प्रकृति का नियम है जो आया है वो जायेगा. किसी संस्था में सेवा देनेवाले
व्यक्ति का भी एक दिन आखिरी होता है. ऐसे क्षण से हम सबको गुजरना ही पड़ता है. पर
कोई ऐसा व्यक्ति जो सर्वप्रिय हो जब सेवामुक्त होकर अपने सहकर्मियों से अलग होता
है तो वह क्षण भी बड़ा मार्मिक होता है! हमारे अग्रज तुल्य श्री हरेन्द्र कुमार
सिंह ऐसे ही गुण से परिपूर्ण है. जिनकी विदाई समारोह में विभाग के ही नहीं, बल्कि विभाग
के बाहर के भी लोग भावविह्वल हो रहे थे. सबका वे कुछ न कुछ भला कर चुके थे या भला
करने का हर संभव प्रयास तो किये ही थे. यही कारण था कि वे कर्मचारी संगठन के
प्रतिनिधि के रूप में शुरू से अंत तक रहे. यहाँ तक कि सेवामुक्त होकर भी अभी संगठन
के प्रतिनिधि बने हुए हैं.
१९८५ से लेकर अब तक(२०१७)(कुल ३७ साल) या अगले चुनाव तक वे संगठन से जुड़े
रहेंगे यह भी पूर्ण संभावना है. विभागीय प्रतिनिधि के साथ-साथ वे संगठन में संयुक्त
सचिव और उपाध्यक्ष तक के पद को सुशोभित करते रहे हैं. दो-तीन बार उनके विरोध में एक-दो
प्रतिद्वंद्वी खड़े हुए भी थे, पर वे सब गिनती के ही कुछ मत ले पाए थे. इनका लगातार
विजय इनकी लोकप्रियता का पैमाना ही कहा जायेगा. अधिकांश पारी में तो ये निर्विरोध
ही चुने जाते रहे हैं. लोकप्रियता ऐसी कि ये प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच सामान रूप से सर्वग्राह्य
रहे.
इनके विदाई समारोह में कर्मचारी और अधिकारी सभी एक साथ सम्मिलित हुए जो कि एक
आदर्श स्थिति कही जा सकती है. मेरा इनके साथ सहकर्मी से ज्यादा भ्रातृतुल्य सम्बन्ध
है और व्यक्तिगत रूप से भी काफी बातों को हम एक दूसरे से साझा करते थे.
विदाई समारोह में सबने अपने-अपने उद्गार व्यक्त किये और उनके भविष्य के लिए
शुभकामना व्यक्त की. इस अवसर मेरे भी उदगार इस प्रकार व्यक्त हुए.
जुलाई, १९८८ में मैं पहली बार टाटा स्टील, जमशेदपुर से जुड़ा और बड़े
भाई श्री हरेन्द्र कुमार सिंह के संपर्क में आया, या कह सकते हैं इन्होंने मुझे
खुद अपने साथ रक्खा. जरूरत के अनुसार सुख-दुःख में साथ निभाते रहे. मैं भी इनके
साथ अपने घर-परिवार की बात भी साझा करता था और ये भी अपने घर-परिवार की बात बताते
ही रहते थे. बहुत सारी बातें यहाँ उपस्थित लोगों ने व्यक्त कर दी है. मैं सबका सार
रूप निम्न पंक्तियों में व्यक्त कर रहा हूँ.
विरले ही ऐसे होते हैं!
विरले ही ऐसे होते हैं, जो सबके दिल में
होते हैं,
पक्ष विपक्ष की बात नहीं, होती न कभी भी
रात कहीं.
कोई चैन से घर में सोता है, या अपना आपा खोता
है,
सुख में तो साथ सभी देते, दुःख में जो अपने
होते हैं. विरले ही ऐसे होते हैं...
जो प्रतिद्वंद्वी बनकर आए, अपना सपना पूरा
पाए,
जो साथ हमेशा ही रहता, कुछ कुछ तो कहता
ही रहता,
सुन लेंगे कभी भी उनकी भी, अपने तो अपने
होते हैं. विरले ही ऐसे होते हैं...
हो अधिकारी या कामगार ! श्रद्धा रक्खें इनमे अपार.
समतामूलक छल छद्म रहित, मिलते यह सबसे
प्रेम सहित.
गर भला नहीं कुछ कर पाएं, बेचैन से उस दिन होते हैं. विरले ही ऐसे होते
हैं...
बतलाओ कौन सा नेता है, जो आजीवन पद लेता
है.
सेवामुक्त भी होकर के, सेवा से मुक्त न
होता है.
जीवन भर सेवा कर पाएं, ऐसा ही व्रत जो
लेते हैं! विरले ही ऐसे होते हैं...
ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे अग्रज तुल्य श्री हरेन्द्र कुमार सिंह जी का आगे का जीवन सुखमय रहे!
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