अभिनय के बादशाह
ओम पुरी का यूं चले जाना, मानो उन्हें मौत की पहले से खबर थी! वो शख्सियत जो अनजानों
से भी यूं गले मिले, जैसे कोई अपना अजीज हो. किरदार यूं निभाए कि मानो हकीकत हो.
थिएटर से लेकर पर्दे तक बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड, यहां तक कि समानांतर फिल्मों से व्यावसायिक
फिल्मों तक में धाकदार अभिनय कर देश-विदेश में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया.
उस महान अभिनेता
ओमपुरी का अचानक यूं चले जाना सबको हतप्रभ कर गया. शायद इसलिए भी कि मृत्यु को
लेकर उन्होंने जो कहा था, सत्य हो गया! कितना अजीब संयोग था,
मानो उन्हें अपनी मौत की
खबर थी और जैसी जिंदगी चाही, वैसी जी ली. हां, मौत भी वही मिली जिसकी उन्होंने कामना की थी.
मार्च 2015 में उन्होंने
छत्तीसगढ़ में बीबीसी के लिए एक साक्षात्कार में कहा था,
“मृत्यु का भय नहीं होता, बीमारी का भय
होता है. जब हम देखते हैं कि लोग लाचार हो जाते हैं, बीमारी की वजह से दूसरों पर निर्भर हो जाते
हैं. ऐसी हालत से डर लगता है. मृत्यु से डर नहीं लगता. मृत्यु का तो आपको पता भी
नहीं चलेगा. सोए-सोए चल देंगे. (मेरे निधन के बारे में) आपको पता चलेगा कि ओम पुरी
का कल सुबह 7 बजकर 22 मिनट पर निधन हो गया.” यह वाकई सच हो गया. ग़ौरतलब है कि ओम पुरी का निधन शुक्रवार(06.01.2017)
सुबह ही हुआ है। जो वक़्त उन्होंने मज़ाक़ में मिसाल के तौर पर बताया था, तक़रीबन उससे कुछ
मिनट पहले या बाद में। जैसे उन्हें इस बात का अहसास हो कि कैसे इस जहां से रुख़सत होना
है. उन्होंने मृत्यु की पूर्वसंध्या पर अपने बेटे ईशांत को भी फोन किया और कहा कि
मिलना चाहते हैं. अफसोस! सुबह हुई कि वो जा चुके थे. घर पर अकेले थे, न किसी सेवक को
मौका दिया और न किसी की मदद का इंतजार. बिस्तर पर बेजान शरीर और पीछे बस यादें ही
यादें…
उन्होंने खुद को
उस दौर में फिल्मों में स्थापित किया, जब सफलता के लिए सुंदर चेहरों का बोलबाला था.
साफ और सीधा कहें तो बदशक्ल सूरत की भी धाक, जिसने मंच से लेकर बड़े और छोटे पर्दे पर जमाकर
न जाने कितनों को प्रेरित किया, मौका दिया, जिंदगी बदल दी, कहां से कहां पहुंचा दिया. ओम पुरी ने फिल्मी अभिनय की शुरुआत मराठी फिल्म
‘घासीराम कोतवाल’ से की. विजय
तंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी इस फिल्म का निर्देशन के. हरिहरन और मनी कौल ने किया
था. पद्मश्री सम्मान, बेस्ट एक्टर अवार्ड सहित तमाम पुरस्कारों, सम्मानों से
सम्मानित ओम पुरी एक जिंदा दिल और भावुक इंसान थे. उनके चाहने वाले और फिल्म
इंडस्ट्री के सहयोगी, मित्र इस शख्सियत को मिले सम्मानों और पुरस्कारों को ऐसी
प्रतिभा के लिए नाकाफी मानते हैं.
उनके प्रशंसकों
का मानना है कि ओम पुरी सम्मानों से कहीं आगे थे. पाकिस्तान में भी वहां के लोग और
फिल्म इंडस्ट्री ओम के चले जाने से आहत हैं, सदमे में हैं. कोई उन्हें लीजेंड बता रहा है तो
कोई भारत-पाकिस्तान रिश्तों का सच्चा एम्बेसेडर तो कोई दोनों के लिए शांतिदूत.
बहुत-सी फिल्मों में ओमपुरी ने पाकिस्तानी किरदार की भूमिका भी निभाई है. ओम पुरी
अपने आप में एक संपूर्ण अभिनेता थे. उन्होंने हर वो अभिनय किया, जो उन्हें पसंद
आया. चरित्र अभिनेता से लेकर खलनायक और कॉमेडियन की भूमिका को भी उन्होंने इस कदर
निभाया कि एक दौर वो भी आया कि ये भेद कर पाना भी मुश्किल होने लगा कि उन्हें किस
श्रेणी में रखा जाए.
ओम पुरी ने
ब्रिटेन और अमेरिका की फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया है. वो अपने अभिनय के हर
रोल की बड़ी ईमानदारी और समर्पण से एकदम जीवंत सा जीते थे. चाहे रिचर्ड एटनबरो की
चर्चित फिल्म ‘गांधी’ में छोटी सी भूमिका हो या ‘अर्धसत्य’ में पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार रहा हो. टेलीविजन की
दुनिया में भी वो हमेशा दमदार अभिनय में नजर आए, चाहे ‘भारत एक खोज’, ‘यात्रा’, ‘मिस्टर योगी’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘सी हॉक्स’ रहा हो या ‘तमस’ और ‘आहट’. उनकी काबिलियत का सभी ने लोहा माना.
कलात्मक फिल्मों
में भी उनका कोई सानी नहीं रहा. उन्होंने 300 फिल्मों में काम किया,
जिनमें कई बेहद सफल और
चर्चित रहीं. ‘अर्धसत्य’, ‘आक्रोश’, ‘माचिस’, ‘चाची 420’, ‘जाने भी दो यारों’, ‘मकबूल’, ‘नरसिम्हा’, ‘घायल’, ‘बिल्लू’, ‘चोर मचाए शोर’, ‘मालामाल’ और ‘जंगल बुक’ में भला ओम पुरी का किरदार किसे याद न होगा.
सनी देओल की ‘घायल रिटर्न्स’ उनकी आखिरी फिल्म थी.
भले ही वो आज
हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के समर्थन का मौका हो
या सरहद पर दिए बयान के बाद माफी मांगना हो या फिर भारत-पाकिस्तान के 95 प्रतिशत लोगों
को धर्मनिरपेक्ष कहना, आमिर खान की पत्नी के देश छोड़ने की बात पर लताड़ हो, बीफ मसले पर
लाखों डॉलर कमाने और पाखंड से जोड़ने की बात हो, ‘नक्सलियों का फाइटर’ कहने जैसी बातें, यह सब एक दमदार और काबिल इंसान ही कह सकता है.
किसी बात को वे बेबाकी से कह जाते थे और गलती का अहसास होने पर माफी भी मांग लेते
थे. ब्यक्तिगत जीवन में वे सफल नहीं कहे जा सकते क्योंकि वे अपनी पत्नी से अलग
होकर रहने लगे. ओम पुरी ने पहली शादी 1991 में सीमा कपूर से की थी, सीमा एक्टर और
होस्ट अन्नू कपूर की बहन हैं और वह शादी सिर्फ आठ महीने ही चल सकी थी. 1993 में वो सीमा से
अलग होकर नंदिता के साथ परिणय सूत्र में बंध गये थे. नंदिता से उनका एक बेटा भी है
- इशान पुरी. नंदिता से भी उन्होंने बीते साल तलाक ले लिया था. नंदिता पुरी एक पत्रकार और लेखिका हैं. उन्होंने ओम पुरी की
जीवनी भी लिखी है- 'Unlikely Hero' ओम पुरी के इस तरह अचानक चले जाने से इंडस्ट्री में शोक की
लहर दौड़ गयी है.
आम आदमी का अभिनय
करते करते आम आदमी पार्टी से लगाव सा हो गया था. वे आम आदमी पार्टी का समर्थन करते
थे, ऐसी राय भी वे व्यक्त कर चुके थे. कई बार पत्रकारों के उलटे-सीधे सवाल का भी
बेबाकी या कहें आवेश में जवाब दे देते थे, जिसका बाद में अफ़सोस होता था. गलती का अहसास
होने पर माफी भी मांग लेते थे. एक सरल और भावुक आदमी जल्दी उत्तेजित हो जाता है और
आवेश में कुछ ऐसे शब्द निकल जाते हैं जिससे जनभावना या सामनेवाले की भावना आहत हो
सकती है, हाँ माफी भी वही मांगता है जिसे गलती का अहसास हो. माफी मांगने से आदमी छोटा
नहीं हो जाता बल्किं उसका कद बढ़ जाता है. इंसान से गलतियां होती है, गलती का अहसास
होना भी इंसानियत की श्रेणी में ही कहा जायेगा.
अम्बाला में
स्थित पंजाबी परिवार में 18 अक्टूबर 1950 को एक इंडियन आर्मी पर्सनल के घर जन्म लिया ओम
प्रकाश पुरी ने! जिन्हें आप और हम ओम पुरी के नाम से जानतें हैं. 1977 में हिंदी
सिनेमा में कदम रखने वाले ओम पुरी ने इंडस्ट्री को बहुत सी बेहतरीन फ़िल्में दी.
उनके एक से बढ़कर एक परफॉरमेंस ने उन्हें सबका फेवेरेट बना दिया। उनके बारे में कुछ
अनकही बातें हैं जो हर कोई नहीं जानता!
1) ओमपुरी ने ही तय की अपनी जन्म तारीख़! जी हां! दरअसल, उनके पास कोई बर्थ सर्टिफिकेट रिकॉर्ड नहीं था, उनके परिवार वाले
को भी उनकी जन्म तारीख़ याद नहीं थी. उनकी मां ने उन्हें बताया था कि वो दशहरे के
दो दिन बाद जन्में थे. जब उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया तो उनके अंकल ने उनकी
जन्म तारीख़ 9 मार्च 1950 दर्ज करवाई. पर, जब ओम मुंबई आए तो उन्होंने ये पता लगाया कि 1950 में दशहरा कौन
सी तारीख़ को आया था और फिर उन्होंने तय किया कि उनका जन्मदिन 18 अक्टूबर 1950 को है.
2) ओमपुरी को पद्म श्री अवार्ड और दो बार नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया था. इसके
अलावा उन्हें ब्रिटिश फिल्म इंडस्ट्री से ऑफिसर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर
का ख़िताब भी मिला था। इन्होने मराठी, कन्नड, पंजाबी, मलयालम, तेलगू, उर्दू ,अमेरिकन, ब्रिटिश की कई फिल्मों में काम किया और हाल ही
में साल 2016 में उन्होंने अपना पाकिस्तानी डेब्यू भी किया था.
3)
ओम पुरी का कहना था कि
नसीर ने उन्हें मांसाहारी बनाया. एनएसडी के समय नसीर ने उनका शकाहारी होने का व्रत
तोडा और ऐसे उनकी दोस्ती भी गहरी हुई. दोनों ने एक साथ आक्रोश, द्रोह काल, स्पर्श, जाने भी दो यारो, अर्ध सत्य और भी
कई फिल्मों में काम किया.
4)
ओम को इंग्लिश नहीं आती थी
और उन्हें इस बात की चिढ़ भी थी. एनएसडी के समय नसीर एक कान्वेंट स्कूल से थे और ओम
पंजाबी मीडियम से! लेकिन, ओम ने अपनी इंग्लिश पर खासा मेहनत की और 20 से भी ज्यादा
इंग्लिश फिल्मों में काम किया.
5)
ओम को यह परेशानी भी थी
कि लोग उनके लुक्स के बारे में क्या कहेंगे? पर इसका सामना भी उन्होंने किया. उन्हें कहा
जाता था कि बड़े नाक और इस चेहरे के साथ वो हिंदी सिनेमा में कभी अपनी जगह नहीं बना
पाएंगे! -
2015 में एक
कार्यक्रम में भाग लेने जमशेदपुर आये थे तब भी वे आम आदमी की तरह बिष्टुपुर बाजार
के 'बाटा' दुकान से चप्पल खरीदे थे और 'छप्पन भोग' से मिठाइयाँ खरीदी थी. ऐसी शख्सियत
को भूल पाना नामुमकिन है. सभी किरदारों को एकसाथ देखना, समझना, सीखना और स्वीकारना ही ओम पुरी को असली
श्रद्धांजलि होगी. जय हिन्द! जय भारत!
-
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
उम्दा अभिनेता और यादगार रोल निभाने वाले ओम पुरी जी को शत शत नमन। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteThanks Harshwardhan ji!
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