Monday, 29 December 2014

रघुबर की गति न्यारी



टाटा स्टील के कर्मचारी से झाड़खंड के नए मुख्य मंत्री बने रघुबर दास का सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा है। साल 1995 में जब भाजपा ने जमशेदपुर (पूर्व) विधानसभा सीट से उन्हें टिकट दिया था तो कई लोगों ने पार्टी के फैसले पर सवाल उठाए। सियासी मैदान में उनके खिलाफ कांग्रेस के दिग्गज नेता के पी सिंह और भाजपा के बागी दीनानाथ पांडेय थे। फिर भी सभी को चौंकाते हुए रघुबर दास ने जीत का परचम लहराया। साल 2000 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास ने एक बार फिर के पी सिंह को 47,963 मतों से शिकस्त देकर अपनी राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
मूल रूप से रघुबर दास बोईरडीह, राजनंदगाँव, छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं, हालांकि उनका जन्म 3 मई, 1955 को जमशेदपुर में हुआ। चार बार विधायक रह चुके रघुबर दास 30 दिसंबर 2009 से 29 मई 2010 तक उपमुख्युमंत्री रह चुके हैं।
पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा सीट से विधायक रघुबर दास को अमित शाह की टीम का हिस्सा माना जाता है। बतौर भाजपा संगठन कार्यकर्ता वे कई प्रदेशों में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा चुके हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा था, ‘मेरा नाम रघुबर दास है और मैं हमेशा जनता का दास बनकर रहूंगा।’ मोदीजी के शब्दों में कहें तो आपका सेवक !
बतौर भाजपा संगठनकर्ता वे कई प्रदेशों में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा चुके हैं. रघुवर दास भाजपा के कद्दावर नेताओं में जरूर गिने जाते हैं, लेकिन उनका आरएसएस या अन्य सहयोगी संगठनों से कोई सीधा संबंध नहीं है. दास के मुख्यमंत्री बनाये जाने में इसे भी एक रोड़ा माना जा रहा था. रघुबर दास 1974 के छात्र आंदोलन के समय समाजवादी छात्र संगठनों के संपर्क में रहे. उसके बाद भाजपा का दामन थामने के बाद पार्टी ने उन्हें कई जिम्मेवारियां दी, जिसको उन्हों ने बखूबी निभाया. रघुबर दास का विवादों से भी नाता रहा है. झारखंड विधानसभा की एक समिति ने अपनी जांच में माना था कि दास ने अपने पद का इस्तेामाल करते हुए एक प्राइवेट फर्म को लाभ पहुंचाने की कोशिश की. उस वक्त अर्जुन मुंडा सरकार में दास शहरी विकास मंत्री थे.
झारखंड की राजनीति में एक धारणा को हमेशा बल मिला कि यहां का सीएम कोई आदिवासी ही होगा. इस मिथक को तोड़ते हुए दास के नाम पर मुहर लगाकर भाजपा ने दास को आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच एक सेतु का काम करने की जिम्मेावारी भी दी है.
टाटा स्टील के एक कर्मचारी का आज राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाना झारखंड के राजनीति के कई सवालों का जवाब है.
वैसे भी भाजपा पर इस बार गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का नैतिक दबाव था। सूबे में 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। ऐसे में ओबीसी (तेली) से आने वाले रघुबर दास आदिवासी और अन्य समुदायों के बीच सेतु का काम करेंगे।
गौरतलब है कि 81 सदस्यीीय विधानसभा में भाजपा ने 37 सीटें जीती, जबकि उसकी सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) पांच सीटें जीतने में कामयाब रही। इस तरह गठबंधन को सरकार बनाने लायक आंकड़े मिल गए। वहीं झामुमो को 19, झाविमो को 8, कांग्रेस को 6 और अन्ये को 6 सीटें मिली।
अब आइये कुछ और बातें जानते हैं श्री रघुबर दास के सम्बन्ध में- 1.रघुबर दास प्रदेश के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे. जमशेदपुर पूर्व सीट से उन्होंने लगातार पांचवी बार जीत हासिल की है. 2.59 साल के रघुबर दास ने जमशेदपुर कोऑपरेटिव कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की. 3. पढ़ाई खत्म कर उन्होंने जमशेदपुर स्थित भारत की महत्वपूर्ण टाटा स्टील कंपनी में साधारण कर्मचारी के रूप में कई साल काम किया. 4. इसके बाद जेपी आंदोलन से जुड़े और फिर जनसंघ में शामिल हुए. 5. 1986 में टाटा स्टील कंपनी के एक मामले ने उनके जीवन को नया मोड़ दिया. 6.टाटा कंपनी में 86 बस्तियों को मालिकाना हक दिलाने के मामले में ली गई पहल से वे चर्चा में आए. उनकी उपलब्धि ये रही कि जिन 86 बस्तियां पर पहले टाटा का नियंत्रण था, वे सरकार के अधीन आ गईं. 7. झारखंड विधानसभा की कई कमिटियों के सभापति रह चुके रघुबर दास विधायी कार्यों के अनुभव के मामले में भी धनी हैं. 8. पार्टी के भीतर मुखर नेता की छवि होने के कारण उन्हें काफी पसंद किया जाता है. 9.इसके अलावा झारखंड वैश्य समुदाय में भी रघुबर दास खासे लोकप्रिय हैं. 10. जहां तक उनके परिवार की बात है तो पत्नी का नाम रुक्मिणी देवी है. वे गृहिणी हैं. एक बेटा, ललित दास और एक बेटी रेणु हैं. पिता : स्व. चवन राम.
राजनीतिक गतिविधि : छात्र जीवन से ही सक्रिय राजनीति की सेवा का माध्यम बनाया। छात्र संघर्ष समिति के संयोजक की भूमिका निभाते हुए जमशेदपुर में विश्वविद्यालय स्थापना के आंदोलन में भाग लिया। -लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन का जमशेदपुर में नेतृत्व किया। फलत: गया जेल में रखे गये। वहां इनकी मुलाकात प्रदेश के कई शीर्ष नेताओं से हुई। श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाये गये आपातकाल में भी उन्होंने जेल की यात्रा की। -1977 में श्री दास जनता पार्टी के सदस्य बने। -1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के साथ ही इन्होंने सक्रिय राजनीति की शुरूआत की। मुंबई में हुए भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में 1980 में भाग लिया। -जमशेदपुर में सीतारामडेरा भाजपा मंडल के अध्यक्ष बनाये गये। फिर महानगर जमशेदपुर के महामंत्री व तत्पश्चात उपाध्यक्ष बनाये गये।
भाजपा का नेतृत्व : 2005 में विधानसभा क्षेत्र का चुनाव होने के पूर्व श्री दास को 2004-05 में झारखंड प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। इनके नेतृत्व में झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ा गया और भाजपा राज्य में 30 सीटों पर विजय हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। वर्ष 2009 के चुनाव के पूर्व इन्हें दोबारा भाजपा अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। 16 अगस्त 2014 को अमित शाह की अध्यक्षता में गठित भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इन्हें उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।
प्रशासनिक दायित्व : 2000 में बिहार का विभाजन कर झारखंड अलग राज्य बनाया गया। झारखंड सरकार में रघुवर दास श्रम नियोजन मंत्री बनाये गये। इसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनी सरकार में इन्हें भवन निर्माण विभाग का मंत्री बनाया गया। 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में जब भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी तो श्री दास को वित्त, नगर विकास व वाणिज्य कर विभाग का मंत्री बनाया गया। 2009 में झारखंड में जब झामुमो और एनडीए की सरकार शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनी तो इन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया तथा वित्त वाणिज्य कर, ऊर्जा, नगर विकास, आवास एवं संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों के दायित्व सौंपे गये।
१९९५ से लगातार विधायक रहे हैं…शुद्ध शाकाहारी धार्मिक प्रवृत्ति के स्वच्छ छवि वाले रघुबर दास, जमशेदपुर के लिए काफी लोकप्रिय हैं. वे एक अच्छे सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता के रूप में हमेशा लोगों के दुःख सुख में साथ रहते हैं. हर वर्गों के पर्व त्यौहार में भी अपनी सक्रियता दिखलाते हैं. चूंकि झाड़खंड बिहार का ही हिस्सा था, यहाँ रहने वाले और विभिन्न कारखानों में काम करने वाले अधिकांश मूलरूप से उत्तर बिहार या बिहार के हैं. वे होली दिवाली और छठ पूजा बड़े धूम धाम से मानते हैं. छठ पर्व में वे नदी के विभिन्न घाटों का दौरा करते हैं और शिविर लगाकर अपने कार्यकर्ताओं द्वारा और खुद भी आवश्यक मदद करतै हैं. सिद्धगोरा स्थित सूर्य मंदिर, उन्ही की पहल और प्राथमिक 10 हजार की अनुदान राशि का ही कमाल है कि आज वहां सूर्य भगवान का भव्य मंदिर सात घोड़ों के रथनुमा शैली में बना है. उसके सामने उद्यान, दो पक्के तालाब, जहाँ छठ व्रती छठ के अवसर पर भुवन-भास्कर को अर्घ्य देते हैं. अन्य दिनों में खासकर आजकल वहां वनभोज का आयोजन होता है, बच्चे विभिन्न खेल कूद प्रतियोगिता में भाग लेते हैं, नौकायन करते हैं और कभी कभी जन सभाएं भी होती है. पहले पूरा इलाका वीरान था, आज गुलजार है. पूर्वी जमशेदपुर क्षेत्र के ऐसे इलाके जहाँ टाटा कंपनी सीधे कोई सुविधा नहीं दे सकती उन इलाकों में बिजली, पानी, सड़क, एवं अन्य सुविधाएँ बहाल करने में रघुबर दास का बड़ा योगदान है, इसीलिये वे लगातार पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं. अब पूरा झाड़खंड भी गुलजार हो, यही उम्मीद की जानी चाहिए. टाटा स्टील को लौह अयस्क और कोयला आदि कच्चा माल अपने खदानों से मिले ताकि अर्थब्यवस्था ठीक-ठाक बनी रहे. अमन और शांति का वातावरण हो…नक्सली समस्या का स्थाई हल निकले, मजदूरों का दूसरे राज्य की तरफ पलायन रुके, शिक्षा की स्थिति में सुधार में हो, …और भ्र्ष्टाचार से लड़ने का वादा तो खुद ही कर चुके हैं… इसी उम्मीद के साथ रघुबर जी को और उनके साथ शपथ ग्रहण करने वाले माननीय मंत्रियों न श्री नीलकंठ मुंडा जी, श्रीमान सी पी सिंह जी, चन्द्र प्रकाश चौधरी, और डॉ लुइस मरांडी को अनेक-अनेक शुभकामनाएं और बधाई! जय झाड़खंड! साथ में जोहार झाड़खंड भी ! 
- जवाहर लाल सिंह. जमशेदपुर.

लहर अभी बाकी है

लहर अभी बाकी है, ब्रेक न लगाइये.
देश अभी जागा है, उसे न सुलाइए.
झाड़खंड को जीता है, जम्मू तक पहुंचा है.
प्रेम सद्भाव की हवा को बहाइये.
सभी भारतीय हैं, प्रेम अभिलाषी हैं,
बीच मंझधार में, नाव न डूबाइए
साथ सबको चलना है, आगे ही बढ़ना है,
धर्म और जाती का भेद न बढाइये.
सबला बने अबला, बालक सुरक्षित हो,
सार्वजनिक हित में, कदम को बढाइये.
झंडा तिरंगा है, नदी सोन गंगा है,
राष्ट्रीय ध्वज को और फहराइये.
चाहे कोई जाती है, ईश्वर की थाती है,
छोटे बड़े सबको, गले से लगाइये.
नक्सल बनवासी हों, या कि आदिवासी हो,
भटके लोगों को, नया राह दिखलाइये .
- जवाहर

ललितनारायण मिश्र हत्याकांड: न्यायपालिका ने लिया चालीस साल



ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री थे। 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर बम-विस्फोट कांड में उनकी मृत्यु हो गयी थी।
वह पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक ‘लेटरल रोड’ की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।
याद आता है कि सत्तर के दशक में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने पटना से एक ट्रेन शुरू की थी,समस्तीपुर-नई दिल्ली जयंती जनता एक्सप्रेस। उसकी शायिकाएं (स्लीपर कोच) मधुबनी पेंटिंग की प्रतिकृति से सजाई गई थीं। उन दिनों यह ट्रेन दिल्ली जाने-आने के लिए सबसे कम समय लेती थी और सबसे ज्यादा शानदार मानी जाती थी। जयंती जनता एक्सप्रेस अब बंद हो चुकी है।
ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उसे साहित्य अकादमी में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।
पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या के मामले में दोषी करार दिये गये चारों आरोपियों को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनायी है. सभी चार अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी करार दिया गया था. अदालत ने चारों दोषियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है.
बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर दो जनवरी, 1975 को तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या कर दी गयी थी. जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 12 सितंबर को इस हत्याकांड में सीबीआइ और इस हत्याकांड के चारों अभियुक्तों के वकीलों की दलीलें सुनने की कार्यवाही पूरी की थी. अदालत ने कहा था कि इस मामले में 12 नवंबर को फैसला सुनाया जायेगा, लेकिन बाद में इसे आठ दिसंबर के लिए स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि निर्णय तैयार नहीं हो सका था. पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा बिहार के समस्तीपुर जिले में 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्राडगेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने गए थे, जहां वह एक बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। विस्फोट में जख्मी मिश्र की अगले दिन ही दानापुर के रेलवे अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी|
इस हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई के दौरान 200 से अधिक गवाहों से पूछताछ हुई. इसमें अभियोजन पक्ष के 161 और बचाव पक्ष के 40 से अधिक गवाह शामिल थे. हत्याकांड में आरोपी वकील रंजन द्विवेदी को 24 साल की उम्र में आनंद मार्ग समूह के चार सदस्यों के साथ आरोपी बनाया गया था. द्विवेदी के अलावा मामले में संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत व गोपालजी अभियुक्त हैं.
कडकडडूमा अदालत के जिला जज विनोद गोयल ने चारों अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया तथा प्रत्येक पर 10 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। इस हत्याकांड में 39 साल 11 महीने और 16 दिन बाद अपराधियों को सजा सुनाई गई है।
गोयल ने गत 15 दिसम्बर को इस मामले में सजा पर सुनवाई पूरी की थी और सजा के एलान के लिए गुरूवार 18 दिसम्बर की तारीख तय की थी। इससे पहले आठ दिसंबर को इस मामले में चारों आरोपियों आनंदमार्ग अनुयायी गोपाल जी, रंजन द्विवेदी, संतोषानंद अवधूत और सुदेवानंद अवधूत को भारतीय दंड संहित (आईपीएस) की धाराओं 302 हत्या और 120 बी आपराधिक षडयंत्र के तहत दोषी करार दिया गया था। इनपर विस्फोट करने तथा सबूत नष्ट करने का दोष सिद्ध हुआ है।
अदालत ने उन्हें विस्फोटक कानून के तहत भी दोषी ठहराया था। इस मामले के एक अन्य आरोपी की मृत्यु हो चुकी है। अदालत ने 15 दिसम्बर को सुनवाई में दोषियों की सजा की अवधिपर दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद सजा सुनाने के लिए गुरूवार की तारीख मुकर्रर की थी।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दोषियों को फांसी की सजा दी जाए या नहीं, इसका निर्णय अदालत पर छोड़ दिया था। बचाव पक्ष के वकीलों ने दोषियों की अधिक उम्र को देखते हुए नरमी बरतने की अपील की है।
इस हादसे में दो और लोगों सूर्य नारायण झा और रामकिशोर प्रसाद की भी मौत हो गई थी.
इसके अतिरिक्त ललित नारायण मिश्र के छोटे भाई व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य लोग घायल भी हुए थे. इस विस्फोट के पीछे आनंद मार्गियों का हाथ होने का आरोप लगा था.
स्थिति यही है कि ललित नारायण मिश्र के परिवार इस फैसले से खुश नहीं है. मामले को शांत करने के लिए उस समय ललित नारायण के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र को बिहार का मुख्य मंत्री बना दिया गया था. पर जगन्नाथ मिश्र में वो बात नहीं थी जो ललितनारायण मिश्र में थी. जगन्नाथ मिश्र का नाम रिश्वतखोरी के लिए ही ज्यादा बदनाम हुआ. आज भी वे चारा घोटाला में दोषी हैं और जमानत पर बाहर हैं. ललित नारायण की हत्या के पीछे राजनीतिक साजिश की भी खबरें उड़ी थी. वे एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्हें उनके प्रतिद्वंदी पसन्द नहीं करते थे.
न्यायपालिका पर सवाल इसलिए उठता है कि इतने चर्चित और वी आई पी के मुक़दमे के फैसले आने में अगर चालीस साल लग जाय, तो बाकी मुकदमों का क्या होगा. और भी बहुत सारे मुकदमे और फैसले न्यायपालिका के पास लंबित है. निर्भया कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं हुई. बड़े लोगों को अदालत से जमानत और सुविधायें भी जल्द मिल जाती है. संत आशाराम, संत रामपाल जैसे लोगों को गिरफ्तार करने में प्रशासन को क्या क्या पापड़ बेलने पड़े. पूरा देश गवाह है. इन सबकी कार्रवाई अभी चल रही है, पता नहीं फैसला कब आयेगा? और सजा कब मिलेगी? अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. अगर सजा का डर नहीं होगा तो इसी तरह अपराध होते रहेंगे. जनता त्राहि-त्राहि करती रहेगी.
अत: अगर अदालतों में संशाधन की कमी है तो उसे जल्द से जल्द दुरुस्त करनी होगी. साक्ष्य और पैरवी की नई तकनीक विकसित करनी होगी. तभी आम जनता का भरोसा इन अदालतों पर होगा. साथ ही खर्चीली प्रक्रिया और वकीलों की फीश आदि में भी त्वरित सुधार किये जाने चाहिए, ताकि न्याय आम आदमी तक पहुँच सके. इन सबके लिए उच्च पदाशीन और बुद्धिशील लोगों को पहल करनी होगी. आखिर इस लोकतान्त्रिक जनतांत्रिक प्रणाली का फायदा आम लोगों तक कैसे पहुंचेगा? अपराधों पर लगाम कैसे लगेगी? हम कब सुराज की तरफ बढ़ेंगे. जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

होते हैं बलात्कार इण्डिया में ...



(१६ दिसंबर २०१२ की निर्भया कांड की स्मृति में )
होते है बलात्कार इण्डिया में,
भारत में नहीं !
कहा जिस महोदय ने,
वे देखते नहीं
गांव के खेतों में,
खलिहानों में, गलियों में,
मचानों पर, दुकानों पर,
घरों में, कोह्बरों में
किस तरह तार-तार होती है
महिलाओं की अस्मत!
किस तरह बच्चियां
मसल दी जाती हैं
मासूम कली की तरह
फूल बनने से पहले ही.
कैसे जला दी जाती हैं
नवबधुयें,
दहेज़ के अंगारों में
ये झगड़ा अब
होना चाहिए ख़त्म
भारत और इण्डिया का
एक देश है मेरा
लोक गीत और दांडिया का
लड़नी हैं लड़ाइयां अभी कई कई
बहने बेटियां सुरक्षित रहें सभी
ओ राम सिंह ओ शिव यादव
नालायकों, कायरों,
आशाराम, रामपाल
असंत हो सभी
नाम बदल लेते
कुकर्म से पहले
कापुरुष हैं मुंडिया
भारत हो या इण्डिया
-जवाहर लाल सिंह

मन की बात



प्रधान मंत्री श्री मोदी आजकल रेडियो के द्वारा अपने मन की बात उनलोगों तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, जहाँ टेलीविजन की सुविधा नहीं है.पिछली बार उन्होंने काला धन कितना और कहाँ है, उससे अनभिग्यता जताई थी. इस बार नौजवानों को नशा से दूर रहने का सन्देश दिया. सन्देश अच्छा है. योग दिवश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली यह भी भारत के लिए गर्व करने की बात है. सांसदों द्वारा एक गाँव को गोद लेने वाली बात भी प्रभावी लगी. प्रधान मंत्री की स्वच्छता अभियान से बड़े बड़े लोग जुड़ रहे हैं. संकेत अच्छे हैं, पर क्या परिणाम सकारात्मक हो रहे हैं?
कम से कम मुझे ऐसा नहीं लगता कि अपने देश में कुछ चमत्कारी परिवर्तन हो रहे हैं. सरकारी संपत्ति की बंदरबाँट आज भी चल रही हैं. खुशामद-पैरवी का जमाना ज्यों का त्यों है. महिला सुरक्षा जब दिल्ली में नहीं है तो और दूसरी जगहों की क्या बात करें. लूटपाट हत्याएं ज्यों की त्यों चल रही हैं..आतंकवादी गतिविधियों और नक्सली आतंक में कोई कमी नहीं दीख रही. ट्रेनें दुर्घटना की शिकार हो रही हैं. मानवरहित रेल क्रॉसिंग पर हाल में हुई दर्दनाक घटनाएँ दिल दहला देने वाली हैं. सीमा पर आतंक का पहरा है.. हमारे जवान मारे जा रहे हैं. अर्थब्यवस्था में भी कोई खास सुधार होता नहीं दीखता. बेरोजगारी मुंह बाये खड़ी है.सार्वजनिक स्थानों पर भी गंदगी कम हुई है, ऐसा कहीं दीखता नहीं. कचरे के ढेर और गंदगी की तस्वीरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं.
प्रधान मंत्री के सिपहसलारों, सांसदों के बयान और फिर माफीनामा, चेतावनी के बाद भी बदस्तूर जारी है.
विदेशों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं. परिणाम आना अभी बाकी है. विदेशों से काला धन लाने की बात को छोड़ भी दें, तो क्या अपने देश में छिपे हुए काले धन को पता लगाने के लिए कोई शुरुआत की गयी है क्या? बाबा रामदेव बीच बीच में ताव में आते हैं, फिर चुप हो जाते हैं. टी वी पर परिचर्चाओं में समाधान के बजाय एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और राजनीति खूब चल रही है. मीडिया वालों के पौबारह हैं. ख़बरें मिल रही हैं, उन्हें नमक-मिर्च लगाकर चलाना उनकी जैसे मजबूरी बन गयी है.
सम्भवत: झाड़खंड और कश्मीर में भी भाजपा सरकार बना ले, पर जबतक परिवर्तन नहीं आएगा जनता का मोहभंग होना लाजिमी है. मूल बातें जो विकास में बाधक है – वह है प्रबल ईच्छा-शक्ति का अभाव. सरकारी तंत्र की शिथिलता. जनजागरण और जन सहयोग की कमी. क्या हम सचमुच अपनी आदतें बदलने लगे हैं. अपने आस पास को साफ़ रखने में मदद कर रहे हैं.या कम से कम गन्दा नहीं कर रहे हैं.? मुझे नहीं दीखता ..जहाँ तंत्र सही है, वहां पहले भी ठीक था आज भी ठीक है. वरना भीड़ भाड़ वाले ट्रेनों की स्थिति देखकर तो नहीं लगता कि हम कुछ सीख चुके हैं या अपनी आदतें बदलने लगे हैं.
नशामुक्ति कैसे होगी जबतक उसका उत्पादन और बिक्री धरल्ले से चलता रहेगा. अपराध कैसे थमेंगे जबतक कि उस पर कठोर कार्रवाई और सजा नहीं होगी? वी आई पी के मुकदमों का फैसला और सजा सुनाने में जब न्यायपालिका को ४० साल लग जाते हैं. वह भी संतोषजनक नहीं. फैसला के बाद भी सजा तुरंत नहीं मिलती… इंतज़ार होता रहता है,.. छूट मिलती रहती है. .तकनीक के विकास के साथ कुछ चीजें तो पारदर्शी हुई हैं, पर जटिलता में कोई कमी नहीं आयी. बंगलुरु का ISIS को मदद पहुँचानेवाले वाले मेहंदी मसरूर बिश्वास का केस सामने है. और भी कई ठिकानों पर आतंक के बादल मंडरा रहे हैं. ऊपर से धर्मांतरण और घर वापसी का मुद्दा भी गर्माता जा रहा है. अनिष्ट की आशंका बढ़ती जा रही है. दोनोंतरफ के कट्टरपंथियोंके बयान से वातावरण विषाक्त बनता जा रहा है.
प्रधान मंत्री जी, मेरी अपनी सोच है कि शिक्षा और नैतिकता हर घर से शुरू होकर स्कूलों, दफ्तरों, और जलसों, पार्टियों में भी दिखनी चाहिए. हम न तो खुद गलती करें न दूसरों को करने दें . सरकारी सहायता हर जगह उपलब्ध हो या अन्य समाज सेवी संगठन को ही मुस्तैद रहना चाहिए. हम एक दूसरे को मानवता के नाम पर ही मदद को तैयार रहना चाहिए. ऐसा नहीं कि किसी पर जुल्म, अत्याचार हो रहा हो और हम देखते रहें. धर्म और समाज को साथ लेकर चलने की जरूरत है न कि नफरत फैलाने की. हिन्दू धर्म के अपने अंदर की खामियों को दूर करना चाहिए ताकि खुद लोग खींचे चले आवें. लोगों को जैन,बौद्ध, सिक्ख, आर्यसमाज, साईं के पास जाने की जरूरत क्यों पडी? गीता, रामायण, महाभारत, वेद, शास्त्र, उपनिषद आदि ग्रंथों में ज्ञान के भंडार हैं, फिर हम अँधेरे में क्यों हैं, अन्धविश्वास के चंगुल में क्यों फंसते हैं. आशाराम, रामपाल, निर्मल बाबा आदि क्यों लोगों को बेवकूफ बनाते हैं? गहन चिंतन मनन और स्वस्थ परिचर्चा की जरूरत है न कि दोषारोपण और जबर्दश्ती करने की….सादर (मैंने भी अपने मन की बात कहने की कोशिश की है आप अपने विचार दे सकते हैं.- जवाहर)

Thursday, 18 December 2014

अगर हो सके तो----

अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिसपर लिखी हो इंसानियत,
मासूमियत, आदमीयत, नेकनीयत,
अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिए पर लिखा हो दर्द,
चीख, पुकार, रुदन और क्रंदन!
अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिसपर लिखा हो शांति,
मर्यादा, अच्छा, बुरा, धर्म और जेहाद
अगर हो सके तो
फाड़ दो उन पन्नों को
जिसपर लिखा हो आन,
बान, शान और तालिबान!  

-    जवाहर 

Sunday, 14 December 2014

अब मलाला को मलाल नहीं, सत्यार्थी जैसा पिता जो मिला



हालाँकि पिछले साल ही मलाला युसुफजई को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन सूची में नाम भेजा गया था, पर किसी कारण वश वह पिछले साल यह पुरस्कार नही पा सकी थी. पिछले साल शांति का नोबल पुरस्कार रासायनिक हथियारों के खिलाफ लड़ने वाली OPCW नाम की संस्था को पुरस्कार दिया गया था.
पर इस साल मलाला ने नोबल पुरस्कार की जंग भी एक भारतीय श्री कैलाश सत्यार्थी (जिन्होने उसे सबके सामने बेटी कहा) धर्मपिता के साथ जीत ली है. जहाँ बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले, बंधुआ बाल मजदूरों को मुक्ति दिलाने वाले श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा – “जिन बच्चों को मैंने बचाया है उसकी मुस्कानों में ईश्वर के दर्शन हुए हैं. मैं उनकी खामोश जुबान का प्रतिनिधित्व करता हूँ. वैश्विक प्रगति में दुनिया का एक भी व्यक्ति पीछे नहीं छूटना चाहिए.” 
वहीं बच्चियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला युसुफजई ने कहा – हाथ में बन्दूक देना आसान है, लेकिन किताब देना मुश्किल है. मैं ६.६ करोड़ लड़कियों की आवाज हूँ. 
इस नोबल पुरस्कार में ११ लाख डॉलर यानी करीब ६ करोड़ ८३ लाख रुपये मिले हैं, जिन्हें दोनों में बराबर बराबर बाँट दिया जायेगा.
अपने एन. जी. ओ. बचपन बचाओ आन्दोलन के जरिये ६० वषीय श्री कैलाश सत्यार्थी ने अब तक अस्सी हजार बच्चों को आजाद कराकर नई जिन्दगी दी है.
मलाला ने अपने संबोधन में कहा कि जब शांति पुरस्कार दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) में साझा लिए जा सकते हैं, तो क्यों नहीं दोनों देश के प्रधान मंत्री एक दूसरे के साथ बात-चीत कर दोनों देशों के बीच शान्ति की स्थापना कर सकते हैं. वास्तव में या अन्तराष्ट्रीय स्तर का सबसे बड़ा पुरस्कार बहुत कुछ कहता है, अगर हम समझने को तैयार हों.
नोबल पुरस्कार पानेवालों की सूची में सबसे कम उम्र वाली युवा और पाकिस्तानी मुसलमान लड़की मलाला और दूसरे ६० वर्षीय बुजर्ग भारतीय हिन्दू … दोनों की सोच गजब की मिलती जुलती है. दोनों बच्चों की शिक्षा और उत्थान के लिए कृतसंकल्प हैं. वैसे इन दोनों को अनेक प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा गया है …पर मेरा मानना है कि ये दोनों पुरस्कार के लिए काम नहीं करते बल्कि इनके जीवन का मकसद एक चुनौती है, जिसके लिए ये दोनों संघर्षरत हैं.
एक लड़की मलाला जो लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रेरित करने वाली १५ साल की उम्र में तालिबानियों के गोली की शिकार हुई और उसने मौत की जंग जीत ली. वहीं कैलाश सत्यार्थी बचपन से ही गरीब बच्चों के प्रति सहानुभूति रखते थे. वर्ष १९९० में ही उन्होंने बचपन बचाओ आन्दोलन की शुरुआत की. वे लोहिया आन्दोलन से भी जुड़े थे और आर्य समाज की समस्याओं को केंद्र में रखकर ‘सत्यार्थी’ नामक किताब लिखी. किताब के शीर्षक से ही उनका नाम कैलाश शर्मा से कैलाश सत्यार्थी हो गया. विदिशा, मध्य प्रदेश में जन्मे कैलाश चर्चा में तब आए जब इन्होने १९९३ में कालीन उद्योग में लगे बाल मजदूरों की आजादी और शिक्षा के लिए बिहार से दिल्ली तक २००० किलोमीटर की पदयात्रा की. वर्ष १९९८ में ८० हजार किलोमीटर की पदयात्रा निकाली जो १०३ देशों में गयी. इया यात्रा से उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली.
सत्यार्थी के मुक्ति आश्रम और बाल श्रम आश्रम में जहाँ बच्चों को शिक्षा दी जा रही है, वही बाल मित्र ग्राम और मुक्ति कारवां जैसे उनके प्रयोग पूरी दुनिया में सराहे जा रहे हैं. वे अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं. बाबूलाल आर्य उनके गुरु थे.
मलाला की ईच्छा राजनीति में आने की है और वह बेनजीर भुट्टो की तरह पकिस्तान की प्रधान मंत्री बनकर देश की सेवा करना चाहती है. जबकि कैलाश सत्यार्थी अपने बचपन बचाओ आन्दोलन के तहत हर बच्चों को उसका बचपन वापस दिलाना चाहते हैं.
इन दोनों शांति दूतों को अमेरिकी सीनेट ने भी सम्मान का प्रस्ताव पेश किया है.
अपने देश और मध्य प्रदेश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि आज दुनिया भर में मशहूर कैलाश सत्यार्थी को उनके ही प्रदेश के विधायक और राजनीतिक नहीं जानते उनके अनुसार कैलाश नामका व्यक्ति सिर्फ कैलाश विजय वर्गीय (मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट स्तर के मंत्री और भाजपा नेता) हैं और नोबल पुरस्कार के हकदार भी …. हमारे माननीय जो जनता के प्रतिनिधि हैं, सामान्य ज्ञान और ताजा ख़बरों से कितने अनभिग्य हैं.
दूसरी खबर जो कि मोदी जी और बाबा रामदेव साथ साथ ही पूरे देश के लिए गौरवान्वित करनेवाली है, वह है अन्तर्राष्ट्रीय रूप से २१ जून को ‘योग दिवश’ के रूप में घोषणा करना है. प्रधान मंत्री ने यूनाइटेड स्टेट में ‘योग दिवश’ को अन्तर्राष्ट्रीय रूप में मनाने का प्रस्ताव पेश किया था. 
पर, अपने देश में ये क्या हो रहा है. जहाँ प्रधान मंत्री श्री मोदी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ न्यूक्लियर एनर्जी के साथ साथ सामरिक क्षेत्रों में भी आपसी समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे, वहीं उनके अनुयायी(साक्षी महाराज आदि) कभी कभी विवादास्पद बयान देकर उसे वापस भी लेते हैं और संसद के कीमती समय को अवांछित मुद्दे पर बर्बाद करते हैं. दूसरा मुद्दा धर्मान्तरण और घर वापसी का है. जहाँ भाजपा को सहयोग करनेवाली संस्थाएं इसे बृहद स्तर पर करने जा रही है. बंगला देश से आए नागरिकों को हिन्दू बनाया जाना – पता नहीं यह हिन्दू धर्म को शिखर पर ले जायेगा या….?
एक रहस्य पर से पर्दा श्री मुलायम सिंह यादव ने हटाया. उनके अनुसार जिस घर वापसी की चर्चा टी वी, अख़बारों में और इस संसद में हो रही है, उसकी भनक तक उनको नहीं है, जबकि वे उसी आगरा(उत्तर प्रदेश) के मुखिया के पिता और जमीन जुड़े हुए नेता कहे जाते हैं… अब क्या संसद इन अखबारों के आधार पर चलेगी? …. नहीं मुलायम सिंह जी, संसद मीडिया के आधार पर नहीं चलती, बल्कि संसद के आधार पर मीडिया चलती है…. और यही मीडिया सरकारें और सांसद बनाती और मिटाती भी है. अभी भी आपने मीडिया की आवाज को नहीं सुना? कुछ दिन और इंतज़ार कर लीजिये, आप भी भारत के भावी प्रधान मंत्री का सपना कई सालों से देखते चले आ रहे हैं….मीडिया की जरूरत तो पड़ेगी ही, आपको भी….
आपके राज्य में कानून ब्यवस्था भी ठीक ठाक है, वहां पुलिस कर्मी भी गुंडों द्वारा नहीं मारे जा रहे हैं. …. और उबर टैक्सी में दुष्कर्म के बाद इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर छेडछाड की जो घटना हुई वह भी कोई बड़ी बात नहीं है … हो जाती है गलती …अनजाने में या शराब के नशे में…. यही न कहेंगे आपलोग? …..और अब बंगलोर से गिरफ्तार ISIS को सूचनाएं पहुचने वाला मेहदी मसरूर बिस्वास …..???
सारा देश कुछ अच्छे की उम्मीद कर रहा है, पर देश अपनी रफ़्तार से ही चल रहा है अर्थ-ब्यवस्था से लेकर स्वच्छता और स्वास्थ्य तक. प्रधान मंत्री जी और सभी सम्मानित जन प्रतिनिधि अपने अन्दर झांकें और देश को नई दिशा दें …इसी उम्मीद के साथ जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर