१५ नवम्बर २००० को बिहार के प्राकृतिक संसाधन से भरपूर वनांचल क्षेत्र को झारखण्ड नाम देकर अलग कर दिया गया. तर्क यह दिया गया कि छोटे राज्य होने से विकास की संभावनाएं बढ़ेगी. अधिकांश उद्योग धंधे और खनिज सम्पदा इसी क्षेत्र में है, बिहार का बाकी हिस्सा मैदानी इलाका है, जहाँ कृषि पैदावार अच्छी होती है.
वस्तुत: राजनैतिक स्तर पर 1949 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ जो पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में पूरी तरह से दबंग पार्टी रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी माँग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल का भी क्षेत्र शामिल था। आयोग ने उस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 1950 के दशकों में झारखंड पार्टी बिहारमें सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका में रहा, लेकिन धीरे धीरे इसकी शक्ति में क्षय होना शुरु हुआ। आंदोलन को सबसे बड़ा आघात तब पहुँचा, जब 1963 में जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी को बिना अन्य सदस्यों से विचार विमर्श किये कांग्रेस में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे-छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी और विभिन्न मात्राओं में चुनावी सफलताएँ भी हासिल करती थीं।
१५ नवम्बर २००० से १८ मार्च २००३ तक भाजपा के बाबूलाल मरांडी झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे. बाद में पार्टी में आतंरिक विरोध के चलते बाबूलाल मरांडी को कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा को मुख्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद शिबू सोरेन मात्र दस दिन के लिए मुख्य मंत्री बने, और समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, अर्जुन मुंडा और फिर राष्ट्रपति शासन. …अब उम्मीद है कि शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत शोरेन कांग्रेस के समर्थन से झारखण्ड के मुख्य मंत्री बनने वाले हैं, मतलब कुल १३ साल के ही अन्दर इस राज्य को तीन बार राष्ट्रपति शासन और नौ मुख्य मंत्री को झेलना पड़ा.
शिबू सोरेन का दुर्भाग्य या अति महत्वाकांक्षा ही कहा जायेगा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद भी वे मुख्य मंत्री के रूप में ज्यादा दिन स्वीकार नहीं किये गए. इन्हें इस क्षेत्र का ‘गुरूजी’ भी कहा जाता है. इन्हें ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि से भी नवाजा गया है. शिबू सोरेन ने झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. कई बार सांसद और मंत्री भी बने. पर हमेशा विवादों में रहे. नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए इन्होने अपने पांच सांसदों के साथ घूस भी लिया था. साथ ही कई हत्याकांडों में आरोपित रहे, सजा भी काटी, बीमार भी रहे, पर पुत्र-मोह में अभी वे धृतराष्ट्र को भी मात देने वाले हैं.
उनके सुपुत्र झारखण्ड के मुख्य मंत्री तो बन जायेंगे, पर इसके लिए उन्हें कितना समझौता करना पड़ा है, यह तो धीरे धीरे सामने आने ही वाला है. कांग्रेस इन्हें पूरी तरह से चंगुल में ले चुकी है और हेमंत सोनिया के काल्पनिक गोद में बैठ चुके हैं. झारखण्ड विकास पार्टी के सांसद डॉ. अजय कुमार विधायको के खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए, प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख चुके हैं. उनके अनुसार करोड़ो में बिकने वाले विधायक जनता का क्या काम करेंगे, यह बात किसी के समझ से बाहर नहीं है.
अब तक जितनी पार्टियों की सरकारें यहाँ बनी है सभी ने झारखण्ड का भरपूर दोहन किया है. विकास के नाम पर प्रगति- जीरो. आदिवासियों की हालत और बदतर हुई है, नक्सल आतंक बढ़ा है, उद्योगपतियों, ब्यावासयियों, राजनेताओं की भी हत्या आम बात है. सड़कें, राष्ट्रियों मार्गों की हालत बदतर है. बिजली की हालत ऐसी है कि कल शिबू सोरेन के घर जब मीटिंग चल रही थी, तभी बिजली गुल हो गयी, अन्य समयों की बात क्या कही जाय! उद्योग विस्तार में, केवल टाटा स्टील का जमशेदपुर स्थित कारखाने की क्षमता का विकास हुआ है. इसमे राज्य सरकार का योगदान नगण्य है. १२ मिलयन टन टाटा स्टील का प्रस्तावित ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है. अन्य औद्योगिक घराना यहाँ उद्योग लगाना चाहते हैं, पर राजनीतिक उठापटक के दौर में कुछ खास होता हुआ नहीं दीखता.
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पहले भाजपा के साथ थी अब कांग्रेस के साथ है. इस तरह भाजपा का ह्रास हुआ और कांग्रेस की राजनीतिक ताकत में वृद्धि. ऐसे में बाबा रामदेव का शिबू शोरेन से आकर उनके घर में मुलाकात करना और पुराना सम्बन्ध बताना समझ से परे है. बाबा रामदेव की कूटनीति की, यहाँ क्या जरूरत थी; हो सकता है, बाद में समझ में आवे. पर जो कुछ राजनीतिक नाटक आजकल पूरे देश में चल रहा है, वह कहीं से भी भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.
उत्तराखंड की त्रासदी का विद्रूप चेहरा और उसपर राजनीति दलों की, लाश पर की जाने वाली राजनीति भयावह है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी भी अनगिनत लाशें यत्र तत्र सर्वत्र दीख रही हैं. पूरी तरह से बर्बाद लोग या तो घर बार छोड़ने को मजबूर हैं या अपनी किस्मत का रोना रो रहे हैं. सरकार के अनुसार राहत कार्य पूरा हो चूका है. पर जो दृश्य देखने को मिल रहा है वह भयावह है. पूरा देश दिल खोलकर मदद कर रहा है, प्रधान मंत्री और राज्य सरकार की घोषनाएं हुई है, पर धरातल पर कितना उतरता है, देखना बाकी है.
पहले नरेन्द्र मोदी की केदारनाथ मंदिर को आधुनिक बनाने का प्रस्ताव और अब अमित शाह का राम मंदिर राग. भाजपा पूरी तरह हिंदुत्व की और बढ़ रही है और अन्य विपक्षी पार्टियाँ इसको विरोध करते हुए सेक्युलर राग अलापते हुए पास आती जा रही हैं. हस्र क्या होगा भविष्य के गर्भ में है. इस साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता में पूरा देश दो हिस्सों में बँट जायेगा और भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि का मुद्दा शांत हो जायेगा….
राजनीतिक पंडित अपना अपना आकलन करेंगे ..हमने अपना विचार प्रस्तुत किया है ..बस!जय हिन्द!
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