Sunday, 27 January 2019

प्रणव दा को भारतरत्न सम्मान



पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को देश के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से नवाजा गया है. उनके अलावा और दो नाम हैं एक आरएसएस से जुड़े संघ प्रचारक नानाजी देशमुख(मरणोपरांत)  और दुसरे गीतकार, संगीतकार, गायक भूपेन हजारिका(मरणोपरांत) को भारतरत्न सम्मान की घोषणा की गयी है. भारतरत्न भारत का सर्वोच्च सम्मान है. यह हर साल अधिक से अधिक तीन व्यक्तियों को दिया जा सकता है. यहाँ हम प्रणव दा की ही बात करेंगे. प्रणब दा का भारतीय राजनीति में लंबा रिश्ता रहा है. उन्होंने अपना कैरियर कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल के कार्यालय में क्लर्क के रूप में शुरू किया था लेकिन इसके बाद अपनी मेहनत और बुद्धिमत्ता से आगे बढ़ते गए.
प्रणव मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के एक छोटे से गांव मिराटी में एक ब्राह्मण परिवार में 11 दिसंबर 1935 में हुआ था. प्रणब मुखर्जी के पिताजी कामदा किंकर मुखर्जी क्षेत्र के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे. आज़ादी की लड़ाई में वो 10 सालों से ज्यादा समय तक ब्रिटिश जेलों में कैद रहे. उनके पिताजी 1920 से इंडियन नेशनल कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे. देश की आजादी के बाद वो 1952 से लेकर 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहे. अत: कहा जा सकता प्रणब दा ने राजनीति में प्रवेश पिता के हाथ को पकड़ कर ही किया था.
शुरुआत क्लर्क से करने के बाद वो पत्रकार बने लेकिन साथ-साथ कोलकाता विश्वविद्यालय में आगे की पढाई भी करते रहे. कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबंधित सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद प्रणब मुखर्जी ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (एम.ए.) की पढ़ाई की. कोलकाता विश्वविद्यालय से क़ानून की उपाधि (लॉ) की शिक्षा के बाद पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के एक कॉलेज में प्राध्यापक (प्रोफेसर) की नौकरी शुरू की. उन्होंने वकील के रूप में भी काम किया. उनकी पैनी बुद्धि का लोहा हर कोई मानता रहा है. अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने लगातार इसका प्रदर्शन किया. राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाले सरकार में काम किया.
बंगाली परिवार से होने के कारण उन्हें रबिंद्र संगीत में भी खासी रुचि है. प्रणब को पश्चिम बंगाल के अन्य निवासियों की तरह ही माँ दुर्गा का उपासक भी माना जाता है. दुर्गा पूजा के दौरान वे माता की उपासना भी करते हैं. वो मृदुभाषी, गंभीर और कम बोलने वाले है. उन्हें बागवानी, किताबें पढ़ना और संगीत पसंद है. प्रणब दा के बारे में कहा जाता है कि मंत्री और राष्ट्रपति रहते हुए वे भी रोज 18 घंटे काम करते थे. अब वो बेशक रिटायर हो चुके हों लेकिन अब भी सक्रिय हैं. राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद जून २०१८ में वे आरएसएस मुख्यायालय में भी जाकर अपना संबोधन भी दे चुके हैं.
प्रणब दा के राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1969 में हुई, तब वो पहली बार राज्य सभा से चुनकर संसद में आए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी ने इनकी योग्यता से प्रभावित होकर मात्र 35 वर्ष की अवस्था में, 1969 में कांग्रेस पार्टी की ओर से राज्य सभा का सदस्य बना दिया. उसके बाद वे, 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्यसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए. 1973 में केंद्र सरकार में प्रणब मुखर्जी ने कैबिनेट मंत्री बनाया गया. 1974 में केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री बने. प्रणब वर्ष 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे. इसके बाद वो 1984 में वह पहली बार भारत के वित्त मंत्री बने. प्रणब मुखर्जी ने सन 1982-83 के लिए पहला बजट सदन में पेश किया.
इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात, राजीव गांधी सरकार की कैबिनेट में प्रणब मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया. तब उन्होंने अपनी अलग राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया. फिर 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय कांग्रेस में मिला दिया. पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव उन्हें पार्टी में दोबारा लेकर आये थे. प्रणब मुखर्जी पहली बार वह लोकसभा के लिए पश्चिम बंगाल के जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से 13 मई 2004 को चुने गए थे. इसी क्षेत्र से दुबारा 2009 में भी लोकसभा के लिए चुने गए. पश्चिम बंगाल में वो कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से सबसे अधिक 1, 28,252 मतों से जीतने वाले सदस्य रहे.
2004
में पार्टी सत्ता में आई तो उन्हें भारत के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर पहुंचने में मदद मिली. 24 अक्टूबर 2006 को उन्हें भारत का विदेश मंत्री नियुक्त किया गया. राष्ट्रपति बनने से पहले वो यूपीए सरकार में वित्त मंत्री थे. वो भारत के 13वें राष्ट्रपति बने. भारत रत्न दिए जाने की खबर सुनकर भारत के पूर्व राष्ट्रपति की पहली प्रतिक्रिया थी, 'पता नहीं मैं इसके लायक हूं या नहीं.' लेकिन जब चारों ओर से उन्हें मुबारकबाद के संदेश आने लगे तो उनके मन में उठ रहा यह संदेह जाता रहा.
लेकिन, कांग्रेस के लिए यह बड़ा खट्टा-मीठा अनुभव है. काफी लोगों को लगता है कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे बेहतर व्यक्ति थे लेकिन सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी के बजाय मनमोहन सिंह को चुना, क्योंकि उन्हें ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो कि उनकी बात को सुने. इसीलिए मनमोहन सिंह पीएम पद के लिए बेहतर व्यक्ति लगे. माना जाता है कि इस मामले में सोनिया गांधी कभी प्रणब मुखर्जी पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पाईं.
यह बड़ी अजीब सी स्थिति थी कि कैबिनेट की मीटिंग में प्रणब मुखर्जी को मनमोहन सिंह की बात सुननी पड़ती थी. हालांकि सूत्रों का कहना है कि प्रणब मुखर्जी एकमात्र व्यक्ति थे जिनकी बात कैबिनेट में मनमोहन सिंह सुना करते थे.
तो सवाल है कि बीजेपी आखिर प्रणब मुखर्जी को यह पुरस्कार देकर क्या साबित करना चाहती है? पहला- आज नहीं तो कल बीजेपी इस बात को ज़रूर कहेगी कि कांग्रेस योग्यता को महत्व नहीं देती जबकि बीजेपी योग्यता का सम्मान करती है. दूसरा- बीजेपी, कांग्रेस पर आरोप लगाएगी कि उसने कभी प्रणब मुखर्जी का सम्मान नहीं किया पर बीजेपी ने किया. ये कुछ वैसा ही तर्क है जो बीजपी सरदार पटेल को लेकर देती आई है. बीजेपी को लगता है कि प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देकर आगामी लोक सभा चुनाव में पार्टी बंगाल में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी. बीजेपी को उम्मीद है कि इससे बंगाल के पढ़े-लिखे लोगों में इसकी पैठ बढ़ जाएगी. हालांकि, पीएम मोदी उस वक्त भी प्रणब मुखर्जी की तारीफ करते रहे हैं जब वो कांग्रेस पार्टी में सक्रिय तरीके से काम कर रहे थे. यहाँ पर यह सवाल बिलकुल ही नहीं है कि प्रणव दा भारत रत्न सम्मान के काबिल नहीं थे. बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि मोदी जी की मेहरबानी समयानुकूल रहती है.
अब एक दूसरा वाक्या पद्म पुरस्कारों से सम्बंधित ---
गीता मेहता ने पद्मा अवार्ड लेने से मना कर दिया, लेकिन उन्हें दिया ही क्यूँ जा रहा था....??????
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
सूत्रों से प्राप्त समाचार के अनुसार - गीता मेहता (उड़ीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक की बहन) और उनके पति भारत में नहीं बल्कि अमेरिका में रहते हैं। PMO से एक फ़ोन उनके भारतीय निवास पर आता है। घर का नौकर ख़ुश है कि उसे ख़ुद मोदी जी फ़ोन करते हैं। PMO नौकर से नम्बर माँगता है, जो उसके पास नहीं होता। एंबेसी से नम्बर निकलता है, गीता मेहता को मिलने के लिए बुलाया जाता है। प्राइम मिनिस्टर से लम्बी मीटिंग होती है। (क्या किसी और अवार्ड विनर से इतनी लम्बी मीटिंग की मोदी जी ने?) आख़िरकार डेढ़ घंटे मोदी जी से बात करने के बाद गीता ख़ुद उठ जाती हैं ये कहकर कि - आप पीएम हैं, काफ़ी काम होगा आपको....
इसके बावजूद उन्हें अवार्ड दे दिया जाता है, जिसे वो ये कहकर ठुकरा देती हैं, कि ऐन चुनाव से पहले इस तरह के अवार्ड लेना या देना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। अब सवाल ये उठता है कि गीता मेहता में PMO का इतना इंटरेस्ट क्यूँ?????
क्यूँकि गीता मेहता के पतिदेव सोनी मेहता Knopf Doubleday Publishing Group के चेयरमैन हैं, जो सिर्फ़ ओबामा और बुश जैसे दिग्गजों की किताबें और जीवनियाँ ही छापते हैं....
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार का यह फैसला ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को लोकसभा चुनाव 2019 से पहले खुश करने के लिए किया गया है. हालांकि दूसरी तरफ बीजेपी बीजू जनता दल पर लगातार हमला तेज कर रही है. उधर गीता मेहता दंपत्ति का यह भी कहना है कि नरेंद्र मोदी शायद अपनी कहानी उनसे लिखवाना चाहते हैं.
अब इससे आगे क्या कहने की जरूरत है. मोदी जी कितने चतुर(होशियार) इन्सान हैं, यह बात सबको समझ लेनी चाहिए. फिर भी अगर उनकी चतुराई(होशियारी) से देश का भला होता है तब तक ठीक है. पर वे केवल अपने आपको अति महत्वाकांक्षी साबित करने में लगे हैं और इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं. फैसला जनता को करना है. गणतंत्र और जनतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है. कुछ भी हो, देश और देश के नागरिक  का भला हो यही तो हम सभी चाहते हैं न! जयहिन्द !
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Friday, 25 January 2019

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हमारा उद्गार ....


घर में भी तो झगड़े होते, बैठ के हम सुलझाते हैं.
भारत माँ के हम सब बेटे भारत माँ की खाते हैं.
पर्वत खाई समतल नदियाँ, हरे भरे भीषण जंगल
खेतों में हैं फसलें सारी, अन्नदाता क्योंकर विह्वल.
सबको दो सम्मान उचित, सब जन गण मन से गाते हैं. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
कोई धन्ना सेठ बना है, कोई प्लेन से है उड़ता.
कोई पैदल चला मुसाफिर, ट्रेन बस में है ठुंसता.
अम्बुलेंस तो दे दो उनको, साइकिल पर शव लाते हैं. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
मिलजुलकर सरकार चलायें, देश को मंदिर सा महकाएं
देश हमारा सर्वोपरि है, राष्ट्र-गान को मन से गाएं
लिए तिरंगा सबल हाथ में, जन गण मन को गाते हैं. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं
शिक्षा पहुंचे हर जन जन तक, स्वस्थ हो तन मन स्वस्थ भ्रमण  
शुद्ध हवा पानी हो निर्मल, ऐसा हो जब पर्यावरण
विश्वगुरु हम तब बन जाएँ, स्वयम को खुद समझाते है. भारत माँ के हम सब बेटे, भारत माँ की खाते हैं   
वन्दे मातरम ! जयहिंद !

Sunday, 20 January 2019

ममता की महारैली


१९ जनवरी को कोलकाता में विपक्ष की महारैली में पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री बीजेपी और मोदी सरकार पर जमकर बरसीं. उन्‍होंने कहा, ''मोदी सरकार की एक्सपायरी डेट' खत्म हो गयी है. राजनीति में शिष्टता होती है, लेकिन भाजपा इसका पालन नहीं करती है, जो भाजपा के साथ नहीं हैं उन्हें चोर बता दिया जाता है. हमलोग (विपक्षी दल) एकसाथ मिलकर काम करने का वादा करते हैं, प्रधानमंत्री कौन होगा इस पर फैसला लोकसभा चुनाव के बाद होगा.” ममता ने दावा किया कि ‘राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी को भाजपा में नजरअंदाज किया गया, अगर भाजपा लोकसभा चुनाव जीतती है तो उन्हें फिर से नजरअंदाज किया जायेगा.' कोलकाता रैली में ममता बनर्जी ने दिया नारा : बदल दो, बदल दो, दिल्ली की सरकार बदल दो.' ममता बनर्जी ने मंच से मोदी सरकार पर हमला बोला और कहा कि मोदी सरकार ने सीबीआई के सम्मान को खत्म कर दिया. सीबीआई में सभी अफसर खराब नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हमारे गठबंधन में सभी नेता हैं. अब बीजेपी के अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं. दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी की हार होगी. अगर बीजेपी देश में दोबारा आती है तो देश का नुकसान होगा. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री कौन होगा, यह हम चुनाव के बाद तय करेंगे.'' ममता ने दावा किया कि केंद्र में भाजपा के गिने-चुने दिन ही बचे रह गए हैं. ममता ने इस बात का भी जिक्र किया कि देश में मौजूदा हालात ‘‘सुपर इमरजेंसी'' के हैं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्ला, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, पूर्व सांसद शरद यादव और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा रैली में शामिल हुए. इसके अलावा डीएमके प्रमुख स्टालिन, झाड़खंड के पूर्व मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन, अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग, बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी भी इस रैली में शामिल हुए. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि वे रैली में नहीं जाएंगे और अपने वरिष्ठ नेताओं को वहाँ भेजेंगी. इनके अलावा ओडीशा में सत्ताधारी बीजू जनता दल और सीपीएम ने भी रैली से किनारा किया है. भाजपा के बग़ावती तेवरों वाले सांसद शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ गुजरात के पटेल नेता हार्दिक पटेल ने भी रैली को संबोधित किया.
मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए ममता ने कहा, "मैं रथ यात्रा के नाम पर सांप्रदायिक हिंसा नहीं होने दूंगी. हम पश्चिम बंगाल में बीजेपी को दंगा नहीं फैलाने देंगे. बीजेपी एक के बाद एक प्रांत से ख़त्म हो जाएगी. मोदी सरकार में लोगों के अच्छे दिन नहीं आए हैं और उन्होंने बीजेपी सरकार को सत्ता से बाहर करने का मन बना लिया है. हमारा देश बांटों और राज करो की नीति में विश्वास नहीं करता है."
यूनाइटेड इंडिया रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि यदि 2019 में बीजेपी जीत गई तो 2050 तक बीजेपी को कोई नहीं हरा सकता. केजरीवाल ने पूछा, "उन्होंने ऐसा क्यों बोला था, 2019 में दोबारा बन गई तो ये संविधान बदल देंगे." इस दौरान उन्होंने मोदी की तुलना हिटलर से की. उन्होंने कहा, "वो इस देश से जनतंत्र हटाना चाहते हैं. कुछ भी करो 2019 में इनको दोबारा सत्ता में नहीं आने देना." "मोदी नहीं तो कौन? 2019 का चुनाव प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं, मोदी-शाह को भगाने का चुनाव है." "मोदी शाह जाने वाले हैं देश के अच्छे दिन आने वाले हैं." इस रैली में गुजरात में पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 'गोरों' के ख़िलाफ़ लड़ने की अपील की थी और हम 'चोरों' के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं.
वहीं भाजपा ने कोलकाता में हुई संयुक्त विपक्ष की रैली को ‘‘अवसरवादी तत्वों’’ का जमावड़ा करार देते हुए कहा कि जो लोग कभी एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते थे, वे देश के भविष्य के किसी खाके के बगैर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने के एकमात्र एजेंडा के साथ एकजुट हो गए हैं. इस रैली का आयोजन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने किया था, जिसमें विपक्षी दलों के कई नेता शामिल हुए. विपक्ष की रैली पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 2019 का भारत 1990 के दशक का भारत नहीं है, जब प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल कुछ दिनों से लेकर कुछ महीने भर का होता था. उन्होंने कहा कि देश को मजबूर सरकार नहीं, बल्कि मजबूत सरकार की जरूरत है. प्रसाद ने कोलकाता में विपक्ष की महारैली में जुटे नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन सभी की महात्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है और इसलिए सबसे मुश्किल चीज उनके नेता की घोषणा करने में है. उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के पास देश का विकास करने की कोई योजना नहीं है और उनका एकमात्र एजेंडा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराना है. ‘‘जो लोग एक दूसरे को देखना तक नहीं पसंद नहीं करते थे वे एकजुट हो गए हैं. उनके पास कोई खाका नहीं है. ’’ विपक्ष के पास सबसे मुश्किल कार्य अपना नेता चुनने का है क्योंकि राहुल गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, इन सभी की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा है. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने रैली को मोदी विरोधी अभियान करार दिया और कहा कि पार्टी ऐसे कार्यक्रमों से डरती नहीं है. 

सही बात है प्रसाद साहब और रूढी साहब, भाजपा ऐसे कार्यक्रमों से कब डरनेवाली है? भारत के जनतंत्र पर एकाधिकार तो अब कथित राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा का ही है. श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह नीत भाजपा अब किसी से क्यों डरेगी? भाजपा से ही सबको डरना होगा क्योंकि सभी संवैधानिक संस्थाओं पर लगभग कब्ज़ा तो आपका हो ही गया है. २०१४ में कांग्रेस के खिलाफ जो माहौल बना उसक जबरदस्त फायदा मोदी जी, भाजपा, आरएसएस एवं उनके अनुषंगी संगठनों ने उठाया. आपने बड़े-बड़े वायदे किये बड़े-बड़े निर्णय भी लिए. आपने सारे निर्णय देशहित में ही लिए हैं, ऐसा आपका कहना है. उसक कितना फायदा जनमानस को पहुंचा इसका आकलन जनमानस ही करेगा. विपक्ष के पास सचमुच का सर्वमान्य नेता नहीं है या कई नेता हैं जो अपनी अपनी महत्वाकांक्षा को साधने में लगे हैं. पर यह भी सत्य है कि वर्तमान से पहले विपक्ष इतना कमजोर कभी नहीं रहा. विपक्ष किसी भी मुद्दे को सही ढंग से विरोध ही नहीं कर पाती है. पिछले पांच राज्यों के चुनाव के बाद तीन राज्यों में भाजपा का तख्ता पलट कुछ तो कहता है. राहुल गांधी को पप्पू कहते हुए आपने ही नेता बना दिया. अब वे मोदी जी जैसा तो नहीं पर बहुत से मुद्दे पर मोदी जी को संयत भाषा में ही जवाब देने लगे हैं. हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और तेजस्वी यादव जैसे युवाओं को नेता बनने का मौका आपने ही दिया है. कन्हैया कुमार को देशद्रोही कहकर देश का नेता आपने ही बना दिया. ये लोग अपनी-अपनी तरह से आपको विभिन्न मंचों से जवाब देने लगे हैं और आप उन्हें काटने में लगे हैं, फिर भी कहते हैं हमें डर नहीं है. आप मत डरिये, आनेवाले समय में चुनाव का सामना करिए. जनता जिसे चाहेगी प्रधान मंत्री बनायेगी या अगर आप ही सबसे उपयुक्त हैं तो आपको ही पुनर्बहाल करेगी.
आमलोगों की राय अगर कही जाय तो बड़ी विकट परिस्थिति है? मोदी नही तो कौन? एक समय इंदिरा गाँधी के समय में भी यही स्थिति थी. इंदिरा इस इण्डिया ...पर इंदिरा जी को भी राजनारायण जैसे नेता ने उन्ही के गढ़ में जाकर हराया. विकल्प बना, नए प्रधान मंत्री बने. हाँ अस्थिर सरकार कुछ दिन अवश्य रही. फिर अटल जी आये, आडवाणी जी आये और उन्ही लोगों ने मोदी जी को बनाया. आज मोदी जी अपने गुरुओं और वरिष्ठों को किनारे लगा चुके हैं. यहाँ तक कि आडवाणी जी को राफेल पर बहस के दौरान लोकसभा में बोलने की अनुमति नहीं दी जाती है. यह कैसा लोकतंत्र है? मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल ही सही पर उन्होंने दस साल देश को अच्छे ढंग से चलाया. अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ किया. देश को आगे बढ़ाया. आपने उनके खिलाफ बड़ा कुत्सित अभियान चलाया और अभी भी चला रहे हैं. जनता सब देखती-समझती है और अपना भला भी चाहती है. ‘मॉब-लिंचिंग’ के तहत किसी को भी जो आपका विरोध करे उसे मार देना या भय का वातावरण पैदा करना कहाँ तक जायज है? आपनी विभिन्न जांच एजेंसी को उसके खिलाफ लगा देना, वह भी उस समय जब आपका विरोध कर रहा हो. जब आपके साथ आ जाए तो सब खून माफ? गंगा में पाप धोने के समान? न, यह सब कब तक चलेगा? दोषी है तो सजा दिलवाइए.  
दूसरी तरफ मेरा मानना है कि किसी भी सरकार के खिलाफ एक सशक्त विपक्ष भी होना चाहिए जो निरंकुश फैसलों पर रोक लगा सके. जो किसानों, नौजवानों, गरीबों, और कमजोर वर्ग के लोगों को सुरक्षा दिला सके. लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है. राजनीतिक पार्टियाँ चाहे जो भी हो, पाक-साफ़ नहीं है. पाक-साफ़ लोग राजनीति में आना नहीं चाहते अगर आते भी हैं, तो टिक नहीं पाते इसलिए जनता के पास विकल्प की कमी है. जो है उन्ही में से चुनना होगा नहीं तो ‘नोटा’ भी तो पिछले चुनावों में खूब चला. जय लोकतंत्र! जय हिन्द!