ग्रीष्म और वर्षा ऋतू का संगम काल आ पहुंचा है इसी को ध्यान में रख कुछ दोहों की रचना की है कृपया अवलोकन करें!
ग्रीष्म शुष्क लागत बदन, जागत हैं अति पीर
मनुज, पशु, खगवृन्द सभी, खोजत शीतल नीर
तप्त किरण मध्याह्न अति, तपस लगत चहुओर.
गरम पवन लागे बदन, अगन लगे अति घोर.
पल-पल बिजली जात हैं, बिजली घर में शोर
दूरभाष की घंटिका, बाजत हैं घनघोर
कोकिल कूके बाग में , शीतल पवन न शोर.
वृन्द खगन के देखि के, नाचत मन में मोर.
मनुज, पशु, खगवृन्द सभी, खोजत शीतल नीर
तप्त किरण मध्याह्न अति, तपस लगत चहुओर.
गरम पवन लागे बदन, अगन लगे अति घोर.
पल-पल बिजली जात हैं, बिजली घर में शोर
दूरभाष की घंटिका, बाजत हैं घनघोर
कोकिल कूके बाग में , शीतल पवन न शोर.
वृन्द खगन के देखि के, नाचत मन में मोर.
भूजन तरसे जल बिनू, आश करे तेहि ओर.
मेघ घिरे नभ में सघन, कड़के बिजुरी घोर,
प्रियजन आहु, निरखु मही, तृण छायो चहुओर वरुण,इंद्र, विनती सुनौ, बरसु घटा घनघोर.झर-झर बरसे मेघ घन, तृप्त वसुंधरा होहि ,
सरिता माहि मीन मगन, जलक्रीड़ा में खोहि.
पावस मास मीत बिना, अगन उठे हिय माहि.
मेघन घर्षण जिमि बिजुरी, हिय छलकत यों ताहि.
-जवाहर
३०.०५.१३
वाह आदरणीय उत्तम कोटि की दोहावली प्रस्तुति की है आपने, विषय को सुन्दरता से परिभाषित किया है, आहा आनंद आ गया, इस सुन्दर दोहावली पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय श्री अरुण जी!
Deleteबहुत सुन्दर रचना आपकी यह रचना कल सोमवार (10-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteहार्दिक आभार श्री नीरज कुमार जी!
Deleteउम्दा अभिव्यक्ति...अच्छा लगा
ReplyDeleteधन्यवाद श्री अशोक जी!
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