हाथी पर कुत्ता काटना एक मुहावरा है, जिसका मतलब होता है कि आदमी के पास अगर मुसीबत आनी होती है तो कहीं भी आ जाती है, चाहे वह कितनी ही सुरक्षित जगह में क्यों न हो. सती बिहुला के पति को सांप के काटने से मरना था तो अभेद्य दुर्ग में भी सांप घुंस गया था. एक बारात में कुछ लोग हाथी पर चढ़कर बारात गए थे. गांव में दरवाजा लगने(पारम्परिक रीति) के समय जब हाथी गांव की गलियों से गुजरा, ऊंचे नीचे पर हाथी के पैर पड़ने से सवार का डोलना स्वाभाविक था. हाथी सवार में से एक युवक संभलने के लिए अपना हाथ एक कम ऊँचाई वाले छप्पर पर टिकाया. उस छप्पर पर एक बिच्छू था और उसने युवक को डंक मार दिया. युवक दर्द से चीखने चिल्लाने लगा. संयोग से बाराती में ही एक डॉक्टर भी था, जो अपनी दवा का बॉक्स साथ लेकर आया था. उसने तुरंत बिच्छू के डंक के उपचार वाला इंजेक्शन लगाया और युवक का दर्द जाता रहा. पर दरवाजा लगने के समय जो जश्न नाचने का होता है, वह तो नहीं ही हुआ. मजा किरकिरा हो गया …
अब आइये इस भूमिका को आज के सन्दर्भ से जोड़कर देखा जाय.. चोर ज्यादातर कम रसूख वाले के यहाँ चोरी करते हैं, ताकि पकड़े न जाएँ. पर चोर अगर ज्यादा लोभी हो तो बड़े लोगों के यहाँ ही हाथ मारेगा. बड़े लोग मतलब गिरिराज बाबू जैसे, साधु यादव जैसे लोग. ये लोग काफी रसूख वाले तो होते ही हैं, साथ ही इतने मालदार होते हैं कि उन्हें पता भी नहीं होता कि उनके यहाँ कितने नगद और कितने जेवर आदि कीमती सामान हैं…ये तो ठहरे जनता के सेवक कोई आम जनता भी अपना पैसा, जेवरात आदि सुरक्षित जगह सोचकर इनके यहाँ रख आते हैं. बिहार की पुलिस अपराधियों को पकड़े या न पकड़े इन चोरों को तुरंत पकड़ लेती है… (अपना हिस्सा जो लेना होता है). लेकिन जब कोई बड़ा आदमी चोरी का शिकायत करे तो वहां तो अपनी छवि बेदाग साबित करनी ही होती है. अब चोर के यहाँ जितना माल मिला सब नेता जी का. नेता जी को भी नहीं पता कितना माल चोरी हुआ था. कुछ लाख का ही अंदाज रहा होगा और बरामद हो गया करोड़ों में. अब मुसीबत में कौन पड़ा, चोर, सिपाही या नेता जी? आप ही बताइये न? आपलोग तो बुद्धिजीवी ठहरे …इसलिए जवाब तो आपलोग ही देंगे न… . . अच्छा जाने दीजिये हम ही विश्लेषण किये देते हैं….गिरिराज बाबू ने क्या-क्या नहीं किया, नरेंद्र मोदी की नजर में आने के लिए…उनकी रैली में भीड़ जुटाने के लिए हजारों लोगों को निमंत्रण देकर बुलाया. उनको रहने खाने की ब्यवस्था की. सुशील मोदी को अपने कब्जे में रक्खा नितीश कुमार को गांव की झगड़ालू महिला तक कह डाला.तब टी वी चैनलों की महिला एंकरों ने उनसे सवाल जवाब कर डाला.- महिला का ही उदाहरण क्यों दिया? गांव की महिलाएं क्या झगड़ालू होती हैं? आदि आदि…
जब मोदी जी सरकार बनने ही वाली थी, तब मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की बात कहकर विवादों में आये …फिर भी बेचारे मंत्री नहीं बन सके…ऊपर से घर में चोरी और भाई भी दुश्मनी निकालने के लिए ही अपना पैसा उनके यहाँ रख छोड़ा था …बेचारे सफाई देते देते परेशान हैं…. चंदा का पैसा भी तो होता है.. भाई कितना हिशाब किताब रखेगा ..एगो-दुगो काम रहता है, जनसेवक का? ..इतनी सारी जनता! सब का दुःख दर्द का हिशाब रक्खें कि अपने पैसे का…बताइये न भला. पर्वतों के राजा हिमालय (गिरिराज) भी अतिबृष्टि से ढहते जा रहे है. दुर्दिन किसका पीछा छोड़ता है भला..
अब आइये साधु यादव के बारे में भी चर्चा कर लें. लालू जी के साले, लालू जी के पतन के बाद कांग्रेस में गए, फिर मोदी जी से जाकर मिले, पर कहीं से टिकट नहीं मिला तो अपनी बहन राबड़ी देवी के ही खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए और कुछ मान मनौवल के बाद अपना नॉमिनेशन वापस भी ले लिया. फ़िलहाल हैं तो बेरोजगार पर पैसे की कोई कमी नहीं. चोरी से ज्यादा माल मिलने को तैयार है. ऐसे ही साधु लोगों से यह भारत भूमि (बिहार) पवित्रता की सीढ़ी चढ़ती जा रही है. जय भारत जय बिहार !
अब आइये इस भूमिका को आज के सन्दर्भ से जोड़कर देखा जाय.. चोर ज्यादातर कम रसूख वाले के यहाँ चोरी करते हैं, ताकि पकड़े न जाएँ. पर चोर अगर ज्यादा लोभी हो तो बड़े लोगों के यहाँ ही हाथ मारेगा. बड़े लोग मतलब गिरिराज बाबू जैसे, साधु यादव जैसे लोग. ये लोग काफी रसूख वाले तो होते ही हैं, साथ ही इतने मालदार होते हैं कि उन्हें पता भी नहीं होता कि उनके यहाँ कितने नगद और कितने जेवर आदि कीमती सामान हैं…ये तो ठहरे जनता के सेवक कोई आम जनता भी अपना पैसा, जेवरात आदि सुरक्षित जगह सोचकर इनके यहाँ रख आते हैं. बिहार की पुलिस अपराधियों को पकड़े या न पकड़े इन चोरों को तुरंत पकड़ लेती है… (अपना हिस्सा जो लेना होता है). लेकिन जब कोई बड़ा आदमी चोरी का शिकायत करे तो वहां तो अपनी छवि बेदाग साबित करनी ही होती है. अब चोर के यहाँ जितना माल मिला सब नेता जी का. नेता जी को भी नहीं पता कितना माल चोरी हुआ था. कुछ लाख का ही अंदाज रहा होगा और बरामद हो गया करोड़ों में. अब मुसीबत में कौन पड़ा, चोर, सिपाही या नेता जी? आप ही बताइये न? आपलोग तो बुद्धिजीवी ठहरे …इसलिए जवाब तो आपलोग ही देंगे न… . . अच्छा जाने दीजिये हम ही विश्लेषण किये देते हैं….गिरिराज बाबू ने क्या-क्या नहीं किया, नरेंद्र मोदी की नजर में आने के लिए…उनकी रैली में भीड़ जुटाने के लिए हजारों लोगों को निमंत्रण देकर बुलाया. उनको रहने खाने की ब्यवस्था की. सुशील मोदी को अपने कब्जे में रक्खा नितीश कुमार को गांव की झगड़ालू महिला तक कह डाला.तब टी वी चैनलों की महिला एंकरों ने उनसे सवाल जवाब कर डाला.- महिला का ही उदाहरण क्यों दिया? गांव की महिलाएं क्या झगड़ालू होती हैं? आदि आदि…
जब मोदी जी सरकार बनने ही वाली थी, तब मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की बात कहकर विवादों में आये …फिर भी बेचारे मंत्री नहीं बन सके…ऊपर से घर में चोरी और भाई भी दुश्मनी निकालने के लिए ही अपना पैसा उनके यहाँ रख छोड़ा था …बेचारे सफाई देते देते परेशान हैं…. चंदा का पैसा भी तो होता है.. भाई कितना हिशाब किताब रखेगा ..एगो-दुगो काम रहता है, जनसेवक का? ..इतनी सारी जनता! सब का दुःख दर्द का हिशाब रक्खें कि अपने पैसे का…बताइये न भला. पर्वतों के राजा हिमालय (गिरिराज) भी अतिबृष्टि से ढहते जा रहे है. दुर्दिन किसका पीछा छोड़ता है भला..
अब आइये साधु यादव के बारे में भी चर्चा कर लें. लालू जी के साले, लालू जी के पतन के बाद कांग्रेस में गए, फिर मोदी जी से जाकर मिले, पर कहीं से टिकट नहीं मिला तो अपनी बहन राबड़ी देवी के ही खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए और कुछ मान मनौवल के बाद अपना नॉमिनेशन वापस भी ले लिया. फ़िलहाल हैं तो बेरोजगार पर पैसे की कोई कमी नहीं. चोरी से ज्यादा माल मिलने को तैयार है. ऐसे ही साधु लोगों से यह भारत भूमि (बिहार) पवित्रता की सीढ़ी चढ़ती जा रही है. जय भारत जय बिहार !