बनरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान, बंगलोर की सैर
प्रकृति एक महान स्रोत है, जो हर प्रकार के पदार्थों, वनस्पतियों और जीवों का
निर्माण करती है और उन्हें विकसित होने के लिए उन्ही के अनुसार हर प्रकार का
अनुकूल वातावरण भी प्रदान करती है. इस ब्रहमांड के बारे में भी बहुत कुछ हम जानते
हैं, जानने की कोशिश करते हैं, काफी कुछ समझ पाते हैं या नहीं भी समझ पाते हैं. हर
एक के विचार, भावना, सोच, कार्य-प्रणाली जीवन शैली अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं,
पर यह प्रकृति ही है जो हममे सबके साथ सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा देती है.
हम दिन-रात भले ही अपनी दिनचर्या में लीन हों, पर कभी-कभी ऐसा अवश्य लगता है कि हम
अपने आस-पास या दूर के प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करें, उनसे कुछ ग्रहण करें और
उन्हें भी अपने जीवन में स्थान दें. अथवा अपने व्यस्ततम वातावरण से दूर हटकर
प्रकृति की गूढ़ता का अध्ययन करें. एक आम आदमी के लिए यह हमेशा संभव नहीं होता कि
वह सुदूर पहाड़ियों, घनघोर जंगलों, या निर्जन-निर्जल रेगिस्तान में चला जाय और वहां
के बारे में जानने समझने का प्रयास करे. इसीलिए शायद हर क्षेत्र में कुछ प्राकृतिक
वातावरण का या तो निर्माण किया गया है या उन्हें विकसित कर सुगम बनाया गया है ताकि
एक आम आदमी उन इलाकों में जाकर प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक प्राणियों और उनके
जीवन शैली का अवलोकन करे, अध्ययन करे और महसूस करे. हमारे देश में के कई राष्ट्रीय
उद्यान हैं जहाँ वन्य प्राणियों के संरक्षण की भरपूर ब्यवस्था की गयी है साथ ही
वहां तक पर्यटकों को सुरक्षित ले जाने और उन्हें बतलाने, समझाने की भी भरपूर
ब्यवस्था की गयी है.
अभी हाल ही में बंगलुरु स्थित बनरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान जाने का मौका मिला और मैंने जो देखा, अनुभव किया, उसे ही यहाँ बतलाने का
प्रयास कर रहा हूँ. -- जंगली बिल्लियों, भारतीय तेंदुओं, बाघ, चीतों और हाथियों को नैसर्गिक रूप से साक्षात देखने के लिए बेंगलोर से २० किलो
मीटर दक्षिण में बनरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान बहुत सुंदर स्थल है. यहाँ सुरक्षित जू-सफारी
में ड्राइव करते हुए जंगल के जानवरों को उनकी प्राकृतिक अवस्था में देखा जा सकता
हैं. इस पार्क में एक साँप और मगरमच्छों का फार्म भी है.
बनरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क को 2002 में बनरघट्टा नेशनल पार्क के एक हिस्से से बनाया गया
था. बंगलौर से पार्क की यात्रा करने के लिए लगभग डेढ़ घंटे लगते हैं. यह जगह सबसे अधिक
प्राकृतिक जैव संरक्षणों में से एक है. 25,000 एकड़ (104.27 वर्ग किमी) में फैला यह जैव उद्यान बंगलौर में एक
प्रमुख पर्यटक आकर्षण का केंद्र है. बनरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान में वन्य जीवों और
तेजी से बढ़ते शहर बैंगलोर की शहरी आबादी के लिए मनोरंजन की सुविधाएं बनाने के लिए
विशेष गहनता के साथ वन्य जीवन पर्यटन को बढ़ावा देने के संरक्षण के लिए अगस्त 1971 में शुरू किया गया था.
बनरघट्टा चिड़ियाघर में एक तेंदुआ(सफेद बाघों सहित) बाघ, शेर, हाथी, हरिणों,
भालुओं, बंदरों सहित अन्य स्तनधारियों का आश्रय है. पार्क में पर्यटकों के भ्रमण
के लिए सफारी बस, जीप आदि उपलब्ध है, जिसे सुरक्षित वातावरण में प्रशिक्षित चालकों
और सहायकों द्वारा निर्धारित मार्ग से घुमाया जाता है. वे जगह-जगह रोककर या धीमा
कर पर्यटकों को वन्य प्राणियों से परिचित कराते हैं. बाघ और शेर के इलाके कई
सुरक्षित घेरे के अन्दर हैं जिन्हें इन सफारिर्यों के प्रवेश के समय ही खोला जाता
है. वहां के सुरक्षा कर्मी भी प्रशिक्षित ही होते है जो अपनी सुरक्षा करते हुए
पर्यटकों की सुरक्षा का विशेष ख्याल रखते हैं. सफारी का प्रबंधन और वित्त पोषण कर्नाटक
राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा किया गया हैं. पार्क के टाइगर रिजर्व भारत के वन
विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त है. विशेष प्रबंधन के बावजूद भी कभी-कभी छोटी-मोटी
दुर्घटनाएं घट ही जाती है क्योंकि जंगली जानवर शायद अपने प्राकृतिक जीवन में
हस्तक्षेप समझते हों या पर्यटकों/संरक्षकों की सावधानी और हिदायत के बावजूद भी
कभी-न-कभी कोई गलती हो जाती है. इसलिए वे लोग हमेशा आगाह करते रहते हैं कि,
चिल्लाएं नहीं, जानवरों को छेड़ें नहीं. फोटोग्राफी कर सकते हैं, उसके लिए भी
अनुमति लेनी होती है. इस उद्यान में एक साँप पार्क और एक छोटा सा थिएटर के अलावा, विशेष प्रदर्शन के लिए चिड़ियाघर
में एक छोटा सा संग्रहालय भी है.
तितली पार्क - देश का पहला तितली पार्क बनरघट्टा के बायोलॉजिकल
पार्क में स्थापित किया गया था. यह कपिल सिब्बल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा नवंबर 2006 शनिवार 25 को उद्घाटन किया गया.
तितली पार्क भूमि का 7.5 एकड़ (30,000 M2) में फैला हुआ है. इसमें एक तितली संरक्षिका, एक संग्रहालय और एक दृश्य-श्रव्य (audiovisual) के कमरे शामिल हैं. एक पोली कार्बोनेट की छत के साथ एक हरा-भरा घिरा हुआ 10,000 वर्ग फुट (1000 वर्ग मीटर) बाड़ा, जो कि तितली
संरक्षिका है. संरक्षिका के अंदर रहने के वातावरण को तितलियों के बीस से अधिक प्रजातियों
की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है. पर्यावरण के लिए एक आर्द्र
जलवायु, एक कृत्रिम झरना और तितलियों को आकर्षित करने के लिए उपयुक्त वनस्पति के साथ, एक उष्णकटिबंधीय सेटिंग
है. संरक्षिका के
अन्दर एक छोटा थियेटर भी है जहाँ विशेष जानकारी दी जाती है.
इस उद्यान को कर्नाटक के चिड़ियाघर प्राधिकरण, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय और पारिस्थितिकी और
पर्यावरण के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए अशोक ट्रस्ट (Ashoka Trust for Research in Ecology and Environment - ATREE) आदि सस्थाएं कर रही हैं.
इसके अलावा इसके संरक्षण और वित्तपोषण में यहाँ की प्रमुख IT संस्थान INFOSYS
का भी योगदान है, क्योंकि चिड़ियाघर का एक Tiger enclosure का उद्घाटन Infosysy
फाउंडेशन की चेयरपर्सन श्रीमती सुधा कृष्णमूर्ति द्वारा १६ अक्टूबर २०१५ में किया
गया है. इसका निर्माण भी इनफ़ोसिस फाउंडेशन के द्वारा ही किया गया है.
पार्क के ही अन्दर एक ‘हिल व्यू
रेस्तरां’ भी है जहाँ साउथ इन्डियन थाली का भोजन किफायती दर में उपलब्ध है. इसके
अलावा बाहर में भी कई खाद्य पदार्थ और छोटे-बड़े होटल और रेस्तरां उपलब्ध है. जू के
बाहर स्थानीय कारखानों में बने विभिन्न प्रकार के खिलौने और सजावटी सामान उपलब्ध
हैं. पर्यटक यहाँ से कुछ भी सामग्री खरीदकर स्मृति चिह्न के रूप में घर ले जा सकते
हैं.
पार्क में सफाई की ब्यवस्था
उत्तम है. हर जगह गीले और सूखे कचड़े के लिए पात्र रखे गए हैं. बशर्ते कि लोग उसका
सही उपयोग करें. ज्यादातर लोग अब सफाई के प्रति जागरूक हुए हैं. बन्दर आदि जानवर
उन कूड़ों में से अपने पसंद का सामान छाँट लेते हैं और उनसे क्रीड़ा करते हुए कौतूहल
पैदा करते हैं. एक बन्दर को चाय के फेंके कप से चाय पीने का उपक्रम करते हुए हमने
भी देखा और उसे कैमरे में कैद भी किया.
विशेष प्रकार के दुर्लभ पशु-पक्षी,
बड़े-बड़े घड़ियाल यहाँ आराम करते हुए और धूप सेंकते हुए देखे जा सकते हैं. कई प्रकार
के शुतुरमुर्ग, हाथियों के झुण्ड, हरिणों, मृगों, नीलगायों और बारहसिंघा को भी
यहाँ देखा जा सकता है. विभिन्न प्रकार के बन्दर, भालू, शेर चीतों को दूर और पास से
देखने का आनंद ही अजीब होता है. बच्चे काफी आनंदित होते हैं. यहाँ एक छोटा सा झील
भी है जिनमे आप बोटिंग का आनंद ले सकते हैं. परिवार के साथ, प्रेमी जोड़ो के साथ,
या किसी विद्यालय के बच्चों का समूह ऐसी जगहों में अक्सर मिल जाते है जो अपने-अपने
तरीके से आनंद मनाते हुए दिख जाते हैं. सबसे बड़ी बात यहाँ हर भाषा में बात
करनेवाले मिल जाते हैं जिनसे आप अपनी बात कह सकते हैं और सुन-समझ भी सकते हैं. हाँ
और एक बात यहाँ बच्चों के लिए एक बेबी केयर यूनिट भी है, जहाँ आप अपने छोटे बच्चों
को छोड़कर पार्क घूमने आनंद ले सकते हैं अगर माँ और बाप में उचित समझदारी हो तो
बच्चे को एक विशेष प्रकार के लैपटॉप वाले जैसे बैग में लेकर भी घूम सकते हैं
क्योंकि मैंने ऐसे जोड़े को भी वहां देखा जो बच्चे को आधुनिक बैग में रक्खे सामने
लटकाए हुए साथ चल रहे हैं. यहाँ पति पत्नी में आपसी सामंजस्य और सद्भाव जरूरी है.
छुट्टी के दिनों में इन जगहों
पर भीड़ ज्यादा रहती है. सामान्य दिनों में भीड़ कम रहती है पर चिड़ियाघर के कर्मचारी
अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से निभाते हैं, इतना तो मानना पड़ेगा. सरकारें जिस पार्टी की
भी हो जन-कल्याण के कार्यक्रमों के साथ जैविक-वातावरण के संरक्षण की जिम्मेदारी भी
सरकार की ही है. सभी सरकारें कमोबेश करती ही है. जहाँ का प्रबंधन बेहतर हो और
सबकुछ सुनियोजित हो तो लिखने का मन करता ही है ताकि दूसरे लोग भी वैसी जगहों का
लुत्फ़ उठा सकें.. आप यहाँ तनिक मन को शांत कर बैठ भी सकते हैं और शुद्ध हवा में
जोर-जोर से सांस भी ले सकते हैं. यानी कि कपालभांति, अनुलोम विलोम, भ्रामरी या भाग
दौड़ कुछ भी...बाबा रामदेव की पंतजलि की दुकानें यहाँ हर जगह मौजूद हैं.
तो आइये कुछ दिन तो गुजारिए
कर्नाटक और बंगलोर में ....
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जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
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