Sunday, 23 December 2018

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर


को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो
सर्वप्रथम मैं यह बतलाना चाहता हूँ कि पारंपरिक रूप से मैं शिवजी के अंशावतार श्री हनुमान जी का परम भक्त हूँ. मेरा परिवार, मेरे पिताजी, मेरी माताजी, मेरे अग्रज श्री सभी धार्मिक विचारधारा के थे और श्री हनुमान(महावीर) जी के परम भक्त थे. मेरे घर के आँगन में हनुमान जी के ध्वज की स्थापना हर साल रामनवमी के अवसर पर की जाती थी. उस परम्परा का पालन मैं आज भी जमशेदपुर में रहकर भी कर रहा हूँ. जहांतक संभव होता है प्रतिदिन हनुमान जी की श्रद्धा के साथ पूजा करता हूँ और उनमे आस्था और विश्वास भी रखता हूँ. मेरे पिताजी, माताजी, अग्रज श्री सभी हनुमान जी की पूजा करते थे.
हनुमान जी शंकर भगवान के अंशावतार थे, यह बात रामायण में भी लिखी गयी है. रावण  वध के लिए श्री विष्णु ने राजा दशरथ के पुत्र के रूप में श्रीराम का अवतार लिया था और ब्रह्मा जी के आदेशानुसार सभी देवताओं ने भी अपने-अपने अंश के विभिन्न रूपों में खासकर मनुष्य और वानर के रूप में श्री राम को मदद करने के लिए पृथ्वी पर आये थे. हनुमान जी साक्षात् शंकर के ही अंशावतार थे जिन्होंने हर समय भगवन राम का साथ दिया. वैसे भी भगवान राम और भगवान शंकर एक दूसरे के पूरक हैं. शंकर भगवान राम की आराधना करते थे और भगवान राम शंकर जी की. रावण-वध से पहले लंका प्रवेश के पहले श्री राम ने रामेश्वरम में भगवन शंकर की स्थापना की थी और उनकी विधिवत पूजा के लिए रावण ही ब्रह्मण(पुरोहित) बनकर आया था. वैसे रावण भी शंकर भगवान का अनन्य भक्त था. पर मैं यहाँ यह सब क्यों लिख रहा हूँ क्योंकि सर्वप्रथम योगी जी ने हनुमान जी को वनवासी, दलित कहकर विवादास्पद बयान सार्वजनिक सभा में दे दिया जो उन्हें नहीं देना चाहिए था. तभी से श्री हनुमान जी राजनीतिक चर्चा में आ गये. कोई हनुमान जी को ब्रह्मण बताने लगा तो कोई दलित, कोई जाट बताने लगा तो कोई गौड़, कोई मुस्लिम धर्म से जोड़ने लगा तो कोई उन्हें चायनीज भी बताने लगा. तो किसी ने लाल लंगोटी धारी को कम्युनिष्ट ही कहने लगा. यहाँ प्रस्तुत है हास्य कवि प्रताप सिंह फौजदार के फेसबुक पोस्ट से साभार...हनुमान जी के बारे में पौराणिक कथा.
दोस्तों कुछ दिनों से मैं ये बहुत सुन और देख रहा हूँ की बजरंग बली / श्री हनुमान जी को लेकर एक बहस छिड़ी हुयी है कि वो कौन थे ? कोई कहता है वे दलित थे कोई कहता है वे मुस्लमान थे ओर अभी अभी भाजपा के एक मंत्री ने बताया की वो जाट थे इसके बाद कीर्ति आजाद बोले कि चीन वाले कहते हैं कि हनुमान जी हमारे थे |
दोस्तों हनुमान जी हमारी हिन्दू पौराणिकता के एक ऐसे आराध्य देव हैं जो राम भक्त हैं, अति बलशाली हैं और दुनियां का कोई काम ऐसा नहीं जिसे हनुमान जी नहीं कर सकते है |
हिन्दू पौराणिकता में हमारे एक ऋषि हैं जिनका नाम गौतम ऋषि है | उनकी पत्नी का नाम अहिल्या है जिनके बारे में पता चलता है कि देवेंद्र ने उनके साथ छल करके उनका सतीत्व भंग किया | जब गौतम ऋषि को ये पता चला तो उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप देकर पत्थर बना दिया तथा देवेंद्र को गलत व्यवहार के लिए शापित किया की जाओ तुम्हारे शरीर में हजारों भग होंगी| कहा जाता है कि बाद में प्रार्थना करने पर ऋषि ने उन्हें तिल बना दिया |
इन्ही अहिल्या और गौतम ऋषि की दो संतानें हैं ______ एक पुत्री जिसका नाम अंजनी है और एक पुत्र जिसका नाम सदानंद है | चूँकि अंजनी पर अपनी मां के साथ हुए छल का बुरा प्रभाव रहता है तो वह अकेली जंगल में रहती है और किसी भी पुरुष का मुंह तक नहीं देखना चाहती|
इसी समय हमारी पौराणिकता में एक घटना और घटती है कि भष्मासुर नाम का एक असुर भगवन शंकर की तपस्या करके "मैं जिसके भी सर पर हाथ रखूं वह भष्म हो जाये" का वरदान भगवान शंकर से प्राप्त कर लेता है | और भगवान शिव को ही भष्म करने दौड़ता है | भगवान शिव अपने ही दिए वरदान से विचलित हो स्वयं को बचाते फिरते हैं | इसी समय भगवान विष्णु विश्व मोहिनी का रूप धारण करके भष्मासुर के पास जाते हैं जो विष्णु के विश्वमोहिनी रूप पर मोहित हो जाता है | जब वो विश्वमोहिनी को प्राप्त करने को कहता है तो (विश्वमोहिनी रूपी)विष्णु जी उससे अपनी तरह नृत्य करने को कहते हैं | मोहित असुर नृत्य करने को तैयार हो जाता है | विष्णु एक हाथ सर पर और एक हाथ कटि पर रख कर नृत्य करने लगते हैं | ठीक वैसा ही असुर करता है और स्वयं ही भष्म होजाता है
भगवान शिव विष्णु जी से प्रसन्न होते हैं और पूछते हैं की दुष्ट भष्मासुर का संहार कैसे किया तो विष्णु जी पूरी कथा बताते हैं | भगवान शिव उन्हें भी विश्वमोहिनी रूप दिखाने को कहते हैं | भगवन विष्णु जब विश्वमोहिनी रूप धारण करते हैं तो भगवान शंकर उत्तेजित हो जाते हैं और उनका वीर्य स्खलित हो जाता है | तीनो लोकों में हलचल हो जाती है पृथ्वी सहज स्वीकार्यता नहीं देती तो उस वीर्य को एक गेंहूं की नली में ले लिया जाता है |
बहुत सोच विचार के बाद उस वीर्य को कुंआरी अंजनी जो निर्जन बन में रह रही है उसके गर्भ में प्रविष्ट करने का निर्णय लिया जाता है और ये कार्य सप्त ऋषियों को सौंपा जाता है | सप्तऋषि बहाने से वीर्य को कान के माध्यम से अंजनी के गर्भाशय में प्रविष्ट करा देते हैं |
तदोपरांत अंजनी का विवाह केसरी वानर { वनवासी } से करवा दिया जाता है 
मित्रो इस पौराणिक कथा के अनुसार :--- श्री हनुमान जी एक कुंआरी ब्राह्मणी माँ के बेटे हैं जो भगवन शंकर के वीर्य से उत्पन्न हैं और जिनका लालन पालन वनवासी { वन्य जाती } केसरी के यहाँ हुआ है |
योगी आदित्य नाथ। ....... इनका मत है कि श्री हनुमान जी वनवासी हैं ---- लगता है इनका मत पौराणिक कथा के सबसे अधिक समीप है | क्योंकि हनुमान जी का लालन पालन वनवासी केसरी के घर ही हुआ है पर योगी जी ने दलित शब्द का इस्तेमाल क्यों किया इसमें राजनीतिक चाल से ज्यादा कुछ नहीं है. बाकी लोगों को मौका मिल गया है और कुछ भी उलूल जुलूल बक रहे हैं... पर उनको मौका दिया किसने?  
निष्कर्ष :..दोस्तों श्री हनुमान जी हमारे आराध्य देव हैं वो शक्ति प्रदाता हैं। हमें उनको जाती, वर्ण और धर्म में नहीं बांटना चाहिए। इससे हमारी आस्थाएं विचलित होती हैं। 
मेरा भारतीय राजनीतिज्ञों से अनुरोध है कि आराध्य देवों के बारे में उपरोक्त जैसी टिप्पणी ना करें तो देश और समाज दोनों के हित में होगा। - प्रताप सिंह फौजदार
अब मैं अपना मत व्यक्त करता हूँ. भाजपा हिन्दू धर्म का ठेकेदार बनती है और हिन्दू धर्म, रामलला, गाय गोबर, हिन्दू-मुस्लिम कुछ भी करके हिदू वोट हासिल करना चाहती है. राम मंदिर के लिए रथ यात्रा निकलनेवाले श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी से जब संवाददाताओं ने पुछा था- क्या आप श्री राम की नियमित पूजा पाठ आराधना करते हैं?उनका जवाब था- मुझे इन कर्म कांडों में विश्वास नहीं है. वे आस्था को भुना रहे थे. उसका फल उन्हें मिल रहा है. और भी अनेक कथित धर्माधिकारियों को भी भगवान पर कोई आस्था नहीं है. वे सिर्फ अपनी ताकत का अहसास करने के लिए धर्म-संसद या कुछ-कुछ प्रदर्शन करते रहते हैं.
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् | परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् || अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली - परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी - पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख पहुँचाना. मुझे यही बात सबसे सटीक लगती है.  
बाकी सबके अपने अपने आराध्य देव हैं, किसी की आस्था को ठेस पहुँचाना उचित नहीं है.
जय श्रीराम, जय हनुमान, जय बजरंग बली!
-       --जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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