लखनऊ के मोहन लाल गंज क्षेत्र के स्कूरल में PGI में कार्यरत युवती की सामूहिक बलात्कार के बाद हुई निर्मम हत्या से कानून ब्यवस्था के साथ ही हमारी सभ्यता और सामाजिक ब्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह है. जिस तरीके से युवती के संवेदनशील अंगों में हमला किया गया है, उससे आश्चर्य होता है कि इंसान किसी इंसान के साथ ही इतना घृणित , हिंस्र और क्रूर ब्य्वहार कर सकता है. असहाय निर्वस्त्रा युवती रात भर तडपती रही और शरीर से पूरा खून बह जाने पर उसकी मृत्यु हो गयी. ऐसी अमानवीय घटनायें सिर्फ कानून और पुलिस के बलबूते नहीं रोकी जा सकतीं. समाज के जागरूक लोगों को भी पूरी गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ आगे आना होगा. घटना स्थल के पास ही एक गांव में बिल क्लिंटन का कार्यक्रम था. आखिर पूर्व अमेरिकी राष्ट्पति भारत के बारे में क्या धारणा ले कर गये होंगे.
उत्तर प्रदेश के लखनऊ PGI में कार्यरत एक युवती के साथ गंग रेप हुआ और उसके प्राइवेट पार्ट को चाकुओं से गोद डाला गया. खून इतना बहा कि वो बेचारी मर गयी. अभीतक प्राप्त जानकारियों के अनुसार युवती दो बच्चों की माँ और विधवा है. अपने पति को बचने के लिएये अपनी एक किडनी दान दे चुकी थी पर उसे नहीं बचाया जा सका था. दो बच्चों की परवरिश के लिए ही वह PGI में नौकरी कर रही थी. उसे किसी जानकार व्यक्ति ने ही रात को बुलाया था, जिसपर बिश्वास कर ही वह गयी थी, पर वह लौट न सकी. अपराधी की गिरफ्तारी की बात चल रही है, पूछताछ जारी है. मुआवजे का ऐलान कर दिया गया है. अब राज्यपाल के पास उत्तर परदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव सफाई देने जाते हैं. जबकि श्री मुलायम सिंह के अनुसार उत्तर प्रदेश की २१ करोड़ की आबादी के हिशाब से ऐसी घटनाएँ बहुत कम हैं.
बंगलौर में ६ साल की स्कूली छात्रा से सामूहिक बलात्कार. इस रेप पर चर्चा के दौरान कर्णाटक के मुख्य मंत्री सोते पाए गए. अब बंगलौर भी दिल्ली की तरह उबल पड़ा है. बिहार के जहानाबाद में एक राजद नेत्री को पुलिस के सामने निर्वस्त्र कर इतन पीटा गया कि वह पटना के पी एम सी एच में मौत से जूझ रही है. उत्तर प्रदेश के ही औरेया में पति द्वारा पत्नी को जलाकर मारने की कोशिश, राजस्थान के भीलवाड़ा में खेत में काम करने वाली महिला को रेप के बाद कुँए में डाला गया, कानपुर में महिला को रेप के बाद मर डाला गया और उसके सर और नाजुक अंगों को भी क्षत विक्षत किया गया, झाड़खंड के पश्चिमी सिंघभुम में आठवीं की छात्रा के साथ शिक्षक द्वरा बलात्कार. …हर राज्य, शहरों गावों में दरिंदगी की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही है. सरकारें खामोश है, संसद और विधान सभाओं में आवाज उठाई जाती है. नए कानून पास होते हैं. मामला न्यायालय में जाता हैं, मुकदमे पर कार्रवाई होती है. नतीजा – कुछ नहीं.
हैरत की बात ये है कि उच्च अदालत ने बहु चर्चित ‘दिल्ली रेप केस’ के मुजरिमो की फांसी पर रोक लगा दी है. ऐसे में बुरी मानसिकता से ग्रसित सामाज में क्या सन्देश जाएगा.
हैरत की बात और है कि इस प्रकार की घटनाएँ बढ़ती जा रही है और लोग सिर्फ टी. वी. या फेसबुक पर चर्चा में ब्यस्त हैं. कोई आदमी उठकर इसके प्रतिकार के लिए खड़ा नहीं हो रहा. सिर्फ भीड़ के साथ मोमबत्ती जलने के सिवा कोई कुछ नहीं कर रहा. जी न्यूज़ की मुहीम ने देश के कई शहरों में ‘ऑपरेशन धृतराष्ट्र’ चलाकर दिखला दिया कि कैसे लोग इस तरह की घटनाओं को देख-सुनकर भी धृतराष्ट्र बने रहते हैं. हमारे सामने किसी भी महिला को रेप किया जा रहा हो और हम उसे या तो चुचाप देखते रहते हैं या वहां से भाग जाने की कोशिश करते हैं. क्या एक बार के लिए भी हम यह नहीं सोच सकते कि ऐसी घटना हमारे घर की की किसी महिला सदस्य के साथ हो तब भी क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे.
महिलाएं ऑफिस में, घरों में, कार्यस्थलों में रस्ते में, सडकों पर, ट्रेनों में, बसों में, कारों में, स्कूलों में, थानों में हर जगह दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं और हम सब खामोश हैं. क्या यही मानवता है और यही मानवाधिकार कानून. विभिन्न प्रकार के ब्यवसायिक विज्ञापनों में. फिल्मों, में टी. वी. सीरियल्स में भी यही कुछ दिखलाया जाता है, यहाँ तक कि हास्य कार्यक्रमों में भी महिलाओं पर फूहड़ चुटकियाँ ली जाती है और हम आनंद लेकर हंसते हैं.
अब तो हद हो गयी सहनशक्ति की सीमा की. घटनाएँ सिर्फ समाचारों की सुर्खियाँ बनती हैं और फिर सबकुछ सामान्य. महिलाओं स्थिति जानवरों से भी बदतर हो गयी है. आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं. क्या किसी भी महिला नेत्री, वकील, जज, पुलिस अधिकारी, सेलिब्रिटी, सी. ई. ओ. का खून नहीं खौलता. क्या उनके मन में यह ख्याल नहीं आता कि इस तरह की घटनाएँ उनके साथ भी हो सकती है या होती रही हैं. एक महिला जज के साथ भी पिचले दिनों दुष्कर्म का प्रयास किया गया था. महिला पुलिसकर्मी भी अपने सहकर्मी की शिकार होती रही हैं. ऑफिस असिस्टेंट, नर्स, विमान परिचारिका, गृहणियां, बच्चियां, मजदूरिने, भिखारिने, छात्राएं, महिला सरपंच आदि सभी इस पारकर की घटनाओं की शिकार होती रही हैं. ५ साल की बच्ची से लेकर ८० साल की बृद्धा तक के साथ भी जुल्म होता रहा है और हम सभी खामोश हैं.
कठोरतम क़ानून, त्वरित न्याय, जिसके अंतर्गत ऐसी व्यवस्था हो कि न्याय अविलम्ब हो. सशस्त्र महिला पुलिस की संख्या में वृद्धि, अपनी सेवाओं में लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों का निलंबन, निष्पक्ष न्याय मेरे विचार से सरकारी उपाय हो सकते हैं. जब तक हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया इतनी सुस्त रहेगी, अपराधी को कोई भी भय नहीं होगा. अतः न्यायिक प्रक्रिया में अविलम्ब सुधार अपरिहार्य है, अन्यथा तो आम स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं और सही समय पर दंड न मिलने पर पीड़िता और उसके परिवार को तो पीड़ा सालती ही है, शेष कुत्सित मानसिकता सम्पन्न अपराधियों को भी कुछ चिंता नहीं होती.
दंड तो उसको मिलना ही साथ ही उस भयंकर दंड का इतना प्रचार हो कि किसी को दुबारा ऐसे दुष्कर्म करने की हिम्मत तक न हो. खाड़ी देशों में सख्त कानून है और उसका पालन भी किया जाता है इसलिए वहां इस तरह की घटनाएँ निम्नतम स्तर पर हैं.
महिलाओं की आत्मनिर्भरता, साहस और कोई ऐसा प्रशिक्षण उनको मिलना चाहिए कि छोटे खतरे का सामना वो स्वयम कर सकें, विदेशों की भांति उनके पास मिर्च का पावडर या ऐसे कुछ अन्य आत्म रक्षा के साधन अवश्य होने चाहियें.
मातापिता को भी ऐसी परिस्थिति में लड़की को संरक्षण अवश्य प्रदान करना चाहिए. साथ ही संस्कारों की घुट्टी बचपन से पिलाई जानी चाहिए, जिससे आज जो वैचारिक पतन और एक दम मॉड बनने का जूनून जो लड़कियों पर हावी है, उससे वो मुक्त रह सकें.
ऐसे पुत्रों का बचाव माता पिता द्वारा किया जाना पाप हो अर्थात माता पिता भी ऐसी संतानों को सजा दिलाने में ये सोचकर सहयोग करें कि यदि पीडिता उनकी कोई अपनी होती तो वो अपराधी के साथ क्या व्यवहार करते, साथ ही सकारात्मक संस्कार अपने आदर्श को समक्ष रखते हुए बच्चों को दिए जाएँ.
एक महत्वपूर्ण तथ्य और ऐसे अपराधी का केस कोई अधिवक्ता न लड़े, समाज के सुधार को दृष्टिगत रखते हुए अधिवक्ताओं द्वारा इतना योगदान आधी आबादी के हितार्थ देना एक योगदान होगा.- (लेखिका निशा मित्तल के विचार)
महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रही है. स्त्री और पुरुष की बराबरी की बात हमेशा से की जाती रही है. फिर यह अन्याय क्यों?
जब तक त्वरित और सही न्याय नहीं होगा, ऐसी घटनाओं की बाढ़ आती ही रहेगी. क्या अब कोई महिला ‘फूलन’ देवी जैसी नहीं बन सकती? रूपम पाठक भी बन कर दिखला दो, इन वहशी लोगों को..ताकि ये अपनी वहशियाना हरकतों से बाज आयें.
बहरहाल ये उम्मीद की जानी चाहिए के तमाम सामाजिक, राजनीतिक, साह्त्यिक, बुद्धिजीवी, न्यायविद, प्रशासन में बैठे लोग ये सोचें और विचार करें कि क्या कुछ किया जाय ताकि महिलाओं पर अत्याचार कम/नगण्य हो. केवल चर्चा करने भर से ही कुछ नहीं होगा, ठोस कदम उठाये जाने चाहिए.
इधर दिल्ली में राजनीतिक हलचल जारी है. दिल्ली के लिए बजट में अरुण जेटली ने कुछ राहत दी है. शायद दिल्ली के अच्छे दिन आ जाएँ. उत्तराखंड में प्रकृति का कहर जारी है, लगता है पिछले साल की ही तरह इस साल भी भगवान अपने भक्तों से नाराज हैं.
जय हिन्द! जय नारी शक्ति! ॐ नम: शिवाय!
जवाहर लाल सिंह,जमशेदपुर
उत्तर प्रदेश के लखनऊ PGI में कार्यरत एक युवती के साथ गंग रेप हुआ और उसके प्राइवेट पार्ट को चाकुओं से गोद डाला गया. खून इतना बहा कि वो बेचारी मर गयी. अभीतक प्राप्त जानकारियों के अनुसार युवती दो बच्चों की माँ और विधवा है. अपने पति को बचने के लिएये अपनी एक किडनी दान दे चुकी थी पर उसे नहीं बचाया जा सका था. दो बच्चों की परवरिश के लिए ही वह PGI में नौकरी कर रही थी. उसे किसी जानकार व्यक्ति ने ही रात को बुलाया था, जिसपर बिश्वास कर ही वह गयी थी, पर वह लौट न सकी. अपराधी की गिरफ्तारी की बात चल रही है, पूछताछ जारी है. मुआवजे का ऐलान कर दिया गया है. अब राज्यपाल के पास उत्तर परदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव सफाई देने जाते हैं. जबकि श्री मुलायम सिंह के अनुसार उत्तर प्रदेश की २१ करोड़ की आबादी के हिशाब से ऐसी घटनाएँ बहुत कम हैं.
बंगलौर में ६ साल की स्कूली छात्रा से सामूहिक बलात्कार. इस रेप पर चर्चा के दौरान कर्णाटक के मुख्य मंत्री सोते पाए गए. अब बंगलौर भी दिल्ली की तरह उबल पड़ा है. बिहार के जहानाबाद में एक राजद नेत्री को पुलिस के सामने निर्वस्त्र कर इतन पीटा गया कि वह पटना के पी एम सी एच में मौत से जूझ रही है. उत्तर प्रदेश के ही औरेया में पति द्वारा पत्नी को जलाकर मारने की कोशिश, राजस्थान के भीलवाड़ा में खेत में काम करने वाली महिला को रेप के बाद कुँए में डाला गया, कानपुर में महिला को रेप के बाद मर डाला गया और उसके सर और नाजुक अंगों को भी क्षत विक्षत किया गया, झाड़खंड के पश्चिमी सिंघभुम में आठवीं की छात्रा के साथ शिक्षक द्वरा बलात्कार. …हर राज्य, शहरों गावों में दरिंदगी की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही है. सरकारें खामोश है, संसद और विधान सभाओं में आवाज उठाई जाती है. नए कानून पास होते हैं. मामला न्यायालय में जाता हैं, मुकदमे पर कार्रवाई होती है. नतीजा – कुछ नहीं.
हैरत की बात ये है कि उच्च अदालत ने बहु चर्चित ‘दिल्ली रेप केस’ के मुजरिमो की फांसी पर रोक लगा दी है. ऐसे में बुरी मानसिकता से ग्रसित सामाज में क्या सन्देश जाएगा.
हैरत की बात और है कि इस प्रकार की घटनाएँ बढ़ती जा रही है और लोग सिर्फ टी. वी. या फेसबुक पर चर्चा में ब्यस्त हैं. कोई आदमी उठकर इसके प्रतिकार के लिए खड़ा नहीं हो रहा. सिर्फ भीड़ के साथ मोमबत्ती जलने के सिवा कोई कुछ नहीं कर रहा. जी न्यूज़ की मुहीम ने देश के कई शहरों में ‘ऑपरेशन धृतराष्ट्र’ चलाकर दिखला दिया कि कैसे लोग इस तरह की घटनाओं को देख-सुनकर भी धृतराष्ट्र बने रहते हैं. हमारे सामने किसी भी महिला को रेप किया जा रहा हो और हम उसे या तो चुचाप देखते रहते हैं या वहां से भाग जाने की कोशिश करते हैं. क्या एक बार के लिए भी हम यह नहीं सोच सकते कि ऐसी घटना हमारे घर की की किसी महिला सदस्य के साथ हो तब भी क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे.
महिलाएं ऑफिस में, घरों में, कार्यस्थलों में रस्ते में, सडकों पर, ट्रेनों में, बसों में, कारों में, स्कूलों में, थानों में हर जगह दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं और हम सब खामोश हैं. क्या यही मानवता है और यही मानवाधिकार कानून. विभिन्न प्रकार के ब्यवसायिक विज्ञापनों में. फिल्मों, में टी. वी. सीरियल्स में भी यही कुछ दिखलाया जाता है, यहाँ तक कि हास्य कार्यक्रमों में भी महिलाओं पर फूहड़ चुटकियाँ ली जाती है और हम आनंद लेकर हंसते हैं.
अब तो हद हो गयी सहनशक्ति की सीमा की. घटनाएँ सिर्फ समाचारों की सुर्खियाँ बनती हैं और फिर सबकुछ सामान्य. महिलाओं स्थिति जानवरों से भी बदतर हो गयी है. आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं. क्या किसी भी महिला नेत्री, वकील, जज, पुलिस अधिकारी, सेलिब्रिटी, सी. ई. ओ. का खून नहीं खौलता. क्या उनके मन में यह ख्याल नहीं आता कि इस तरह की घटनाएँ उनके साथ भी हो सकती है या होती रही हैं. एक महिला जज के साथ भी पिचले दिनों दुष्कर्म का प्रयास किया गया था. महिला पुलिसकर्मी भी अपने सहकर्मी की शिकार होती रही हैं. ऑफिस असिस्टेंट, नर्स, विमान परिचारिका, गृहणियां, बच्चियां, मजदूरिने, भिखारिने, छात्राएं, महिला सरपंच आदि सभी इस पारकर की घटनाओं की शिकार होती रही हैं. ५ साल की बच्ची से लेकर ८० साल की बृद्धा तक के साथ भी जुल्म होता रहा है और हम सभी खामोश हैं.
कठोरतम क़ानून, त्वरित न्याय, जिसके अंतर्गत ऐसी व्यवस्था हो कि न्याय अविलम्ब हो. सशस्त्र महिला पुलिस की संख्या में वृद्धि, अपनी सेवाओं में लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों का निलंबन, निष्पक्ष न्याय मेरे विचार से सरकारी उपाय हो सकते हैं. जब तक हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया इतनी सुस्त रहेगी, अपराधी को कोई भी भय नहीं होगा. अतः न्यायिक प्रक्रिया में अविलम्ब सुधार अपरिहार्य है, अन्यथा तो आम स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं और सही समय पर दंड न मिलने पर पीड़िता और उसके परिवार को तो पीड़ा सालती ही है, शेष कुत्सित मानसिकता सम्पन्न अपराधियों को भी कुछ चिंता नहीं होती.
दंड तो उसको मिलना ही साथ ही उस भयंकर दंड का इतना प्रचार हो कि किसी को दुबारा ऐसे दुष्कर्म करने की हिम्मत तक न हो. खाड़ी देशों में सख्त कानून है और उसका पालन भी किया जाता है इसलिए वहां इस तरह की घटनाएँ निम्नतम स्तर पर हैं.
महिलाओं की आत्मनिर्भरता, साहस और कोई ऐसा प्रशिक्षण उनको मिलना चाहिए कि छोटे खतरे का सामना वो स्वयम कर सकें, विदेशों की भांति उनके पास मिर्च का पावडर या ऐसे कुछ अन्य आत्म रक्षा के साधन अवश्य होने चाहियें.
मातापिता को भी ऐसी परिस्थिति में लड़की को संरक्षण अवश्य प्रदान करना चाहिए. साथ ही संस्कारों की घुट्टी बचपन से पिलाई जानी चाहिए, जिससे आज जो वैचारिक पतन और एक दम मॉड बनने का जूनून जो लड़कियों पर हावी है, उससे वो मुक्त रह सकें.
ऐसे पुत्रों का बचाव माता पिता द्वारा किया जाना पाप हो अर्थात माता पिता भी ऐसी संतानों को सजा दिलाने में ये सोचकर सहयोग करें कि यदि पीडिता उनकी कोई अपनी होती तो वो अपराधी के साथ क्या व्यवहार करते, साथ ही सकारात्मक संस्कार अपने आदर्श को समक्ष रखते हुए बच्चों को दिए जाएँ.
एक महत्वपूर्ण तथ्य और ऐसे अपराधी का केस कोई अधिवक्ता न लड़े, समाज के सुधार को दृष्टिगत रखते हुए अधिवक्ताओं द्वारा इतना योगदान आधी आबादी के हितार्थ देना एक योगदान होगा.- (लेखिका निशा मित्तल के विचार)
महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रही है. स्त्री और पुरुष की बराबरी की बात हमेशा से की जाती रही है. फिर यह अन्याय क्यों?
जब तक त्वरित और सही न्याय नहीं होगा, ऐसी घटनाओं की बाढ़ आती ही रहेगी. क्या अब कोई महिला ‘फूलन’ देवी जैसी नहीं बन सकती? रूपम पाठक भी बन कर दिखला दो, इन वहशी लोगों को..ताकि ये अपनी वहशियाना हरकतों से बाज आयें.
बहरहाल ये उम्मीद की जानी चाहिए के तमाम सामाजिक, राजनीतिक, साह्त्यिक, बुद्धिजीवी, न्यायविद, प्रशासन में बैठे लोग ये सोचें और विचार करें कि क्या कुछ किया जाय ताकि महिलाओं पर अत्याचार कम/नगण्य हो. केवल चर्चा करने भर से ही कुछ नहीं होगा, ठोस कदम उठाये जाने चाहिए.
इधर दिल्ली में राजनीतिक हलचल जारी है. दिल्ली के लिए बजट में अरुण जेटली ने कुछ राहत दी है. शायद दिल्ली के अच्छे दिन आ जाएँ. उत्तराखंड में प्रकृति का कहर जारी है, लगता है पिछले साल की ही तरह इस साल भी भगवान अपने भक्तों से नाराज हैं.
जय हिन्द! जय नारी शक्ति! ॐ नम: शिवाय!
जवाहर लाल सिंह,जमशेदपुर
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