व्योम मध्य निरखि जलद मन मयूर नाच उठे .
दे मृदंग धाक धिनक पायल पग बाज उठे .
गोरी मन झांके पिया श्याम घन से बिजुरिया.
झर झर झर बरसे जलद कोकिल भी कूक उठे।
धरणी अब तृप्त भई, सस्य पूर्ण मस्त हुई
देखि अब धरती हरी, कृषक गण नाच उठे .
दादुर टर्राने लगे, झींगुर भी गाने लगे
गाँव की गोरी संग सखियाँ सब नाच उठे .
आजा रे आजा पिया बिन तेरे धरके जिया,
आँखों का काजर भी कोरों से झांक उठे .
आदिकवि की सुन ली सुन ले अब मेरी भी
संदेसा मेरा भी सैयां से कह देना
बरसाती रातों में जियरा अब काँप उठे .
सादर - जवाहर लाल सिंह
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