Saturday, 30 April 2016

अगुस्ता वेस्टलैंड या बेस्टलैंड?

इधर सोनिया गाँधी के दिन कुछ अच्छे नहीं चल रहे हैं। राहुल गाँधी से कोई उम्मीद तो बंधी नहीं, उलटे कभी प्रियंका की संपत्ति और राबर्ट वाड्रा विवादों में आकर सोनिया गाँधी की मिट्टी पलीद ही करते रहे हैं। वैसे राजीव गाँधी को जैसे बोफोर्स घोटाला ले डूबा था, कहीं सोनिया गाँधी को भी उनकी बदनामी न ले डूबे। नेशनल हेराल्ड केस में अभी वह और राहुल गाँधी जमानत पर हैं। आगे क्या होगा, भविष्य के गर्भ में है, पर राजनीति में नेकनामी और बदनामी दोनों ही तत्काल प्रभावकारी होता है।
वैसे सोनिया गांधी ने ठीक ही कहा कि दो साल से मोदी सरकार है, उसने अगुस्ता वेस्टलैंड की जांच के बारे में क्या किया। हालाँकि उनकी सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने फरवरी 2012 में जांच शुरू की, 2014 तक क्या गुल खिला पाए? हम और आप एक दर्शक के रूप में समझ पाते कि जिन घोटालों पर खूब राजनीति होती है, उनमें दो-चार जेल क्यों नहीं जाते हैं? लेकिन इसे उठाकर बीजेपी पर जवाबदेही नहीं आ गई है कि वो इसे अंजाम तक पहुंचायेगी और जेल भी भेजेगी, चाहे कोई हो?
24 फरवरी 2012 को इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता मनु पबी ख़बर छापते हैं कि इटली के अटार्नी जनरल ने एक जांच शुरू की। इटली की कंपनी फिनमेकानिका ने भारत के साथ 3500 करोड़ की जो डील साइन की है, उसमें दलाली के आरोप लग रहे हैं। मेन कंपनी फिनमेकानिका है और अगुस्ता वेस्टलैंड सहायक कंपनी है। फिनमेकानिका इटली की सार्वजनिक उपक्रम टाइप की कंपनी है। फरवरी 2013 में इटालियन पुलिस ने फिनमेकानिका के चेयरमैन ओरसी को गिरफ्तार किया। चार्ज लगाया गया कि ओरसी ने दलालों को 360 करोड़ रुपये दिये हैं, ताकि वे भारत के साथ हेलिकाप्टर की बिक्री को सुनिश्चित करवा सकें। फरवरी 2012 में इटली में जांच की ख़बर आते ही तब के रक्षा मंत्री जांच के आदेश दे देते हैं। इटली में तो 2011 के साल से ही इस तरह की चर्चा होने लगी थी। 'हिन्दू' अख़बार के अनुसार 17 फरवरी 2013 को छपी कि भारत ने इटली से इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ मांगे थे, लेकिन इटली की अदालत ने नई दिल्ली की मांग को खारिज कर दिया था। बाद में 2013 में इटली की अदालत ने 90 हज़ार से अधिक पन्नों के दस्तावेज़ भारतीय एजेंसियों को सौंप दिये। 2013 से 2016 के बीच कितने पन्नों का अनुवाद हुआ मालूम नहीं। 2013 में ही सीबीआई की जांच भारत में शुरू हो जाती है।
इस बीच सरकारों के दौर बदल गए मगर हमारी जांच एजेंसी को लगता है कि शुरुआती दौर से मोह हो गया है। इटली की हाईकोर्ट का फ़ैसला भी आ गया। बतौर ए के एंटनी इटली की न्यायपालिका तो वहां की सरकार से स्वतंत्र है तो फिर उस स्वतंत्र न्यापालिका के फ़ैसले से एतराज़ तो नहीं होना चाहिए। बीजेपी की सरकार आ गई है। बीजेपी के मंत्री भी उसी इटली की न्यायपालिका की कसम खा रहे हैं, जिसकी कभी एंटनी जी खा रहे थे। क्या इटली की अदालत ने पूर्व वायुसेना प्रमुख एस के त्यागी के बारे में कोई टिप्पणी की है। 9 अप्रैल के 'इकनोमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार मिलान हाईकोर्ट में यह बात साबित हुई है कि 3565 करोड़ का अगुस्ता वेस्टलैंड का कांट्रैक्ट था, जो 2010 में साइन हुआ था, उसमें भारतीय अधिकारियों को रिश्वत दी गई है। एस पी त्यागी पर यह आरोप भारत की मीडिया में भी लग रहा है। मगर इटली की अदालत ने साफ कहा है कि उन्होंने गलत किया, इसके सबूत नहीं मिलते, मगर इसके संकेत मिलते हैं कि पैसा मिला होगा। एक बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सरकार की एजेंसियों के पास 225 पन्नों के फैसले की कॉपी का अनुवाद नहीं है। इटालियन में लिखे पन्ने के कुछ हिस्से का अनुवाद किसी ने किया है तो कुछ लोग गूगल ट्रांसलेशन की मदद ले रहे हैं। रक्षा मंत्री ने अनुवाद कराने की बात कही है। ज़ाहिर है इस मामले में जो भी कहा जा रहा है फैसले की कॉपी को बिना पूरा पढ़े ही कहा जा रहा है। हो सकता है कि कुछ भी ग़लत नहीं हो, मगर हो सकता है कि जिसका नाम लिया जा रहा है उसकी छवि पर हमेशा के लिए धब्बा लग जाए। एयर चीफ मार्शल को रिश्वत की रकम दी गई है, यह आरोप उतनी ही शर्मनाक है जितनी भारतीय नेताओं की रिश्वत दिये जाने की बात। वायु सेना के मनोबल और छवि के लिए ज़रूरी है कि एस पी त्यागी के मामले में जांच का नतीजा जल्दी आए। प्रत्यर्पण निदेशालय उनसे पूछताछ करने वाला है।
सीबीआई भी कह रही है कि अनौपचारिक रूप से फैसले की कॉपी मिली है उसका अनुवाद करा रहे हैं। रक्षा मंत्रालय भी अनुवाद करा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि सात से आठ दिन लग जायेंगे अनुवाद कराने में। सीबीआई ने बीच में त्यागी ब्रदर्स से पूछताछ की है। सभी का 10-12 साल का बैंक रिकार्ड देख लिया है।
जब से यह ख़बर 'इकोनोमिक टाइम्स' में छपी है तब से भारतीय जनता पार्टी आक्रामक है। बीजेपी का कहना है कि इटली की अदालत का फैसला है। मीडिया में यह ख़बर पहले छपी है इसलिए उस पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगाना सही नहीं होगा। ये और बात है कि मोदी सरकार से पूछा जा रहा है कि भारत में हो रही जांच का अंजाम कब देखने को मिलेगा। एक बिचौलिये ने अदालत में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की तस्वीर की पहचान की है। कई सारे बिचौलियों से ज़ब्त नोट में कांग्रेस के कुछ सदस्यों की तरफ इशारा हो रहा है। नौकरशाहों और भारतीय वायु सेना के अधिकारों की भूमिका के भी संकेत मिलते हैं। सोनिया गांधी ने कहा है कि कोई सबूत नहीं है। वे किसी से नहीं डरतीं। मोदी सरकार दो साल से क्या कर रही थी।
रिश्वत दी गई है तो किसी के इशारे पर ही दी गई होगी, ली गई होगी। यह बात तभी सामने आएगी जब इसकी पुख्ता जांच होगी। वो भी समय से। मनमोहन सिंह, अहमद पटेल और ऑस्कर फर्नांडिस के अलावा यूपीए के वक्त एनएसए रहे एमके नारायणन का भी नाम है। लोग चाहते हैं कि जो भी दोषी है वो जल्दी पकड़ा जाए। कहीं ऐसा न हो कि इशरत के बाद बिल्डर, बिल्डरों की ठगी के बाद अगुस्ता, अगुस्ता के बाद कुछ और मामला आ जाए और यह सब एक नूरा-कुश्ती बनकर रह जाए।
अब एक मामला है अगुस्ता वेस्टलैंड को ब्लैक लिस्ट करने का। जैसे ही ए के एंटनी ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान ही ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था, रक्षा मंत्री मनोहन पर्रिकर ने चुनौती दे डाली कि कि अगर किया है तो दस्तावेज़ दिखाएं। पर्रिकर मीडिया के सामने आए और बता दिया कि ए के एंटनी के समय हेलिकाप्टर कंपनी को बैन नहीं किया गया था।
बीजेपी को इटली की अदालत के फैसले से नई ऊर्जा मिली है कि इसके ज़रिये सोनिया गांधी को भ्रष्टाचार के मामले में सीधे-सीधे घेरा जा सकता है। सोनिया गांधी भले सबूत मांग रही हों लेकिन राजनीति सबूत का इंतज़ार नहीं करती। सही है कि फैसले की पूरी कॉपी अभी तक नहीं पढ़ी गई है। वहां भारत का पक्ष नहीं रखा गया, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि अगुस्ता वेस्टलैंड मामले में रिश्वत दी गई है। देने की बात साबित हो चुकी है। कांग्रेस इस सवाल को छोड़ अन्य सवालों के ज़रिये बीजेपी को घेरने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि छत्तीसगढ़ में भी अगुस्ता से हेलिकाप्टर लिया गया है। सीएजी की रिपोर्ट ने कहा है कि 2007 में 65.70 लाख अमरीकी डॉलर की इस खरीद के लिए दस्तावेज़ इस ढंग से तैयार किये गए ताकि अगुस्ता वेस्टलैंड के अलावा कोई और कंपनी खरीद प्रक्रिया में शामिल न हो पाए।
राज्य सभा में सुब्रमण्यम स्वामी की बात को लेकर हंगामा हो गया। उनकी बात को कार्रवाई से हटा तो दिया गया, लेकिन जो कहा-सुनी हुई उससे लगता है कि इस मसले को लेकर बीजेपी कांग्रेस को छोड़ने वाली नहीं है। लेकिन इस कहा-सुनी के जवाब में जो केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी कह गए वो दिलचस्प है। इस बात का क्या मतलब है कि कांग्रेस वाले जिस स्कूल में पढ़े हैं उसके नकवी जी हेड मास्टर रहे हैं। इसकी व्याख्या कई रूपों में की जा सकती है। क्या पता वो यह कह रहे हैं कि हेड मास्टर होने के नाते हम खूब जानते हैं या जो आप करते हैं वो हम आपसे बेहतर कर सकते हैं।
वैसे सुब्रमण्यम स्वामी को नया काम मिल गया है और भाजपा को नयी उर्जा। तबतक शायद बारिश हो जाय और सूखे की ज्वाला कम हो जाय और उत्तराखंड की आग भी बुझ जाय। लातूर में बारिश हुई है। और जगहों पर भी बूंदा-बांदी होने लगी है। सरकार दालों को भी जमाखोरों के चंगुल से आजाद करने में लगी है। कन्हैया कुमार आजादी की जंग लड़ने बिहार के दिग्गजों के पास पहुँच गए हैं। अच्छे दिन तो आने ही वाले हैं। पर टी वी चैनलों के सर्वेक्षणों का का क्या कहें, जो कह रहे हैं की दो साल के मोदी राज में कुछ नहीं बदला है।
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर    

No comments:

Post a Comment