Monday, 30 January 2017

पांच राज्यों के चुनाव!

पांच राज्यों में चुनाव का ऐलान हो गया है. इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने भी सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. चुनाव में सुरक्षा इंतजामों के लिए 850 अर्धसैनिक बलों की कंपनियां भेजी जाएंगी. जिन राज्यों में पहले चुनाव होंगे, वहां फोर्स पहले जाएगी. उसके बाद आगे चुनाव होने वाले इलाकों में फोर्स को भेजा जाएगा. गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि चुनाव आयोग ने जब तारीख तय कर ली है, तो हम अपनी तरफ से सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हम जो भी संभव है, करेंगे.
इससे पहले चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार गोवा, पंजाब और उत्तराखंड में एक-एक चरण में, मणिपुर में दो चरण और उत्तर प्रदेश सात चरणों में मतदान होगा. गोवा और पंजाब में चार फरवरी को वोट डाले जाएंगे, जबकि उत्तराखंड में 15 फरवरी को मतदान होगा. गोवा में विधानसभा की 40, पंजाब में 117 और उत्तराखंड में 70 सीटें हैं।
मणिपुर में दो चरणों में मतदान होंगे, जिनमें से पहले चरण का मतदान चार मार्च को और दूसरे चरण का आठ मार्च को होगा. राज्य में विधानसभा की 60 सीटें हैं. उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होंगे. पहले चरण का मतदान 11 फरवरी, दूसरे चरण का 15 फरवरी, तीसरे चरण का 19 फरवरी, चौथे चरण का 23 फरवरी, पांचवें चरण का 27 फरवरी, छठे चरण का 4 मार्च को और सातवें और अंतिम चरण का मतदान 8 मार्च को होगा. 11 मार्च को एक साथ सभी राज्यों की मतगणना होगी.
पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा के साथ सभी राजनीतिक दलों में हलचल होना स्वाभाविक है. नोटबंदी की मार से कमोबेश सभी परेशान हुए हैं. कुछ लोगों की नौकरियां गयी, कुछ के मुनाफे कम हुए तो किसी का काला धन बाहर आ गया. किसी ने इसी मौके का नाजायज फायदा भी उठाया. लोगों के पास नगदी की कमी तो है ही अब राजनीतिक दलों के पास भी खर्च करने को पर्याप्त रकम का अभाव है. अगर कोई चोरी छुपे कुछ इधर उधर कर भी रहा है तो चुनाव आयोग उसपर पैनी नजर रख रहा है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार – चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त निगरानी एवं खर्च निगरानी दल ने पांच चुनावी राज्यों में 96 करोड़ रूपए से अधिक नकदी, 25.22 करोड़ रूपए की कीमत की 14.27 लाख लीटर शराब और 19.83 करोड़ की कीमत के 4,700 किलोग्राम से अधिक नशीले पदार्थ जब्त किए हैं. आधिकारिक आकड़ों के अनुसार इस माह की शुरूआत में चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा के बाद से अभी तक उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 87.67 करोड़ रूपए जब्त किए गए. इसके अलावा पंजाब में 6.60 करोड़, गोवा में 1.27 करोड़ रपये, उत्तराखंड में 47.06 लाख और मणिपुर में 8.13 लाख रूपए जब्त किए गए.
इन राज्यों में मतदाताओं को लुभाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य अवैध प्रलोभन जैसे 25.22 करोड़ रूपए कीमत की 14.27 लाख लीटर शराब चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त निगरानी एवं खर्च निगरानी दल ने जब्त की है. शराब भी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 8.01 लाख लीटर शराब जब्त की गई है जिसकी कीमत 20.62 करोड़ रूपए है. वहीं गोवा में 15.14 लाख की कीमत की बीयर और अन्य नशीले पेय जल जब्त किए गए हैं. मादक पदार्थ रोधी एजेंसी और पुलिस दल ने सबसे अधिक पंजाब में 19.83 करोड़ रूपए के 4,774 किलोग्राम नशीले पदार्थ जब्त किए है।
पंजाब के चुनाव का तो मुद्दा ही नशाखोरी और उससे उबरने का है साथ ही नवयुवकों को रोजगार देने का भी मामला है. बेरोजगार लोग ही नशे के शिकार हैं और नशे के गिरफ्त में आकर गैरकानूनी काम भी करते हैं. वहां के दूर दराज के लोगों में चुनाव के प्रति बहुत ज्यादा रूचि भी नजर नहीं आ रही. अधिकांश लोगों का कहना है, रोजगार नहीं है, कारखाने बंद पड़े है. खेतों की फसल का भी उचित दाम नहीं मिलता ..लोग तो परेशान हैं ही. अगर लोगों के पास 20 हजार रुपये महीने की भी नौकरी हो तो कोई क्यों सस्ते दाम पर या मुफ्त का राशन लेना चाहेगा. मतलब कि लोग वर्तमान भाजपा और अकाली दल के बादल सरकार से खपा हैं और परिवर्तन चाहते हैं. कांग्रेस को भी वे लोग देख चुके हैं. नयी पार्टी आम आदमी पार्टी से लोग आश लगाये बैठे हैं, शायद यह कुछ नया कर दे. आम आदमी पार्टी में राजनीतिक व्यक्ति कम और नए नौजवान लोगों को ही ज्यादातर उम्मीदवार बनाया गया है ताकि वे लोग कुछ नया कर के दिखावें. केजरीवाल भी उत्साहित हैं और पूर्ण बहुमत का दावा कर रहे हैं. अमित शाह भी यह मान चुके हैं कि पंजाब में कड़ी टक्कर है. फिर भी जबतक मतदान हो नहीं जाता कुछ भी कहना मुश्किल है.
सबसे रोमांचक चुनाव यु पी में होनेवाला है … यहाँ अखिलेश की समाजवादी पार्टी और राहुल की कांगेस में गठबंधन हो गया है और यह गठबंधन मोदी जी की भाजपा को जबरदस्त टक्कर देने के मूड में हैं. दोनों नौजवान(अखिलेश और राहुल) हो सकता है, नौजवानों का दिल जीतने में सक्षम हो. वैसे काफी लोग अखिलेश के काम से संतुष्ट नजर आते हैं, पर कानून ब्यवस्था के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे ख़राब स्थिति में है. लूट, हत्या, बलात्कार, दंगे वहां की आम बात हो गयी है. उधर भाजपा अपने ही अंतर्विरोधों और अंतर्कलह से जूझ रही है, क्योंकि टिकटों का सही बटवारा नहीं हुआ है, ऐसा भाजपा के नेता ही कह रहे हैं. दूसरी-दूसरी पार्टी से आए लोगों को महत्व दिया जा रहा है और स्थानीय कार्यकर्ताओं/नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है. योगी आदित्यनाथ को ज्यादा महत्व नहीं देने के कारण उनके समर्थक हिन्दू युवा वाहिनी अलग से उम्मीदवार उतारने जा रही है, जिसका सीधा नुकसान भाजपा को ही होगा. योगी आदित्यनाथ यु पी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी बताये जाते थे. मायावती अपने वोट बैंक लेकर आश्वस्त है, तो टक्कर त्रिकोणीय होने के संभावना है. ओपिनियन पोल में भी किसी को बहुमत मिलते हुए नहीं दिखाया जा रहा है तब परिणाम रोमांचक जरूर होगा और किसकी सरकार बनेगी वह तो ११ मार्च को मतगणना के बाद ही पता चलेगा.
गोवा में भाजपा की सरकार है और वहां के प्रभारी भूतपूर्व मुख्य मंत्री और वर्तमान रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को बनाया गया है. पर्रिकर की छवि अच्छी है लेकिन अभी वे केंद्र सरकार में मंत्री हैं. वहां से वे वापस गोवा के मुख्य मंत्री बनने तो नहीं आ रहे हैं इसलिए वहां भी आम आदमी पार्टी के साथ ही टक्कर होनेवाली है. उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर है. मणिपुर में भी कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है और किसी तरह बहुमत का जुगाड़ कर सरकार बना सकती है ऐसा लोगों का अनुमान है.
उठापटक तो होगी ही. इधर हर पार्टी अपने चुनाव घोषणा-पत्र में लुभावने वादे कर रही है जिसपर से लोगों को भरोसा उठता जा रहा है. काम धरातल पर हो तो नजर आते हैं. भाजपा में मोदी नाम केवलम के आधार पर ही नैया पार लगनेवाली है. श्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी ही मुख्य रणनीतिकार और चुनाव प्रचारक हैं. बाकी तो मोदी-मोदी का ही जाप करते हैं. इधर नोटबंदी के बाद जो लोग परेशान हुए है उससे लोग नाराज चल रहे हैं और मोदी जी भी नोटबंदी के फायदे अब नहीं बतला रहे हैं. उनका पुराना भाषण ही चलता रहता है जिसे सुनते-सुनते आदमी थक सा गया है. देश का मामला अलग था. अभी राज्यों में स्थानीय मुद्दे भी होते हैं. फिर भी जनता ही निर्णायक रोल अदा करती है. काले धन की कमी की वजह से हो सकता है, खरीद-फरोख्त कम हो जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अधिकतम संभावना है. ऐसे में जनता का ही फैसला सर्वोपरि है. जनता और आम नागरिक भी जागरूक हुआ है इसीलिए जनता जरूर बुद्धिमानी से अपने मत का इस्तेमाल करेगी और करना भी चाहिए क्योंकि जिन्हें वह चुनती है वही अगले पांच साल के लिए भाग्य विधाता बन जाते हैं.
तबतक हम सभी इन्तजार करते हैं कैसी हवा बनती है और क्या होनेवाला है!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Tuesday, 24 January 2017

विदाई समारोह अपने प्रिय जन का!

 


प्रकृति का नियम है जो आया है वो जायेगा. किसी संस्था में सेवा देनेवाले व्यक्ति का भी एक दिन आखिरी होता है. ऐसे क्षण से हम सबको गुजरना ही पड़ता है. पर कोई ऐसा व्यक्ति जो सर्वप्रिय हो जब सेवामुक्त होकर अपने सहकर्मियों से अलग होता है तो वह क्षण भी बड़ा मार्मिक होता है! हमारे अग्रज तुल्य श्री हरेन्द्र कुमार सिंह ऐसे ही गुण से परिपूर्ण है. जिनकी विदाई समारोह में विभाग के ही नहीं, बल्कि विभाग के बाहर के भी लोग भावविह्वल हो रहे थे. सबका वे कुछ न कुछ भला कर चुके थे या भला करने का हर संभव प्रयास तो किये ही थे. यही कारण था कि वे कर्मचारी संगठन के प्रतिनिधि के रूप में शुरू से अंत तक रहे. यहाँ तक कि सेवामुक्त होकर भी अभी संगठन के प्रतिनिधि बने हुए हैं.
१९८५ से लेकर अब तक(२०१७)(कुल ३७ साल) या अगले चुनाव तक वे संगठन से जुड़े रहेंगे यह भी पूर्ण संभावना है. विभागीय प्रतिनिधि के साथ-साथ वे संगठन में संयुक्त सचिव और उपाध्यक्ष तक के पद को सुशोभित करते रहे हैं. दो-तीन बार उनके विरोध में एक-दो प्रतिद्वंद्वी खड़े हुए भी थे, पर वे सब गिनती के ही कुछ मत ले पाए थे. इनका लगातार विजय इनकी लोकप्रियता का पैमाना ही कहा जायेगा. अधिकांश पारी में तो ये निर्विरोध ही चुने जाते रहे हैं. लोकप्रियता ऐसी कि ये  प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच सामान रूप से सर्वग्राह्य रहे.
इनके विदाई समारोह में कर्मचारी और अधिकारी सभी एक साथ सम्मिलित हुए जो कि एक आदर्श स्थिति कही जा सकती है. मेरा इनके साथ सहकर्मी से ज्यादा भ्रातृतुल्य सम्बन्ध है और व्यक्तिगत रूप से भी काफी बातों को हम एक दूसरे से साझा करते थे.
विदाई समारोह में सबने अपने-अपने उद्गार व्यक्त किये और उनके भविष्य के लिए शुभकामना व्यक्त की. इस अवसर मेरे भी उदगार इस प्रकार व्यक्त हुए.
जुलाई, १९८८ में मैं पहली बार टाटा स्टील, जमशेदपुर से जुड़ा और बड़े भाई श्री हरेन्द्र कुमार सिंह के संपर्क में आया, या कह सकते हैं इन्होंने मुझे खुद अपने साथ रक्खा. जरूरत के अनुसार सुख-दुःख में साथ निभाते रहे. मैं भी इनके साथ अपने घर-परिवार की बात भी साझा करता था और ये भी अपने घर-परिवार की बात बताते ही रहते थे. बहुत सारी बातें यहाँ उपस्थित लोगों ने व्यक्त कर दी है. मैं सबका सार रूप निम्न पंक्तियों में व्यक्त कर रहा हूँ.
विरले ही ऐसे होते हैं!
विरले ही ऐसे होते हैं, जो सबके दिल में होते हैं,
पक्ष विपक्ष की बात नहीं, होती न कभी भी रात कहीं.
कोई चैन से घर में सोता है, या अपना आपा खोता है,
सुख में तो साथ सभी देते, दुःख में जो अपने होते हैं. विरले ही ऐसे होते हैं...
जो प्रतिद्वंद्वी बनकर आए, अपना सपना पूरा पाए,
जो साथ हमेशा ही रहता, कुछ कुछ तो कहता ही रहता,
सुन लेंगे कभी भी उनकी भी, अपने तो अपने होते हैं. विरले ही ऐसे होते हैं...
हो अधिकारी या कामगार ! श्रद्धा रक्खें इनमे अपार.
समतामूलक छल छद्म रहित, मिलते यह सबसे प्रेम सहित.
गर भला नहीं कुछ कर पाएं,  बेचैन से उस दिन होते हैं. विरले ही ऐसे होते हैं...
बतलाओ कौन सा नेता है, जो आजीवन पद लेता है.
सेवामुक्त भी होकर के, सेवा से मुक्त न होता है.

जीवन भर सेवा कर पाएं, ऐसा ही व्रत जो लेते हैं!  विरले ही ऐसे होते हैं...

Sunday, 15 January 2017

इमेज बिल्डिंग! (प्रसंग - नितीश कुमार)

इमेज बिल्डिंग यानी छवि सुधार! जब भी हम अपनी फोटो खिंचवाते हैं, दाढ़ी जरूर बनवाते हैं, चेहरे पर स्नो पाउडर लगाते हैं, बालों में कंघी करते हैं, आईने के सामने खड़े होकर खुद को निहारते हैं, मुस्कुराते हैं, शरमाते हैं, स्टूडियो वाला भी बोलता है- स्माइल प्लीज! एक दो बार क्लिक करता है, उनमे जो अच्छा से अच्छा होता है, उसे ही प्रिंट कर हमें सौंपता है. हम उसे जरूरत के अनुसार चिपकाते हैं, अपने प्रोफाइल पर या पासपोर्ट पर! एप्लीकेशन फॉर्म पर या सोसल मीडिया पर! हम सभी चाहते हैं लोग हमारी शक्ल सूरत की प्रशंसा करे. शादी विवाह के अवसर पर ऐसे सुन्दर फोटो की बड़ी आवश्यकता होती है, लड़कों के लिए और लड़कियों के लिए तो निहायत ही जरूरी होता है. वैसे आजकल बहुत सारे ब्यूटी पार्लर हैं जो बदसूरत को भी खूबसूरत बनाकर दिखा दे!
अब आते हैं राजनेताओं की छवि पर प्रधान मंत्री श्री मोदी के बारे में फिर कभी उनकी छवि के आगे तो सारा विश्व नतमस्तक है
बिहार के वर्तमान मुख्य मंत्री नितीश कुमार की छवि एक साफ़ सुथरे राज नेता की है. जनता दल से जनतादल यूनाइटेड बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनानेवाले नितीश ने बिहार के लिए बहुत कुछ कियासड़कें बनवाई, पुल और पुलिया बनवाई, लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया उसे स्कूल ड्रेस से लेकर सायकिलें भी दिलवाई. किसानों के लिए आम लोगों के लिए बहुत कुछ किया. इसलिए लगतार तीसरी बार भी जीतते रहे.
२०१४ में मोदी जी के प्रधान मंत्री पद के दावेदार के रूप में जब आधिकारिक घोषणा हो गयी तो व्यक्तिगत विरोध के चलते उन्होंने भाजपा से रिश्ता तोड़ दिया. जब लोकसभा के चुनाव में मोदी लहर के चलते जे डी यु की करारी हार हुई तो हर की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और जीतन राम मांझी को अपनी कुर्सी दे दी. कहना न होगा ये सब उन्होंने अपनी छवि कायम रखने के लिए ही किया. बाद में जीतन राम मांझी को हटाकर स्वयम कुर्सी पर विराजमान हुए और हार की आशंका से लालू जी से दिल लगा बैठे. कई बार उनके बीच विचारों को लेकर दरार की ख़बरें आती रहीं. पर लालू और नीतीश समय-समय पर पाटने का भी हर सम्भव प्रयास करते रहे हैं.
इधर सिक्खों के बीच अपनी छवि सुधारने के लिए या कहें राष्ट्रीय नेता की छवि के तौर पर उभाड़ने के लिए और पटना (बिहार) को पर्यटन के लिए उपयुक्त जगह बनाने के लिए गुरु गोविन्द सिंह के ३५० वीं जयन्ती को प्रकाश पर्व के रूप में पटना में शानदार आयोजन कर डाला, जिसमे प्रधान-मंत्री तक को आकर नीतीश बाबु की प्रशंसा कर गएबीच-बीच में वे मोदी जी से दूरी घटाने का भी प्रयास करते रहे हैं, जिसमे नोटबंदी का समर्थन भी एक कदम कहा जाएगा. बदले में प्रधान मंत्री ने बिहार में शराब-बंदी को बड़ा साहसिक और सामाजिक सुधार वाला कदम बता दिया. यह सब छवि बनाये रखने का एक तरीका ही है. ऐसा नहीं है कि बिहार में शराब पूरी तरह बंद है. बड़े लोग किसी तरह जुगाड़ कर ही लेते हैंधड़-पकड़ भी चलती रहती है. फिर भी निम्न वर्ग के लोगों के लिए राहत ही कही जाएगी जो शराब में अपनी मिहनत की कमाई फूंकते देते थे और घर में पत्नियों बच्चों से झगड़ा करते थे.
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. मकर संक्रांति के दिन लालू जी के घर जाकर दही का टीका लगवा कर दही चूड़ा का भोग लगा चुके और दूसरे दिन अपने यहाँ भी दही चूड़ा भोज का आयोजन करने वाले थे जिसमे भाजपा के लोग भी आमंत्रित थे….. रंग में भंग पड़ गया. मकर संक्रांति के ही दिन पटना के NIT घाट के पास नाव दुर्घटना में २५ लोगों की मौत ने इनके ऊपर फिर से एक दाग लगा दिया. अब विरोधी और मीडिया वाले मीन-मेख निकालने लगेप्रशासन की लापरवाही, कुब्यवस्थाऔर क्या क्याउनका पुराना इतिहास भी पलटा गया, जिसमे २०१२ में मलमास मेले के समय राजगीर में भगदड़ की दुर्घटना, २०१२ में ही गंगा किनारे छठ के समय की दुर्घटना, २०१४ में गाँधी मैदान में रावण वध के समय हुए भगदड़ में हुई मौत आदिआदि ! 

बड़ी मुश्किल से छवि बनता है और अच्छी छवि पर ही दाग जल्द लगता है.
अब आते हैं २१ जनवरी की मानव श्रृंखला पर जिसे उन्होंने शराब बंदी और नशामुक्ति के समर्थन में आयोजन करवाया!
शराबबंदी के समर्थन में २१ जनवरी, शनिवार को बिहार में आयोजित मानव श्रृंखला ने विश्व रिकॉर्ड कायम कर लिया है. इस ऐतिहासिक क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए इसरो की ओर से तीन सैटेलाइट, चार हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की गयी थी. इसरो के सेटेलाइट ने शराबबंदी चिह्न व बिहार की तसवीर भी ली. बिहार के सभी जिलों में भी ड्रोन से इस मानव श्रृंखला की तस्वीरें लेने के इंतजामात किये गये थे. राज्य में कुल 11, 400 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनायी गयी. लगभग दो करोड़ लोगों ने इसमें भाग लिया.
शनिवार की सुबह करीब 11:30 बजे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मानव श्रृंखला में शामिल होकर इस ऐतिहासिक क्षण में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. सबसे बड़ी बात यह है कि पूरी दुनिया में यह पहली बार ऐसा हुआ है कि समाज में व्याप्त किसी कुरीति को लेकर किसी एक राज्य के लोगों ने पूरे जोर-शोर के साथ इतनी अधिक संख्या में अपना समर्थन जाहिर करने के लिए एक मानव श्रृंखला के रूप में अपनी एकजुटता दिखायी हो.
इसके साथ ही, शराबबंदी के समर्थन में मानव श्रृंखला के आयोजन पर राज्य के कई बड़े राजनेताओं ने भी अपने बयान दिये. सत्ताधारी दल के कई नेता अपने गृह नगरों में मानव श्रृंखला में खुद को शामिल कर इसका जोरदार स्वागत भी किया. राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पहली बार अपना बयान देते हुए कहा कि मानव श्रृंखला विश्व रिकॉर्ड बनायेगी. लोग शराब से दूर रहें. वहीं, राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार में आयोजित मानव श्रृंखला ने विश्व रिकॉर्ड कायम किया.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पटना का गाँधी मैदान अब तक जातियों और पार्टियों की रैली का गवाह रहा है पर शनिवार के दिन यह जाती और पार्टी से ऊपर उठकर सामाजिक और सर्वप्रिय रैली तथा मानव श्रृंखला का गवाह बना. गाँधी मैदान में बिहार का मानचित्र बनाया गया था जिसके किनारे सभी गण-मान्य और आम-लोग खड़े थे. नितीश कुमार और लालू एक दूसरे का हाथ मजबूती से पकडे और प्रफ्फुल्लित मुद्रा में नजर आये! दूसरे दल के लोग भी साथ थे इसमें किसी पार्टी का झन्डा बैनर का इस्तेमाल नहीं किया गया था. नशामुक्त बिहार लिखा हुआ टोपी, झंडे और बैनर जरूर इस्तेमाल किये गये.
सबसे बड़ी बात यह रही कि इसमें बिना किसी दबाव के स्वमेव स्फूर्त बच्चे, बच्चियां, महिलाएं, पुरुष और बुजुर्ग भी नजर आये! सबका उत्साह और मनोभाव मुघ्ध कर देने वाला था. एकाध जगह कुछ बच्चे बेहोश हुए या दुर्घटना के शिकार हुए इसके अलावा कोई बड़ी दुर्घटना की खबर नहीं आयी!  
बिहार सरकार का दावा है कि शराब-बंदी के बाद से अपराध और दुर्घटनाओं में कमी आयी है! लोगों की मिहनत की कमाई के पैसे की भी बचत हो रही है, साथ ही इससे व्यक्तिगत और सामाजिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पर रहा है! इसके बाद बिहार को पूर्ण रूप से नशामुक्त करने का भी अभियान है जिसमे- सिगरेट, खैनी, जर्दा, गुटखा, आदि भी शामिल होगा. हम कामना करते हैं कि बिहार सरकार का यह प्रयास सफल हो और लोग स्वत: इस बुराई से छुटकारा पायें. यह भी मोदी जी की स्वच्छता अभियान में एक कदम होगा. सिगरेट, खैनी, पान, गुटखा आदि खानेवाले भी गंदगी फैलाते हैं. कहीं भी थूक देते हैं. इससे इसके सेवन करनेवाले के स्वास्थ्य पर बुरा असर तो पड़ता ही है, आस-पास के लोग भी इसके शिकार होते हैं.
बिहार के छवि काफी दिनों से ख़राब थी, नीतीश ने काफी हद तक इसे सुधारने का हर संभव प्रयास किया है. आगे भी वे करेंगे, ऐसी उम्मीद है साथ ही उनके राष्ट्रीय नेता की छवि भी आकार लेती हुई नजर आ रही है. मोदी जी गुजरात को मॉडल राज्य बनाकर ही राष्ट्रीय नेतृत्व में उभरे थे. उनके टक्कर का नेता अभी कोई दिख नहीं रहा. राजनीति संभावनाओं का खेल भी है. कभी भी कुछ भी संभव है! एक बार जय बिहार के साथ! जय भारत!

-   जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 14 January 2017

सेना के जवानों का दर्द!

किसी भी देश की सेना उस देश की शक्ति का अहसास करती है! सेना हमारी सीमा की रक्षा करती है. दुश्मनों के आक्रमण से बचाती है. देश में किसी प्रकार की आपदा हो हम सेना के योगदान और कर्तव्यपरायणता को नकार नहीं सकते. सेना के जवान बड़े अनुशासित होते हैं और हर विकट परिस्थिति से जूझने के लिए दिन-रात तैयार रहते हैं. हम सबने देखी-सुनी है सेना के महारत को, उसकी निष्ठा को, राष्ट्र के प्रति भक्ति को! वे हमारे आदर्श भी हैं! हमें अनुशासन का पाठ सेना का उदाहरण देकर सिखाया जाता है. देश भक्ति का आचरण भी हमें सेना का उदाहरण देकर ही सिखलाया जाता है. यहाँ तक कि JNU के कन्हैया कुमार को भी अदालत ने सेना का ही उदाहरण देकर नसीहत दी थी. फिलहाल नोटबंदी के दौरान लाइन में लगे लोगों को भी सेना का उदाहरण देकर समझाया जाता था... तुम लोग यहाँ नोट लेने के लिए लाइन में लगकर परेशानी महसूस कर रहे हो ... सीमा पर हमारे जवान को देखो, वे किन विकट परिस्थितियों में देश की रक्षा कर रहे हैं. सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर हम सब फूले नहीं समा रहे थे. यहाँ तक कि नोटबंदी को भी मोदी जी का भ्रष्टाचार, आतंकवाद आदि पर सर्जिकल स्ट्राइक कहा जाने लगा था. पर पिछले दिन ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक विडियो आने लगे सेना या अर्ध सेना बल के जवानों की तरफ से ... कभी खाने को लेकर, अधिकारियों के भ्रस्टाचार को लेकर तो कभी ऑफिसर की तीमारदारी को लेकर...           
सर्वप्रथम खराब खाने की शिकायत को लेकर वीडियो डालने वाले जवान तेज बहादुर ने 31 दिसंबर को वीआरएस यानी वॉलेंट्री रिटायरमेंट का आवेदन दिया था, जिसे मंजूर कर लिया गया है. अब 31 जनवरी को तेजबहादुर बीएसएफ की सर्विस से रिटायर हो जाएंगे. जानकारी के मुताबिक, तेजबहादुर ने वीडियो डालने से पहले ही 31 दिसंबर को स्वैच्छिक रिटायरमेंट यानि वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया था. फिलहाल तेजबहादुर को दूसरी यूनिट में प्लंबर का काम दिया गया है.
तेज बहादुर के वीडियो डालने के बाद बवाल मच गया है. इस मामले में गृह मंत्रालय के साथ पीएमओ ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है. बीएसएफ ने गृह मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. तेजबहादुर के सोशल मीडिया पर वीडियो डालने के बाद बीएसएफ के अधिकारी ने उस जगह का दौरा किया था, जहां उनकी पोस्टिंग थी.
रिपोर्ट में बताया गया है कि बीएसएफ अधिकारी की जांच के दौरान उसी यूनिट के किसी अन्य जवान ने खाने की गुणवत्ता को लेकर कोई शिकायत नहीं की. सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉक्टर अभी खाने की क्वालिटी और न्यूट्रीशन को लेकर जांच कर रहे हैं. बीएसएफ चार से पांच दिन में फाइनल रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजेगा.
सुरक्षा बलों के जवानों की शिकायत रुक नहीं रही है. बीएसएफ और सीआरपीएफ के बाद अब एसएसबी के एक जवान ने अफसरों पर तेल और राशन बेचने का आरोप लगाया है. जवान ने कहा, ‘’बॉर्डर पर ड्यूटी करता हूं. वहां पर बहुत सारी मुश्किलें हैं. जैसे कि मोबाइल का नेटवर्क नहीं रहना. आने जाने के लिए सरकार गाड़ी तक नहीं देती.  वहां के अफसर गाड़ी का तेल भी बेच देते हैं. अफसर तेल बेचते हैं, खाने का राशन बेचते हैं इससे ज्यादा मैं क्या बोलूंगा.’’ SSB जवान ने तेज बहादुर का समर्थन किया...इस जवान ने तेज बहादुर की शिकायत को भी सही बताया है. जवान ने कहा, ‘’जली हुई रोटी और दाल जो जवान ने दिखाया है वो सच है.’’ इस जवान ने जो आरोप लगाए हैं उस पर एसएसबी ने अभी तक कुछ नहीं कहा है. एसएसबी का गठन भारत चीन युद्ध के बाद 1963 में किया गया था. इसका मकसद सीमा से लगे दूरदराज के इलाकों की सुरक्षा है.
बीएसएफ के जवान तेज बहादुर हों या सीआरपीएफ के जीत सिंह या फिर एसएसबी का जवान. इनके आरोपों ने अर्धसैनिक बलों को दी जाने वाली सुविधाओं पर बड़ा सवाल उठाया है. हालांकि तेज बहादुर का मामला पीएम मोदी के दफ्तर तक पहुंच गया है. पीएम ने गृह मंत्रालय से रिपोर्ट मांगी है. उम्मीद है कि पीएमओ के दखल के बाद अर्धसैनिक बलों की हालत सुधरे.
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जवानों की शिकायत पर सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने बड़ा बयान दिया है. बिपिन रावत ने जवानों से कहा है कि  सोशल मीडिया पर शिकायत जारी करने की जगह अपनी परेशानी सीधे मुझ तक पहुंचाएं. सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने इस बाबत कमांड हेडक्वॉर्टर पर शिकायत के बक्से रखने का निर्देश दिया है. रावत ने जवानों से कहा कि अपनी किसी भी प्रकार की शिकायत को शिकायत पेटी में ही डालें और सेना के नेतृत्व पर भरोसा रखें.
पिछले कई दिनों से सेना की जवानों ने वीडियो जारी कर अधिकारियों और सुविधाओं को लेकर शिकायत की है. इनमें सबसे पहले बीएसएफ के जवान तेज बहादुर ने खराब खाना मिलने, सीआरपीएफ के जवान जीत सिंह ने सुविधाएं न मिलने, एसएसबी के एक जवान ने अधिकारियों पर तेल और राशन बेचने और सेना के जवान यज्ञ प्रताप सिंह ने घरों में अफसरों की तरफ से निजी कार्य कराने जैसे आरोप लगाए हैं.
बीएसएफ और सीआरपीएफ के बाद अब सेना के एक जवान का वीडियो सामने आया है. ये वीडियो भी वायरल हो रहा है. जवान का नाम यज्ञ प्रताप सिंह है और वो 42 ब्रिगेड देहरादून में तैनात था. यज्ञ प्रताप ने पिछले साल 26 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय से सेना के अधिकारियों की शिकायत की थी. जवान का आरोप है कि अधिकारी सैनिकों से घरों में सेवादारी करवाते हैं. ये शिकायत करने के बाद यज्ञ प्रताप को वहां से ट्रांसफर कर दिया गया है. जवान यज्ञ प्रताप के आरोप पर सेना का बयान आया है. सेना का कहना है कि इतनी बड़ी सेना में कुछ निजी शिकायतें मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन इस जवान की शिकायत की जांच जा रही है और उसका समाधान करने की कोशिश की जा रही है. 42 ब्रिगेड की ये एक मात्र शिकायत है.
यज्ञ प्रताप की पत्नी का कहना है कि इस विडियो के बाद यज्ञ प्रताप का मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया है ... वे भूख हड़ताल पर बैठे हैं. तेज प्रताप की पत्नी भी परेशान हैं कि तेज प्रताप के साथ कोई अनहोनी न हो जाय! यही पत्नियाँ और परिजन गौरवान्वित होकर कहती थीं कि “मेरा पति/बेटा/भाई देश के काम आया है”, जब उनके शव किसी मुठभेड़ में मरने के बाद उनके पास पहुंचते थे.
इन सबके बाद भी रक्षा मंत्री और प्रधान मंत्री चुप हैं, हालाँकि गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू बयान दे रहे हैं, वे लोकतंत्र में आवाज उठाने को तो जायज मानते हैं पर अनुशासन और सेना के मनोबल को बनाये रखने की भी बात कह रहे हैं. उम्मीद है जवानों की भी सुनी जायेगी और उनके मनोबल को टूटने नहीं दिया जाएगा.
असंतोष हर जगह होता है, हो भी सकता है, लोग अपने सीनियर से शिकायत भी करते हैं. कुछ असर नहीं होने पर ही कोई भी व्यक्ति सोसल मीडिया या अन्य मीडिया का सहारा लेता है, ऐसा मेरा मानना है. प्रधान मंत्री भी सोसल मीडिया को महत्व देते हैं. अत: सबसे उत्तम बात तो यही होगी कि जवानों की शिकायत की तरफ ध्यान दिया जाय ताकि उनका मनोबल न टूटे! आखिर सेना सही सलामत है तभी हम सभी सही सलामत हैं. सेना में विद्रोह कभी भी जायज नहीं हो सकता. हम सबों का भी कर्तव्य है कि सेना में अगर कोई कमी है तो उसे दूर करने के लिए आवाज बुलंद करें! जय जवान जय किसान का नारा हमारे पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था. सेना के जवान और देश के जवान, कर्मचारी, किसान, मजदूर ये सभी हमारे देश की नींव हैं. दुर्भाग्य से आज किसान भी बड़ी विकट परिस्थिति में हैं. फसल ख़राब होने या उचित दाम न मिलने पर आत्महत्या को मजबूर हैं. योजनायें बनती हैं. फंड भी दी जाती है, दिक्कत है कि यह फंड उन तक नहीं पहुंचता, पहले भी आज भी... स्थिति ज्यादा उत्साहजनक नहीं है, बल्कि नोटबंदी के दौरान किसानो और दैनिक मजदूरों की हालत बदतर हुई है! उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार ज्वलंत समस्यायों को प्रमुखता से सुलझाएगी. नारों से जोश पैदा होती है. धरातल पर काम होने पर ही सबको दीखता है... जय हिन्द! जयहिंद के जवान और किसान!

-    -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 

Saturday, 7 January 2017

ओम पुरी - एक महान अभिनेता

अभिनय के बादशाह ओम पुरी का यूं चले जाना, मानो उन्हें मौत की पहले से खबर थी! वो शख्सियत जो अनजानों से भी यूं गले मिले, जैसे कोई अपना अजीज हो. किरदार यूं निभाए कि मानो हकीकत हो. थिएटर से लेकर पर्दे तक बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड, यहां तक कि समानांतर फिल्मों से व्यावसायिक फिल्मों तक में धाकदार अभिनय कर देश-विदेश में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया.
उस महान अभिनेता ओमपुरी का अचानक यूं चले जाना सबको हतप्रभ कर गया. शायद इसलिए भी कि मृत्यु को लेकर उन्होंने जो कहा था, सत्य हो गया! कितना अजीब संयोग था, मानो उन्हें अपनी मौत की खबर थी और जैसी जिंदगी चाही, वैसी जी ली. हां, मौत भी वही मिली जिसकी उन्होंने कामना की थी. मार्च 2015 में उन्होंने छत्तीसगढ़ में बीबीसी के लिए एक साक्षात्कार में कहा था, “मृत्यु का भय नहीं होता, बीमारी का भय होता है. जब हम देखते हैं कि लोग लाचार हो जाते हैं, बीमारी की वजह से दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं. ऐसी हालत से डर लगता है. मृत्यु से डर नहीं लगता. मृत्यु का तो आपको पता भी नहीं चलेगा. सोए-सोए चल देंगे. (मेरे निधन के बारे में) आपको पता चलेगा कि ओम पुरी का कल सुबह 7 बजकर 22 मिनट पर निधन हो गया.यह वाकई सच हो गया. ग़ौरतलब है कि ओम पुरी का निधन शुक्रवार(06.01.2017) सुबह ही हुआ है। जो वक़्त उन्होंने मज़ाक़ में मिसाल के तौर पर बताया था, तक़रीबन उससे कुछ मिनट पहले या बाद में। जैसे उन्हें इस बात का अहसास हो कि कैसे इस जहां से रुख़सत होना है. उन्होंने मृत्यु की पूर्वसंध्या पर अपने बेटे ईशांत को भी फोन किया और कहा कि मिलना चाहते हैं. अफसोस! सुबह हुई कि वो जा चुके थे. घर पर अकेले थे, न किसी सेवक को मौका दिया और न किसी की मदद का इंतजार. बिस्तर पर बेजान शरीर और पीछे बस यादें ही यादें
उन्होंने खुद को उस दौर में फिल्मों में स्थापित किया, जब सफलता के लिए सुंदर चेहरों का बोलबाला था. साफ और सीधा कहें तो बदशक्ल सूरत की भी धाक, जिसने मंच से लेकर बड़े और छोटे पर्दे पर जमाकर न जाने कितनों को प्रेरित किया, मौका दिया, जिंदगी बदल दी, कहां से कहां पहुंचा दिया.  ओम पुरी ने फिल्मी अभिनय की शुरुआत मराठी फिल्म घासीराम कोतवालसे की. विजय तंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी इस फिल्म का निर्देशन के. हरिहरन और मनी कौल ने किया था. पद्मश्री सम्मान, बेस्ट एक्टर अवार्ड सहित तमाम पुरस्कारों, सम्मानों से सम्मानित ओम पुरी एक जिंदा दिल और भावुक इंसान थे. उनके चाहने वाले और फिल्म इंडस्ट्री के सहयोगी, मित्र इस शख्सियत को मिले सम्मानों और पुरस्कारों को ऐसी प्रतिभा के लिए नाकाफी मानते हैं.
उनके प्रशंसकों का मानना है कि ओम पुरी सम्मानों से कहीं आगे थे. पाकिस्तान में भी वहां के लोग और फिल्म इंडस्ट्री ओम के चले जाने से आहत हैं, सदमे में हैं. कोई उन्हें लीजेंड बता रहा है तो कोई भारत-पाकिस्तान रिश्तों का सच्चा एम्बेसेडर तो कोई दोनों के लिए शांतिदूत. बहुत-सी फिल्मों में ओमपुरी ने पाकिस्तानी किरदार की भूमिका भी निभाई है. ओम पुरी अपने आप में एक संपूर्ण अभिनेता थे. उन्होंने हर वो अभिनय किया, जो उन्हें पसंद आया. चरित्र अभिनेता से लेकर खलनायक और कॉमेडियन की भूमिका को भी उन्होंने इस कदर निभाया कि एक दौर वो भी आया कि ये भेद कर पाना भी मुश्किल होने लगा कि उन्हें किस श्रेणी में रखा जाए.
ओम पुरी ने ब्रिटेन और अमेरिका की फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया है. वो अपने अभिनय के हर रोल की बड़ी ईमानदारी और समर्पण से एकदम जीवंत सा जीते थे. चाहे रिचर्ड एटनबरो की चर्चित फिल्म गांधीमें छोटी सी भूमिका हो या अर्धसत्यमें पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार रहा हो. टेलीविजन की दुनिया में भी वो हमेशा दमदार अभिनय में नजर आए, चाहे भारत एक खोज’, ‘यात्रा’, ‘मिस्टर योगी’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘सी हॉक्सरहा हो या तमसऔर आहट’. उनकी काबिलियत का सभी ने लोहा माना.
कलात्मक फिल्मों में भी उनका कोई सानी नहीं रहा. उन्होंने 300 फिल्मों में काम किया, जिनमें कई बेहद सफल और चर्चित रहीं. अर्धसत्य’, ‘आक्रोश’, ‘माचिस’, ‘चाची 420’, ‘जाने भी दो यारों’, ‘मकबूल’, ‘नरसिम्हा’, ‘घायल’, ‘बिल्लू’, ‘चोर मचाए शोर’, ‘मालामालऔर जंगल बुकमें भला ओम पुरी का किरदार किसे याद न होगा. सनी देओल की घायल रिटर्न्‍सउनकी आखिरी फिल्म थी.
भले ही वो आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के समर्थन का मौका हो या सरहद पर दिए बयान के बाद माफी मांगना हो या फिर भारत-पाकिस्तान के 95 प्रतिशत लोगों को धर्मनिरपेक्ष कहना, आमिर खान की पत्नी के देश छोड़ने की बात पर लताड़ हो, बीफ मसले पर लाखों डॉलर कमाने और पाखंड से जोड़ने की बात हो, ‘नक्सलियों का फाइटरकहने जैसी बातें, यह सब एक दमदार और काबिल इंसान ही कह सकता है. किसी बात को वे बेबाकी से कह जाते थे और गलती का अहसास होने पर माफी भी मांग लेते थे. ब्यक्तिगत जीवन में वे सफल नहीं कहे जा सकते क्योंकि वे अपनी पत्नी से अलग होकर रहने लगे. ओम पुरी ने पहली शादी 1991 में सीमा कपूर से की थी, सीमा एक्टर और होस्ट अन्नू कपूर की बहन हैं और वह शादी सिर्फ आठ महीने ही चल सकी थी. 1993 में वो सीमा से अलग होकर नंदिता के साथ परिणय सूत्र में बंध गये थे. नंदिता से उनका एक बेटा भी है - इशान पुरी. नंदिता से भी उन्होंने बीते साल तलाक ले लिया था.  नंदिता पुरी एक पत्रकार और लेखिका हैं. उन्होंने ओम पुरी की जीवनी भी लिखी है- 'Unlikely Hero' ओम पुरी के इस तरह अचानक चले जाने से इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गयी है.
आम आदमी का अभिनय करते करते आम आदमी पार्टी से लगाव सा हो गया था. वे आम आदमी पार्टी का समर्थन करते थे, ऐसी राय भी वे व्यक्त कर चुके थे. कई बार पत्रकारों के उलटे-सीधे सवाल का भी बेबाकी या कहें आवेश में जवाब दे देते थे, जिसका बाद में अफ़सोस होता था. गलती का अहसास होने पर माफी भी मांग लेते थे. एक सरल और भावुक आदमी जल्दी उत्तेजित हो जाता है और आवेश में कुछ ऐसे शब्द निकल जाते हैं जिससे जनभावना या सामनेवाले की भावना आहत हो सकती है, हाँ माफी भी वही मांगता है जिसे गलती का अहसास हो. माफी मांगने से आदमी छोटा नहीं हो जाता बल्किं उसका कद बढ़ जाता है. इंसान से गलतियां होती है, गलती का अहसास होना भी इंसानियत की श्रेणी में ही कहा जायेगा.
अम्बाला में स्थित पंजाबी परिवार में 18 अक्टूबर 1950 को एक इंडियन आर्मी पर्सनल के घर जन्म लिया ओम प्रकाश पुरी ने! जिन्हें आप और हम ओम पुरी के नाम से जानतें हैं. 1977 में हिंदी सिनेमा में कदम रखने वाले ओम पुरी ने इंडस्ट्री को बहुत सी बेहतरीन फ़िल्में दी. उनके एक से बढ़कर एक परफॉरमेंस ने उन्हें सबका फेवेरेट बना दिया। उनके बारे में कुछ अनकही बातें हैं जो हर कोई नहीं जानता!
1) ओमपुरी ने ही तय की अपनी जन्म तारीख़! जी हां! दरअसल, उनके पास कोई बर्थ सर्टिफिकेट रिकॉर्ड नहीं था, उनके परिवार वाले को भी उनकी जन्म तारीख़ याद नहीं थी. उनकी मां ने उन्हें बताया था कि वो दशहरे के दो दिन बाद जन्में थे. जब उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया तो उनके अंकल ने उनकी जन्म तारीख़ 9 मार्च 1950 दर्ज करवाई. पर, जब ओम मुंबई आए तो उन्होंने ये पता लगाया कि 1950 में दशहरा कौन सी तारीख़ को आया था और फिर उन्होंने तय किया कि उनका जन्मदिन 18 अक्टूबर 1950 को है.
2) ओमपुरी को पद्म श्री अवार्ड और दो बार नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया था. इसके अलावा उन्हें ब्रिटिश फिल्म इंडस्ट्री से ऑफिसर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर का ख़िताब भी मिला था। इन्होने मराठी, कन्नड, पंजाबी, मलयालम, तेलगू, उर्दू ,अमेरिकन, ब्रिटिश की कई फिल्मों में काम किया और हाल ही में साल 2016 में उन्होंने अपना पाकिस्तानी डेब्यू भी किया था.
3) ओम पुरी का कहना था कि नसीर ने उन्हें मांसाहारी बनाया. एनएसडी के समय नसीर ने उनका शकाहारी होने का व्रत तोडा और ऐसे उनकी दोस्ती भी गहरी हुई. दोनों ने एक साथ आक्रोश, द्रोह काल, स्पर्श, जाने भी दो यारो, अर्ध सत्य और भी कई फिल्मों में काम किया.
4) ओम को इंग्लिश नहीं आती थी और उन्हें इस बात की चिढ़ भी थी. एनएसडी के समय नसीर एक कान्वेंट स्कूल से थे और ओम पंजाबी मीडियम से! लेकिन, ओम ने अपनी इंग्लिश पर खासा मेहनत की और 20 से भी ज्यादा इंग्लिश फिल्मों में काम किया.
5) ओम को यह परेशानी भी थी कि लोग उनके लुक्स के बारे में क्या कहेंगे? पर इसका सामना भी उन्होंने किया. उन्हें कहा जाता था कि बड़े नाक और इस चेहरे के साथ वो हिंदी सिनेमा में कभी अपनी जगह नहीं बना पाएंगे! -
2015 में एक कार्यक्रम में भाग लेने जमशेदपुर आये थे तब भी वे आम आदमी की तरह बिष्टुपुर बाजार के 'बाटा' दुकान से चप्पल खरीदे थे और 'छप्पन भोग' से मिठाइयाँ खरीदी थी. ऐसी शख्सियत को भूल पाना नामुमकिन है. सभी किरदारों को एकसाथ देखना, समझना, सीखना और स्वीकारना ही ओम पुरी को असली श्रद्धांजलि होगी. जय हिन्द! जय भारत!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर