Sunday, 17 February 2019

तत्काल कठोर कदम उठाने होंगे


मन बड़ा उद्विग्न है! व्यथित है! व्याकुल है! बेचैन है ! जब १४ फरवरी, अंतर्राष्ट्रीय प्रेम के इजहार दिवस के दिन हमारी सीआरपीएफ की टीम पर बर्बर और कायरतापूर्ण हमला किया गया, जिसमे हमारे ४० से ज्यादा जवान शहीद हुए! ...या कहें बिना मौत मारे गए. इस तरह का कातिलाना और वहशियाना हमला कोई वहशी और शातिर दिमाग का व्यक्ति ही कर सकता है. हमलावर शातिर युवकों को इस तरह की घटना को अंजाम देने के लिए, जिसमे उसके भी चीथरों तक का भी पता न चले ... उसको मानसिक रूप से तैयार करनेवाला व्यक्ति कितना बड़ा वहशी रहा होगा, यह हमारे जैसे लोगों के अनुमान से परे है. भारत या दूसरे शांतिप्रिय देशों के लिए इस तरह का आतंकवाद एक नासूर की तरह हो गया है, जिसका तत्काल खात्मा जरूरी है. अमेरिका जैसा सशक्त देश ऐसे आतंकवादियों से निपट चुका है और उसे सही अंजाम तक पहुंचा चुका है. ओसामा बिन लादेन को उसी के घर में घुसकर, उसने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की तबाही के असली गुनहगार को समाप्त कर दिया. साथ ही उसने अपनी सुरक्षा व्यवस्था भी चुश्त-दुरुश्त कर ली.
समय की मांग है कि हम भी वैसा ही कुछ करें ताकि आतंकवादियों के आकाओं का खात्मा हो, उन्हें पनाह देनेवाले, उन्हें सूचनाएं पहुँचानेवाले लोगों की भी पहचान कर समाप्त करना अत्यंत ही जरूरी है.
यूं छोटे-मोटे हमले और सीमाओं पर आतंकी गतिविधियाँ तो लगातार होती ही रहती हैं. फिर भी पिछले चार-पांच सालों में भी जो बड़े हमले हुए हैं उनमे पठानकोट, उरी और यह पुलवामा शामिल है. हम यह नहीं कहते कि सरकार ने आवश्यक कदम नही उठाए, बल्कि यही कहेंगे कि अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. हमारी सेना की सुरक्षा, हमारे नागरिकों की सुरक्षा, हमारे जान-माल की सुरक्षा की जिम्मेवारी हमारी सरकार की है और उसे हर हाल में करना ही चाहिए क्योंकि वह हमारी ही चुनी हुई सरकार है.
पुलवामा हमले के बाद जो जरूरी कदम उठाए गए हैं उनमे प्रमुख है – भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लिया. इसके आर्थिक नफा-नुकसान की गणना बाद में होती रहेगी. पर पाकिस्तान को भी जरूरी चीजों की कमी होगी जिसकी क्षतिपूर्ति वह चीन या दूसरे देशों से कर लेगा. पर यह पाकिस्तान को एक सन्देश देने की कोशिश की गयी है.
उसके बाद जो दूसरा कदम उठाया गया है वह है- जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए कश्मीरी अलगाववादियों को मिली सुरक्षा छीन लेने का फैसला किया है. इन अलगाववादी नेताओं में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता मीरवाइज़ उमर फारूक, अब्दुल ग़नी बट्ट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी, शब्बीर शाह शामिल हैं. सरकार की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक, इन अलगाववादियों को मुहैया कराई गई सुरक्षा और दूसरे वाहन वापस ले लिए जाएंगे. इसमें कहा गया है, किसी भी अलगाववादी को सुरक्षाबल अब किसी सूरत में सुरक्षा मुहैया नहीं कराएंगे. अगर उन्हें सरकार की तरफ से कोई अन्य सुविधा दी गई है, तो वह भी तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएगी. इसके साथ ही अब पुलिस मुख्यालय किसी अन्य अलगाववादियों को मिली सुरक्षा व अन्य व्यवस्थाओं की समीक्षा करेगा और उसे भी तत्काल वापस ले लिया जाएगा.
इसी के साथ पोखरण में वायु सेना का युद्धाभ्यास को लाइव दिखाया गया. कई चैनेल उसे बार-बार दिखाते रहे. इससे हमे तो हमारी सेना के पराक्रम का पता चलता है, पर यही सब जानकारियां पाकिस्तान और चीन को भी तो पहुँच रही है जिसका वे नाजायज फायदा उठा सकते हैं. हमारी सरकार का इसके पीछे क्या मकसद हो सकता है? सरकार ही जाने! हमें इसपर कोई टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है.
सरकार और सेना द्वारा और भी बहुत सारे अहम जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं और उठाया जाएगा. हम सब शांतिपूर्वक देखेंगे और सरकार तथा सेना का नैतिक समर्थन भी करेंगे. यही राष्ट्र धर्म है ... लगभग सभी राजनीतिक पार्टियाँ भी आज प्रधान मंत्री, केंद्र सरकार और भारतीय सेना के साथ है. सोशल मीडिया पर बहुत सारी बातें चल रही है. इस मुद्दे पर राजनीति न हो, पर कमोबेश अधिकांश लोग अपनी अपनी पार्टी के हिसाब से सत्ता पक्ष को या तो समर्थन कर रहे हैं या दूसरी पार्टी के नेताओं पर उंगली भी उठा रहे हैं. यह एक तरह से आपसी मतभेद पैदा करनेवाली बात हो गयी, जो इस घड़ी मे नहीं होना चाहिए. अभी हमारी एकजुटता काफी जरूरी है, साथ ही सेना और सेना के हताहत परिजनों के साथ खड़े रहने की जरूरत है. इस दुःख की घड़ी में हमें उनके साथ खड़े रहने की जरूरत है. ताकि उनका मनोबल बना रहे और वे पूरे मनोयोग से देश की सेवा और सुरक्षा करते रहें.
थोड़ा सा पीछे चलते हैं - 2 जनवरी 2016 को तड़के सुबह 3:30 बजे पंजाब के पठानकोट में वायुसेना स्टेशन पर भारी मात्रा में असलहा बारूद से लैस आतंकवादियों ने आक्रमण कर दिया. संभवत: जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों से  मुठभेड़ में 2 जवान शहीद हो गये जबकि 3 अन्य घायल सिपाहियों ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. सभी आतंकवादी भी मारे गये. यहाँ से हमने यानी हमारी सेना और सरकार ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करना शुरू कर दिया था. उसके लगभग ९ महीने बाद उरी पर हमला हो गया.
उरी हमला - 18 सितम्बर 2016 को  जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए. हालाँकि सैन्य बलों की कार्रवाई में सभी चार आतंकी मारे गए. यह भारतीय सेना पर किया गया, लगभग 20 सालों में सबसे बड़ा हमला था. उरी हमले में सीमा पार बैठे आतंकियों का हाथ बताया गया. इनकी योजना के तहत ही सेना के कैंप पर फियादीन हमला किया गया. हमलावरों के द्वारा निहत्थे और सोते हुए जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गयी ताकि ज्यादा से ज्यादा जवानों को मारा जा सके. अमेरिका ने उड़ी हमले को "आतंकवादी" हमला करार दिया. उड़ी हमले का बदला भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक से लिया, जिस पर एक फिल्म बनी है, उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइक, यह एक ऐसी फिल्म है जिससे देशहित के लिए राष्ट्रवादी विचारधारा का विकास होगा और हम भारतीयों में राष्ट्रीयता पनपेगी, शायद सरकार का यही मानना है. लेकिन इसका परिणाम शायद आतंकवादियों या पाकिस्तान समर्थकों पर उल्टा हुआ आतंकियों ने CRPF की टीम पर हमला करके अब तक के सबसे बड़ी आतंकी घटना का अंजाम दे दिया. इसमें ४० से ज्यादा जवान शहीद हो गए. पर हाँ, इस हमले के बाद सभी भारतीय और सभी राजनीतिक दल एक हुए हैं और सबके मन में एक बात अवश्य जाग्रत हुई कि देश सर्वोपरि है. अभी सरकार और सेना जो भी फैसले ले रही है या आगे लेनेवाली है, पूरा देश समर्थन करता है बशर्ते कि आतंकवादियों और उसको समर्थन करनेवाली पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूटे और हमारे जवानों पर हमारे देश पर हमला करने से पहले सौ बार सोचे. 
कुल मिलाकर अगर देखें तो चूंकि पाकिस्तान भारत से ही अलग होकर हमारा दुश्मन बन गया है कश्मीर समस्या एक गंभीर मसला है जिसे सुलझाना न तो उतना आसन है नहीं केंद्र में सत्तासीन चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, दोनों की नीतियों में बहुत बड़ा अंतर देखने को नहीं मिला. फिलहाल केंद्र में एक मजबूत सरकार है जिसे पूरी स्वतंत्रता है कि वह जरूरी कदम उठाए और तत्काल अमल में लाये.
जय हिंद! जय भारत! जय जवान! जय किसान!  - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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