Tuesday, 30 July 2013

मोदी की लोकप्रियता और संभावना!

मोदी की लोकप्रियता और संभावना!
पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने सोमवार(२२.०७.१३) को कहा कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी चुनाव समिति के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते.
अंग्रेजी न्यूज चैनल सीएनएन-आईबीएन को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा, 'एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं नहीं चाहता कि मोदी पीएम बनें. उन्होंने अल्पसंख्यकों को सुरक्षित महसूस कराने के लिए नोबल बहुत कुछ नहीं किया है.'
अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के विकास के मॉडल की भी आलोचना की और कहा कि वे उनके मॉडल के पक्ष में नहीं हैं. दिलचस्प बात यह है कि सेन ने बिहार के विकास मॉडल की तारीफ करते हुए कहा कि विकास को सामाजिक बदलावों से अलग करके नहीं देखा जा सकता.
सेन का बिहार मॉडल की तारीफ करना अहम माना जा रहा है क्योंकि 2014 के आम चुनावों के मद्देनजर यह सवाल उठ रहा है कि विकास का कौन सा मॉडल बेहतर होगा. एक है इनक्लूसिव मॉडल जिसकी नुमाइंदगी का दावा केंद्र की यूपीए सरकार और बिहार की नीतीश सरकार करती है. इस मॉडल का समर्थन सेन भी कर रहे हैं. दूसरा है गुजरात मॉडल जिसमें उच्च विकास दर को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसे गरीबी मिटाने का उपाय माना जाता है. इस मॉडल का समर्थन जगदीश भगवती और अरविंद पंगरिया जैसे दिग्गज अर्थशास्त्रियों ने किया है.
सेन ने गुजरात के विकास की चर्चा करते हुए कहा कि वहां भौतिक बुनियादी ढांचा अच्छा हो सकता है, लेकिन गुजरात मॉडल को स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में बहुत कुछ करने की जरूरत है और समता लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मोदी ने अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया।
दिग्गज अर्थशास्त्री ने कहा, उन्हें दोनों तथ्यों को लेना चाहिए था कि शिक्षा और स्वास्थ्यसेवा के क्षेत्र में गुजरात का रेकार्ड बहुत खराब है और उन्हें उसपर ध्यान केन्द्रित करना है। उतना जितना वह भौतिक बुनियादी ढांचे पर कर रहे हैं।
मोदी के पिल्ले(कुत्ते का बच्चा) और बुरका वाली बात भी आयी-गयी हो गयी. अब श्री राजनाथ सिंह जो अमरीका में हैं, मोदी को अमरीकी वीजा दिलाने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं, तो ६५ सांसदों की हस्ताक्षर वाली चिट्ठी, अमरीका को फैक्स कर उनको वीजा देने पर विरोध जताया है या वीजा न देने का अनुरोध किया है. उसमे भी विवाद उभर कर सामने आया की कुछ सांसदों के हस्ताक्षर नकली हैं. मिला जुलाकर का कहें तो हर विरोध/विवाद के बाद उनकी (मोदी की) लोकप्रियता बढ़ती ही जाती है. मीडिया में आजकल वे छाए हैं. उनके हर भाषण का लाइव प्रसारण कुछ टी वी चैनलों पर हो रहा है. कांग्रेस उनके हर बात को चर्चा का विषय बनाकर, अपने ही जाल में फंस जाती है. सुषमा स्वराज की जगह आजकल मीनाक्षी लेखी और वाणी त्रिपाठी जैसी महिला प्रवक्ताओं ने ले ली है.....
ये तो हुई मोदी का बाहरी विरोध का परिणाम और उनकी बढ़ती लोकप्रियता.  ... अब आन्तरिक कलह को भी सुन लीजिये. भाजपा के वरिष्ठ नेता शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं - भाजपा में वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया जा रहा है या उन्हें महत्व नहीं दिया जा रहा. यशवंत सिन्हा भी गाहे बगाहे विरोध का सुर अलाप देते हैं. मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान दबे स्वर में मोदी की वरिष्ठता को स्वीकार/अस्वीकार करते हैं. वे भी अपने छवि बनाने में लगे हैं, जिसकी तारीफ लाल कृष्ण अडवाणी  ने की थी. अब मीडिया रिपोर्ट के ही अनुसार शत्रुघ्न सिन्हा पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है. राम जेठमलानी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. जसवंत सिंह भी एक बार बाहर-अंदर हो चुके हैं. देखना यही है कि ऊँट किस करवट बैठता है, जिसके लिए अभी कम से कम ७-८ महीने का वक्त है.  
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लाल कृष्ण आडवानी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, सुषमा स्वराज आदि बड़े कद के नेता हासिये पर जा रहे हैं. ऐसे में आर एस एस के मुद्दों पर आधारित हिंदुत्व की छवि, और ढाई तीन हजार युवा के सोसल साईट पर के समर्थन के बल पर मोदी प्रधान मंत्री के पद पर पहुंच जायेंगे ..कहना कठिन है. मोदी के तानाशाही प्रवृत्ति से भाजपा के अधिकांश नेता खुश नहीं हैं. पर लोकप्रियता के मामले में मोदी सबसे आगे हैं... क्योंकि वे बहुत अच्छा बोलते हैं, दर्शक को बांधकर रखते हैं. 
मेरा मानना है भाजपा को कट्टर हिंदुत्व वाली छवि से बाहर आकर अटल जी वाली उदार छवि अपनानी चाहिए और वरिष्ठ नेताओं को आगे रखते हुए अन्य दलों को अपनी तरफ आकर्षित करनी चाहिए. अहमदाबाद से अपने संबोधन(२४,०७.२०१३) में मोदी जी ने कई बार ‘अटल’ जी का नाम लिया और उनके शासन काल में देश की प्रगति की व्याख्या भी की. साथ ही वर्तमान मनमोहन सरकार की नीतियों की बघिया उघेड़ने से भी बाज नही आए. आम जनता कांग्रेस से त्रस्त है, पर सही विकल्प तो चाहिए ही.....

प्रस्तुति – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

Sunday, 28 July 2013

मन मयूर नाच उठे !


व्योम मध्य निरखि जलद मन मयूर नाच उठे .
दे मृदंग धाक धिनक पायल पग बाज उठे .
गोरी मन झांके पिया श्याम घन से बिजुरिया.
झर झर झर बरसे जलद कोकिल भी कूक उठे।
धरणी अब तृप्त भई, सस्य पूर्ण मस्त हुई
देखि अब धरती हरी, कृषक गण नाच उठे .
दादुर टर्राने लगे, झींगुर भी गाने लगे
गाँव की गोरी संग सखियाँ सब नाच उठे .
आजा रे आजा पिया बिन तेरे धरके जिया,
आँखों का काजर भी कोरों से झांक उठे .
आदिकवि की सुन ली सुन ले अब मेरी भी
संदेसा मेरा भी सैयां से कह देना
बरसाती रातों में जियरा अब काँप उठे .
सादर - जवाहर लाल सिंह

Tuesday, 23 July 2013

शपथ ग्रहण और उसका औचित्य !


शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप …
1 संघ के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्रारूप :-
‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।) मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।’
2 संघ के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्ररूप :-
‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि जो विषय संघ के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक् निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूँगा।’
* (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा प्ररूप 3 के स्थान पर प्रतिस्थापित।)
यही शपथ झारखण्ड के नए मुख्य मंत्री हेमंत शोरेन ने ली … उनके साथ दो मंत्री राजेंद्र सिंह और अन्नपूर्णा देवी ने भी लिया ..और भी मंत्री बाद में शपथ लेंगे.
हर बार जब भी कोई नयी सरकार बनती है तो उसके मंत्री मंडल के सदस्य शपथ लेते हैं, पर, क्या वे याद रख पाते हैं?
शादी के समय वर- वधु शपथ लेते हैं, अग्नि को साक्षी मान कर!
हर व्यवसाय से जुड़े लोग डॉ. वकील, सेना और पुलिस के जवान, न्यायाधिपति, राष्ट्रपति सभी शपथ लेते हैं.
अदालतों में गवाह, अभियोगी, अभियुक्त भी शपथ लेते हैं. हम सभी अनेक मौकों पर शपथ पत्र (affidavit ) जारी करते हैं.
क्या मतलब है इन सबका? शपथ की कितनी प्रतिशत बातों(भावों) का पूर्णतया पालन होता है? अगर न्यायाधीश, सेना और कुछ डाक्टर को छोड़ दें तो कोई भी व्यक्ति आज के समय में अपने शपथ पर खड़ा नहीं उतरता. फिर यह शपथ ग्रहण का नाटक क्यों?
तिरंगा फिल्म में राजकुमार ने धार्मिक पुस्तक गीता पर हाथ रखने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उसे मालूम था की वह सत्य नहीं बोल रहा, फिर पवित्र ग्रन्थ का अपमान क्यों?
आज भी हम माँ कसम खूब कहते हैं. कोई गंगा की सौंगंध कहता है, कोई देश की सौंगंध कहता है. अगर कायदे से देखा जाय तो इन कसमों में ज्यादा सच्चाई रहती है क्योंकि तब हम अपने दिल और दिमाग को एक रखकर कसम खाते हैं.
शपथ ग्रहण में दिमाग का भी कितना इस्तेमाल होता है, कह नहीं सकते ..सिवाय परम्परा निर्वाह के!
हेमंत शोरेन ने शपथ खाने के बाद कहा वे दिशोम गुरु(शिबू सोरेन) के सपनों को साकार करेंगे. क्या है, शिबू शोरेन का सपना, यह क्या किसी से छुपा है?
बहुत पहले जब गाँव में पंचायत होती थी तो उसे पंचों के सामने/ जनता के सामने कसम खिलाई जाती थी, या फिर उसे मंदिर में ले जाकर कसम खिलाई जाती थी कि वह जो भी कह रहा है, सत्य कह रहा है. गंगा में खड़ा होकर या गंगा जल हाथ में लेकर आदमी झूठ नहीं बोल सकता ..इतना विस्वास था तब. अब तो भगवन को भी हाथ में लेकर या या उनके सामने भी कसम खाने वाला व्यक्ति सच बोलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं. फिर शपथ का नाटक क्यों?
अहिंसा परमो धरम, सदा सत्य बोलो, ईश्वर में आस्था रखो, माता पिता और बड़ों का सम्मान करो. माता पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करो. ये सभी सर्वमान्य सिद्धांत थे. वे सभी आज लुप्त होते जा रहे हैं. तब हम माता, पिता और गुरु की आज्ञा का पालन आंख मूँद कर करते थे. आज हम कानून का उल्लंघन आँख खोल कर करते हैं. न्याय का मंदिर भी आज अछूता नहीं रहा, जहाँ फैसले के इंतज़ार में आदमी मर जाता है, या गलत फैसले का शिकार हो जाता है.
एक सवाल मन में उठता है हमारा इतना अधिक पतन क्यों हुआ और आगे कहाँ तक गिरनेवाले हैं? समाधान और सुधार की जरूरत है या नहीं?… कौन करेगा समाधान … उत्तर अपने आप से पूछना होगा. शुरुआत अपने घर से स्कूल से समाज से करनी होगी …स्वस्थ बीज से स्वस्थ पौधे पैदा होंगे ..इसे स्वीकार करना होगा. पौधे को उचित धूप, हवा पानी और खाद देनी होगी, नहीं तो वह प्रदूषण का शिकार हो जायेगा! और परिणाम …….?????
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 14.07.2013

Sunday, 14 July 2013

Nawya - ८ - दोहे

Nawya - ८ - दोहे

कुण्डलियाँ


कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास!
1.
मेरा उनका आपका, भेद कभी ना जाय.
मन में संसय ही रहे, दूरी नित्य बढ़ाय.
दूरी नित्य बढ़ाय, मनुज बिच भेद बढ़ावे,  
झगड़ा रगड़ा पाय, कभी फिर चैन न पावे.
कहे जवाहर लाल, समझ का है सब फेरा.
जायेगा सब छोड़, छोड़ अब तेरा मेरा.
2.
वर्षा प्यारी है बड़ी, वर्षा बड़ी महान.
बिनु वर्षा प्यासी मही, सूखत सकल जहान.
सूखत सकल जहान, घड़ी भर चैन न आवै.
बादल की मुस्कान, देख जियरा भरमावै.
बादल गरजत आन, सकल जन का मन हर्षा.
टिप टिप करती बूँद, बड़ी प्यारी है वर्षा !
3.
हरियाली चहुओर है, बरसा बादल घोर.
खेतों में फसलें भली, खग कूजे चहु ओर.
खग कूजे चहु ओर, कृषक जन मन मुस्काए.
बीज डाल के खेत, कृषक जन घर को आए.
अंकुरे बीज अनेक, तनिक आ देखो माली.
कल तक थे वीरान, आज छाई हरियाली.
4.
जनमन ढूंढें राम को, राम छुपे मन माहि.
इधर उधर भागे मनुज, कस्तुरी मृग माहि.
कस्तुरी मृग माहि, बावला मन पछताए.
मिले राम जब जीव, मुदित मन अति हर्षाये .
कहे जवाहर लाल, राजे राम जी कण कण
ज्ञान बिना नर मूढ़, व्याकुल होता जनमन.

Saturday, 6 July 2013

झाड़खंड का दुर्भाग्य !

१५ नवम्बर २००० को बिहार के प्राकृतिक संसाधन से भरपूर वनांचल क्षेत्र को झारखण्ड नाम देकर अलग कर दिया गया. तर्क यह दिया गया कि छोटे राज्य होने से विकास की संभावनाएं बढ़ेगी. अधिकांश उद्योग धंधे और खनिज सम्पदा इसी क्षेत्र में है, बिहार का बाकी हिस्सा मैदानी इलाका है, जहाँ कृषि पैदावार अच्छी होती है.
वस्तुत: राजनैतिक स्तर पर 1949 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ जो पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में पूरी तरह से दबंग पार्टी रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी माँग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल का भी क्षेत्र शामिल था। आयोग ने उस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 1950 के दशकों में झारखंड पार्टी बिहारमें सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका में रहा, लेकिन धीरे धीरे इसकी शक्ति में क्षय होना शुरु हुआ। आंदोलन को सबसे बड़ा आघात तब पहुँचा, जब 1963 में जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी को बिना अन्य सदस्यों से विचार विमर्श किये कांग्रेस में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे-छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी और विभिन्न मात्राओं में चुनावी सफलताएँ भी हासिल करती थीं।
१५ नवम्बर २००० से १८ मार्च २००३ तक भाजपा के बाबूलाल मरांडी झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे. बाद में पार्टी में आतंरिक विरोध के चलते बाबूलाल मरांडी को कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा को मुख्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद शिबू सोरेन मात्र दस दिन के लिए मुख्य मंत्री बने, और समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, अर्जुन मुंडा और फिर राष्ट्रपति शासन. …अब उम्मीद है कि शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत शोरेन कांग्रेस के समर्थन से झारखण्ड के मुख्य मंत्री बनने वाले हैं, मतलब कुल १३ साल के ही अन्दर इस राज्य को तीन बार राष्ट्रपति शासन और नौ मुख्य मंत्री को झेलना पड़ा.
शिबू सोरेन का दुर्भाग्य या अति महत्वाकांक्षा ही कहा जायेगा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद भी वे मुख्य मंत्री के रूप में ज्यादा दिन स्वीकार नहीं किये गए. इन्हें इस क्षेत्र का ‘गुरूजी’ भी कहा जाता है. इन्हें ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि से भी नवाजा गया है. शिबू सोरेन ने झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. कई बार सांसद और मंत्री भी बने. पर हमेशा विवादों में रहे. नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए इन्होने अपने पांच सांसदों के साथ घूस भी लिया था. साथ ही कई हत्याकांडों में आरोपित रहे, सजा भी काटी, बीमार भी रहे, पर पुत्र-मोह में अभी वे धृतराष्ट्र को भी मात देने वाले हैं.
उनके सुपुत्र झारखण्ड के मुख्य मंत्री तो बन जायेंगे, पर इसके लिए उन्हें कितना समझौता करना पड़ा है, यह तो धीरे धीरे सामने आने ही वाला है. कांग्रेस इन्हें पूरी तरह से चंगुल में ले चुकी है और हेमंत सोनिया के काल्पनिक गोद में बैठ चुके हैं. झारखण्ड विकास पार्टी के सांसद डॉ. अजय कुमार विधायको के खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए, प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख चुके हैं. उनके अनुसार करोड़ो में बिकने वाले विधायक जनता का क्या काम करेंगे, यह बात किसी के समझ से बाहर नहीं है.
अब तक जितनी पार्टियों की सरकारें यहाँ बनी है सभी ने झारखण्ड का भरपूर दोहन किया है. विकास के नाम पर प्रगति- जीरो. आदिवासियों की हालत और बदतर हुई है, नक्सल आतंक बढ़ा है, उद्योगपतियों, ब्यावासयियों, राजनेताओं की भी हत्या आम बात है. सड़कें, राष्ट्रियों मार्गों की हालत बदतर है. बिजली की हालत ऐसी है कि कल शिबू सोरेन के घर जब मीटिंग चल रही थी, तभी बिजली गुल हो गयी, अन्य समयों की बात क्या कही जाय! उद्योग विस्तार में, केवल टाटा स्टील का जमशेदपुर स्थित कारखाने की क्षमता का विकास हुआ है. इसमे राज्य सरकार का योगदान नगण्य है. १२ मिलयन टन टाटा स्टील का प्रस्तावित ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है. अन्य औद्योगिक घराना यहाँ उद्योग लगाना चाहते हैं, पर राजनीतिक उठापटक के दौर में कुछ खास होता हुआ नहीं दीखता.
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पहले भाजपा के साथ थी अब कांग्रेस के साथ है. इस तरह भाजपा का ह्रास हुआ और कांग्रेस की राजनीतिक ताकत में वृद्धि. ऐसे में बाबा रामदेव का शिबू शोरेन से आकर उनके घर में मुलाकात करना और पुराना सम्बन्ध बताना समझ से परे है. बाबा रामदेव की कूटनीति की, यहाँ क्या जरूरत थी; हो सकता है, बाद में समझ में आवे. पर जो कुछ राजनीतिक नाटक आजकल पूरे देश में चल रहा है, वह कहीं से भी भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.
उत्तराखंड की त्रासदी का विद्रूप चेहरा और उसपर राजनीति दलों की, लाश पर की जाने वाली राजनीति भयावह है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी भी अनगिनत लाशें यत्र तत्र सर्वत्र दीख रही हैं. पूरी तरह से बर्बाद लोग या तो घर बार छोड़ने को मजबूर हैं या अपनी किस्मत का रोना रो रहे हैं. सरकार के अनुसार राहत कार्य पूरा हो चूका है. पर जो दृश्य देखने को मिल रहा है वह भयावह है. पूरा देश दिल खोलकर मदद कर रहा है, प्रधान मंत्री और राज्य सरकार की घोषनाएं हुई है, पर धरातल पर कितना उतरता है, देखना बाकी है.
पहले नरेन्द्र मोदी की केदारनाथ मंदिर को आधुनिक बनाने का प्रस्ताव और अब अमित शाह का राम मंदिर राग. भाजपा पूरी तरह हिंदुत्व की और बढ़ रही है और अन्य विपक्षी पार्टियाँ इसको विरोध करते हुए सेक्युलर राग अलापते हुए पास आती जा रही हैं. हस्र क्या होगा भविष्य के गर्भ में है. इस साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता में पूरा देश दो हिस्सों में बँट जायेगा और भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि का मुद्दा शांत हो जायेगा….
राजनीतिक पंडित अपना अपना आकलन करेंगे ..हमने अपना विचार प्रस्तुत किया है ..बस!
जय हिन्द!

Tuesday, 2 July 2013

संतुलन बनाये ही रखना !

जब होते घने बड़े जंगल,
नक्सल डकैत करते मंगल.
जंगल जब काटे जाते हैं,
विपदा नित नई बुलाते हैं.
जंगल काटा आबाद किया 
खुद को ही यूं बर्बाद किया.
पेड़ों के घर में बने शहर,
छीना जंगल के पशु का घर, 
आई विपदा नित नई मगर. 
जंगल के पशु आ गए शहर,
पशु को जब पिंजरे में डाला,
बन गया बंदी गज मतवाला.
घटते ही गए मृग सिंह बाघ.
बन गया मनुज चालाक घाघ.
जब तापक्रम बढ़ने ही लगा,
हिम खंड स्वयम गलने ही लगा.
नदियों की धारा तेज हुई, 
बाधाएँ सब निश्तेज हुई.
मिट्टी बह गयी किनारों की, 
नींवे हिल गयी दिवारों की.
बह गए खेत घर दूकाने,
इसको आफत क्यों न मानें.
बह गए जानवर नर कितने,
बह गए बाप बच्चे कितने.
बिछ गयी लाश मैंदानों में,
होटल, मंदिर मयखानों में.
भोले नंदी को बचा न सके,
कसैले विष को पचा न सके.
विकराल बन गयी तब गंगा,
खुद काल बन गयी तब गंगा.
जो कोई पथ में भी आया,
धारा का वेग न थम पाया.
पर्वत का पत्थर बिखड गया,
कुटिया गरीब का सिकुड़ गया.
कुदरत का कहर बताने को,
देखो फल अब मनमाने को.
मानव चिंता कर तू अपनी,
फल भोगो अपनी ही करनी.
मानो तुम इस चेतावनी को,
मत छेड़ो ज्यादा धरनी को. 
संतुलन बनाये ही रखना,
कुदरत की सुन्दर है रचना!
नभ, धरनी, पावक, वायु, नीर,
पांचो तत्वों का यह शरीर 
मत करो क्षरण इस संपत को.
अब तो मानो इस सम्मत को. 
- जवाहर लाल सिंह 
०३.०७.१३ ०८:०० बजे शुबह.