Tuesday 23 July 2013

शपथ ग्रहण और उसका औचित्य !


शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप …
1 संघ के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्रारूप :-
‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।) मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।’
2 संघ के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्ररूप :-
‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि जो विषय संघ के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक् निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूँगा।’
* (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा प्ररूप 3 के स्थान पर प्रतिस्थापित।)
यही शपथ झारखण्ड के नए मुख्य मंत्री हेमंत शोरेन ने ली … उनके साथ दो मंत्री राजेंद्र सिंह और अन्नपूर्णा देवी ने भी लिया ..और भी मंत्री बाद में शपथ लेंगे.
हर बार जब भी कोई नयी सरकार बनती है तो उसके मंत्री मंडल के सदस्य शपथ लेते हैं, पर, क्या वे याद रख पाते हैं?
शादी के समय वर- वधु शपथ लेते हैं, अग्नि को साक्षी मान कर!
हर व्यवसाय से जुड़े लोग डॉ. वकील, सेना और पुलिस के जवान, न्यायाधिपति, राष्ट्रपति सभी शपथ लेते हैं.
अदालतों में गवाह, अभियोगी, अभियुक्त भी शपथ लेते हैं. हम सभी अनेक मौकों पर शपथ पत्र (affidavit ) जारी करते हैं.
क्या मतलब है इन सबका? शपथ की कितनी प्रतिशत बातों(भावों) का पूर्णतया पालन होता है? अगर न्यायाधीश, सेना और कुछ डाक्टर को छोड़ दें तो कोई भी व्यक्ति आज के समय में अपने शपथ पर खड़ा नहीं उतरता. फिर यह शपथ ग्रहण का नाटक क्यों?
तिरंगा फिल्म में राजकुमार ने धार्मिक पुस्तक गीता पर हाथ रखने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उसे मालूम था की वह सत्य नहीं बोल रहा, फिर पवित्र ग्रन्थ का अपमान क्यों?
आज भी हम माँ कसम खूब कहते हैं. कोई गंगा की सौंगंध कहता है, कोई देश की सौंगंध कहता है. अगर कायदे से देखा जाय तो इन कसमों में ज्यादा सच्चाई रहती है क्योंकि तब हम अपने दिल और दिमाग को एक रखकर कसम खाते हैं.
शपथ ग्रहण में दिमाग का भी कितना इस्तेमाल होता है, कह नहीं सकते ..सिवाय परम्परा निर्वाह के!
हेमंत शोरेन ने शपथ खाने के बाद कहा वे दिशोम गुरु(शिबू सोरेन) के सपनों को साकार करेंगे. क्या है, शिबू शोरेन का सपना, यह क्या किसी से छुपा है?
बहुत पहले जब गाँव में पंचायत होती थी तो उसे पंचों के सामने/ जनता के सामने कसम खिलाई जाती थी, या फिर उसे मंदिर में ले जाकर कसम खिलाई जाती थी कि वह जो भी कह रहा है, सत्य कह रहा है. गंगा में खड़ा होकर या गंगा जल हाथ में लेकर आदमी झूठ नहीं बोल सकता ..इतना विस्वास था तब. अब तो भगवन को भी हाथ में लेकर या या उनके सामने भी कसम खाने वाला व्यक्ति सच बोलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं. फिर शपथ का नाटक क्यों?
अहिंसा परमो धरम, सदा सत्य बोलो, ईश्वर में आस्था रखो, माता पिता और बड़ों का सम्मान करो. माता पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करो. ये सभी सर्वमान्य सिद्धांत थे. वे सभी आज लुप्त होते जा रहे हैं. तब हम माता, पिता और गुरु की आज्ञा का पालन आंख मूँद कर करते थे. आज हम कानून का उल्लंघन आँख खोल कर करते हैं. न्याय का मंदिर भी आज अछूता नहीं रहा, जहाँ फैसले के इंतज़ार में आदमी मर जाता है, या गलत फैसले का शिकार हो जाता है.
एक सवाल मन में उठता है हमारा इतना अधिक पतन क्यों हुआ और आगे कहाँ तक गिरनेवाले हैं? समाधान और सुधार की जरूरत है या नहीं?… कौन करेगा समाधान … उत्तर अपने आप से पूछना होगा. शुरुआत अपने घर से स्कूल से समाज से करनी होगी …स्वस्थ बीज से स्वस्थ पौधे पैदा होंगे ..इसे स्वीकार करना होगा. पौधे को उचित धूप, हवा पानी और खाद देनी होगी, नहीं तो वह प्रदूषण का शिकार हो जायेगा! और परिणाम …….?????
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 14.07.2013

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