Sunday, 14 July 2013

कुण्डलियाँ


कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास!
1.
मेरा उनका आपका, भेद कभी ना जाय.
मन में संसय ही रहे, दूरी नित्य बढ़ाय.
दूरी नित्य बढ़ाय, मनुज बिच भेद बढ़ावे,  
झगड़ा रगड़ा पाय, कभी फिर चैन न पावे.
कहे जवाहर लाल, समझ का है सब फेरा.
जायेगा सब छोड़, छोड़ अब तेरा मेरा.
2.
वर्षा प्यारी है बड़ी, वर्षा बड़ी महान.
बिनु वर्षा प्यासी मही, सूखत सकल जहान.
सूखत सकल जहान, घड़ी भर चैन न आवै.
बादल की मुस्कान, देख जियरा भरमावै.
बादल गरजत आन, सकल जन का मन हर्षा.
टिप टिप करती बूँद, बड़ी प्यारी है वर्षा !
3.
हरियाली चहुओर है, बरसा बादल घोर.
खेतों में फसलें भली, खग कूजे चहु ओर.
खग कूजे चहु ओर, कृषक जन मन मुस्काए.
बीज डाल के खेत, कृषक जन घर को आए.
अंकुरे बीज अनेक, तनिक आ देखो माली.
कल तक थे वीरान, आज छाई हरियाली.
4.
जनमन ढूंढें राम को, राम छुपे मन माहि.
इधर उधर भागे मनुज, कस्तुरी मृग माहि.
कस्तुरी मृग माहि, बावला मन पछताए.
मिले राम जब जीव, मुदित मन अति हर्षाये .
कहे जवाहर लाल, राजे राम जी कण कण
ज्ञान बिना नर मूढ़, व्याकुल होता जनमन.

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