Friday 5 May 2017

न्याय मिला निर्भया को

सदमे की सुनामी थी निर्भया कांड, राक्षस से कम नहीं थे ये चारों...SC की 10 बड़ी बातें
निर्भया कांड पर दोषियों की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज बेहद तल्‍ख दिखे। उन्होंने एकतरफा इस अपील को खारिज कर दिया। 
सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ हुए गैंगरेप के चारों आरोपियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है। अपने 15 मिनट तक पढ़े गए फैसले में कोर्ट ने वो 10 आधार बताए जिसकी वजह से चारो दोषियों को फांसी की सजा दी गई। कोर्ट ने अपने फैसले में बेहद तीखी टिप्पणी कर इस घटना को देश में सदमें की सुनामी करार दिया। वहीं दो‌षियों को राक्षसी दरिंदों से कम नहीं बताया।
निभर्या केस पर सुप्रीम कोर्ट की तल्‍ख टिप्पणी
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जजों ने 2 बजकर 3 म‌िनट पर फैसला पढ़ना शुरु क‌िया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चारों आरोपियों ने निर्भया के साथ जिस तरह का बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया उससे ये साबित होता है कि अपने तरह का अनोखी घटना है।
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यह मामला रेयरेस्ट आफ रेयर है। केस की मांग थी कि न्यायपालिका समाज के सामने एक मिसाल पेश करे।
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निर्भया कांड में कोर्ट का फैसला आते ही अदालत कक्ष में तालियां बजीं।
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अदालत ने कहा इस मामले में कोई रियायत नहीं दी जा सकती।
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निर्भया कांड सदमे की सुनामी थी। जिस तरह से अपराध हुआ है वह एक अलग दुनिया की कहानी लगती है।
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दोषियों ने हिंसा, सेक्स की भूख की वजह से अपराध किया।
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वारदात को क्रूर और राक्षसी तरीके से अंजाम दिया गया।
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उम्र, बच्चे, बूढ़े मां-बाप ये कारक राहत की कसौटी नहीं।
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इस अपराध ने समाज की सामूहिक चेतना को हिला दिया।
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पीडि़ता का मृत्यु पूर्व बयान संदेह से परे
अदालत ने विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि देश के विकास को मापने का सबसे अच्छा थर्मामीटर है कि हम महिलाओं के साथ कैसे पेश आते हैं।
तीन जजों की बेंच में से एक जज भानुमति का फैसला शेष दो जजों से अलग है। जस्ट‌िस भानुमत‌ि ज‌िनका फैसला अन्य जजों से अलग रहा उन्होंने कहा क‌ि हमारे यहां एजुकेशन स‌िस्टम ऐसा होना चाह‌िए ज‌िससे क‌ि बच्चे मह‌िलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना है ये सीख सकें। जस्ट‌िस भानुमत‌ि ने स्वामी व‌िवेकानंद के एक कोट को रेफर करते हुए कहा क‌ि कैसे परंपराएं ज्ञान और श‌िक्षा के साथ म‌िलकर समाज में मह‌‌िलाओं के न्याय द‌िलाने का काम करती हैं।
2012 में जब ये मामला सामने आया तब देशभर में इस मामले को लेकर ज़बरदस्त गुस्सा फूट पड़ा था. विदेशों में भी इस बलात्कार कांड को लेकर निंदा हुई थी. इस मामले में दोषियों की फांसी की सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सभी को इंतज़ार था. सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई.
ट्विटर पर लोग इस फ़ैसले का स्वागत कर रहे हैं, कई लोगों का कहना है कि अब निर्भया को न्याय मिला है. दीक्षा वर्मा ने लिखा है कि कभी कभी लोकतंत्र को सख्त और दयाहीन होना चाहिए, नहीं तो अपराधियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जाएगी. सोनम महाजन ने लिखा है ,''निर्भया के बलात्कारी को फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए थी, इससे कम कोई सज़ा नहीं हो सकती थी. और उन सभी में वो कथित नाबिलग मोहम्मद अफ़रोज़ भी शामिल है.'' तहसीन पूनावाला लिखते हैं,'' निर्भयाकांड के बाद आज भी कई महिलाओं का बलात्कार हो रहा है, उनका शोषण हो रहा और न्याय नहीं दिया जा रहा. मुझे उम्मीद है कि आज हम उन सभी तक पहुंच पा रहे हैं.'' अभिषेक सिंह ने लिखा है कि फांसी ही एक ऐसा तरीका है जिससे रेप रोके जा सकते हैं. पुरुषों को महिलाओं के साथ कुछ भी करने से पहले मौत का डर होना चाहिए. वहीं सिद्धी माथुर लिखती हैं कि निर्भया को न्याय मिला लेकिन आधा. सुप्रीम कोर्ट को उस क्रूर नाबालिग को भी सज़ा देनी चाहिए. किशोर भट्ट लिखते हैं कि नाबालिग को भी फांसी देनी चाहिए. अगर वो इतना बड़ा था कि रेप कर सके तो सज़ा भी काट सकता है. वहीं कवि श्री कुमार विश्वास ने लिखा है, '' बहन निर्भया हम शर्मिंदा हैं कि हम सबके रहते ऐसा हुआ. ईश्वर तुम्हारी आत्मा को संतोष दे कि निर्मम गुनाहगारों को आख़िर सज़ा मिली.''
"जिन लोगों ने मेरे साथ ये गंदा काम किया है उन्हें छोड़ना मत " ये वाक्य डीसीपी साउथ छाया शर्मा को निर्भया ने तब कहे थे जब छाया उससे पहली बार सफ़दरजंग अस्पताल में मिलने गई थी. छाया ने मीडिया से बात करते हुए कहा. "दिल्ली पुलिस ने जो सबूत पेश किए है वो एकदम ठोस है," सप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने फ़ैसला देते हुए कहा. "इन सभी आरोपियों को सज़ा निर्भया के कारण ही मिली है. वो अपने बयान पर निरंतर क़ायम रही "
उन्हें आज भी वो दिन याद है जब वो 23 साल की निर्भया से वह पहली बार मिली थी. "उसकी हालत बहुत ख़राब थी. उससे बोला नहीं जा रहा था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी,". निर्भया ने पहला अपना बयान अस्पताल के डॉक्टर को दिया फिर एसडीएम और फिर जज के सामने. तीनों बार वो अपने बयान पर क़ायम रही. उसने ऐसी छोटी छोटी बातें अपने बयान में बोली जो आख़िर कर पुलिस के लिए बहुत अहम साबित हुई. निर्भया की मौत के पहले के इन बयानों को डाइइंग डिक्लेरेशन माना गया. निर्भया की मौत हादसे के 13 दिन बाद सिंगापुर में हुई.
अपराध होने के 18 घंटो के अंदर पहले आरोपी बस ड्राइवर रामसिंह को गिरफ़्तार किया. "पूछताछ के बाद सभी आरोपी गिरफ़्तार कर लिए गए,". आज जब सप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच पर मुहर लगते हुए आरोपियों को सज़ा सुनाई तब जो पुलिस वाले इस तफ्तीश से जुड़े थे उनके चेहरों से परेशानी कुछ समय के लिए ग़ायब हो गई. सब अपनी की हुई तफ़तीश पर फक्र करने लगे. "हमने इस मामले में आरोप पत्र सिर्फ़ 18 दिन में कोर्ट में पेश किया था. वो आरोप पत्र इतना पक्का था कि तीन अदालतों ने उस को सही ठहराया. अगर उसमें कोई ख़ामी होती तो सप्रीम कोर्ट आज हमें ही टांग देती." 
इसमें कोई दो राय नहीं कि लगभग साढ़े चार सालों बाद आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट से आ गया, जिसका सबको बेसब्री से इन्तजार था. लेकिन तब से अब तक पूरे देश में लाखों घटनाएँ हो चुकी हैं जिनमे औसतन सिर्फ ३०% को ही सजा मिल पाती है वह भी काफी जद्दोजहद के बाद. काफी घटनाएँ तो ऐसे माहौल में घटित हो जाती हैं जिनकी रिपोर्टिंग तक नहीं होती. तीन साल तक की बच्ची से लेकर वृद्धा तक के साथ ऐसे हादसे होते रहते हैं और समाज सुधरने का नाम नहीं ले रहा. एक तो वातावरण ही इतना विषाक्त हो गया कि हम सभी आध्यात्म और सात्विकता से दूर भागते चले जा रहे हैं. दूसरा स्त्रियों के प्रति पुरुषवादी सोच शुरू से हवी रहा है. विधाता ने स्त्रियों को शारीरिक रूप से कमजोर बनाया है और थोड़ी वे मन से भी कमजोर होती हैं जिसका कारण हमारा सामाजिक पारिवारिक वातावरण है. कुछ  तो करना होगा ताकि ऐसे आपराधिक घटनाएँ घटे ही नहीं. हमारे बुद्धिजीवी, मनीषी, ऋषि, योगी, नीतिनिर्धारक, विधिवेत्ता, सामजिक कार्यकर्ता, नेता सभी को मिलकर इस पर गंभीर रूप से विचार करने की आवश्यकता है. केवल नारा और भाषणबाजी से तो कुछ होता जाता नहीं है. धरातल पर काम होने चाहिए. उत्तर प्रदेश के योगी जी ने एंटी रोमियो स्क्वाड के ही जरिये कुछ कदम उठाया तो है जिससे काफी लड़कियां और महिलाएं राहत महसूस कर रही हैं. सभी राज्य सरकारों को ऐसे कदम उठाने चाहिए और शराब आदि नशा पर तो प्रतिबन्ध लगाने ही चाहिए क्योंकि ज्यादातर अपराध शराब के नशे में होते हैं.
हमें न्यायधीशों, पुलिसकर्मियों, डॉक्टरों और वकीलों के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए जिन्होंने न्याय दिलाने में अपना जी जान लगा दिया. एक बार पुन: कह सकते हैं सत्यमेव जयते और भारत माता की जय! जय हिन्द!

-    - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर!    

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