Saturday 6 February 2016

दिल्ली की दयनीयता

दिल्ली सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत की राजधानी, मेट्रो सिटी, कीमती शहर, अब स्मार्ट सिटी बनने की तैयारी में है। स्मार्ट सिटी का मतलब सबकुछ स्वचालित होगा. ट्रैफिक ब्यवस्था से लेकर सभी कुछ माउस क्लिक या स्मार्ट फोन पर उपलब्ध होगा। सीधे-सादे शब्दों में कहें तो स्वर्गिक सुख का अहसास होगा। दिल्ली जो दिलवालों की है वह तो सभी स्मार्ट शहरों में आगे होगी। उसी का ट्रेलर शायद अभी दिखाया जा रहा है। पूरी गंदगी फैलाकर सारी ब्यवस्था को ठप्प करने के बाद ही तो उसे सुधारा जायेगा। तब लगेगा के हमारी दिल्ली सच में सभी शहरों से अलग नूतन, नवयौवना, अल्ल्हड़ की भांति सबको रोमांचित करेगी। तभी लोगों को महसूस भी होगा स्मार्ट सिटी क्या होता है?
दिल्ली में नगर निगम के एक लाख से ज़्यादा कर्मचारियों की हड़ताल के चलते सड़कों से लेकर निगम के स्कूल अस्पतालों में असर दिखने लगा है। अपनी मांगों को लेकर एमसीडी कर्मचारियों ने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के कैंप ऑफिस के बाहर पटपड़गंज में कूढ़े का ढेर लगाकर प्रदर्शन किया। इस हड़ताल में तीनों निगमों के सफाई कर्मचारी, शिक्षक, डॉक्टर सब शामिल हैं। एमसीडी कर्मचारियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के सामने और जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया था। दिल्ली के तीनों नगर निगमों के कुल सवा लाख कर्मचारी हैं जिनमें से करीब 60 हज़ार सफ़ाई कर्मचारी हैं। सफाई कर्मचारियों के हड़ताल पर चले जाने से सड़कों, गलियों से भी कूड़ा उठना बंद हो गया है।
दिल्ली के तीनों नगर निगम अपने कर्मचारियों को तीन महीने से पैसा नहीं दे पा रहे। निगम कहता है, दिल्ली सरकार उसका फंड नहीं दे रही। जबकि, दिल्ली सरकार का दावा है कि उसने निगमों को इस साल 2000 करोड़ रुपये दे दिए हैं। निगम का दावा 3000 करोड़ का है। कर्मचारियों की मांग है - महीने की पहली तारीख़ को मिले वेतन, तीनों नगर निगमों को फिर से एक किया जाए, बक़ाया वेतन का भुगतान तुरंत हो। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के सफाईकर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों की हड़ताल को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने निराशा जताई है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली को साफ रखना एमसीडी कर्मचारियों का दायित्व है। सरकार और एमसीडी की लड़ाई से आम जनता को नुकसान हो रहा है। गौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिनों पहले बंगलोर में(इलाजरत) प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की मांगों पर अपनी बात रखी थी। केजरीवाल ने दोनों (पूर्वी और उत्तरी) एमसीडी को 693 करोड़ रुपए देने की बात कहते हुए हड़ताल खत्म करने की अपील की थी। इस मांग को एमसीडी कर्मचारियों ने ठुकरा दिया है।
एमसीडी कर्मचारियों के यूनियन ने कहा कि केजरीवाल बेवकूफ बना रहे हैं, सफाईकर्मी हड़ताल वापस नहीं लेंगे। केजरीवाल ने एमसीडी के हड़ताली कर्मचारियों को 31 जनवरी तक की सैलरी देने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि एमसीडी का दिल्ली सरकार पर एक भी पैसा बकाया नहीं, फिर भी वह पैसों का इंतजाम कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि एमसीडी में बड़ा घोटाला हुआ है, इसलिए वो अपने खातों की जांच कराने को तैयार नहीं होते हैं।
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से भी बैठक बेनतीजा निकली है। इससे पूर्व एमसीडी कर्मचारियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार और एमसीडी की लड़ाई में आम लोग परेशान हो रहे हैं। इस बीच पूर्वी दिल्ली एमसीडी ने कोर्ट को बताया कि आज की तारीख तक का सारा बकाया पैसा सफाईकर्मियों को दे दिया गया है, अब कोई बकाया नहीं है, कोर्ट ने पूछा कि जब पैसा दे दिया है तो कर्मचारी काम पर क्यों नहीं लौट रहे। एमसीडी कर्मचारी समस्या का स्थायी हल चाहते हैं। हड़ताल में तीनों एमसीडी के सफाईकर्मी, डॉक्टर और शिक्षक शामिल हैं, जिसकी वजह से शहर में कूड़ों के ढेर के अलावा अस्पतालों और स्कूलों में भी व्यवस्था चरमरा गई है।
मुझे नहीं पता कि एम सी डी कर्मचारियों की हड़ताल के शिकार आम जनता, दिल्ली सरकार के कुछ मंत्रीगण ही हैं या राज्यपाल, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और उनके मंत्री परिषद के सदस्य भी हैं। क्या कोर्ट के आँगन में भी किसी ने कचड़ा फेंका या वहां की नालियां भी जाम हैं? जिस रस्ते से VVIP लोग गुजरते हैं, वह रास्ता भी वैसा ही है, जैसा टी वी पर दिखाया जाता है? दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी, क्या गंदे माहौल में रहकर सेवा दे रहे हैं? खैर मनाया जाय कि यह बरसात का समय नहीं हैं, नहीं तो सड़कों पर नाव चल रहे होते। महामारी फ़ैल चुकी होती। जीका वायरस की जरूरत ही नहीं पड़ती।
जमशेदपुर का बड़ा हिस्सा टाटा टाउन विभाग के नियंत्रण में है। यहाँ की सफाई सुथराई, बिजली पानी की ब्यवस्था टाटा की ही अनुषंगी इकाई जुस्को द्वारा की जाती है। यहाँ कभी हड़ताल नहीं होता कभी छुट्टी नहीं होती। जुस्को के कर्मचारी अनवरत सेवा में लगे रहते हैं। उन्हें हड़ताल की इजाजत नहीं है। हड़ताल मतलब स्थाई छुट्टी। इसके अधिकांश कर्मचारी ठेका पर काम करते हैं। अगर एक दिन भी बिना उचित वजह के काम पर नहीं आएं तो दूसरे दिन छुट्टी तय है। इसलिए ये लोग जल्दी नागा नहीं करते। प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी/अधिकारी भी बंधुआ मजदूर की भांति काम करते हैं। पर जहाँ कही भी नगरपालिका  म्युनिस्पलिटी, या नगर निगम है। ब्यवस्था ऐसी ही चरमराती रहती है। टैक्स तो सभी अपना समय पर चुकाते हैं पर सुविधा और सेवा समय पर मिले यह कोई जरूरी नहीं है।
'कुशासन करने वाले शासक को सहयोग देने से इंकार करने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को है।'- महात्मा गांधी 'यदि सरकार भ्रष्टाचार को रोक पाने में नाकाम रहती है, तो उसे टैक्स देने से इंकार करके असहयोग आंदोलन शुरू कर दें।'- हाईकोर्ट नागपुर बेंच.
इन दोनों कथनों में 96 वर्षों का फर्क है, लेकिन अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अंतर नहीं है। पहले वाक्य में 'कुशासन करने वाले' से मतलब है- अंग्रेजी शासकों से तो दूसरे कथन में जो 'सरकार' है, वह आजाद हिंदुस्तान की अपनी सरकार है। पहले वाक्य के शब्द उस नोटिस से लिए गये हैं, जो महात्मा गांधी ने 22 जून 1920 को वायसराय को दिया था। इसके बाद ही पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन पूरे देश में फैल गया था।
यह दूसरा कथन महाराष्ट्र हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का है, जो उसने महाराष्ट्र सरकार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहे। जाहिर है कि जनहित याचिकाओं की लगातार बढ़ती जा रही संख्याओं ने कोर्ट के सामने प्रशासन का जो चरित्र और लोगों की जिन परेशानियों को प्रस्तुत किया है, उसने कोर्ट को यह कहने के लिए प्रेरित किया होगा। निःसंदेह रूप से इसमें कहीं न कहीं कुछ विशेष न कर पाने की कोर्ट की बेबसी भी झलक रही है। बेबसी यह कि 'अब जो करना है, लोग खुद करें।' ऊपर से शांत और सहज दिखने वाले इस कथन के गर्भ में आक्रोश का जो लावा उबल रहा है, उसकी अनदेखी किया जाना हितकर नहीं होगा।
यह एक बहुत ही व्यावहारिक सवाल है कि 'मुझसे जिस काम के नाम पर पैसा वसूला जा रहा है, वह काम होना ही चाहिए। यदि काम नहीं, तो दाम भी नहीं।' नगर निगम, नगर पालिकायें सम्पत्ति कर लेती हैं, लेकिन कचरों के ढेरों का साम्राज्य फैला हुआ मिलता है। रोड नहीं है, लेकिन रोड टैक्स है। सच यही है कि ऐसे में लोग टैक्स दें तो क्यों दें। वे किस पर भरोसा करके दें। ब्रिटेन में काउंटियां टैक्स लेती हैं। उस रकम की पाई-पाई का हिसाब जनता के लिए डिस्प्ले किया जाता है। वे जितना देते हैं, उससे अधिक वे पाते है। हम यह तो जानते हैं कि हमसे कौन-कौन से टैक्स किस-किस काम के लिए, लिए जा रहे हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि उसका होता क्या है। कोर्ट ने इशारा किया है- भ्रष्टाचार।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि स्वच्छ भारत का सपना दिखानेवाले प्रधान मंत्री क्या इन सबसे अनजान हैं या अनजान बने रहना चाहते हैं? प्रधान मंत्री आसाम में जाकर बोलते हैं- एक परिवार उन्हें काम नहीं करने देता। पूर्ण बहुमत से बांये गए प्रधान मंत्री के ऐसे बोल?
प्लीज सर! हस्तक्षेप करिए समाधान निकालिए, वरना आप पर से लोगों का भरोसा उठ जायेगा. ऐसे ही अब डगमगाने लगा है।
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

2 comments:

  1. बढ़िया लेख.
    मेरी जानकारी के अनुसार दिल्ली नगर निगम एक नहीं बल्कि तीन हैं जिनमें से कोई भी स्मार्ट सिटी के लिए नहीं चुना गया. ये तीनों पजामा-सिटी ही रहेंगे ! दिल्ली का चौथा भाग कैंट है और भी इस दौड़ मन नहीं था. पांचवां भाग नइ दिल्ली है याने NDMC वो ही स्मार्ट बनेगा क्यूंकि वही पहले भी स्मार्ट था ! vip इलाका है ना.
    हम तो अभी पजामा-सिटी में ही रहेंगे.

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  2. जानकारी के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त करने का हार्दिक आभार आदरनीय हर्ष वर्धन जी!मुझे आश्चर्य इसी बात का हो रहा है कि दिल्ली की जनता कैसे बर्दाश्त कर पा रही है?

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