१९ जनवरी को कोलकाता में विपक्ष की महारैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री
बीजेपी और मोदी सरकार पर जमकर बरसीं. उन्होंने कहा, ''मोदी
सरकार की ‘एक्सपायरी डेट' खत्म हो गयी है. राजनीति में
शिष्टता होती है, लेकिन भाजपा इसका पालन नहीं करती है, जो भाजपा के साथ नहीं हैं
उन्हें चोर बता दिया जाता है. हमलोग (विपक्षी दल) एकसाथ मिलकर काम करने का वादा
करते हैं, प्रधानमंत्री कौन होगा इस पर
फैसला लोकसभा चुनाव के बाद होगा.” ममता ने दावा किया कि ‘राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी को
भाजपा में नजरअंदाज किया गया, अगर भाजपा
लोकसभा चुनाव जीतती है तो उन्हें फिर से नजरअंदाज किया जायेगा.' कोलकाता रैली में ममता बनर्जी
ने दिया नारा : ‘बदल दो, बदल दो, दिल्ली की सरकार बदल दो.' ममता
बनर्जी ने मंच से मोदी सरकार पर हमला बोला और कहा कि मोदी सरकार ने सीबीआई के
सम्मान को खत्म कर दिया. सीबीआई में सभी अफसर खराब नहीं हैं. उन्होंने कहा कि
हमारे गठबंधन में सभी नेता हैं. अब बीजेपी के अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं. दिल्ली
की सभी सीटों पर बीजेपी की हार होगी. अगर बीजेपी देश में दोबारा आती है तो देश का
नुकसान होगा. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री कौन होगा, यह हम चुनाव के बाद तय करेंगे.'' ममता ने दावा किया कि केंद्र
में भाजपा के गिने-चुने दिन ही बचे रह गए हैं. ममता ने इस बात का भी जिक्र किया कि
देश में मौजूदा हालात ‘‘सुपर इमरजेंसी'' के हैं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री
एचडी कुमारास्वामी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बिहार के पूर्व उप
मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्ला, राष्ट्रवादी कांग्रेस
पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, पूर्व सांसद शरद यादव और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा रैली में शामिल
हुए. इसके अलावा डीएमके प्रमुख स्टालिन, झाड़खंड
के पूर्व मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन, अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग, बसपा नेता सतीश चंद्र
मिश्र, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु
सिंघवी भी इस रैली में शामिल हुए. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बहुजन
समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि वे रैली में नहीं जाएंगे
और अपने वरिष्ठ नेताओं को वहाँ भेजेंगी. इनके अलावा ओडीशा में सत्ताधारी बीजू जनता
दल और सीपीएम ने भी रैली से किनारा किया है. भाजपा के बग़ावती तेवरों वाले सांसद
शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के
साथ गुजरात के पटेल नेता हार्दिक पटेल ने भी रैली को
संबोधित किया.
मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए ममता ने कहा, "मैं रथ यात्रा के नाम पर
सांप्रदायिक हिंसा नहीं होने दूंगी. हम पश्चिम बंगाल में बीजेपी को दंगा नहीं
फैलाने देंगे. बीजेपी एक के बाद एक प्रांत से ख़त्म हो जाएगी. मोदी सरकार में
लोगों के अच्छे दिन नहीं आए हैं और उन्होंने बीजेपी सरकार को सत्ता से बाहर करने
का मन बना लिया है. हमारा देश बांटों और राज करो की नीति में विश्वास नहीं करता
है."
यूनाइटेड इंडिया रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
ने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि यदि 2019 में बीजेपी जीत गई तो 2050
तक
बीजेपी को कोई नहीं हरा सकता. केजरीवाल ने पूछा,
"उन्होंने
ऐसा क्यों बोला था, 2019 में दोबारा बन गई तो ये संविधान
बदल देंगे." इस दौरान उन्होंने मोदी की तुलना हिटलर से की. उन्होंने कहा,
"वो इस
देश से जनतंत्र हटाना चाहते हैं. कुछ भी करो 2019 में इनको दोबारा सत्ता में नहीं
आने देना." "मोदी नहीं तो कौन?
2019 का चुनाव
प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं, मोदी-शाह को भगाने का चुनाव
है." "मोदी शाह जाने वाले हैं देश के
अच्छे दिन आने वाले हैं." इस रैली में गुजरात में पाटीदार
आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 'गोरों' के ख़िलाफ़ लड़ने की अपील की थी
और हम 'चोरों' के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं.
वहीं भाजपा ने कोलकाता
में हुई संयुक्त विपक्ष की रैली को ‘‘अवसरवादी
तत्वों’’ का जमावड़ा करार देते हुए कहा कि जो लोग कभी एक दूसरे
को देखना तक पसंद नहीं करते थे, वे देश के भविष्य के किसी
खाके के बगैर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने के एकमात्र एजेंडा के साथ एकजुट
हो गए हैं. इस रैली का आयोजन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने किया था, जिसमें विपक्षी दलों के कई नेता शामिल हुए. विपक्ष की रैली पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए भाजपा
के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 2019 का भारत 1990 के दशक
का भारत नहीं है, जब प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल कुछ दिनों से लेकर
कुछ महीने भर का होता था. उन्होंने कहा कि देश को मजबूर सरकार नहीं, बल्कि मजबूत सरकार की जरूरत है. प्रसाद ने कोलकाता
में विपक्ष की महारैली में जुटे नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन सभी की
महात्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है और इसलिए सबसे मुश्किल चीज उनके नेता की
घोषणा करने में है. उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के पास देश का विकास
करने की कोई योजना नहीं है और उनका एकमात्र एजेंडा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
हराना है. ‘‘जो लोग एक दूसरे को देखना तक नहीं पसंद नहीं करते थे
वे एकजुट हो गए हैं. उनके पास कोई खाका नहीं है. ’’ विपक्ष
के पास सबसे मुश्किल कार्य अपना नेता चुनने का है क्योंकि राहुल गांधी, मायावती, ममता
बनर्जी, इन सभी की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा है.
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने रैली को मोदी विरोधी अभियान
करार दिया और कहा कि पार्टी ऐसे कार्यक्रमों से डरती नहीं है.
सही बात है प्रसाद साहब
और रूढी साहब, भाजपा ऐसे कार्यक्रमों से कब डरनेवाली है? भारत के जनतंत्र पर
एकाधिकार तो अब कथित राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा का ही है. श्री नरेंद्र मोदी और
श्री अमित शाह नीत भाजपा अब किसी से क्यों डरेगी? भाजपा से ही सबको डरना होगा क्योंकि
सभी संवैधानिक संस्थाओं पर लगभग कब्ज़ा तो आपका हो ही गया है. २०१४ में कांग्रेस के
खिलाफ जो माहौल बना उसक जबरदस्त फायदा मोदी जी, भाजपा, आरएसएस एवं उनके अनुषंगी
संगठनों ने उठाया. आपने बड़े-बड़े वायदे किये बड़े-बड़े निर्णय भी लिए. आपने सारे
निर्णय देशहित में ही लिए हैं, ऐसा आपका कहना है. उसक कितना फायदा जनमानस को
पहुंचा इसका आकलन जनमानस ही करेगा. विपक्ष के पास सचमुच का सर्वमान्य नेता नहीं है
या कई नेता हैं जो अपनी अपनी महत्वाकांक्षा को साधने में लगे हैं. पर यह भी सत्य
है कि वर्तमान से पहले विपक्ष इतना कमजोर कभी नहीं रहा. विपक्ष किसी भी मुद्दे को
सही ढंग से विरोध ही नहीं कर पाती है. पिछले पांच राज्यों के चुनाव के बाद तीन
राज्यों में भाजपा का तख्ता पलट कुछ तो कहता है. राहुल गांधी को पप्पू कहते हुए
आपने ही नेता बना दिया. अब वे मोदी जी जैसा तो नहीं पर बहुत से मुद्दे पर मोदी जी
को संयत भाषा में ही जवाब देने लगे हैं. हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और तेजस्वी
यादव जैसे युवाओं को नेता बनने का मौका आपने ही दिया है. कन्हैया कुमार को
देशद्रोही कहकर देश का नेता आपने ही बना दिया. ये लोग अपनी-अपनी तरह से आपको विभिन्न
मंचों से जवाब देने लगे हैं और आप उन्हें काटने में लगे हैं, फिर भी कहते हैं हमें
डर नहीं है. आप मत डरिये, आनेवाले समय में चुनाव का सामना करिए. जनता जिसे चाहेगी
प्रधान मंत्री बनायेगी या अगर आप ही सबसे उपयुक्त हैं तो आपको ही पुनर्बहाल करेगी.
आमलोगों की राय अगर कही
जाय तो बड़ी विकट परिस्थिति है? मोदी नही तो कौन? एक समय इंदिरा गाँधी के समय में
भी यही स्थिति थी. इंदिरा इस इण्डिया ...पर इंदिरा जी को भी राजनारायण जैसे नेता
ने उन्ही के गढ़ में जाकर हराया. विकल्प बना, नए प्रधान मंत्री बने. हाँ अस्थिर
सरकार कुछ दिन अवश्य रही. फिर अटल जी आये, आडवाणी जी आये और उन्ही लोगों ने मोदी
जी को बनाया. आज मोदी जी अपने गुरुओं और वरिष्ठों को किनारे लगा चुके हैं. यहाँ तक
कि आडवाणी जी को राफेल पर बहस के दौरान लोकसभा में बोलने की अनुमति नहीं दी जाती
है. यह कैसा लोकतंत्र है? मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल ही सही पर उन्होंने दस साल देश
को अच्छे ढंग से चलाया. अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ किया. देश को आगे बढ़ाया. आपने उनके
खिलाफ बड़ा कुत्सित अभियान चलाया और अभी भी चला रहे हैं. जनता सब देखती-समझती है और
अपना भला भी चाहती है. ‘मॉब-लिंचिंग’ के तहत किसी को भी जो आपका विरोध करे उसे मार
देना या भय का वातावरण पैदा करना कहाँ तक जायज है? आपनी विभिन्न जांच एजेंसी को
उसके खिलाफ लगा देना, वह भी उस समय जब आपका विरोध कर रहा हो. जब आपके साथ आ जाए तो
सब खून माफ? गंगा में पाप धोने के समान? न, यह सब कब तक चलेगा? दोषी है तो सजा
दिलवाइए.
दूसरी
तरफ मेरा मानना है कि किसी भी सरकार के खिलाफ एक सशक्त विपक्ष भी होना चाहिए जो
निरंकुश फैसलों पर रोक लगा सके. जो किसानों, नौजवानों, गरीबों, और कमजोर वर्ग के
लोगों को सुरक्षा दिला सके. लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है. राजनीतिक पार्टियाँ
चाहे जो भी हो, पाक-साफ़ नहीं है. पाक-साफ़ लोग राजनीति में आना नहीं चाहते अगर आते
भी हैं, तो टिक नहीं पाते इसलिए जनता के पास विकल्प की कमी है. जो है उन्ही में से
चुनना होगा नहीं तो ‘नोटा’ भी तो पिछले चुनावों में खूब चला. जय लोकतंत्र! जय
हिन्द!
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