शंकर भगवान की नगरी काशी/वाराणसी काफी पुरानी पौराणिक नगरी है। पौराणिक
मान्यताओं के अनुसार यह पृथ्वी से अलग शंकर भगवान के त्रिशूल पर विराजमान है। सत्यवादी
राजा हरिश्चंद्र ने जब पूरी पृथ्वी महर्षि विश्वामित्र को दान कर दी थी, तब
उन्होंने काशी को ही अपने लिए रहने का स्थान चुना था और वहां के राजा चौधरी डोम के
यहाँ चाकरी कर के महर्षि विश्वामित्र को देने योग्य दक्षिणा का इंतजाम करते रहे।
राजा हरिश्चंद्र तब काशी के श्मशान घाट पर
मुर्दा जलाने वालों से ‘कर’ की वसूली(आधा कफ़न के रूप में) करते थे और इसमें भी वे
उतने ही ईमानदार थे कि अपने पुत्र रोहिताश्व की अंतिम क्रिया के समय अपनी पत्नी से
भी कर(आधा कफ़न) वसूल करना नहीं भूले थे।
भगवान शंकर त्रिदेवों में सबसे अलग हैं। वे स्वयं तो भोलेबाबा, आशुतोष, औढरदानी,
शिव हैं ही पर उनका रूद्र रूप न्यायकर्ता के रूप में भी जाना जाता है। वे अपने सभी
भक्तों का कल्याण तो करते ही हैं पर न्याय के लिए ब्रह्मा और विष्णु से भी संघर्ष
करने से नहीं चूकते। इसीलिए वे त्रिदेवों में महान हैं। भगवान राम भी उनकी आराधना
करते हैं और वे भी भगवान राम को अपना आराध्य मानते हैं।
1940 में विश्वविख्यात
वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन भारत आये थे और उन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय को एक
पत्र के माध्यम से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ाने की ईच्छा व्यक्त की थी।
दुर्योग से वह पत्र महामना के पास तब पहुंचा जब आइंस्टीन अमेरिका के लिए प्रस्थान
कर चुके थे और BHU ने एक महान वैज्ञानिक को अपने यहाँ शिक्षक बनने के अवसर को गँवा
दिया। महामना को इस बात का अफसोस हुआ जिसका जिक्र उन्होंने अपने “विज़न डॉक्यूमेंट”
में किया है।
आधुनिक भारत में महात्मा गाँधी से लेकर महामना तक को यह काशी नगरी प्रिय रही
है। आज फिर से गुजरात का एक फकीर काशी में गंगा माँ के बुलावे पर आया है और गंगा
माँ को साफ़ करने का बीड़ा उठाया है। काशी को क्योटो बनाने का संकल्प लिया है पर
काशी की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करते हुए। काशी वाराणसी आज चर्चा में है,
सुर्ख़ियों में है। प्रधान मंत्री सहित उनके मंत्रिमंडल के जाने-माने मंत्रीगण
बनारस में डेरा डाले हुए हैं। और यु पी के दो लड़कों की यारी से लड़ने को और उसे
परास्त करने को हर संभव प्रयास कर रहे हैं। अपने कार्यों उपलब्धियों के बखान से
लेकर जन-संपर्क तक और बाबा भोले से प्रार्थना के साथ-साथ काल भैरव के दरबार तक
मत्था टेक रहे हैं। ये लड़के भी भगवान भोले के पास पहुँच गए अपनी मनोकामना लेकर अब
तो भोले बाबा की दया पर ही निर्भर है कि वे किसे दया का पात्र समझते हैं। एक तरफ
देश का प्रधान मंत्री है तो दूसरी तरफ प्रदेश का मुख्य मंत्री और उसके साथ लगभग सवा
सौ साल पुरानी पार्टी का उपाध्यक्ष। निश्चित ही मुकाबला रोमांचक है सभी राजनीतिक
पंडित, मीडिया, नजरें गड़ाए हुए है यह देखने के लिए कि ऊँट किस करवट बैठता है।
प्रधान मंत्री मोदी ने संभवत: पहली बार रोड शो किया है और ७ किलोमीटर की
यात्रा तीन घंटे में तय की है। सड़क के किनारे खड़े लोगों का आशीर्वाद लिया है। अभीतक
मुस्लिम समाज की टोपी से दूरी बनाते हुए उसके द्वारा दी गई चादर को सर के ऊपर रखकर
सहिद्रयता दिखाई है। एक मुस्लिम मतदाता का तो यहाँ तक कहना है कि अब शायद टोपी को
भी स्वीकार कर लेंगे। समय आदमी से कुछ भी करा लेता है। अब वे कट्टर हिंदूवादी नेता
नहीं है बल्कि भारत जैसे देश के प्रधान मंत्री हैं।
क्योटो का दृश्य (आँखें बहुत कुछ देखती है) एक कविह्र्द्य
मित्र की प्रतिक्रिया
समस्त क्योटो वासी प्रसन्न दिख रहे हैं। उनके सम्राट जो नगर की यात्रा पर आये हैं। प्रत्येक घरों में उत्सव का माहौल है, घर-घर घी के दिए जलाये जा रहे हैं, तोरणद्वार सजाये गये हैं अपने सम्राट के अभिनन्दन के लिए। प्रत्येक घरों में घी के पकवान बनाये जा रहे हैं। महलों एवं मकानों की शोभा देखते ही बनती है। प्रत्येक मकानों में रंग-रोगन करवा दिए गए हैं। रथ समतल सड़कों पर दौड़ रहे हैं, महिलाएं मंगल-गान कर रही हैं। ऐसा दृश्य कि देखकर आँखों को सुकून मिलता है । नदी तट पर नाविक अपनी नौकाओं को फूलों से सजा रहे हैं। उन्हें प्रतीक्षा है कि उनकी नौका में सम्राट बैठकर उन्हें धन्य कर देंगे। बच्चे रंग-बिरंगे परिधानों में घूम रहे हैं, क्रीड़ा कर रहे हैं। सड़कों पर इत्र का छिड़काव कर दिया गया है।
आखिर ये सब हो भी क्यों ना?? सम्राट ने अपनी सत्ता प्राप्ति के बाद इस शहर को स्वर्ग जो बना दिया हैं। मैं भी इन क्योटो वासियो को अपनी बधाई देता हूँ ये कहकर कि सबकी किस्मत में ऐसा सम्राट नही होता। धन्य हैं ये समस्त क्योटोवासी जिनको ऐसे सम्राट की छत्र छाया मिली है! – आभार कविकुल श्रेष्ट!
समस्त क्योटो वासी प्रसन्न दिख रहे हैं। उनके सम्राट जो नगर की यात्रा पर आये हैं। प्रत्येक घरों में उत्सव का माहौल है, घर-घर घी के दिए जलाये जा रहे हैं, तोरणद्वार सजाये गये हैं अपने सम्राट के अभिनन्दन के लिए। प्रत्येक घरों में घी के पकवान बनाये जा रहे हैं। महलों एवं मकानों की शोभा देखते ही बनती है। प्रत्येक मकानों में रंग-रोगन करवा दिए गए हैं। रथ समतल सड़कों पर दौड़ रहे हैं, महिलाएं मंगल-गान कर रही हैं। ऐसा दृश्य कि देखकर आँखों को सुकून मिलता है । नदी तट पर नाविक अपनी नौकाओं को फूलों से सजा रहे हैं। उन्हें प्रतीक्षा है कि उनकी नौका में सम्राट बैठकर उन्हें धन्य कर देंगे। बच्चे रंग-बिरंगे परिधानों में घूम रहे हैं, क्रीड़ा कर रहे हैं। सड़कों पर इत्र का छिड़काव कर दिया गया है।
आखिर ये सब हो भी क्यों ना?? सम्राट ने अपनी सत्ता प्राप्ति के बाद इस शहर को स्वर्ग जो बना दिया हैं। मैं भी इन क्योटो वासियो को अपनी बधाई देता हूँ ये कहकर कि सबकी किस्मत में ऐसा सम्राट नही होता। धन्य हैं ये समस्त क्योटोवासी जिनको ऐसे सम्राट की छत्र छाया मिली है! – आभार कविकुल श्रेष्ट!
अखिलेश यादव का
पहला नारा था – काम बोलता है! फिर जब कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ तो कहने
लगे – यु पी को ये साथ पसंद है! फिर बाहरी बनाम भीतरी का कार्ड खेला।
प्रधान मंत्री भी विकास से कब्रिस्तान और श्मशान पर आ गये, जिसे लोग ध्रुवीकरण की
राजनीति मानते हैं। अखिलेश की पोल खोलते रहे, हर चुनावी सभाओं में। अखिलेश भी
प्रधान मंत्री को जवाब देते रहे, अपनी जनसभाओं
में। भाषा की मर्यादा, पद की मर्यादा, तार-तार हुई। पर किसी को कोई पछतावा नहीं हुआ।
दोनों संवैधानिक पद पर विराजमान हैं। मायावती ने अपनी भाषा की गरिमा कायम रक्खी।
मीडिया भी मायावती को कम तरजीह देती रही है। मीडिया के अनुसार अखिलेश और मोदी में
मुकाबला है। कुछ लोगों का मानना है कि मायावती के वोटर शांत और एकजुट हैं। अखिलेश
और मोदी के वोटर असमंजस में दीखते हैं। मोदी मन्त्र से काफी लोग मुग्ध हैं। कुछ
अखिलेश को यु पी के विकास का प्रतीक और ईमानदार युवा नेता बतलाते हैं। अब यह तो ११
मार्च को ही पता चलेगा कि जनता जनार्दन क्या चाहती है! सबकी नजरें यु पी के चुनाव
परिणाम पर केन्द्रित है। यु पी के चुनाव परिणाम से देश और राज्य के भविष्य का
फैसला होना है।
अगर काम बोलता है
तो इतना बोलने की जरूरत क्यों पड़ रही है। प्रधान मंत्री भी बहुत बोलते हैं! रोचक
अंदाज में बोलते हैं, इसलिए भीड़ को आकर्षित करते हैं। वैसे अखिलेश की सभाओं और रोड
शो में भी भीड़ दीखती है। क्या भीड़ स्वत: प्रेरित है या येन-केन प्रकारेण जमा की
जाती है! मेरा मानना है जितना खर्च प्रचार में होता है उसका आधा भी धरातल पर काम
करने में होता तो भारत का आज रूप ही दूसरा होता। पर हम सभी किम्कर्तव्यविमूढ़ सा देखने
को मजबूर हैं। चाहे नोटबंदी की त्रासदी हो या बैंकों के मनमाना शुल्क, पेट्रोल
सहित वस्तुओं के बढ़ते दाम हो या कानून ब्यवस्था की स्थिति। कोई भी राजनीतिक दल
पूरी तरह पाक-साफ नहीं है। सब कुर्सी चाहते हैं और कुर्सी का लाभ लेना चाहते हैं।
जनता का भला चाहते होते तो मतदान का प्रतिशत इस तरह गिरता न जाता खासकर उत्तर
प्रदेश में। ज्यादातर जगहों में मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है तो उत्तर प्रदेश के अंतिम
चरणों में मतदान का प्रतिशत गिर क्यों रहा है। या तो लोग मान चुके हैं कि उनका कुछ
भला नहीं होनेवाला है। फिर क्या फायदा वोट देने का। ये उदासीनता अच्छी नहीं है
हमें जन भागीदारी दिखानी चहिए मतदान के समय और बाद में भी। आप को अंधों में काना राजा
का ही चुनाव करना है! अच्छे लोग चुनाव नहीं लड़ते, अगर लड़ते हैं तो जीत नहीं पाते
क्योंकि उनके पास प्रचार करने को उतने पैसे नहीं होते! जो दिखता है वही बिकता है!
आइए लोकतंत्र के
इस पर्व में सक्रियता दिखाएँ अपनी पसंद के नेता का ही चुनाव करें यह आपका कर्तव्य
है! जय लोकतंत्र! जय भारत!
-
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - आप सभी को लठ्ठमार होली (बरसाना) की हार्दिक बधाई में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय हर्षवर्धन जी!
Deleteबढ़िया ।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी!
Deleteजनता की नब्ज पहचानना वाकई बहुत मुश्किल काम है, जहाँ देखो वहीं भीड़ नजर आती है तो कौन किसकी तरफ है कैसे पहचानें..
ReplyDeleteजनता की नब्ज पहचानना वाकई मुश्किल है! संतुलित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी!
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