मोदी की लोकप्रियता और संभावना!
पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने सोमवार(२२.०७.१३) को कहा कि वो गुजरात के
मुख्यमंत्री और बीजेपी चुनाव समिति के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी को भारत के
प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते.
अंग्रेजी न्यूज चैनल सीएनएन-आईबीएन को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मशहूर
अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा, 'एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं नहीं चाहता कि मोदी पीएम
बनें. उन्होंने अल्पसंख्यकों को सुरक्षित महसूस कराने के लिए नोबल बहुत कुछ नहीं
किया है.'
अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के विकास के मॉडल की भी आलोचना की और कहा कि वे
उनके मॉडल के पक्ष में नहीं हैं. दिलचस्प बात यह है कि सेन ने बिहार के विकास मॉडल
की तारीफ करते हुए कहा कि विकास को सामाजिक बदलावों से अलग करके नहीं देखा जा
सकता.
सेन का बिहार मॉडल की तारीफ करना अहम माना जा रहा है क्योंकि 2014 के आम चुनावों के
मद्देनजर यह सवाल उठ रहा है कि विकास का कौन सा मॉडल बेहतर होगा. एक है इनक्लूसिव
मॉडल जिसकी नुमाइंदगी का दावा केंद्र की यूपीए सरकार और बिहार की नीतीश सरकार करती
है. इस मॉडल का समर्थन सेन भी कर रहे हैं. दूसरा है गुजरात मॉडल जिसमें उच्च विकास
दर को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसे गरीबी मिटाने का उपाय माना जाता
है. इस मॉडल का समर्थन जगदीश भगवती और अरविंद पंगरिया जैसे दिग्गज अर्थशास्त्रियों
ने किया है.
सेन ने गुजरात के विकास की चर्चा करते हुए कहा कि वहां भौतिक बुनियादी ढांचा
अच्छा हो सकता है, लेकिन गुजरात मॉडल को स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में बहुत कुछ करने की
जरूरत है और समता लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मोदी ने अल्पसंख्यक या
बहुसंख्यक के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया।
दिग्गज अर्थशास्त्री ने कहा, उन्हें दोनों तथ्यों को लेना चाहिए था कि शिक्षा और
स्वास्थ्यसेवा के क्षेत्र में गुजरात का रेकार्ड बहुत खराब है और उन्हें उसपर
ध्यान केन्द्रित करना है। उतना जितना वह भौतिक बुनियादी ढांचे पर कर रहे हैं।
मोदी के पिल्ले(कुत्ते का बच्चा) और बुरका वाली बात भी आयी-गयी हो गयी. अब
श्री राजनाथ सिंह जो अमरीका में हैं, मोदी को अमरीकी वीजा दिलाने का हर सम्भव प्रयास कर
रहे हैं, तो
६५ सांसदों की हस्ताक्षर वाली चिट्ठी, अमरीका को फैक्स कर उनको वीजा देने पर विरोध जताया है या
वीजा न देने का अनुरोध किया है. उसमे भी विवाद उभर कर सामने आया की कुछ सांसदों के
हस्ताक्षर नकली हैं. मिला जुलाकर का कहें तो हर विरोध/विवाद के बाद उनकी (मोदी की) लोकप्रियता बढ़ती ही
जाती है. मीडिया में आजकल वे छाए हैं. उनके हर भाषण का लाइव प्रसारण कुछ टी वी
चैनलों पर हो रहा है. कांग्रेस उनके हर बात को चर्चा का विषय बनाकर, अपने ही जाल
में फंस जाती है. सुषमा स्वराज की जगह आजकल मीनाक्षी लेखी और वाणी त्रिपाठी जैसी
महिला प्रवक्ताओं ने ले ली है.....
ये तो हुई मोदी का बाहरी विरोध का परिणाम और उनकी बढ़ती लोकप्रियता. ... अब आन्तरिक कलह को भी सुन लीजिये. भाजपा के
वरिष्ठ नेता शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं - भाजपा में वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया
जा रहा है या उन्हें महत्व नहीं दिया जा रहा. यशवंत सिन्हा भी गाहे बगाहे विरोध का
सुर अलाप देते हैं. मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान दबे स्वर में
मोदी की वरिष्ठता को स्वीकार/अस्वीकार करते हैं. वे भी अपने छवि बनाने में लगे हैं,
जिसकी तारीफ लाल
कृष्ण अडवाणी ने की थी. अब मीडिया रिपोर्ट
के ही अनुसार शत्रुघ्न सिन्हा पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है. राम
जेठमलानी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. जसवंत सिंह भी एक बार
बाहर-अंदर हो चुके हैं. देखना यही है कि ऊँट किस करवट बैठता है, जिसके लिए अभी कम
से कम ७-८ महीने का वक्त है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लाल कृष्ण आडवानी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, सुषमा स्वराज आदि बड़े कद के नेता हासिये पर जा रहे
हैं. ऐसे में आर एस एस के मुद्दों पर आधारित हिंदुत्व की छवि, और ढाई तीन हजार युवा के
सोसल साईट पर के समर्थन के बल पर मोदी प्रधान मंत्री के पद पर पहुंच जायेंगे
..कहना कठिन है. मोदी के तानाशाही प्रवृत्ति से भाजपा के अधिकांश नेता खुश नहीं
हैं. पर लोकप्रियता के मामले में मोदी सबसे आगे हैं... क्योंकि वे बहुत अच्छा बोलते
हैं, दर्शक
को बांधकर रखते हैं.
मेरा मानना है भाजपा को कट्टर हिंदुत्व वाली छवि से बाहर आकर अटल जी वाली उदार
छवि अपनानी चाहिए और वरिष्ठ नेताओं को आगे रखते हुए अन्य दलों को अपनी तरफ आकर्षित
करनी चाहिए. अहमदाबाद से अपने संबोधन(२४,०७.२०१३) में मोदी जी ने कई बार ‘अटल’ जी
का नाम लिया और उनके शासन काल में देश की प्रगति की व्याख्या भी की. साथ ही
वर्तमान मनमोहन सरकार की नीतियों की बघिया उघेड़ने से भी बाज नही आए. आम जनता
कांग्रेस से त्रस्त है, पर सही विकल्प तो चाहिए ही.....
प्रस्तुति – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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