Sunday, 20 July 2014

हाथी पर कुत्ता काटना

हाथी पर कुत्ता काटना एक मुहावरा है, जिसका मतलब होता है कि आदमी के पास अगर मुसीबत आनी होती है तो कहीं भी आ जाती है, चाहे वह कितनी ही सुरक्षित जगह में क्यों न हो. सती बिहुला के पति को सांप के काटने से मरना था तो अभेद्य दुर्ग में भी सांप घुंस गया था. एक बारात में कुछ लोग हाथी पर चढ़कर बारात गए थे. गांव में दरवाजा लगने(पारम्परिक रीति) के समय जब हाथी गांव की गलियों से गुजरा, ऊंचे नीचे पर हाथी के पैर पड़ने से सवार का डोलना स्वाभाविक था. हाथी सवार में से एक युवक संभलने के लिए अपना हाथ एक कम ऊँचाई वाले छप्पर पर टिकाया. उस छप्पर पर एक बिच्छू था और उसने युवक को डंक मार दिया. युवक दर्द से चीखने चिल्लाने लगा. संयोग से बाराती में ही एक डॉक्टर भी था, जो अपनी दवा का बॉक्स साथ लेकर आया था. उसने तुरंत बिच्छू के डंक के उपचार वाला इंजेक्शन लगाया और युवक का दर्द जाता रहा. पर दरवाजा लगने के समय जो जश्न नाचने का होता है, वह तो नहीं ही हुआ. मजा किरकिरा हो गया …
अब आइये इस भूमिका को आज के सन्दर्भ से जोड़कर देखा जाय.. चोर ज्यादातर कम रसूख वाले के यहाँ चोरी करते हैं, ताकि पकड़े न जाएँ. पर चोर अगर ज्यादा लोभी हो तो बड़े लोगों के यहाँ ही हाथ मारेगा. बड़े लोग मतलब गिरिराज बाबू जैसे, साधु यादव जैसे लोग. ये लोग काफी रसूख वाले तो होते ही हैं, साथ ही इतने मालदार होते हैं कि उन्हें पता भी नहीं होता कि उनके यहाँ कितने नगद और कितने जेवर आदि कीमती सामान हैं…ये तो ठहरे जनता के सेवक कोई आम जनता भी अपना पैसा, जेवरात आदि सुरक्षित जगह सोचकर इनके यहाँ रख आते हैं. बिहार की पुलिस अपराधियों को पकड़े या न पकड़े इन चोरों को तुरंत पकड़ लेती है… (अपना हिस्सा जो लेना होता है). लेकिन जब कोई बड़ा आदमी चोरी का शिकायत करे तो वहां तो अपनी छवि बेदाग साबित करनी ही होती है. अब चोर के यहाँ जितना माल मिला सब नेता जी का. नेता जी को भी नहीं पता कितना माल चोरी हुआ था. कुछ लाख का ही अंदाज रहा होगा और बरामद हो गया करोड़ों में. अब मुसीबत में कौन पड़ा, चोर, सिपाही या नेता जी? आप ही बताइये न? आपलोग तो बुद्धिजीवी ठहरे …इसलिए जवाब तो आपलोग ही देंगे न… . . अच्छा जाने दीजिये हम ही विश्लेषण किये देते हैं….गिरिराज बाबू ने क्या-क्या नहीं किया, नरेंद्र मोदी की नजर में आने के लिए…उनकी रैली में भीड़ जुटाने के लिए हजारों लोगों को निमंत्रण देकर बुलाया. उनको रहने खाने की ब्यवस्था की. सुशील मोदी को अपने कब्जे में रक्खा नितीश कुमार को गांव की झगड़ालू महिला तक कह डाला.तब टी वी चैनलों की महिला एंकरों ने उनसे सवाल जवाब कर डाला.- महिला का ही उदाहरण क्यों दिया? गांव की महिलाएं क्या झगड़ालू होती हैं? आदि आदि…
जब मोदी जी सरकार बनने ही वाली थी, तब मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की बात कहकर विवादों में आये …फिर भी बेचारे मंत्री नहीं बन सके…ऊपर से घर में चोरी और भाई भी दुश्मनी निकालने के लिए ही अपना पैसा उनके यहाँ रख छोड़ा था …बेचारे सफाई देते देते परेशान हैं…. चंदा का पैसा भी तो होता है.. भाई कितना हिशाब किताब रखेगा ..एगो-दुगो काम रहता है, जनसेवक का? ..इतनी सारी जनता! सब का दुःख दर्द का हिशाब रक्खें कि अपने पैसे का…बताइये न भला. पर्वतों के राजा हिमालय (गिरिराज) भी अतिबृष्टि से ढहते जा रहे है. दुर्दिन किसका पीछा छोड़ता है भला..
अब आइये साधु यादव के बारे में भी चर्चा कर लें. लालू जी के साले, लालू जी के पतन के बाद कांग्रेस में गए, फिर मोदी जी से जाकर मिले, पर कहीं से टिकट नहीं मिला तो अपनी बहन राबड़ी देवी के ही खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए और कुछ मान मनौवल के बाद अपना नॉमिनेशन वापस भी ले लिया. फ़िलहाल हैं तो बेरोजगार पर पैसे की कोई कमी नहीं. चोरी से ज्यादा माल मिलने को तैयार है. ऐसे ही साधु लोगों से यह भारत भूमि (बिहार) पवित्रता की सीढ़ी चढ़ती जा रही है. जय भारत जय बिहार !

Saturday, 19 July 2014

आखिर महिलाएं क्या करें?

लखनऊ के मोहन लाल गंज क्षेत्र के स्कूरल में PGI में कार्यरत युवती की सामूहिक बलात्कार के बाद हुई निर्मम हत्या से कानून ब्यवस्था के साथ ही हमारी सभ्यता और सामाजिक ब्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह है. जिस तरीके से युवती के संवेदनशील अंगों में हमला किया गया है, उससे आश्चर्य होता है कि इंसान किसी इंसान के साथ ही इतना घृणित , हिंस्र और क्रूर ब्य्वहार कर सकता है. असहाय निर्वस्त्रा युवती रात भर तडपती रही और शरीर से पूरा खून बह जाने पर उसकी मृत्यु हो गयी. ऐसी अमानवीय घटनायें सिर्फ कानून और पुलिस के बलबूते नहीं रोकी जा सकतीं. समाज के जागरूक लोगों को भी पूरी गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ आगे आना होगा. घटना स्थल के पास ही एक गांव में बिल क्लिंटन का कार्यक्रम था. आखिर पूर्व अमेरिकी राष्ट्पति भारत के बारे में क्या धारणा ले कर गये होंगे.
उत्तर प्रदेश के लखनऊ PGI में कार्यरत एक युवती के साथ गंग रेप हुआ और उसके प्राइवेट पार्ट को चाकुओं से गोद डाला गया. खून इतना बहा कि वो बेचारी मर गयी. अभीतक प्राप्त जानकारियों के अनुसार युवती दो बच्चों की माँ और विधवा है. अपने पति को बचने के लिएये अपनी एक किडनी दान दे चुकी थी पर उसे नहीं बचाया जा सका था. दो बच्चों की परवरिश के लिए ही वह PGI में नौकरी कर रही थी. उसे किसी जानकार व्यक्ति ने ही रात को बुलाया था, जिसपर बिश्वास कर ही वह गयी थी, पर वह लौट न सकी. अपराधी की गिरफ्तारी की बात चल रही है, पूछताछ जारी है. मुआवजे का ऐलान कर दिया गया है. अब राज्यपाल के पास उत्तर परदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव सफाई देने जाते हैं. जबकि श्री मुलायम सिंह के अनुसार उत्तर प्रदेश की २१ करोड़ की आबादी के हिशाब से ऐसी घटनाएँ बहुत कम हैं.
बंगलौर में ६ साल की स्कूली छात्रा से सामूहिक बलात्कार. इस रेप पर चर्चा के दौरान कर्णाटक के मुख्य मंत्री सोते पाए गए. अब बंगलौर भी दिल्ली की तरह उबल पड़ा है. बिहार के जहानाबाद में एक राजद नेत्री को पुलिस के सामने निर्वस्त्र कर इतन पीटा गया कि वह पटना के पी एम सी एच में मौत से जूझ रही है. उत्तर प्रदेश के ही औरेया में पति द्वारा पत्नी को जलाकर मारने की कोशिश, राजस्थान के भीलवाड़ा में खेत में काम करने वाली महिला को रेप के बाद कुँए में डाला गया, कानपुर में महिला को रेप के बाद मर डाला गया और उसके सर और नाजुक अंगों को भी क्षत विक्षत किया गया, झाड़खंड के पश्चिमी सिंघभुम में आठवीं की छात्रा के साथ शिक्षक द्वरा बलात्कार. …हर राज्य, शहरों गावों में दरिंदगी की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही है. सरकारें खामोश है, संसद और विधान सभाओं में आवाज उठाई जाती है. नए कानून पास होते हैं. मामला न्यायालय में जाता हैं, मुकदमे पर कार्रवाई होती है. नतीजा – कुछ नहीं.
हैरत की बात ये है कि उच्च अदालत ने बहु चर्चित ‘दिल्ली रेप केस’ के मुजरिमो की फांसी पर रोक लगा दी है. ऐसे में बुरी मानसिकता से ग्रसित सामाज में क्या सन्देश जाएगा.
हैरत की बात और है कि इस प्रकार की घटनाएँ बढ़ती जा रही है और लोग सिर्फ टी. वी. या फेसबुक पर चर्चा में ब्यस्त हैं. कोई आदमी उठकर इसके प्रतिकार के लिए खड़ा नहीं हो रहा. सिर्फ भीड़ के साथ मोमबत्ती जलने के सिवा कोई कुछ नहीं कर रहा. जी न्यूज़ की मुहीम ने देश के कई शहरों में ‘ऑपरेशन धृतराष्ट्र’ चलाकर दिखला दिया कि कैसे लोग इस तरह की घटनाओं को देख-सुनकर भी धृतराष्ट्र बने रहते हैं. हमारे सामने किसी भी महिला को रेप किया जा रहा हो और हम उसे या तो चुचाप देखते रहते हैं या वहां से भाग जाने की कोशिश करते हैं. क्या एक बार के लिए भी हम यह नहीं सोच सकते कि ऐसी घटना हमारे घर की की किसी महिला सदस्य के साथ हो तब भी क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे.
महिलाएं ऑफिस में, घरों में, कार्यस्थलों में रस्ते में, सडकों पर, ट्रेनों में, बसों में, कारों में, स्कूलों में, थानों में हर जगह दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं और हम सब खामोश हैं. क्या यही मानवता है और यही मानवाधिकार कानून. विभिन्न प्रकार के ब्यवसायिक विज्ञापनों में. फिल्मों, में टी. वी. सीरियल्स में भी यही कुछ दिखलाया जाता है, यहाँ तक कि हास्य कार्यक्रमों में भी महिलाओं पर फूहड़ चुटकियाँ ली जाती है और हम आनंद लेकर हंसते हैं.
अब तो हद हो गयी सहनशक्ति की सीमा की. घटनाएँ सिर्फ समाचारों की सुर्खियाँ बनती हैं और फिर सबकुछ सामान्य. महिलाओं स्थिति जानवरों से भी बदतर हो गयी है. आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं. क्या किसी भी महिला नेत्री, वकील, जज, पुलिस अधिकारी, सेलिब्रिटी, सी. ई. ओ. का खून नहीं खौलता. क्या उनके मन में यह ख्याल नहीं आता कि इस तरह की घटनाएँ उनके साथ भी हो सकती है या होती रही हैं. एक महिला जज के साथ भी पिचले दिनों दुष्कर्म का प्रयास किया गया था. महिला पुलिसकर्मी भी अपने सहकर्मी की शिकार होती रही हैं. ऑफिस असिस्टेंट, नर्स, विमान परिचारिका, गृहणियां, बच्चियां, मजदूरिने, भिखारिने, छात्राएं, महिला सरपंच आदि सभी इस पारकर की घटनाओं की शिकार होती रही हैं. ५ साल की बच्ची से लेकर ८० साल की बृद्धा तक के साथ भी जुल्म होता रहा है और हम सभी खामोश हैं.
कठोरतम क़ानून, त्वरित न्याय, जिसके अंतर्गत ऐसी व्यवस्था हो कि न्याय अविलम्ब हो. सशस्त्र महिला पुलिस की संख्या में वृद्धि, अपनी सेवाओं में लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों का निलंबन, निष्पक्ष न्याय मेरे विचार से सरकारी उपाय हो सकते हैं. जब तक हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया इतनी सुस्त रहेगी, अपराधी को कोई भी भय नहीं होगा. अतः न्यायिक प्रक्रिया में अविलम्ब सुधार अपरिहार्य है, अन्यथा तो आम स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं और सही समय पर दंड न मिलने पर पीड़िता और उसके परिवार को तो पीड़ा सालती ही है, शेष कुत्सित मानसिकता सम्पन्न अपराधियों को भी कुछ चिंता नहीं होती.
दंड तो उसको मिलना ही साथ ही उस भयंकर दंड का इतना प्रचार हो कि किसी को दुबारा ऐसे दुष्कर्म करने की हिम्मत तक न हो. खाड़ी देशों में सख्त कानून है और उसका पालन भी किया जाता है इसलिए वहां इस तरह की घटनाएँ निम्नतम स्तर पर हैं.
महिलाओं की आत्मनिर्भरता, साहस और कोई ऐसा प्रशिक्षण उनको मिलना चाहिए कि छोटे खतरे का सामना वो स्वयम कर सकें, विदेशों की भांति उनके पास मिर्च का पावडर या ऐसे कुछ अन्य आत्म रक्षा के साधन अवश्य होने चाहियें.
मातापिता को भी ऐसी परिस्थिति में लड़की को संरक्षण अवश्य प्रदान करना चाहिए. साथ ही संस्कारों की घुट्टी बचपन से पिलाई जानी चाहिए, जिससे आज जो वैचारिक पतन और एक दम मॉड बनने का जूनून जो लड़कियों पर हावी है, उससे वो मुक्त रह सकें.
ऐसे पुत्रों का बचाव माता पिता द्वारा किया जाना पाप हो अर्थात माता पिता भी ऐसी संतानों को सजा दिलाने में ये सोचकर सहयोग करें कि यदि पीडिता उनकी कोई अपनी होती तो वो अपराधी के साथ क्या व्यवहार करते, साथ ही सकारात्मक संस्कार अपने आदर्श को समक्ष रखते हुए बच्चों को दिए जाएँ.
एक महत्वपूर्ण तथ्य और ऐसे अपराधी का केस कोई अधिवक्ता न लड़े, समाज के सुधार को दृष्टिगत रखते हुए अधिवक्ताओं द्वारा इतना योगदान आधी आबादी के हितार्थ देना एक योगदान होगा.- (लेखिका निशा मित्तल के विचार) 

महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रही है. स्त्री और पुरुष की बराबरी की बात हमेशा से की जाती रही है. फिर यह अन्याय क्यों?
जब तक त्वरित और सही न्याय नहीं होगा, ऐसी घटनाओं की बाढ़ आती ही रहेगी. क्या अब कोई महिला ‘फूलन’ देवी जैसी नहीं बन सकती? रूपम पाठक भी बन कर दिखला दो, इन वहशी लोगों को..ताकि ये अपनी वहशियाना हरकतों से बाज आयें.
बहरहाल ये उम्मीद की जानी चाहिए के तमाम सामाजिक, राजनीतिक, साह्त्यिक, बुद्धिजीवी, न्यायविद, प्रशासन में बैठे लोग ये सोचें और विचार करें कि क्या कुछ किया जाय ताकि महिलाओं पर अत्याचार कम/नगण्य हो. केवल चर्चा करने भर से ही कुछ नहीं होगा, ठोस कदम उठाये जाने चाहिए.
इधर दिल्ली में राजनीतिक हलचल जारी है. दिल्ली के लिए बजट में अरुण जेटली ने कुछ राहत दी है. शायद दिल्ली के अच्छे दिन आ जाएँ. उत्तराखंड में प्रकृति का कहर जारी है, लगता है पिछले साल की ही तरह इस साल भी भगवान अपने भक्तों से नाराज हैं.
जय हिन्द! जय नारी शक्ति! ॐ नम: शिवाय!
जवाहर लाल सिंह,जमशेदपुर

Friday, 18 July 2014

चोरों में भी एक सलीका होना चाहिए...

चोरों में भी एक सलीका होना चाहिए,
चाहे कुछ भी हो, तरीका होना चाहिए.
नल खोल कर ले जाएं, होगी नहीं दिक्कत
कोई उपाय कर दो न पानी बहना चाहिए.
नल की जगह पर लकड़ी ठूंस देते मेहरबान
जल कीमती है यह न यूं बहाना चाहिए.
भले होते हैं वे लोग, जो चोरों से डरते हैं,
जेवर की क्या कीमत जान बचाना चाहिए.
बरसात के दिनों में जो ए सी. ट्रेन में चले
खर्चीले लोगों से ज्यादा ‘कर’ लेना चाहिए.
बिहार के ही चोर बिहारी भाई को लूटे (छपरा-टाटा ट्रैन में डकैती)
इतनी समझदारी तो होना ही चाहिए
स्लीपर जनरल कोच कभी खाली नहीं होते
वेटिंग वाले भी टिकट ले कर ही हैं चलते
उसमे चोर घुंसे तो क्या वे बच पाएंगे
उलटे लुटेंगे खुद अलग से मार खाएंगे
ए सी बोगी में चोरी का मजा ही है अलग
खिड़की दरवाजे बंद गर्मी में भी ठंढक
मुसाफिरों को लूटने में भी है मिहनत
ठंढी हवा बदन में तब तक लगना चाहिए.
ताले काटकर चोरी भी क्या चोरी होती है
डुप्लीकेट चाभी आखिर क्योंकर होती है
ताला खोल के लूटें ताकि रक्षक दल सोचें
विकसित हुआ है तंत्र, मालुम होना चाहिए .
चोरी हम भी करते हैं, अच्छी रचना की
हेर फेर कुछ कर दें, ये तरीका होना चाहिए
चोरों से ही सीखा मैंने कविता लिखना भी
रचनाकार जवाहर जैसा होना चाहिए ……
ताली नहीं तो थोड़ा मुस्कुराना चाहिए !
चोरों में भी एक सलीका होना चाहिए,

Monday, 14 July 2014

उम्मीदों का बजट!

मोदी सरकार का पहला बजट संसद में पेश किया गया. लोग इसे ‘उम्मीदों का बजट’ कह रहे हैं. बजट में लगभग हर वर्ग का ध्यान रक्खा गया है. किसानों, महिलाओं, मध्यमवर्ग के साथ साथ उद्योगपतियों का भी ख्याल रक्खा गया है. बकौल वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली – “मैंने चुन-चुन कर सबको कुछ न कुछ दिया है”. रक्षा में और बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा को बढ़ाकर ४९% कर दिया है, जिससे देश में रोजगार बढ़ने की संभावना बढ़ेगी और सामान भी सस्ते में उपलब्ध होंगे ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है.
बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए, सड़क, एवं गंगा में परिवहन की योजना के साथ बिजली बनानेवाली कंपनियों को दस साल तक टैक्स में छूट के साथ, अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाने का ऐलान सबको भानेवाला है. हर गाँव में बिजली, यातायात और संचार के साधनों के विकास से जहाँ गाँव से शहरों का पलायन रुकेगा, वही १०० स्मार्ट सिटी बनाने का सपना भी कम लुभावना नहीं दीखता.
महिलाओं की लिए सुरक्षा और ‘बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ योजना भी काबिले तारीफ है, बशर्ते कि इनपर भरपूर अमल किया जाय. निर्भया फंड का लेखा-जोखा कुछ है या नहीं, यह भी बताना चाहिए था. किसानों की खेती में उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. हर क्षेत्र की मिट्टी की जांच कराई जायेगी और उसकी उर्वराशक्ति के अनुसार फसलें लगाई जायेगी. साथ ही नए कृषि अनुसन्धान के लिए पूसा के तर्ज पर दो बड़े भारतीय कृषि अनुसन्धान केंद्र और चार नए कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की घोषणा भी सराहनीय है. किसानों को सस्ते दर(७%) पर ऋण, किसान विकास पत्र को फिर से शुरू किये जाने, और किसानो के लिए एक विशेष टी वी चैनेल के शुरू किये जाने की योजना मनोहारी है. नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने के लिए वित्त मंत्री ने हर संभव प्रयास किये हैं. अनाज भण्डारण, एवं कृषि उत्पादों की ढुलाई, उचित बाजार आदि की ब्यवस्था निश्चित ही क्रांतिकारी है, अगर इसे सही रूप से क्रियान्वित किया जाय.
शिक्षा के विकास के लिए पांच नए आई आई टी, पांच नए आई आई एम और चार नए AIMS के स्थापना की घोषणा सपने जैसा ही है. इन सब के लिए धन और संकल्प शक्ति कहाँ से आयेगी, पता नहीं, पर सपने तो सुन्दर हैं ही.
PPP यानी पब्लिक, प्राइवेट पार्टनरशिप के द्वारा धन जुटाने की प्रक्रिया पहले से भी जारी है, इसके अच्छे नतीजे मिल भी रहे हैं, भुगतान भले ही आम आदमी को करना पड़ता है.
‘नमामि गंगे’ के नाम से राष्ट्रीय गंगा संरक्षण मिशन के लिए २०३७ करोड़ का आवंटन बहुत ज्यादा नहीं कहा जायेगा, इससे पहले भी गंगा की सफाई पर करोड़ों के वारे-न्यारे हुए हैं नतीजा कुछ भी नहीं. गंगा दिन प्रतिदिन मैली होती गयी है. पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षा को भी आगे बढ़ाने का जिक्र किया गया है.
२०२२ तक सबको अपना घर का सपना भी कम सुहावना नहीं लगता है, इससे रियल एस्टेट क्षेत्र में आई गिरावट को सम्हालने की चेष्टा की गयी है. घर खरीदने में आयकर में मिली छूट लोगों को लुभाएगी. पिछली एन डी ए की सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी इसमे छूट दी थी, जिसका लाभ अब तक लोग उठा रहे हैं. गावों और कस्बों में भी शुद्ध पेय जल की ब्यवस्था के लिए ३६०० करोड़ रुपये के साथ ग्रामीण पेय जल योजना की शुरुआत बहुत अच्छी है.
महंगाई और काले धन पर वित्त मंत्री मौन हैं और प्रधान मंत्री भी. उनकी सरकार आने के बाद महंगाई बढ़ती ही जा रही है. कहीं कोई रोक-टोक नहीं है. न तो कोई बड़े जमाखोर पकडे गए, नहीं कोई कारवाई हुई. मीटिंग्स जरूर हुई और मंत्रियों ने कह दिया – महंगाई नहीं बढ़ी. श्री गिरिराज सिंह के यहाँ से १.१४ करोड़ नगद की चोरी और बरामदगी वाला किस्सा भी बड़ा रोचक है. अब इस पर जांच चलेगी और लीपा-पोती की जायेगी, यह भी जग जाहिर है. सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी पर तो मुक़दमा हो चुका है. अदालती कार्रवाई जारी है. क्या ये भी सहारा श्री सुब्रत राय की तरह जेल जायेंगे. आसाराम बापू का क्या होनेवाला है. उनके विरुद्ध गवाही देने वाला तो इस दुनिया को अलविदा कह चुका है.
अगर बाजार जाकर देखें तो हर चीज के दाम बढे हैं और पैकेट के वजन कम कर दिए गए हैं, जिन पर ग्राहक बहुत कम ध्यान देता है. ऊपर से सरकारी आंकड़ों के अनुसार महंगाई बढ़ने की दर में कमी हुई है …ये आंकडे क्या कहते हैं – सुषमा स्वराज को कांग्रेस के शासन में समझ में नहीं आते थे, अब समझ में आने लगे हैं शायद?
कुछ चीजों पर टैक्स घटाकर दाम कम करने की कोशिश की गयी है, तो कुछ विलासिता और नशीली चीजों के दाम बढ़ाये गए है, जो अच्छा ही है. परिणाम क्या हुआ कि अभी से ही तम्बाकू और पान मसाले की कालाबाजारी चालू हो गयी और सस्ते होनेवाले सामान तो तब सस्ते होंगे, जब नया स्टॉक आयेगा.
कांग्रेस के अनुसार यह उसी के बजट का विस्तार है तो कांग्रेस और भाजपा की नीति में कोई खास परिवर्तन नहीं ही दीखता है. जब वे विपक्ष में थे तो FDI का विरोध कर रहे थे अब उन्हें यह जरूरी लगता है. वे भी अर्थ ब्यवस्था को ठीक कर रहे थे, ये भी वही कर रहे हैं. कुछ नामों का हेर-फेर है. महात्मा गाँधी, नेहरू, इंदिरा, राजीव की जगह श्री दीनदयाल उपाध्याय, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, पंडित मदन मोहन मालवीय और लोकनायक जयप्रकाश के नाम उजागर हुए हैं. इनके नाम कुछ योजनाओं के साथ जोड़े गए हैं. ये सभी कांग्रेस का विरोध वाले नेता रहे हैं. सरदार वल्लभ भाई पटेल की एकता की मूर्ती के लिए २०० करोड़ रुपये की अलग से ब्यवस्था की गयी है. ये जवाहर लाल नेहरू के प्रतिद्वंद्वी थे.
करीब बीस योजनायें जिनमे बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ, और गाँव में शहरी सुविधा भी शामिल है, के लिए १०० करोड़ समान रूप से आवंटित की गयी है. कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए ५०० करोड़ की ब्यवस्था की गयी है. कुछ राज्यों में आगामी चुनाव को देखते हुए शायद ज्यादा कड़वी दवा देने की कोशिश से परहेज किया गया है. जहाँ जरूरत है, वहीं टैक्स बढाया गया है.
रेल भाड़ा बृद्धि कांग्रेसी सरकार का था, उसे ज्यों का त्यों लागू कर दिया गया. पर खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लोगों को अनाज मुहैया करने की योजना का क्या हुआ, जिक्र नहीं है. जन वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने की बात सभी सरकारें करती रही है, पर इनमे कितना भ्रष्टाचार होता है, इन्हें रोकने में कोई भी अभी तक सफल नहीं हुआ है. रामविलास पासवान से भी ज्यादा उम्मीद रखना बेमानी होगी, क्योंकि वे तो मानते हैं कि मीडिया की वजह से महंगाई बढ़ी है. यह बात भी वे मीडिया के माध्यम से ही कहते हैं.
बजट के दौरान प्रधान मंत्री चिंतन की मुद्रा में दिखे …शायद वे कुछ नए शब्द सोच रहे थे.
उनके अनुसार आम बजट मरणासन्न पडी अर्थब्यवस्था के लिए संजीवनी है. यह बजट भारत को विकास की नई ऊँचाइयों तक ले जानेवाला है. गरीबों और दबे कुचले तबकों के लिए यह आशा की किरण है.
बजट के बाद अमरीका की बेताबी बढ़ी है, कभी नरेंद्र मोदी को वीजा देने से इंकार करने वाला अमरीका मोदी को निमंत्रण देने आ पहुंचा. ओबामा ने सितम्बर में मिलने के लिए बुलाया है, देखना यह होगा कि अमेरिका की दिलचश्पी किस क्षेत्र में निवेश की है. क्या वह रक्षा उपकरणों के निर्माण में विनिवेश करेगा या फिर हमारे लिए जासूसी कर खतरे का कारण बनेगा. वैसे भी वह भाजपा की जासूसी पहले कर चुका है, जिससे भाजपा वाले नाराज भी थे.
मिलाजुकर सभी घोषणाएँ अच्छी हैं, अगर वे नेक नीयत से धरातल पर उतरें. वित्त मंत्री कहते है, यह तो शुरुआत है, आगे और बातें होंगी, जिससे देश और देशवासी का विकास निश्चित होगा. हम सभी यही तो चाहते हैं. जय हिन्द !
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday, 12 July 2014

दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है

दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
सुख दुःख से विरक्त, संत मन जैसा है.
झुलसे न ग्रीष्म में भी, ओस को सम्हाल रही  
ढांक ले मही को मुदित, पहली बौछार में ही
दूब अग्र तुंड को, चढ़ावे विप्र पूजा में,
जैसे हो नर बलि, स्वांग यह कैसा है ! दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
गाय चढ़े, चरे इसे, बकरियों भी खाती है,
खरगोश के बच्चे को, मृदुल दूब भाती है.
क्रीडा क्षेत्र में भी, बड़े श्रम से पाली जाती है
देशी या विदेशी मैच, कुचली यही जाती है.
आम जन की गति, ऐसी ही होती है,
पिसे हर हाल में, प्रबंधन यह कैसा है. दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
गर्मी दुपहरी में भी ये हरी होती है
पहली फुहार पड़ते ही बड़ी होती है.
लोग बाग़ जाएँ, तब रास्ता बन जाता है
अगर जाना छोड़ दें, बिछौना बन जाता है
कुचलकर भी मुस्कुराए, जड़ दृढ़ कहलाये,
वंश वृधि का प्रतीक, सूक्ष्म चलन कैसा है. दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
खेतों खलिहानों में, दूब साफ़ होती है
खेतों की मेड़ों पर, दूब पास होती है
दूब अगर डूब जाय, चिंता नहीं करना
पानी निकलते ही, फिर से हरी होती है.
दुःख से न घबराये, घुटकर भी जीता रहे,
देखते सभी हैं, अदम्य घुटन जैसा है .. दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
पर्यावरण माह में, करने हो अगर स्वांग सिर्फ  
वातानुकूलित कक्ष में भी, दूब लगा सकते है.
मिट्टी संग दूब को, पत्थर पे बिछा सकते हैं.
पत्थर पर दूब उगा, मुहावरा बदल सकते हैं.
आम जन को भी, यह दूब सीख देती है.
बिना कुछ चूं-चपर, सब कुछ सह लेती है.
जितना भी हो विकास, आम ‘आम’ ही रहेगा
चूसे हुए रस की भांति, गुठली कहीं बहेगा  
उगे नए पेड़ कहीं, या फिर ये सड़ जाय
मिलेंगे ही आम बहुत, विशद विश्व ऐसा है.. दूब का चरित्र देखो. आम जन जैसा है,
.
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Wednesday, 9 July 2014

न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सवाल.

हमारे प्रजातंत्र के संघीय ढांचे में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सबकी अपनी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है. सभी अपने क्रियाकलाप में स्वतंत्रता चाहते हैं. पर न्यायपालिका एक ऐसी ब्यवस्था है, जिसमे सबकी आस्था निहित है. सभी अंतत: उच्चतम न्यायालय के फैसलों को ही अंतिम मानते है. कार्यपालिका या विधायिका के द्वारा नागरिक अधिकारों के हनन की रक्षा न्यायपालिका ही करती है. यह कार्यप्रणाली तबतक भलीभांति संपन्न नहीं हो सकती, जबतक कि न्यायपालिका पूरी तरह से कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त न हो.
न्यायपालिका की स्वाधीनता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए हमारे संविधान में न्यायधीशों की नियुक्ति, सेवा शर्तें, उनके वेतनमान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद प्रैक्टिस करने की पाबंदी… आदि विभिन्न उपबंध हैं, जो इन्हें किसी भी हस्तक्षेप से बचाते हैं.
संविधान के अनुच्छेद १२४(२) और २१७ (१) के अनुसार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति भारत के प्रधान न्यायधीश और और अन्य न्यायाधीशों के परामर्श से करेगा. इसमे भी विवाद होते रहे हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने ही यह ब्यवस्था दी कि न्यायधीशों की नियुक्ति की सिफारिश पांच सदस्यीय ‘कोलेजियम’ द्वारा की जायेगी जिसमे प्रधान न्यायधीश के अलावा चार वरिष्ठतम न्यायधीश होंगे. सरकार अधिक से अधिक किसी नाम पर आपत्ति कर सकती है. श्री गोपाल सुब्रमण्यम के मामले में यही हुआ, लेकिन कोलेजियम द्वारा उसे दुबारा भेजे जाने पर राष्ट्रपति अर्थात सरकार इनको नियुक्त करने के लिए बाध्य है.
पिछली संप्रग सरकार ने २०१३ में एक संविधान संशोधन विधेयक भी संसद में पेश किया था, जिसे लेकर भाजपा आदि राजनीतिक पार्टियाँ भी रजामंद थी. इस बिल के अनुसार न्यायिक नियुक्ति आयोग में प्रधान न्यायधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केन्द्रीय कानून और न्याय मंत्री के अतिरिक्त दो अति प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे, जिनका चयन प्रधान मंत्री, संसद में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायधीश की एक समिति करेगी. सवाल यहाँ भी उठे थे.
संसदीय समिति की एक अन्य अनुशंसा के अनुसार इन तीन सदस्यों में कम से कम एक सदस्य दलितों,आदिवासियों,महिलाओं,पिछड़ों अथवा अल्पसंख्यकों में से होना चाहिए, जो रोटेसन से हो सकते हैं. यह सराहनीय है कि वर्तमान राजग सरकार ने पुराने बिल पर फिर से परामर्श करने का निर्णय लिया है.
अब आते हैं इस आलेख की प्रासंगिकता पर –
सीनियर वकील गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट का जज न बनाए जाने पर एनडीए सरकार की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश आर एम लोढ़ा ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को चिट्ठी लिखकर भी अपनी नाराजगी जाहिर की थी. लोढ़ा ने स्पष्ट शब्दों में लिखा था कि सरकार आइंदा ऐसा न करे.
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम ने जिन चार लोगों के नाम की सिफारिश की थी, उनमें सीनियर वकील गोपाल सुब्रमण्यम का नाम भी था, लेकिन उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया था.
56 वर्षीय सुब्रमण्यम यूपीए सरकार में सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं. एनडीए सरकार ने जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम को लिखा था कि सुब्रमण्यम की सिफारिश पर फिर से विचार करें।
इस बारे में चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि उनकी गैरहाजिरी में और उन्हें बिना बताए यह फैसला लिया गया.
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के मुताबिक यूं सबके सामने अपनी नाराजगी जाहिर करने से पहले उन्होंने 30 जून को सरकार को एक खत लिखा था। लोढ़ा ने लिखा था, ‘मेरी जानकारी और सहमति के बिना प्रस्ताव को अलग कर देने को मैं मंजूरी नहीं देता। एकतरफा अलगाव का ऐसा काम कार्यपालिका आइंदा न करे’
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि यह पत्र कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को बुधवार को ही मिला है। लोढ़ा ने इस पत्र में सख्त नाराजगी जताते हुए लिखा, ‘आपने गोपाल सुब्रमण्यम के प्रस्ताव को बाकी तीन नामों से अलग कर दिया है। अब सुब्रमण्यम ने अपना नाम वापस ले लिया है और मेरे पास उनका प्रस्ताव वापस लेने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है’
ज्यादातर मामलों में अदालत के फैसलों में इतनी देर हो जाती है कि आम आदमी जल्दी कोर्ट का रुख नहीं करना चाहता है. चाहता है कि आपस में समझौता हो जाय और मामला सलट जाय. विशेष परिस्थितियों में ही आम आदमी थाना और कोर्ट की शरण लेता है. फिर भी न्यायपालिका सर्वोपरि है, यह सभी मानते हैं. इसी सन्दर्भ में आइये देखते है, इधर हाल के दिनों में कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले जो काबिले तारीफ है.
१. वसंत विहार गैंगरेप केस में फैसला ( दिल्ली का निर्भया केस)
२. BCCI के अध्यक्ष के श्रीनिवास को हटाने का फैसला – भारतीय क्रिकेट को भ्रष्टाचार मुक्त करने की तरफ कदम.
३. आरुषि-हेमराज हत्याकांड पर फैसला
४. चारा घोटालाः लालू, जगन्नाथ मिश्र और जगदीश शर्मा को जेल
५. समलैंगिकता के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिसे भारतीय संस्कृति और प्रकृति के भी खिलाफ बताया गया.
६. पिछले 9 सालों से हो रही ‘राइट टू रिजेक्ट’ की मांग को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की सहमति हासिल हो गई है। 27 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मतदाताओं को ‘नन ऑफ द अबव’ यानी ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ का अधिकार दिया। जिसका मतलब यह है कि अगर किसी मतदाता को लगता है कि मतपत्र पर मौजूद कोई भी उम्मीदवार उसकी पसंद का नहीं है तो वह इस विकल्प पर अपनी मुहर लगा सकता है। इस विकल्प की मांग पिछले 5 दशकों से हो रही थी। पिछले 9 सालों से तो इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लम्बित थी, जिसे अब जाकर मान्यता मिली है।
७. सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला भारत में सियासत को अपराध से मुक्त करने की दिशा में एक और अहम पड़ाव है. भविष्य में दागी नेता राजनीति में बने रहने के लिए अदालती कार्यवाही की लेटलतीफी का फायदा नहीं उठा सकेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि दागी नेताओं के मुकदमे हर हाल में एक साल के भीतर निपटाए जाएं. इस फैसले से अपराधी से नेता बने लोगों का अपील का अधिकार तो सुरक्षित रहेगा लेकिन व्यवस्था को भी इन दीमक नुमा नेताओं से बचाया जा सकेगा.
८. दिल्ली हाई कोर्ट ने विदेशी फंडिंग के आरोपों को लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से कांग्रेस और भाजपा पर उचित कार्रवाई करने को कहा है।
९. सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय का मामला ( एक बड़ी हस्ती के खिलाफ फैसला)
१०. किन्नरों को उनके हक़ दिलानेवाला मामला
इस तरह के महत्वपूर्ण फैसले के बीच न्यायाधीशों की नियुक्ति का मामला को विवाद में आना और इसे व्यक्तिगत अहम् के टकराव तक पहुँचने को सही नहीं ठराया जा सकता.
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शनिवार को कहा, “जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका का दखल बढ़ाने के मकसद से पिछली सरकार द्वारा पेश संविधान संशोधन विधेयक पर मोदी सरकार फिर से काम करेगी. उसमें कई जरूरी बदलाव करेगी”.
रविशंकर प्रसाद के अनुसार, “हमारी पार्टी भाजपा ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन का वादा किया है. हम उसमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे. क्योंकि हम स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्षधर हैं”.

उनका यह बयान वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम की सुप्रीम कोर्ट के जज पद पर नियुक्ति को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच आया है. सरकार ने सुब्रमण्यम की नियुक्ति संबंधी कोलेजियम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और फाइल को पुनर्विचार के आग्रह के साथ लौटा दिया था. सरकार के इस कदम का सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने विरोध किया था. इस बाबत पूछे गए सवाल पर प्रसाद ने कहा कि सरकार को न्यायिक नियुक्तियों पर अपनी राय देने का अधिकार है. वह पुनर्विचार का आग्रह कर सकती है.
राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति बनाएगी सरकार
कानून मंत्री ने बताया कि अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती तादाद के मद्देनजर सरकार राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति बनाने की तैयारी में है. प्रसाद के अनुसार, “वर्तमान में देश की अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं। इनमें से 2.68 करोड़ केवल निचली अदालतों में वर्षों से लटके हुए हैं। इस समस्या समाधान खोजना ही होगा”.
“हम ऐसा राष्ट्रीय न्यायिक आयोग चाहते हैं जिसमें न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों रहेंगे, लेकिन दबदबा न्यायपालिका का ही होगा. हम सकारात्मक तरीके से बिल लाएंगे। पिछली सरकार ने जो बिल पेश किया था, उसमें काफी कमियां थीं”. – वर्तमान कानून और न्याय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद.
यह भी स्वागतयोग्य है कि गोपाल सुब्रमण्यम के विवाद के बीच वर्तमान कानून और न्याय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि भारत सरकार न्यायिक ब्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता का सम्मान करती है. आशा है कि वर्तमान सरकार संविधान, मर्यादा और जनहित के मद्देनजर न्यायपालिका की स्वायत्तता की रक्षा करते हुए सभी विन्दुओं पर ध्यान रखते हुए उचित फैसले लेगी, ताकि न्यायपालिका के प्रति आस्था और भी मजबूत हो.
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Tuesday, 1 July 2014

गंगा माँ का शोधन या पुनर्जीवन.

पुराणों के अनुसार भगवान के बिष्णु के अंगूठे से निकली गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में सुरक्षित थी. राजा सगर के वंशज भगीरथ के अथक प्रयास और शिव जी की कृपा से गंगा कैलाश पर्वत से होते हुए पृथ्वी पर आई और बंगाल की खाड़ी में जा मिली, जिससे कपिल मुनि की क्रोधाग्नि जले राजा सगर के ६०,००० पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई. आज भी गंगा मोक्षदायिनी ही बनी हुई है. हिन्दू धर्म अनुयायी के सभी मृत शरीर की अस्थियाँ गंगा में ही विसर्जित की जाती है, मुक्ति के लिए.
पतित पावनी गंगा आज स्वयं प्रदूषण की शिकार होकर मैली हो गयी है. अब इसे साफ़ कर या पुनर्जीवित कर निर्मल गंगा बनाने का अथक प्रयास जारी है. गंगा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण, इसके प्रवाह में अवरोध, कल-कारखानों का प्रदूषित ठोस और अवशिष्ट तरल पदार्थ हैं, इसके अलावा इनके किनारे बसे शहरों, गांवों के नालों का प्रवाह भी, जो बिना संशोधित किये गंगा में छोड़ दिया जाता है. इसके अलावा विभिन्न पशुओं, मनुष्यों का शव भी है, जिसे सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है.
गंगा को साफ़ करने के अनेक प्रयास हुए, बहुतों ने तपस्या की, अनशन किये, आरती की और गंगा के किनारे का भ्रमण किया, सौगंध खाए, गंगा एक्सन प्लान बनाई, इसे राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया. करोड़ों के वारे न्यारे हुए, नतीजा वही धाक के तीन पात. अब एक बार पुन: जोर शोर से अभियान चला है. श्री मोदी जी को गंगा माँ ने ही बनारस में बुलाया था. उन्होंने अपनी ऐतिहासिक विजय के बाद गंगा माँ की आरती की और इसे निर्मल बनाने क बीरा उठा लिया है. जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने भी पूर्व में काफी प्रयास किया है अब उन्हें यह महत्पूर्ण जिम्मेदारी भी दे दी गयी है कि वे अपने प्लान में सफल हों.
बहुत सारे मीडिया घराने भी इस प्रयास में आगे निकले हैं, जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सबको साथ लेने के लिए, आखिर जन जागरूकता ही तो परिवर्तन लाती है.
अब आइये कुछ आंकड़ों की बात करते हैं. ४००० मीटर की ऊँचाई पर गोमुख से निकलने वाली २५२५ किलोमीटर लम्बी गंगा नदी का क्षेत्रफल लगभग १० लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है. देश की ४३% जनसँख्या इसके प्रवाह क्षेत्र में रहती है.यह उत्तराखंड में ४५० कि.मी, उत्तर प्रदेश में १०० कि मी बिहार में ४०५ कि मी झाड़खंड में ४० कि मी, पशिचिम बंगाल में ५२० कि मी की यात्रा करती है इसके अलावा ११० कि मी की लम्बाई उत्तर पदेश और बिहार की सीमा रेखा में तब्दील है. 
नेसनल मिसन फॉर क्लीन गंगा के एक अधिकारी के अनुसार, गंगा एक्सन प्लान -१, गंगा एक्सन प्लान -२, और एन जी आर बी ए पर अब तक १७०० करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. हालाँकि संसद की एक स्थाई समिति के अनुसार अब तक ९००० करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. यह सब रकम सीवर की गन्दगी के शोधन पर खर्च हुए हैं लेकिन स्थिति में सुधर कुछ खास नहीं हुआ. लगभग २६००० मिलियन लीटर गन्दगी बिना साफ़ किये हुए रोजाना गंगा में गिर रही है.
हरिद्वार से निकलते ही कई परियोजनाओं के लिए बने बैराज इसे रोक लेते हैं. बनारस तक घरेलू गन्दगी साथ ही इनकी सहायक नदियों का भी गन्दा पानी इससे में गिरता है. गंगा का जायजा लेने गयी संसद की स्थाई समिति के अनुसार तीर्थराज प्रयाग और वाराणसी में गंगाजल पीने लायक तो दूर नहाने योग्य भी नहीं है. फिर भी करोड़ों लोग रोज गंगा स्नान करते ही हैं. गंगा का पवित्र जल विभिन्न पूजा विधि में भी उपयोग में लाया ही जाता है.    
जहाँ बैराज बन चुके हैं उन्हें तोड़कर यथास्थिति में लाना शायद संभव न हो क्योनी कई विद्युत् परियोजनाएं इनसे चल रही है और विकास की राह में अपना अहम् योगदान कर रही है. पर नदियों में प्रवाहित होनेवाला सीवर के गंदे जल को शोधन कर पुनरुपयोग(कृषि कार्यों में, कारखानों में सफाई हेतु) में लाया जा सकता है. कारखानों के प्रदूषित जल का भी शोधन कर पुनरुपयोग में लाया जा सकता है या विभिन्न रसायनों और गंदगियों से मुक्त कर तब नदियों में छोड़ा जा सकता है.
नदी का अर्थ सिर्फ पानी नहीं है. इसकी अपनी एक पारिस्थितिकी होती है. इसके प्रवाह को अखंडित किये बिना जलीय जंतुओं के शरणस्थल के रूप में भी देखा जाना चाहिए. जलीय जंतु, मछलियों, कछुओं, मगरमच्छों, डोल्फिनों के साथ साथ सैंकड़ों तरह के पौधों और जानवरों को भी पुनर्स्थापित करना होगा, जो इनकी अशुद्धियों को दूर करने में सहायक होते हैं.
गंगा को साफ़ रखने के क्रम में उसकी सहायक नदियों की भी स्वच्छता का ध्यान रखना होगा, ताकि उनकी गन्दगी से गंगा प्रदूषित न हो.   
धार्मिक आस्था रखने वाले लोग गंगा में स्नान के लिए प्रवेश करने से पहले बाहर में ही मल-मूत्र त्याग कर लेते हैं, ताकि नदी की पवित्रता और स्वच्छता बनी रहे. हम सब को यह मिलकर प्रयास करने होंगे/संकल्प लेने होंगे कि मैं गंगा को या किसी भी नदी को प्रदूषित नहीं कर रहा हूँ. इसके लिए किसी भी प्रकार के कचरे को नदी में फेंकने से बचना चाहिए तभी सारे प्रयास सफल होंगे. सरकारी तंत्र मनोयोग से काम करे और भ्रष्टाचार से बचे, मीडिया हर पहलू को दिखाए तभी योजनायें सफल होंगी अन्यथा योजनायें तो पहले भी बनती रही हैं और सरकारी यानी जनता के धन का बंटाधार होता रहा है.   
निष्कर्ष यही है कि केवल कागज पर योजनायें बनाने और शब्दों के मायाजाल से बाहर निकलकर धरातल पर काम करने होंगे. जन चेतना जागृत करनी होगी, जो वास्तव में गंगा या अन्य नदियों को भी माँ मानकर उसे पूजे, साफ़ रक्खे और साफ़ रखने में मदद करे.  
“इतनी ममता नदियों से भी जहाँ माता कहके बुलाते हैं” की हमारी परंपरा को कायम रखने के लिए कुछ तो कर्तव्य हमारा भी बनता है. हमारे देश के प्रधान मंत्रियों में जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गाँधी, वी पी सिंह, चन्द्रशेखर, अटल बिहारी बाजपेयी आदि का गंगा से नजदीकी का सम्बन्ध रहा है. सबने कुछ न कुछ किया है. अब श्री नरेंद्र मोदी जो गंगा की नगरी वाराणसी से चुनाव जीतकर आए हैं, उन्होंने विशेष संकल्प भी लिया है और अपने संकल्प को पूरा करने हेतु गंगा सफाई अभियान या उसे पुनर्जीवित करने के लिए संकल्परत साध्वी उमा भारती को जल संशाधन, नदी विकास के साथ गंगा सफाई का भी विभाग सौंपा है. उम्मीद है, वह अपनी और प्रधान मंत्री की उम्मीदों पर खरी उतरेंगी. समस्त शुभकामनाओं के साथ ...

जवाहर लाल सिंह. जमशेदपुर.