Tuesday, 1 July 2014

गंगा माँ का शोधन या पुनर्जीवन.

पुराणों के अनुसार भगवान के बिष्णु के अंगूठे से निकली गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में सुरक्षित थी. राजा सगर के वंशज भगीरथ के अथक प्रयास और शिव जी की कृपा से गंगा कैलाश पर्वत से होते हुए पृथ्वी पर आई और बंगाल की खाड़ी में जा मिली, जिससे कपिल मुनि की क्रोधाग्नि जले राजा सगर के ६०,००० पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई. आज भी गंगा मोक्षदायिनी ही बनी हुई है. हिन्दू धर्म अनुयायी के सभी मृत शरीर की अस्थियाँ गंगा में ही विसर्जित की जाती है, मुक्ति के लिए.
पतित पावनी गंगा आज स्वयं प्रदूषण की शिकार होकर मैली हो गयी है. अब इसे साफ़ कर या पुनर्जीवित कर निर्मल गंगा बनाने का अथक प्रयास जारी है. गंगा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण, इसके प्रवाह में अवरोध, कल-कारखानों का प्रदूषित ठोस और अवशिष्ट तरल पदार्थ हैं, इसके अलावा इनके किनारे बसे शहरों, गांवों के नालों का प्रवाह भी, जो बिना संशोधित किये गंगा में छोड़ दिया जाता है. इसके अलावा विभिन्न पशुओं, मनुष्यों का शव भी है, जिसे सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है.
गंगा को साफ़ करने के अनेक प्रयास हुए, बहुतों ने तपस्या की, अनशन किये, आरती की और गंगा के किनारे का भ्रमण किया, सौगंध खाए, गंगा एक्सन प्लान बनाई, इसे राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया. करोड़ों के वारे न्यारे हुए, नतीजा वही धाक के तीन पात. अब एक बार पुन: जोर शोर से अभियान चला है. श्री मोदी जी को गंगा माँ ने ही बनारस में बुलाया था. उन्होंने अपनी ऐतिहासिक विजय के बाद गंगा माँ की आरती की और इसे निर्मल बनाने क बीरा उठा लिया है. जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने भी पूर्व में काफी प्रयास किया है अब उन्हें यह महत्पूर्ण जिम्मेदारी भी दे दी गयी है कि वे अपने प्लान में सफल हों.
बहुत सारे मीडिया घराने भी इस प्रयास में आगे निकले हैं, जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सबको साथ लेने के लिए, आखिर जन जागरूकता ही तो परिवर्तन लाती है.
अब आइये कुछ आंकड़ों की बात करते हैं. ४००० मीटर की ऊँचाई पर गोमुख से निकलने वाली २५२५ किलोमीटर लम्बी गंगा नदी का क्षेत्रफल लगभग १० लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है. देश की ४३% जनसँख्या इसके प्रवाह क्षेत्र में रहती है.यह उत्तराखंड में ४५० कि.मी, उत्तर प्रदेश में १०० कि मी बिहार में ४०५ कि मी झाड़खंड में ४० कि मी, पशिचिम बंगाल में ५२० कि मी की यात्रा करती है इसके अलावा ११० कि मी की लम्बाई उत्तर पदेश और बिहार की सीमा रेखा में तब्दील है. 
नेसनल मिसन फॉर क्लीन गंगा के एक अधिकारी के अनुसार, गंगा एक्सन प्लान -१, गंगा एक्सन प्लान -२, और एन जी आर बी ए पर अब तक १७०० करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. हालाँकि संसद की एक स्थाई समिति के अनुसार अब तक ९००० करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. यह सब रकम सीवर की गन्दगी के शोधन पर खर्च हुए हैं लेकिन स्थिति में सुधर कुछ खास नहीं हुआ. लगभग २६००० मिलियन लीटर गन्दगी बिना साफ़ किये हुए रोजाना गंगा में गिर रही है.
हरिद्वार से निकलते ही कई परियोजनाओं के लिए बने बैराज इसे रोक लेते हैं. बनारस तक घरेलू गन्दगी साथ ही इनकी सहायक नदियों का भी गन्दा पानी इससे में गिरता है. गंगा का जायजा लेने गयी संसद की स्थाई समिति के अनुसार तीर्थराज प्रयाग और वाराणसी में गंगाजल पीने लायक तो दूर नहाने योग्य भी नहीं है. फिर भी करोड़ों लोग रोज गंगा स्नान करते ही हैं. गंगा का पवित्र जल विभिन्न पूजा विधि में भी उपयोग में लाया ही जाता है.    
जहाँ बैराज बन चुके हैं उन्हें तोड़कर यथास्थिति में लाना शायद संभव न हो क्योनी कई विद्युत् परियोजनाएं इनसे चल रही है और विकास की राह में अपना अहम् योगदान कर रही है. पर नदियों में प्रवाहित होनेवाला सीवर के गंदे जल को शोधन कर पुनरुपयोग(कृषि कार्यों में, कारखानों में सफाई हेतु) में लाया जा सकता है. कारखानों के प्रदूषित जल का भी शोधन कर पुनरुपयोग में लाया जा सकता है या विभिन्न रसायनों और गंदगियों से मुक्त कर तब नदियों में छोड़ा जा सकता है.
नदी का अर्थ सिर्फ पानी नहीं है. इसकी अपनी एक पारिस्थितिकी होती है. इसके प्रवाह को अखंडित किये बिना जलीय जंतुओं के शरणस्थल के रूप में भी देखा जाना चाहिए. जलीय जंतु, मछलियों, कछुओं, मगरमच्छों, डोल्फिनों के साथ साथ सैंकड़ों तरह के पौधों और जानवरों को भी पुनर्स्थापित करना होगा, जो इनकी अशुद्धियों को दूर करने में सहायक होते हैं.
गंगा को साफ़ रखने के क्रम में उसकी सहायक नदियों की भी स्वच्छता का ध्यान रखना होगा, ताकि उनकी गन्दगी से गंगा प्रदूषित न हो.   
धार्मिक आस्था रखने वाले लोग गंगा में स्नान के लिए प्रवेश करने से पहले बाहर में ही मल-मूत्र त्याग कर लेते हैं, ताकि नदी की पवित्रता और स्वच्छता बनी रहे. हम सब को यह मिलकर प्रयास करने होंगे/संकल्प लेने होंगे कि मैं गंगा को या किसी भी नदी को प्रदूषित नहीं कर रहा हूँ. इसके लिए किसी भी प्रकार के कचरे को नदी में फेंकने से बचना चाहिए तभी सारे प्रयास सफल होंगे. सरकारी तंत्र मनोयोग से काम करे और भ्रष्टाचार से बचे, मीडिया हर पहलू को दिखाए तभी योजनायें सफल होंगी अन्यथा योजनायें तो पहले भी बनती रही हैं और सरकारी यानी जनता के धन का बंटाधार होता रहा है.   
निष्कर्ष यही है कि केवल कागज पर योजनायें बनाने और शब्दों के मायाजाल से बाहर निकलकर धरातल पर काम करने होंगे. जन चेतना जागृत करनी होगी, जो वास्तव में गंगा या अन्य नदियों को भी माँ मानकर उसे पूजे, साफ़ रक्खे और साफ़ रखने में मदद करे.  
“इतनी ममता नदियों से भी जहाँ माता कहके बुलाते हैं” की हमारी परंपरा को कायम रखने के लिए कुछ तो कर्तव्य हमारा भी बनता है. हमारे देश के प्रधान मंत्रियों में जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गाँधी, वी पी सिंह, चन्द्रशेखर, अटल बिहारी बाजपेयी आदि का गंगा से नजदीकी का सम्बन्ध रहा है. सबने कुछ न कुछ किया है. अब श्री नरेंद्र मोदी जो गंगा की नगरी वाराणसी से चुनाव जीतकर आए हैं, उन्होंने विशेष संकल्प भी लिया है और अपने संकल्प को पूरा करने हेतु गंगा सफाई अभियान या उसे पुनर्जीवित करने के लिए संकल्परत साध्वी उमा भारती को जल संशाधन, नदी विकास के साथ गंगा सफाई का भी विभाग सौंपा है. उम्मीद है, वह अपनी और प्रधान मंत्री की उम्मीदों पर खरी उतरेंगी. समस्त शुभकामनाओं के साथ ...

जवाहर लाल सिंह. जमशेदपुर.               

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