Saturday, 12 July 2014

दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है

दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
सुख दुःख से विरक्त, संत मन जैसा है.
झुलसे न ग्रीष्म में भी, ओस को सम्हाल रही  
ढांक ले मही को मुदित, पहली बौछार में ही
दूब अग्र तुंड को, चढ़ावे विप्र पूजा में,
जैसे हो नर बलि, स्वांग यह कैसा है ! दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
गाय चढ़े, चरे इसे, बकरियों भी खाती है,
खरगोश के बच्चे को, मृदुल दूब भाती है.
क्रीडा क्षेत्र में भी, बड़े श्रम से पाली जाती है
देशी या विदेशी मैच, कुचली यही जाती है.
आम जन की गति, ऐसी ही होती है,
पिसे हर हाल में, प्रबंधन यह कैसा है. दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
गर्मी दुपहरी में भी ये हरी होती है
पहली फुहार पड़ते ही बड़ी होती है.
लोग बाग़ जाएँ, तब रास्ता बन जाता है
अगर जाना छोड़ दें, बिछौना बन जाता है
कुचलकर भी मुस्कुराए, जड़ दृढ़ कहलाये,
वंश वृधि का प्रतीक, सूक्ष्म चलन कैसा है. दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
खेतों खलिहानों में, दूब साफ़ होती है
खेतों की मेड़ों पर, दूब पास होती है
दूब अगर डूब जाय, चिंता नहीं करना
पानी निकलते ही, फिर से हरी होती है.
दुःख से न घबराये, घुटकर भी जीता रहे,
देखते सभी हैं, अदम्य घुटन जैसा है .. दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
पर्यावरण माह में, करने हो अगर स्वांग सिर्फ  
वातानुकूलित कक्ष में भी, दूब लगा सकते है.
मिट्टी संग दूब को, पत्थर पे बिछा सकते हैं.
पत्थर पर दूब उगा, मुहावरा बदल सकते हैं.
आम जन को भी, यह दूब सीख देती है.
बिना कुछ चूं-चपर, सब कुछ सह लेती है.
जितना भी हो विकास, आम ‘आम’ ही रहेगा
चूसे हुए रस की भांति, गुठली कहीं बहेगा  
उगे नए पेड़ कहीं, या फिर ये सड़ जाय
मिलेंगे ही आम बहुत, विशद विश्व ऐसा है.. दूब का चरित्र देखो. आम जन जैसा है,
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जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

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