ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री थे। 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर बम-विस्फोट कांड में उनकी मृत्यु हो गयी थी।
वह पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक ‘लेटरल रोड’ की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।
याद आता है कि सत्तर के दशक में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने पटना से एक ट्रेन शुरू की थी,समस्तीपुर-नई दिल्ली जयंती जनता एक्सप्रेस। उसकी शायिकाएं (स्लीपर कोच) मधुबनी पेंटिंग की प्रतिकृति से सजाई गई थीं। उन दिनों यह ट्रेन दिल्ली जाने-आने के लिए सबसे कम समय लेती थी और सबसे ज्यादा शानदार मानी जाती थी। जयंती जनता एक्सप्रेस अब बंद हो चुकी है।
ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उसे साहित्य अकादमी में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।
पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या के मामले में दोषी करार दिये गये चारों आरोपियों को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनायी है. सभी चार अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी करार दिया गया था. अदालत ने चारों दोषियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है.
बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर दो जनवरी, 1975 को तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या कर दी गयी थी. जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 12 सितंबर को इस हत्याकांड में सीबीआइ और इस हत्याकांड के चारों अभियुक्तों के वकीलों की दलीलें सुनने की कार्यवाही पूरी की थी. अदालत ने कहा था कि इस मामले में 12 नवंबर को फैसला सुनाया जायेगा, लेकिन बाद में इसे आठ दिसंबर के लिए स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि निर्णय तैयार नहीं हो सका था. पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा बिहार के समस्तीपुर जिले में 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्राडगेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने गए थे, जहां वह एक बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। विस्फोट में जख्मी मिश्र की अगले दिन ही दानापुर के रेलवे अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी|
इस हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई के दौरान 200 से अधिक गवाहों से पूछताछ हुई. इसमें अभियोजन पक्ष के 161 और बचाव पक्ष के 40 से अधिक गवाह शामिल थे. हत्याकांड में आरोपी वकील रंजन द्विवेदी को 24 साल की उम्र में आनंद मार्ग समूह के चार सदस्यों के साथ आरोपी बनाया गया था. द्विवेदी के अलावा मामले में संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत व गोपालजी अभियुक्त हैं.
कडकडडूमा अदालत के जिला जज विनोद गोयल ने चारों अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया तथा प्रत्येक पर 10 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। इस हत्याकांड में 39 साल 11 महीने और 16 दिन बाद अपराधियों को सजा सुनाई गई है।
गोयल ने गत 15 दिसम्बर को इस मामले में सजा पर सुनवाई पूरी की थी और सजा के एलान के लिए गुरूवार 18 दिसम्बर की तारीख तय की थी। इससे पहले आठ दिसंबर को इस मामले में चारों आरोपियों आनंदमार्ग अनुयायी गोपाल जी, रंजन द्विवेदी, संतोषानंद अवधूत और सुदेवानंद अवधूत को भारतीय दंड संहित (आईपीएस) की धाराओं 302 हत्या और 120 बी आपराधिक षडयंत्र के तहत दोषी करार दिया गया था। इनपर विस्फोट करने तथा सबूत नष्ट करने का दोष सिद्ध हुआ है।
अदालत ने उन्हें विस्फोटक कानून के तहत भी दोषी ठहराया था। इस मामले के एक अन्य आरोपी की मृत्यु हो चुकी है। अदालत ने 15 दिसम्बर को सुनवाई में दोषियों की सजा की अवधिपर दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद सजा सुनाने के लिए गुरूवार की तारीख मुकर्रर की थी।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दोषियों को फांसी की सजा दी जाए या नहीं, इसका निर्णय अदालत पर छोड़ दिया था। बचाव पक्ष के वकीलों ने दोषियों की अधिक उम्र को देखते हुए नरमी बरतने की अपील की है।
इस हादसे में दो और लोगों सूर्य नारायण झा और रामकिशोर प्रसाद की भी मौत हो गई थी.
इसके अतिरिक्त ललित नारायण मिश्र के छोटे भाई व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य लोग घायल भी हुए थे. इस विस्फोट के पीछे आनंद मार्गियों का हाथ होने का आरोप लगा था.
स्थिति यही है कि ललित नारायण मिश्र के परिवार इस फैसले से खुश नहीं है. मामले को शांत करने के लिए उस समय ललित नारायण के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र को बिहार का मुख्य मंत्री बना दिया गया था. पर जगन्नाथ मिश्र में वो बात नहीं थी जो ललितनारायण मिश्र में थी. जगन्नाथ मिश्र का नाम रिश्वतखोरी के लिए ही ज्यादा बदनाम हुआ. आज भी वे चारा घोटाला में दोषी हैं और जमानत पर बाहर हैं. ललित नारायण की हत्या के पीछे राजनीतिक साजिश की भी खबरें उड़ी थी. वे एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्हें उनके प्रतिद्वंदी पसन्द नहीं करते थे.
न्यायपालिका पर सवाल इसलिए उठता है कि इतने चर्चित और वी आई पी के मुक़दमे के फैसले आने में अगर चालीस साल लग जाय, तो बाकी मुकदमों का क्या होगा. और भी बहुत सारे मुकदमे और फैसले न्यायपालिका के पास लंबित है. निर्भया कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं हुई. बड़े लोगों को अदालत से जमानत और सुविधायें भी जल्द मिल जाती है. संत आशाराम, संत रामपाल जैसे लोगों को गिरफ्तार करने में प्रशासन को क्या क्या पापड़ बेलने पड़े. पूरा देश गवाह है. इन सबकी कार्रवाई अभी चल रही है, पता नहीं फैसला कब आयेगा? और सजा कब मिलेगी? अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. अगर सजा का डर नहीं होगा तो इसी तरह अपराध होते रहेंगे. जनता त्राहि-त्राहि करती रहेगी.
अत: अगर अदालतों में संशाधन की कमी है तो उसे जल्द से जल्द दुरुस्त करनी होगी. साक्ष्य और पैरवी की नई तकनीक विकसित करनी होगी. तभी आम जनता का भरोसा इन अदालतों पर होगा. साथ ही खर्चीली प्रक्रिया और वकीलों की फीश आदि में भी त्वरित सुधार किये जाने चाहिए, ताकि न्याय आम आदमी तक पहुँच सके. इन सबके लिए उच्च पदाशीन और बुद्धिशील लोगों को पहल करनी होगी. आखिर इस लोकतान्त्रिक जनतांत्रिक प्रणाली का फायदा आम लोगों तक कैसे पहुंचेगा? अपराधों पर लगाम कैसे लगेगी? हम कब सुराज की तरफ बढ़ेंगे. जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
वह पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक ‘लेटरल रोड’ की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।
याद आता है कि सत्तर के दशक में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने पटना से एक ट्रेन शुरू की थी,समस्तीपुर-नई दिल्ली जयंती जनता एक्सप्रेस। उसकी शायिकाएं (स्लीपर कोच) मधुबनी पेंटिंग की प्रतिकृति से सजाई गई थीं। उन दिनों यह ट्रेन दिल्ली जाने-आने के लिए सबसे कम समय लेती थी और सबसे ज्यादा शानदार मानी जाती थी। जयंती जनता एक्सप्रेस अब बंद हो चुकी है।
ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उसे साहित्य अकादमी में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।
पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या के मामले में दोषी करार दिये गये चारों आरोपियों को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनायी है. सभी चार अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी करार दिया गया था. अदालत ने चारों दोषियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है.
बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर दो जनवरी, 1975 को तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या कर दी गयी थी. जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 12 सितंबर को इस हत्याकांड में सीबीआइ और इस हत्याकांड के चारों अभियुक्तों के वकीलों की दलीलें सुनने की कार्यवाही पूरी की थी. अदालत ने कहा था कि इस मामले में 12 नवंबर को फैसला सुनाया जायेगा, लेकिन बाद में इसे आठ दिसंबर के लिए स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि निर्णय तैयार नहीं हो सका था. पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा बिहार के समस्तीपुर जिले में 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्राडगेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने गए थे, जहां वह एक बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। विस्फोट में जख्मी मिश्र की अगले दिन ही दानापुर के रेलवे अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी|
इस हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई के दौरान 200 से अधिक गवाहों से पूछताछ हुई. इसमें अभियोजन पक्ष के 161 और बचाव पक्ष के 40 से अधिक गवाह शामिल थे. हत्याकांड में आरोपी वकील रंजन द्विवेदी को 24 साल की उम्र में आनंद मार्ग समूह के चार सदस्यों के साथ आरोपी बनाया गया था. द्विवेदी के अलावा मामले में संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत व गोपालजी अभियुक्त हैं.
कडकडडूमा अदालत के जिला जज विनोद गोयल ने चारों अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया तथा प्रत्येक पर 10 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। इस हत्याकांड में 39 साल 11 महीने और 16 दिन बाद अपराधियों को सजा सुनाई गई है।
गोयल ने गत 15 दिसम्बर को इस मामले में सजा पर सुनवाई पूरी की थी और सजा के एलान के लिए गुरूवार 18 दिसम्बर की तारीख तय की थी। इससे पहले आठ दिसंबर को इस मामले में चारों आरोपियों आनंदमार्ग अनुयायी गोपाल जी, रंजन द्विवेदी, संतोषानंद अवधूत और सुदेवानंद अवधूत को भारतीय दंड संहित (आईपीएस) की धाराओं 302 हत्या और 120 बी आपराधिक षडयंत्र के तहत दोषी करार दिया गया था। इनपर विस्फोट करने तथा सबूत नष्ट करने का दोष सिद्ध हुआ है।
अदालत ने उन्हें विस्फोटक कानून के तहत भी दोषी ठहराया था। इस मामले के एक अन्य आरोपी की मृत्यु हो चुकी है। अदालत ने 15 दिसम्बर को सुनवाई में दोषियों की सजा की अवधिपर दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद सजा सुनाने के लिए गुरूवार की तारीख मुकर्रर की थी।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दोषियों को फांसी की सजा दी जाए या नहीं, इसका निर्णय अदालत पर छोड़ दिया था। बचाव पक्ष के वकीलों ने दोषियों की अधिक उम्र को देखते हुए नरमी बरतने की अपील की है।
इस हादसे में दो और लोगों सूर्य नारायण झा और रामकिशोर प्रसाद की भी मौत हो गई थी.
इसके अतिरिक्त ललित नारायण मिश्र के छोटे भाई व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य लोग घायल भी हुए थे. इस विस्फोट के पीछे आनंद मार्गियों का हाथ होने का आरोप लगा था.
स्थिति यही है कि ललित नारायण मिश्र के परिवार इस फैसले से खुश नहीं है. मामले को शांत करने के लिए उस समय ललित नारायण के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र को बिहार का मुख्य मंत्री बना दिया गया था. पर जगन्नाथ मिश्र में वो बात नहीं थी जो ललितनारायण मिश्र में थी. जगन्नाथ मिश्र का नाम रिश्वतखोरी के लिए ही ज्यादा बदनाम हुआ. आज भी वे चारा घोटाला में दोषी हैं और जमानत पर बाहर हैं. ललित नारायण की हत्या के पीछे राजनीतिक साजिश की भी खबरें उड़ी थी. वे एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्हें उनके प्रतिद्वंदी पसन्द नहीं करते थे.
न्यायपालिका पर सवाल इसलिए उठता है कि इतने चर्चित और वी आई पी के मुक़दमे के फैसले आने में अगर चालीस साल लग जाय, तो बाकी मुकदमों का क्या होगा. और भी बहुत सारे मुकदमे और फैसले न्यायपालिका के पास लंबित है. निर्भया कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं हुई. बड़े लोगों को अदालत से जमानत और सुविधायें भी जल्द मिल जाती है. संत आशाराम, संत रामपाल जैसे लोगों को गिरफ्तार करने में प्रशासन को क्या क्या पापड़ बेलने पड़े. पूरा देश गवाह है. इन सबकी कार्रवाई अभी चल रही है, पता नहीं फैसला कब आयेगा? और सजा कब मिलेगी? अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. अगर सजा का डर नहीं होगा तो इसी तरह अपराध होते रहेंगे. जनता त्राहि-त्राहि करती रहेगी.
अत: अगर अदालतों में संशाधन की कमी है तो उसे जल्द से जल्द दुरुस्त करनी होगी. साक्ष्य और पैरवी की नई तकनीक विकसित करनी होगी. तभी आम जनता का भरोसा इन अदालतों पर होगा. साथ ही खर्चीली प्रक्रिया और वकीलों की फीश आदि में भी त्वरित सुधार किये जाने चाहिए, ताकि न्याय आम आदमी तक पहुँच सके. इन सबके लिए उच्च पदाशीन और बुद्धिशील लोगों को पहल करनी होगी. आखिर इस लोकतान्त्रिक जनतांत्रिक प्रणाली का फायदा आम लोगों तक कैसे पहुंचेगा? अपराधों पर लगाम कैसे लगेगी? हम कब सुराज की तरफ बढ़ेंगे. जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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