(3 मार्च को उनकी जयंती पर
विशेष प्रस्तुति)
जमशेदजी टाटा (३ मार्च १८३९ - १९ मई १९०४) भारत के महान उद्योगपति
तथा विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक थे। उनका जन्म सन् १८३९ में गुजरात के एक छोटे से कस्बे नवसारी में हुआ था, उनके पिता जी का नाम नुसेरवानजी व उनकी माता जी का नाम जीवनबाई टाटा था। पारसी पादरियों के अपने खानदान में नुसेरवानजी पहले
व्यवसायी थे। भाग्य उन्हें बम्बई ले आया, जहाँ उन्होंने व्यवसाय (धंधे) में कदम रखा। जमशेदजी
१४ साल की नाज़ुक उम्र में ही पिताजी का साथ देने लगे। जमशेदजी ने एल्फिंस्टन
कॉलेज (Elphinstone College) में प्रवेश लिया और अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने हीरा बाई दबू से विवाह कर लिया था। वे
१८५८ में स्नातक हुए और अपने पिता के व्यवसाय से पूरी तरह जुड़ गये।
वह दौर बहुत कठिन था। अंग्रेज़ अत्यंत बर्बरता से १८५७ की क्रान्ति को कुचलने
में सफल हुए थे। २९ साल की आयु तक जमशेदजी अपने पिताजी के साथ ही काम करते रहे।
१८६८ में उन्होंने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक दिवालिया
तेल कारखाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया तथा उसका नाम बदल
कर रखा - एलेक्जेंडर मिल (Alexender Mill)। दो साल बाद उन्होंने इसे खासे मुनाफ़े के साथ बेच दिया। इस पैसे के साथ
उन्होंने नागपुर में १८७४ में एक रुई का
कारखाना लगाया। महारानी विक्टोरिया ने उन्हीं दिनों भारत की रानी का खिताब हासिल
किया था और जमशेदजी ने भी वक़्त को समझते हुए कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल (Empress Mill) (Empress का मतलब ‘महारानी’) रखा।
जमशेदजी एक अलग ही व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने न केवल कपड़ा बनाने के
नये-नये तरीक़े ही अपनाये बल्कि अपने कारखाने में काम करनेवाले श्रमिकों का भी खूब
ध्यान रखा। उनके भले के लिए जमशेदजी ने अनेक नयी व बेहतर श्रम-नीतियाँ अपनाईं। इस
नज़र से भी वे अपने समय में कहीं आगे थे। जमशेदजी के अनेक राष्ट्रवादी और
क्रान्तिकारी नेताओं से नजदीकी सम्बन्ध थे, इनमें प्रमुख थे,दादाभाई
नौरोजी और फिरोजशाह मेहता। जमशेदजी पर और उनकी सोच पर इनका काफी प्रभाव था।
उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है। जमशेदजी के दिमाग में तीन बड़े विचार थे - एक अपनी लोहा व स्टील
कम्पनी खोलना; दूसरा जगत प्रसिद्ध अध्ययन केन्द्र स्थापित करना; व तीसरा जलविद्युत परियोजना (Hydro-electric plant) लगाना। दुर्भाग्यवश! उनके जीवन काल में तीनों में से कोई भी सपना पूरा न हो
सका, पर वे बीज तो बो ही चुके थे, एक ऐसा बीज जिसकी जड़ें उनकी आने वाली पीढ़ी ने अनेक देशों में फैलायीं। जो एक
मात्र सपना वे पूरा होता देख सके वह था - होटल ताजमहल। यह दिसम्बर 1903 में 4,21,00,000 रुपये के शाही खर्च से तैयार हुआ। इसमें भी उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोंच को
दिखाया था। उन दिनों स्थानीय भारतीयों को बेहतरीन यूरोपियन होटलों में घुसने नही
दिया जाता था। ताजमहल होटल इस दमनकारी नीति का करारा जवाब था।
भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी का योग असाधारण महत्त्व रखता है।
इन्होंने भारतीय औद्योगिक विकास का मार्ग ऐसे समय में प्रशस्त किया, जब उस दिशा में केवल
यूरोपीय, विशेषत: अंग्रेज ही कुशल समझे जाते थे। इंग्लैड की प्रथम यात्रा से लौटकर
इन्होंने चिंचपोकली के एक तेल मिल को कताई-बुनाई मिल में परिवर्तित कर औद्योगिक
जीवन का सूत्रपात किया। किन्तु अपनी इस सफलता से उन्हें पूर्ण सन्तोष न मिला। पुन:
इंग्लैंड की यात्रा की। वहाँ लंकाशायर से बारीक वस्त्र की
उत्पादन विधि और उसके लिए उपयुक्त जलवायु का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने नागपुर को चुना और वहाँ वातानुकूलित सूत मिलों की स्थापना की।
औद्योगिक विकास कार्यों में जमशेदजी यहीं नहीं रूके। देश के सफल औद्योगीकरण के
लिए उन्होंने इस्पात कारखानों की स्थापना की महत्त्वपूर्ण योजना बनायी। ऐसे
स्थानों की खोज की जहाँ लोहे की खदानों के साथ कोयला और पानी सुविधा प्राप्त हो
सके। अंतत: आपने बिहार के जंगलों में सिंहभूमि(अब झारखण्ड) जिले में वह स्थान
(इस्पात की दृष्टि से बहुत ही उपयुक्त) खोज निकाला।
जमशेदजी की अन्य बड़ी उल्लेखनीय योजनाओं में पश्चिमी घाटों के तीव्र
जलप्रपातों से बिजली उत्पन्न करनेवाला विशाल उद्योग है, जिसकी नींव ८ फ़रवरी १९११
को लानौली में गवर्नर द्वारा रखी गयी। इससे बम्बई की समूची विद्युत आवश्यकताओं की पूर्ति होने लगी।
इन विशाल योजनाओं को कार्यान्वित करने के साथ ही टाटा ने पर्यटकों की सुविधा
के लिए बम्बई में ताजमहल होटल खड़ा किया जो पूरे एशिया में अपने ढंग का अकेला है।
सफल औद्योगिक और व्यापारी होने के अतिरिक्त सर जमशेदजी उदार चित्त के व्यक्ति
थे। वे औद्योगिक क्रान्ति के अभिशाप से परिचित थे और उसके कुपरिणामों से अपने
देशवासियों, विशेषत: मिल मजदूरों को बचाना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने मिलों की
चहारदीवारी के बाहर उनके लिए पुस्तकालयों, उद्दानों (पार्कों), आदि की व्यवस्था के साथ-साथ दवा आदि की सुविधा भी
उन्हें प्रदान कीं।
टाटा
स्टील (पूर्व में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी लिमिटड) अर्थात टिस्को के नाम
से जाने जाने वाली यह भारत की प्रमुख इस्पात कंपनी
है। जमशेदपुर स्थित इस कारखाने की स्थापना १९०७ में की
गयी थी। यह दुनिया की पांचवी सबसे बडी इस्पात कंपनी है जिसकी वार्षिक उत्पादन
क्षमता २८ मिलियन टन है। कम्पनी का मुख्यालय मुंबई में
स्थित है। यह बृहतर टाटा समूह की एक
अग्रणी कंपनी है। कंपनी का मुख्य प्लांट जमशेदपुर, झारखण्ड में
स्थित है हलाकि हाल के अधिग्रहणो के बाद इसने बहुराष्ट्रीय कम्पनी का रूप हासिल कर
लिया है जिसका काम कई देशों में होता है। वर्ष २००० में इसे
दुनिया में सबसे कम लागत में इस्पात बनाने
वाली कंपनी का खिताब भी हासिल हुआ। २००५ में इसे दुनिया में सर्वश्रेष्ट इस्पात
बनाने का खिताब भी मिला था। वर्ष २००७ के आंकडो के अनुसार इसमें
लगभग ८२,७०० कर्मचारी कार्यरत थे।
आगामी 3 मार्च को स्वर्गीय
जे एन टाटा की १७८ वीं जयंती समारोह के दिन उन्हें श्रद्धांजलि दी जायेगी। मुख्य
समारोह टाटा स्टील, जमशेदपुर के मुख्य गेट के सामने मनाया जाता है। जहाँ कारखाने
के सभी कर्मचारी, अधिकारी, टाटा समूह के निदेशक मंडल के सदस्य गण के साथ टाटा समूह
के नवनियुक्त चेयरमैन श्री एन चंद्रशेखर के साथ रतन टाटा मुख्य अतिथि के रूप में
टाटा साहब की प्रतिमा के सम्मुख अपनी
श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। मुख्य गेट के आगे ही जमशेदपुर का मुख्य डाकघर है वहां
भी टाटा साहब की प्रतिमा लगाई गयी है। जमशेदपुर के गणमान्य और सामान्य नागरिक भी वहां
अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इसके अलावा जमशेदपुर के जुबिली पार्क जिसे दुलहन
की तरह सजाय जाता है वहां भी जमशेदपुर और आस पास के लोग टाटा साहब की विशालकाय
प्रतिमा के सामने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। लगभग पांच दिन तक उत्सव का
माहौल रहेगा। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद प्रतियोगिताएं
आयोजित की जाती हैं, जिसमे सभी वर्ग के लोग अपनी भागीदारी निभाते हैं।
टाटा साहब के अन्दर लिंग,
जाति, धर्म, भाषा आदि किसी भी आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं था, जो आज भी
कंपनी की विरासत है। विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा के दौर में आज भी कंपनी अपने
मूल्यों से समझौता नहीं करती। अपने कर्मचारियों के साथ-साथ आस पास के हर समुदाय के
लोगों के कल्याण के लिए वह दिन रात प्रयासरत रहती है। जमशेदपुर ऐसा शहर है जहाँ आज
भी नगरपालिका या नगरनिगम नहीं है पर टाटा प्रबंधन ही यहाँ के नागरिकों को जन
सुविधा उपलब्ध कराती है। उद्योग एवं वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित
करने का हर संभव प्रयास करती है।
टाटा द्वारा सुनियोजित
कॉलोनियों में हर जाति सम्प्रदाय और क्षेत्र के लोग साथ-साथ रहते हैं और हर एक के
पारंपरिक त्योहार में एक दूसरे का साथ निभाते हैं। यहाँ पर्याप्त मात्रा में
शिक्षण-संस्थान हैं, अस्पताल हैं, पार्क हैं, खेल-कूद के मैदान भी है। गोशालाएं
हैं, फल सब्जियों के लिए भी खेतों में उत्तम ब्यवस्था है। सब्जी मंडी के साथ-साथ
कृषि उत्पादन बाजार समिति की भी मंडियां हैं। यहाँ मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारा,
गिरजाघर और फायर टेम्पल भी है। यहाँ कब्रिस्तान और श्मशान का कोई झगड़ा नहीं है। बिजली
सड़क पानी की ब्यवस्था सर्वसुलभ है। हर प्रकार के आस्थावान लोगों के प्रमुख
त्योहारों में अबाधित बिजली-पानी की सुविधा प्रदान की जाती है। हम सभी जमशेदपुर
वासियों को ऐसे दूरदर्शी महान व्यक्तित्व पर गर्व की अनुभूति होती है। एक बार पुन:
हम सबकी ओर से संस्थापक टाटा साहब को भावभीनी
श्रद्धांजलि ! – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मैं सजदा करता हूँ उस जगह जहाँ कोई ' शहीद ' हुआ हो ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को ब्लॉग बुलेटिन में लिंक कर सम्मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार!
Deleteजमशेद जी टाटा के जीवन और कृत्यों पर आधारित सराहनीय पोस्ट..उनकी १७८ वीं जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteआलेख पढ़ने और उसपर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी!
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