Saturday 9 January 2016

पठानकोट से हमने क्या सबक लिया

पठानकोट एयर बेस पर ६ आतंकवादियों द्वारा किया गया बड़ा हमला और घुंसपैठ एक बड़ी साजिश का नतीजा है. इतने सारे विध्वंसक साजो सामान के साथ घुंसपैठ लगातार तीन दिनों तक या उससे भी ज्यादा समय तक सेना से लोहा लेना मामूली वारदात नहीं कही जा सकती. भले ही सेना और सरकार की चुस्ती ने इसे नाकाम कर दिया पर सवाल अनेकों है, जो उठने लाजिम हैं.
यह हमला ठीक उस समय हुआ जब प्रधान मंत्री नवाज शरीफ से बिना कोई तय कार्यक्रम के मिलकर आये थे. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पाकिस्तान दौरा कर NSA स्तर से वार्ता की पृष्ठभूमि तैयार कर रही थी. हर मसलों पर समग्र बात-चीत की पहल के तौर पर इसे देखा जा रहा था, ताकि दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में सुधार हो. इसी बीच पठानकोट के एयरबेस पर हमला सारे प्रयासों को जड़ से हिला देता है. यह आतंकी हमला पाकिस्तान आर्मी से समर्थित था, इसके भी सबूत मिल चुके हैं.
हम पाकिस्तान को सबूत पर सबूत भेज रहे हैं, पर पाकिस्तान उसे नाकाफी बता रहा है. पाकिस्तानी मीडिया पहले ही इन सबको ख़ारिज कर चुका है. अमेरिका भी पकिस्तान को आतंकियों पर सही एक्शन लेने की सलाह दे रहा है, पर उसे समय देने की भी वकालत कर रहा है. पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी पाकिस्तान में स्वतंत्र एजेंसी की तरह काम करता है और वह हमेंशा भारत के विरुद्ध ही एक्शन में रहता है.
सवाल यह भी उठा है कि इतना बड़ा सुनियोजित और प्रायोजित हमला बिना हमारे लोगों के सहयोग के संभव नहीं था. कई लोगों से पूछताछ जारी है. जब तक हमारे लोग उनको सूचना उपलब्ध नहीं कराएँगे, वे कैसे पायेंगे? आतंकी सरगना तभी कामयाब होते हैं जब हमारे लोग उनके सहारे होते हैं. चाहरदीवारी पर लगे तीन फ्लड लाइट्स का रुख घुमाया किसने? दो लाइटों के वायर काटे हुए मिले. एस. पी. सलविंदर सिंह की भूमिका अभी तक संदेह के घेरे में है. उनकी जांच हो रही है. जांच के बाद कुछ एक्शन लिए जायेंगे तो? सेना के जवानों पर हम सब नागरिकों को ‘नाज’ होता है. अभी तक यह कहा जा सकता है कि सेना के जवान और उस संस्था में काम करने वालों में देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई होती है. वह जीता है तो देश के लिए मरता है तो देश के लिए. हम उन जवानों को सैलूट करते हैं. उनके शव को तिरंगे में लपेटकर सम्मान दिया जाता है. सेना के जवानों के परिवार भी अपना उदगार जिस प्रकार व्यक्त करते हैं, एक बार हमारी ऑंखें नम हो जाती है. पर क्या इनमे भी कुछ गद्दार हैं, जो जिम्मेदार हैं, इस प्रकार के हमले और आतंकवादियों के घुंसपैठ के लिए. उनकी सजा तो होगी सो होगी पर इनकी जवाबदेही को हम कब मूल्यांकित करेंगे? तथा सुधारात्मक प्रक्रिया कब अपनाएंगे?
गद्दारों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं ? हम क्यों अपने देश के प्रति खुद्दार नहीं है ? ड्रग्स, नारकोटिक्स का बिजनेस चलनेवाले ही घुंसपैठ कराते हैं. यह भी बातें स्पष्ट हो चुकी है. जिन पर बिश्वास कर हम चैन से सोते हैं, उनमे अगर गद्दार हों तो बहुत दुःख होता है. यह बेईमानी है, इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए. हमें अपनी सीमा पर हर हमेशा चौकस निगाह रखनी होगी और हर तरह के घुंसपैठ को नाकाम करने के हर संभव प्रयास करने चाहिए. अपनी सुरक्षा ब्यवस्था को और चुस्त दुरुस्त करने होंगे. रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने भी कुछ कमियों को रेखांकित किया है. हमें उन्हें दूर करने ही होंगे. अब प्रधान मत्री भी पठानकोट का स्वयम दौरा कर चुके हैं. उन्होंने भी कुछ देखा होगा और अपनी कुछ राय दी होगी. निश्चित ही हमें उनके सलाहों पर गौर करनी चाहिए और अपने घर को अपने देश को सुरक्षित रखने के हर संभव प्रयास करने चाहिए.
बहुत पहले राष्ट्रकवि मथिलीशरण गुप्त ने कहा था
‘जिसको न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है।’ – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
कुछ और विश्लेषण पत्रकार रवीश कुमार के शब्दों में – “लेफ़्टिनेंट कर्नल सहित सात जवान शहीद हुए हैं। एक कृतज्ञ राष्ट्र को क्या करना चाहिए? क्या उसे चुप रहकर शोक जताना चाहिए या बोलने के नाम पर चैनलों पर बोलने की असभ्यता के हर चरम को छू लेना चाहिए? ऐसा लगता है कि हम आक्रामक होने के बहाने शहादत का अपमान कर रहे हैं। इन पाकिस्तानी मेहमानों के ज़रिये कहीं पाकिस्तान विरोधी कुंठा को हवा तो नहीं दी जा रही है। इस कुंठा को हवा तो कभी भी दी जा सकती है लेकिन ऐसा करके क्या हम वाक़ई शहादत का सम्मान कर रहे हैं? क्या ये पाकिस्तानी मेहमान कुछ नई बात कह रहे हैं? चैनलों पर पाकिस्तान से कौन लोग बुलाये जा रहे हैं? क्या वही लोग हैं जो इधर के हर सवाल को तू-तू मैं-मैं में बदल देते हैं और इधर के वक़्ता भी उन पर टूट पड़ते हैं। कोई किसी को सुन नहीं रहा। कोई किसी को बोलने नहीं दे रहा। इस घटना पर दोनों देशों के जिम्मेदार लोग बोल रहे होते तो भी बात समझ आती लेकिन वही बोले जा रहे हैं, जिन्हें घटना की पूरी जानकारी तक नहीं। जिनका मक़सद इतना ही है कि टीवी की बहस में पाकिस्तान को अच्छे से सुना देना। किसी की शहादत पर गली मोहल्ले के झगड़े सी भाषा उसका सम्मान तो नहीं है? उनका परिवार टीवी देखता होगा तो क्या सोचता होगा।
क्या यही एकमात्र और बेहतर तरीका है? अपनी कमियों और चूक पर कोई सवाल क्यों नहीं है? क्या इस सवाल से बचने के लिए मुंहतोड़ जवाब और बातचीत के औचित्य के सवाल को उभारा जा रहा है? दो दिन से पठानकोट एयरबेस में गोलीबारी चल रही है लेकिन आप देख सकते हैं कि गृहमंत्री का असम दौरा रद्द नहीं होता है। बेंगलुरु जाकर प्रधानमंत्री योग पर लेक्चर देते हैं। सबका ज़रूरी काम जारी है। टीवी पर इनके इधर उधर से बाइट आ जाते हैं। उन्हें सुनकर तो नहीं लगता कि कोई गंभीर घटना हुई है। बस नाकाम कर दिया और जवाब दे दिया। क्या नाकाम कर दिया? दो दिनों से वे हमारे सबसे सुरक्षित गढ़ में घुसे हुए हैं। हम ठीक से बता नहीं पाते कि पांच आतंकवादी शनिवार को मारे गए या रविवार को पांचवा मारा गया। ख़ुफ़िया जानकारी के दावे के बाद भी वो एयरबेस में कैसे घुस आए?
कहीं इस आतंकी हमले से जुड़े सवालों से भागने का प्रयास तो नहीं कर रहे? हम अपनी बात क्यों नहीं करते? क्या ये चैनल भारत सरकार के कूटनीतिक चैनलों से ज़्यादा पाकिस्तान को प्रभावित कर सकते हैं? हम सीमा पार से बुलाये गए नकारे विशेषज्ञों और पूर्व सैनिकों को बुलाकर क्या हासिल कर रहे हैं? वो तो हमले को ही प्रायोजित बता रहे हैं। क्या उनके दावों को भारत सरकार गंभीरता से लेती है? एंकर भले उन पाकिस्तानी वक्ताओं पर चिल्ला दे लेकिन क्या हम इतने से ही संतुष्ट हो जाने वाले पत्थर दिल समाज हो गए हैं? मैं कभी युद्ध की बात नहीं करता लेकिन निश्चित रूप से शहादत पर शोक मनाने का यह तरीका नहीं है।
हम सबको गर्व है लेकिन क्यों इस गर्व में किसी के जाने का दुख शामिल नहीं है? क्या ग़म उनकी शहादत के गौरवशाली क्षण को चैनलों की तू-तू मैं-मैं वाली बहसों से अलंकृत कर रहे हैं? हम कहां तक और कितना गिरेंगे? क्या इस तरह से लोक विमर्श बनेगा। हम रात को टीवी के सामने कुछ दर्शकों की कुंठा का सेवन कर क्या कहना चाहते हैं? इन नक़ली राष्ट्रवादी बहसों से सुरक्षा से जुड़े सवालों के जवाब कब दिये जायेंगे। सोशल मीडिया पर इस घटना के बहाने मोदी समर्थक मोदी विरोधियों का मैच चल रहा है। उनकी भाषा में भी शहादत का ग़म नहीं है। गौरव भी कहने भर है। कोई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को हटाने का हैशटैग चला रहा है तो कोई मोदी का पुराना ट्वीट निकाल रहा है। सवालों की औकात इतनी ही है कि पूछे ही जा रहे हैं। जवाब देने की ज़िम्मेदारी और शालीनता किसी में नहीं।”
अभी पठानकोट के आग से धुँआ निकलना बंद भी नहीं हुआ कि मालदा में कुछ नासमझ लोग हुडदंग करने लगे, जिसकी तपिस पूर्णिया तक पहुँच गयी. सोसल मीडिया पर उनपर बेवजह वक्त जाया किया जा रहा है. इस तरह के अप्रिय वारदातों पर रोक लगाने की जरूरत है न कि उसे हवा देकर सांप्रदायिक माहौल में अपनी रोटी सेंकने का काम करने लग जाएँ. हम एक रहेंगे तो देश मजबूत होगा वरना अपने घर की फूट का फायदा पड़ोसी दुश्मन उठाएंगे ही. हम सभी को देश के जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाने की जरूरत है. हम सुधरेंगे जग सुधरेगा … जग सुधरे या न सुधरे, कम से कम हमारे क्रियाकलाप ऐसे होने चाहिए, जिससे समाज और देश का भला हो और नुकसान तो कत्तई न हो. तभी होगा असली जय हिन्द, जय भारत और विश्वगुरु भारत.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

2 comments:

  1. आतंकी सरगना तभी कामयाब होते हैं जब हमारे लोग उनके सहारे होते हैं. चाहरदीवारी पर लगे तीन फ्लड लाइट्स का रुख घुमाया किसने? दो लाइटों के वायर काटे हुए मिले. एस. पी. सलविंदर सिंह की भूमिका अभी तक संदेह के घेरे में है. उनकी जांच हो रही है. जांच के बाद कुछ एक्शन लिए जायेंगे तो? सेना के जवानों पर हम सब नागरिकों को ‘नाज’ होता है. अभी तक यह कहा जा सकता है कि सेना के जवान और उस संस्था में काम करने वालों में देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई होती है. वह जीता है तो देश के लिए मरता है तो देश के लिए. हम उन जवानों को सैलूट करते हैं. उनके शव को तिरंगे में लपेटकर सम्मान दिया जाता है. सेना के जवानों के परिवार भी अपना उदगार जिस प्रकार व्यक्त करते हैं! ​​आपने स्पष्ट रूप से अपनी बात लिखी है ! इस बात से पूर्ण सहमत हूँ कि बिना अंदर के गद्दारों की सहायता के इतना बड़ा आतंकी हमला संभव नही हो सकता ! ये भारत की विडम्बना ही कही जायेगी कि मातृभूमि से गद्दारी करने वाले आज भी जिन्दा हैं !

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    1. आदरणीय योगी जी, सादर अभिवादन! ब्लॉग पर संज्ञान लेकर सार्थक और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार! उम्मीद है मोदी सरकार गद्दारों को माफ़ नहीं करेगी तभी हम दूसरों पर vijay प्राप्त करने में सफल होंगे सादर!

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