थी, हजारों लोगों को हटाया गया था, पर इस बार की त्रासदी टल गयी और लोग अपने घरों को पहुँच गए. वैसे हर साल बाढ़ की मार झेलने वाला बिहार में इस साल कम बृष्टि हुई और अधिकांश खेत बंजर ही रह गए.
उत्तराखंड और केदारनाथ
पिछले साल उत्तराखंड में आए जलप्रलय ने केदारनाथ में मौत का ऐसा तांडव मचाया कि देखने सूनने वालों की रूह कांप गई। केदार घाटी पूरी तरह तबाह हो गई। सैंकड़ों गांव लापता हो गए और हजारों लोग मारे गए।
जिस समय यह हादसा हुआ केदारनाथ की 90 होटले ठसाठस भरी हुई थी। इनमें भगवान शिव की आराधना के लिए आए हजारों लोग ठहरे हुए थे।
जल प्रलय से आई तबाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केदारनाथ के नजदीक स्थित सोनबाजार इलाका भूस्खलन के कारण झील में तब्दील हो गया। केदार नाथ का मंदिर किसी तरह बच सका पर मौत का ताण्डव वहां भी खूब हुआ. एक साल बाद वहां स्थिति सामान्य होने को है, पर बीच बीच में अधिक वर्षा के कारण चेतावनी और नुक्सान तो होता ही है.
जम्मू व कश्मीर
बाढ़ से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में राहत और बचाव कार्य में राज्य की उमर अब्दुल्ला सरकार के नाकाम रहने के बाद अब केंद्र सरकार ने पूरी तरह मोर्चा संभाल लिया है। हालात को सामान्य करने के लिए राज्य में केंद्र ने तमाम संसाधन झोंक दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केंद्रीय गृह सचिव के नेतृत्व में एक स्पेशल टीम बनाई गई है, जो राहत और बचाव कार्य को तेज करने का जिम्मा संभाल रही है।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘उम्मीद है कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह घाटी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लाखों लोगों के लिए चल रहे राहत एवं बचाव कार्य में मार्गदर्शन करेंगे।’ गौरतलब है कि राहत और बचाव कार्य की समीक्षा करने के बुधवार को एक उच्चस्तरीय इमर्जेंसी मीटिंग हुई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिदायत की थी कि आपदा प्रभावित लोगों की खाना और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान दिया जाए।
अभी तक सेना और एनडीआरएफ ने मिलकर करीब दो लाख लोगों को बचाया है, लेकिन अब भी श्रीनगर में पांच लाख से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं। प्रधानमंत्री की हिदायत पर केंद्र ने बड़ी मात्रा में पीने का पानी, दूध, रेडी टु ईट मील वगैरह भेजा है। सूत्रों ने बताया कि 5 टन से ज्यादा मिल्क पाउडर दिल्ली से कश्मीर भेजा गया है, जबकि और 5 टन शुक्रवार को भेजा जाएगा। पीएम मोदी ने कहा था कि बाढ़ प्रभावित राज्य में रोजाना 100-150 किलोलीटर दूध की जरूरत है।
पानी घटने के बाद फैलने वाली बीमारियों के खतरे को ध्यान में रखते हुए क्लोरीन की टैबलट्स बी भारी मात्रा में भेजी जा रही हैं। सरकार ने राज्य में 10 और हेल्थ एक्सपर्ट्स को भेजने का फैसला लिया गया है। इसके अलावा रेलवे भी राज्य को 1 लाख लीटर पीने के पानी की खेप भेज रहा है। केंद्र ने राज्य सरकार से कहा है कि केंद्र से आने वाली राहत सामग्री को सुरक्षित रूप से स्टोर किया जाए, ताकि यह खराब न हो और जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा सके।
सूत्रों ने बताया कि एयर फोर्स से हेवी लिफ्ट मिग-26 हेलिकॉप्टर तैनात करने के लिए कहा जा सकता है, जो एक बार में 60 लोगों को ले जा सकता है। इससे बचाव कार्य को तेज करने में मदद मिलेगी, क्योंकि दूसरे तरीकों से लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाने में काफी वक्त लग रहा है।
सवाल फिर वही है की हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती है. राहत और बचाव कार्य किये जाते हैं. हर साल हजारो लाखों लोग इससे प्रभावित होते हैं. जान-माल का भारी नुक्सान होता है, पर ऐसी ठोस परियोजना बनाई जाती ताकि इस तरह के प्रकृति हादसों से निपटा जाय और कुछ ऐसी ब्यवस्था की जाय ताकि इस तरह की समस्या हो ही ना और अगर हो भी तो तत्काल निपटने के उपाय किये जाएँ.
कश्मीर के अधिकांश शहरों में तो जल निकासी की भी समस्या है, जिससे पानी काफी देर से निकलता है. ये पहाड़ी इलाके हैं जहाँ से पानी जल्द निकल जाना चाहिए पर यहाँ तो मैदानों की तरह पानी डटा रहता है. कहते है इसका आकार कटोरे जैसा है. चारो तरफ ऊंची जमीन है इसलिए भी पानी निकालने में कठिनाई होती है.
ऐसे समय में सेना के जवानों की जितनी भी सराहना की जाय कम है. क्योंकि ये लोग धर्म, जाति, समुदाय, क्षेत्र, पार्टी आदि से ऊपर उठाकर सभी पीड़ितों की हर संभव मदद करते हैं.
नदियों को जोड़ने की योजना का कब क्या होगा पता नहीं, पर प्रकृति का जिस प्रकार दोहन और क्षरण हो रहा है, स्थिति चिंताजनक होती जा रही है. जनसँख्या का दबाव भी एक कारण है. प्रकृति संतुलन बनना जानती है. विकसित देश जापान, चीन और अमेरिका में भी बाढ़, तूफ़ान, भूस्खलन की प्राकृतिक आपदा आती रहती है. क्या यह विनाश की चेतवानी नहीं है? विकास का चरमोत्कर्ष विनाश के रूप में आता है. क्या हम प्रकृति को बचाने और उसके साथ जीने का संकल्प नहीं कर सकते? आपदाग्रस्त होने पर हम विकत परिस्थितियों में भी रहकर कई दिन या कें हफ़्तों, महीने गुजार लेते है. शिविरों में सभी जाति और धर्म के लोग सामंजस्य बैठा लेते हैं. यहाँ हम आपसी दुश्मनी भूल जाते हैं. क्या यह सबक काफी नहीं है? इस विकट परिस्थिति में सभी लोग मुक्त मन से सहायता भी करते हैं. राष्ट्रीय एकता का सूत्र ही नहीं वसुधैव कुटुम्बकम का भी भाव पैदा होता है. आपदाग्रस्त लोगों की मदद के लिए जिस तरह मीडिया और अन्य स्वयम सेवी संस्थाओं ने मदद की है, वे सभी स्तुत्य हैं. हमारी संवेदना उन सब के साथ है. उन सबको विपरीत परिस्थितियों में अपने आपको सम्हालने की शक्ति ऊपरवाला दे.
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Monday, 8 September 2014

वास्तविक नायक – श्री नरेन्द्र मोदी!

अभी तक के प्रदर्शनों से जो दृष्टिगोचर हो रहा है, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी वास्तविक जिंदगी के नायक बनकर उभरे हैं. भूटान और नेपाल को वरदहस्त प्रदान करना, ब्रिक्स सम्मेलन में भारत का दबदबा स्थापित करना. कुरता पायजामा पहन कर एयर इण्डिया के विमान में चढ़ना और सूट पहन कर जापान की धरती पर उतरना, जापान में जाकर मछलियों को दाना खिलाना, बौद्ध मंदिरों का दर्शन करना, जापानी स्कूलों के बच्चों से मिलना, उद्योगपतियों को आमंत्रित करने की अनूठी शैली में सम्बोधन करना, बांसुरी और ड्रम बजाना, जापानी प्रधान मंत्री को गीता देते हुए यह कहना कि मेरे पास इससे बड़ा उपहार नहीं है, आपको देने के लिए, फिर वहीं से विरोधी पार्टियों पर तंज कसना कि ‘गीता का उपहार’ शायद हमारे सेक्युलर मित्रों को पसंद न आये. शिक्षक दिवस पर भारत के विभिन्न भागों के स्कूलों के बच्चों से उन्ही की तरह शरारती लहजे में बात करना…इतने सारे गुण तो एक नायक में ही हो सकते हैं.
भारतीयों फिल्मों के नायक चाहे जो भी किरदार में हों उसे गाड़ी चलाना, मारपीट करना, नाचना, गाना और बजाना तो आना ही चाहिए. जैसे को तैसा सलूक ये नायक करते हैं.
स्वानुशाशन का पालन करते हुए पहले खुद को समय का पाबंद बनाना और दूसरों को अनुशाशन का पाठ पढ़ाना ज्यादा अनुकूल होता है. पहले खुद आदर्श प्रस्तुत करें, तभी दूसरे आपका अनुसरण करेंगे. हमारे धर्मशास्त्र, इतिहास के जितने भी नायक हुए हैं, सभी ने पहले खुद को आदर्श पुरुष बनाया, तभी उनका अनुसरण लोग करते हैं. महात्मा गांधी के एक आह्वान पर पूरा देश चल पड़ता था. आज मोदी मन्त्र से सभी सम्मोहित हो जाते हैं. पूरा देश उन्हें आशा भरी नजरों से देख रहा है. सभी राष्ट्रीय मीडिया मोदी जी का लाइव टेलीकास्ट तो कर ही रहे हैं, साथ साथ उनके रिपोर्टर जनता के पास तुरंत प्रतिक्रिया लेने भी पहुँच जाते हैं. ये बात अलग है कि संसाधन युक्त स्कूल के बच्चे ही मोदी से सीधा जुड़ पाये. सुदूर इलाके में रेडिओ के द्वारा उनके भाषण/संवाद सुनाये गए. बहुत सारे स्कूलों में मूलभूत सुविधा का अभाव है. उन्हें सुविधा संपन्न बनाने की सबकी जिम्मेवारी है. सरकारी स्कूलों के स्थिति ज्यादा बदतर है, वहां सभी सरकारों को ज्यादा ध्यान देना होगा, तभी मोदी जी का संपन्न और समृद्ध भारत का सपना पूरा हो पायेगा. उम्मीद है कि आगे निरंतर सुधार देखने को मिलेंगे.
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में जापान से भले ही सहयोग न मिला हो, उसके अनेकों कारन हो सकते हैं, पर ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री टोनी एबोट ने भारत आकर भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया का बिजली उत्पादन के लिए बहुप्रीतीक्षित परमाणु पर हस्ताक्षर किये. यह करार हो जाने से भारत की बिजली की आवश्यकता पूरी करने में काफी हद तक मदद होगी …ऑस्ट्रेलिया भारत को बिजली उत्पादन को यूरेनियम देगा ..ऑस्ट्रेलिया में लगभग २०% यूरेनियम की उपलब्धता है. साथ ही तमिलनाडु से चोरी की गयी अर्धनारीश्वर और नटराज की चोल वंश के समय की मूर्तियां भी ऑस्ट्रेलिया द्वारा इस तरह वापस लौटाना एक चमत्कार से कम नहीं है. ज्ञातव्य है कि (सुभाष कपूर द्वारा चोरी की गयी मूर्तियों) इन मूर्तियों को ऑस्ट्रेलया के आर्ट गैलरी में रखा गया था. इस पर भारत ने बहुत पहले आपत्ति दर्ज करा दी थी, लेकिन इसे लौटना तो मोदी के समक्ष ही था. करोड़ों के मूल्य की ये मूर्तियां हमारे देश की पुरानी संस्कृति की अमूल्य धरोहर भी है. यह काम भी मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व ही कर सकता है.
मोदी जी लगातार काम करते हुए थकते नहीं हैं. वे बच्चों से कहते हैं- “अपनापन चिरन्जीवी होता है, जब आप के जैसे बच्चों से बात करता हूँ तो सारी थकान दूर हो जाती है. देश के सवा सौ करोड़ लोग मेरा परिवार है. वे बच्चों को गूगल की जगह पुसतकेँ पढ़ने की सलाह देते हैं. उनके अनुसार गूगल से ज्ञान नहीं प्राप्त होता है, ज्ञान तो पुस्तकों और शिक्षक से ही मिलता है. हमें अच्छे शिक्षक की आवश्यकता है”, क्योंकि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता. खेल कूद नहीं तो जीवन खिलता नहीं है. महापुरुषों का जीवन चरित्र अवश्य पढ़ें. यह भी सन्देश वे बच्चों को देते हैं. स्कूलों में टॉयलेट की ब्यवस्था पर उन्होंने पुन: जोर दिया ..चांदनी रात का दर्शन, सूर्योदय और सूर्यास्त का दर्शन. प्रकृति के दर्शन और संरक्षण. अच्छा बिद्यार्थी, अच्छा नागरिक बनना भी देश सेवा है. बिजली बचाना पर्यवरण की रक्षा भी देश सेवा है. देश की सेवा के लिए सीमा पर जान देना और राजनेता ही बनना जरूरी नहीं है. भारत के भविष्य यही बच्चे है. अगर बच्चे अच्छे होंगे तो देश निश्चित ही अच्छा होगा.
आत्मविश्वास इतना कि २०२४ तक यानी कि आगामी १० सालों तक उन्हें कोई खतरा नहीं है. बच्चों के एक सवाल के जवाब में ही उन्होंने कहा की २०२४ के चुनाव की तैयरी करो तभी प्रधान मंत्री बनने का सपना पूरा हो सकेगा. इसका मतलब यह कि दस साल तक वे अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए जी तोड़ कोशिश करेंगे.
अभी हाल ही में प्रधान मंत्री जन-धन योजना की पहले ही दिन मिली अपार सफलता के बाद, उनका दूसरा लक्ष्य सफाई अभियान का भी है. दिक्कत यही है कि २८ और २९ अगस्त को जो रिस्पांस बैंकों का था, बाद में वे अपने पुराने ढर्रे पर आगये और जन-धन के साथ साधारण खाता खोलने वालों को भी टरकाते रहे, क्योंकि अब उनके ऊपर प्रेस का कैमरा नहीं दीख रहा. पता नहीं जिन गरीबों का खाता खुला है, उसे कितना टरकायेंगे. इस सोच को बदलने की आवश्यकता है.


मोदी जी की वक्तृत्व कला अद्भुत है और हाजिर जवाब भी वैसे ही. बच्चों से लगाव इन्होने रक्षा बंधन से लेकर लालकिले के प्रांगण तक में भी दिखलाई थी और शिक्षक दिवस के दिन तो मानो सभी बच्चों को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया. अब चाचा नेहरू के जगह चाचा मोदी को ही बच्चे याद करेंगे. उनका व्यक्तित्व, आंतरिक ऊर्जा ऐसा है की उनके चेहरे पर कभी भी थकन की शिकन तक महसूस नहीं होती. समयानुसार शब्दों का चयन या शब्दों की बाजीगरी उनकी शक्ति है. इन्होने अपना पारिवारिक जीवन त्याग दिया और देश सेवा में खुद को समर्पित कर दिया है. ब्रह्मचर्य में भी एक असीम शक्ति होती है, तभी वे बिना थके लगातार काम करने के आदि हैं.
कूटनीति ऐसी की आतंरिक शत्रु-मित्र सभी किनारे लग गए. पाकिस्तान भारत पर बुरी नजर रखते हुए खुद अपनी कुदृष्टि का शिकार बन गया है और वहां गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गयी. बेचारे नवाज शरीफ ने मोदी जी को आम का टोकड़ा भेजकर अपनी शरण में लेने का अनुरोध भी जता दिया. जापान से दोस्ती कर चीन को भी समझा दिया और ऑस्ट्रेलया से परमाणु करार कर अमेरिका को भी अचंभित कर दिया. अब तो युद्ध की सामग्री ही अमरीका से लेने हैं पाकिस्तान को धमकाने के लिए और निवेश की राह को और आसान करने के लिए. अमरीका आदि विकसित राष्ट्र भारत में निवेश करने को आतुर हैं निश्चित ही अच्छे दिनों की आहट सुनाई पड़ रही है. थोड़ी कानून ब्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर रोक लगनी चाहिए और रोजगार सृजन की जल्द ब्यवस्था होनी चाहिए, ताकि नौजवान भटके नहीं. चीजें सही मूल्य पर उपलब्ध हों, कालाबाजारी या कृत्रिम अभाव पैदा कर दाम बढ़ाने की कोशिशों को बंद किया जाना चाहिए. मुनाफाखोरों और बिचौलियों पर लगाम लगनी ही चाहिए. यह बात सही है, प्रधान मंत्री हर जगह खड़ा तो नहीं रहेंगे, पर उनके मंत्री और पदाधिकारी भी उतने ही ईमानदार होने चाहिए.
अब उनके मंत्री भी अपने १०० दिन के कार्यक्रम का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहे हैं. यह प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की ही ईच्छा का परिचायक है.
उधर भारत के जन्नत(कश्मीर) में जलप्रलय से जो जिल्लत हो रही है, उसका भी समाधान और सामान की देख रेख करने प्रधान मंत्री खुद गए हैं. निश्चित ही वे कश्मीरियों और पर्यटकों की हर सम्भव मदद का प्रयास करेंगे ही.
अपने सम्मुख किसी भी व्यक्ति/जनता/श्रोताओं/दर्शकों को सम्मोहित करने की उनमे अजीब शक्ति है! आगे भी वे अपने प्रयास में सफल रहें यही कामना है.
जय हिन्द! जय भारत!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर