Tuesday, 14 February 2017

उत्तर प्रदेश के दूरस्थ गांव

यूपी में विधानसभा चुनाव जारी है और तमाम पार्टियों के उम्मीवदवारों के चुनावी वादों का दौर भी जारी है. अमरोहा संसदीय क्षेत्र के धनौरा विधानसभा क्षेत्र में स्थित चकनवाला इलाके में गंगा की एक नहर पर आज तक कोई भी सरकार एक पुल नहीं बना सकी और लोगों को पंटून पुल का इस्तेकमाल करना पड़ता है. वादे तो सभी ने किए लेकिन काम किसी ने नहीं किया. १९८९ से यही स्थिति बनी हुई तब से अबतक कितनी सरकारें आईं और गईं. वहां के लोगों का कहना है- सभी दल के लोग आते हैं, वादा करके जाते हैं “पुल बन जायेगा” पर आजतक नहीं बना. सभी पार्टियों के विधायक चुने गए, यहाँ तक कि निर्दलीय विधायक भी बने पर इस पुल को बनाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई. लोग तकलीफ में हैं तो हैं वोट तो मिल ही जाता है. नहर के आस-पास इलाके पर पैदावार भी अच्छी होती है. कभी-कभी बाढ़ आदि की वजह से भले फसलें बर्बाद हो जाती है, पर बाकी के समय में सभी फसलें हो ही जाती है.
जहाँ और सभी चैनेल के पत्रकार स्टूडियो में, विभिन्न शहरों के सभागारों में, काशी के गंगा किनारे से साजो-सामान के साथ चुनाव की कवरेज दिखला रहे हैं, तो वहीं NDTV इंडिया के पत्रकार रवीश कुमार, एक नई पत्रकार अनुप्रिया सांगवान, एक कैमरा मैन को साथ लेकर यु पी के दूरस्थ गांवों का दौरा कर वहां से लाइव रिपोर्टिंग कर रहे हैं. यु पी के कुछ गांव तो काफी विकसित है, पर दूर के कुछ ‘शीशोंवाली’ जैसे गांव भी हैं, जहाँ लोग बड़ी दयनीय स्थिति में रहते हैं. रहने लायक स्थिति तो नहीं है, पर लोग रहते हैं. जर्जर कच्चे घर मकान, बहती हुई नालियां, नही सड़क, नही बिजली, न सही ढंग का शौचालय. मुख्य रूप से खेतों में ही लोग काम करते हैं, जमीन का भी पता नहीं गंगा से निकली हुई नहर के किनारे रेत पर ही तरबूज-खरबूज उपजाते हैं. खेतों में मिहनत मजदूरी करते हैं. किसी तरह गुजारा करते हैं. गांव में एक स्कूल है, जहाँ एक वृद्ध महिला खाना(मिड डे मील) बनाती है. बच्चो को खाने के बाद जो खाना बच जाता है, वही खा लेती है. शाम को भी वही बचा हुआ खाना घर ले आती है. उसको शाम को खा लेती है. किसी दिन नहीं बचा तो भूखे ही सो जाती है. रहने को घर के नाम पर एक टूटी खाट है. उस पर मैला कुचैला बिस्तर बिछा है और ऊपर झोपड़ी जैसा बना है. उस वृद्धा को नहीं वृद्धा पेंसन मिलता है, न ही कोई सरकारी सुविधा… फिर भी जिन्दा है. लोग चाहते हैं ये बुढ़िया मर जाय! पर कैसे मरे मौत आये तब न! स्कूल का खाना खाती है तब भी लोग उसे ताना मारते हैं – बुढ़िया हरामखोर है, हराम की खाती है. हम क्या करें बाबु? कहाँ जाएँ? क्या करें? मेरा कोई नहीं है!
रवीश कुमार भावुक हो जाते हैं वृद्धा के कंधे पर दोनों हाथ रखकर उसे ढाढ़स बंधाते हैं – कहते हैं, “नहीं आप हराम की नहीं खाती हैं, आप तो वहां खाना बनाती हैं, वहां का खाना सरकार के पैसे से बनता है. सरकार पैसे भेजती है. सरकार का काम है हर आदमी को भोजन देना. आप वहीं खायेंगी.” कुछ नेता टाइप के लोगों से/पढ़े लिखे लोगों से आग्रह करते हैं कि इस गाँव की बेहतरी के लिए कुछ कीजिये. चूंकि यह राष्ट्रीय चैनेल है और काफी लोग प्राइम टाइम को देखते हैं तो शायद सरकारी अधिकारियों और नेताओं की ऑंखें खुले. योजनायें तो बनती ही है, पर दूर दराज के गांवों तक पहुंचते-पहुचते दम तोड़ देती है.
सुविधा के नाम पर गांव में एक प्राइमरी स्कूल भर है. अस्पताल, बैंक, बाजार सब कुछ काफी दूर जाने के लिए वही पंटून-पुल जिसपर साइकिल/मोटर साइकिल किसी तरह चल जाता है. बैलगाड़ी भी चलती है. एक ट्रक को देखा ऊपर चढ़ती है फिर नीचे फिसल जाती है. पता नहीं चलता आ रही है या जा रही है. उसे किसी तरह एक ट्रैक्टर से बाँध कर खींचा कर ऊपर चढ़ाया जाता है.
गांव के लोगों का आधार कार्ड बना है, राशन कार्ड भी है … राशन के नाम पर कभी कभी ५ किलो अनाज मिल जाता है. वह भी सबको नहीं जिसके पास कार्ड और आधार है उसे ही मिल सकता है.
पत्रकार को देखकर लोग ऐसे गिड़गिड़ाते हैं जैसे वह सरकारी अधिकारी हो. उससे लोग बहुत उम्मीद बाँध लेते हैं. शायद टी वी पर दिखलाने के बाद नेताओं अधिकारियों की ऑंखें खुले … गांव में भाजपा के कमल का ही झंडा दिखता है, बाकी किसी पार्टी का झंडा भी नहीं है. खड्गवंशी समाज के लोग वहां रहते हैं. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, भाजपा आदि सभी की सरकारें उत्तर प्रदेश में बनी हैं, पर विकास नहीं पहुंचा है यहाँ तक. नरक में कीड़े मकोड़ो की तरह रहते हैं यहाँ के लोग. बिजली के खम्भे हैं, पर बिजली नहीं है. कुछ लोगों ने सोलर पैनेल अपने पैसे से लगा रक्खे हैं. फसल बीमा से भी वे लोग परिचित नहीं हैं. कुछ शौचालय कहने को बने हैं, पर उनका इस्तेमाल भी ठीक ढंग से लोग नहीं करते. इतना पिछड़ा और ख़राब हालत में और भी गाँव होंगे. सरकारों को और अधिकारियों/ग्राम प्रधानों को जरूर इसके बारे में सोचना चाहिए.
और भी कई गांवों का दौरा रवीश कुमार कर चुके हैं. हर तरफ हरियाली अच्छी है. लोग-बाग़ मिल-जुल कर रहते हैं. जाति-धर्म का उतना भेद नहीं है, जितना बतलाया जाता है. बल्कि आपसी भाईचारा अच्छा है. किसी-किसी गांव में नवयुवक दिल्ली से भागकर आ गए हैं. नोट्बंदी के समय ही उनका काम मिलना बंद हो गया तो गांव में आकर खेती-बारी ही करने लगे हैं.
तात्पर्य यही है कि जैसा कि मोदी जी जनसभाओं में कहते हैं- पिछले सत्तर सालों में विकास के नाम पर बहुत कम काम हुआ है तो लगता है ठीक ही कहते हैं. अभी बहुत कुछ करना बाकी है. उसमे मूलभूत आवश्यकता रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरी है. इसके बाद हर हाथ को काम और उसको उचित मजदूरी भी जरूरी है तभी हम कह सकेंगे कि हम विकास की राह पर चल पड़े हैं और अब आगे और आगे जाना है, जिनमे शहरों को चाहे स्मार्ट सिटी में बदलना हो या बुलेट ट्रेन चलाना हो. हवाई सफ़र आसान करना हो या ट्रेन की स्पीड बढ़ानी हो, पर जो ट्रेने चल रही हैं, जो बसें चल रही है उसमे सुविधाएं बढ़ाई जाय. संचार के माध्यमों को चुस्त दुरुस्त किया जाय. उन्नत ढंग से खेती की जाय ताकि उत्पादकता बढ़े और सबको भरपेट भोजन मिले.
सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में बन्दर-बाँट न हो, भ्रष्टाचार का समूल खात्मा हो, लोग इमानदारी से टैक्स अदा करें, तभी तो होगा सर्वांगीण विकास. हमारी धरती सस्य-श्यामला है रत्नगर्भा है. जरूरत है उसका समुचित उपयोग हो और समुचित बंटवारा भी. हाल ही में रिपोर्ट आयी थी कि कुछ ही लोगों के पास अधिकांश संसाधनों पर कब्ज़ा है. कुछ लोग बहुत ही बेहाल स्थिति में हैं तभी आतंकवादी/नक्सलवादी ऐसे लोगो के पास आते हैं और भोले-भाले नवयुवकों को अपने जाल में फंसाकर ले जाते हैं. वे ही सरकार और समाज के नाक में दम करने लगते हैं. तब सरकार इन लोगों पर गोली चलवाती हैं और गोली चलानेवाली रक्षाकर्मियों को भी इनकी गोलियों का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. देश के सभी शिक्षित समाज, पत्रकार, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, जनप्रतिनिधि आदि सबको मिलकर सोचना ही होगा कि विकास का लाभ कैसे जन-जन तक पहुंचे और हमारा देश का हर नागरिक खुशहाल हो और देश को और आगे बढ़ाने की तरफ सोचे.
उम्मीद है हमारे जन प्रतिनिधि चुनाव प्रचार के लिए जितना खर्च करते हैं अगर उसका कुछेक हिस्सा जनकार्यों में लगायें तो शायद प्रचार की जरूरत ही न पड़े. काम अगर बोलेगा तो मुंह से बोलने और विज्ञापन करने की जरूरत ही न पड़ेगी.
सकारात्मक सोच के साथ जयहिंद और जय हिन्द के लोग!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और दादा साहेब फाल्के में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. धन्यवाद हर्षवर्धन जी!

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