Saturday, 9 April 2016

‘जय श्रीराम’ से ‘भारत माता की जय’ तक

‘जय श्रीराम’ से ‘भारत माता की जय’ तक
भारतीय जनता पार्टी का मूल श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा १९५१ में निर्मित भारतीय जनसंघ है। १९७७ में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण हेतु जनसंघ का अन्य दलों के साथ विलय हो गया। इससे १९७७ में पदस्थ कांग्रेस पार्टी को आम चुनावों में हराना सम्भव हुआ। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद १९८० में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया। यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और १९८४ के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही। इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो मात्र १३ दिन ही चली।
१९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले १० वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में सरकार बनायी। इसके अलावा जुलाई २०१४ से पार्टी पांच राज्यों में सता में है।
भाजपा की कथित विचारधारा "एकात्म मानववाद" सर्वप्रथम १९६५ में दीनदयाल उपाध्याय ने दी थी। पार्टी हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। पार्टी सामाजिक रूढ़िवाद की समर्थक है और इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित हैं। जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा ख़त्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं। हालांकि १९९८-२००४ की राजग सरकार ने किसी भी विवादास्पद मुद्दे को नहीं छुआ और इसके स्थान पर वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार जनता सरकार के भीतर गुटीय युद्धों के बावजूद, इसके कार्यकाल में आर॰एस॰एस॰ के प्रभाव को बढ़ते हुये देखा गया, जिसे १९८० पूर्वार्द्ध की सांप्रदायिक हिंसा की एक लहर द्वारा चिह्नित किया जाता है। इस समर्थन के बावजूद, भाजपा ने शुरूआत में अपने पूर्ववर्ती हिन्दू राष्ट्रवाद का रुख किया इसका व्यापक प्रसार किया। उनकी यह रणनीति असफल रही और १९८४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीटों से संतोष करना पड़ा। चुनावों से कुछ समय पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद कांग्रेस रिकोर्ड सीटों के साथ जीत गई।
वाजपेयी के नेतृत्व वाली उदारवादी रणनीति अभियान के असफल होने के बाद पार्टी ने हिन्दुत्व और हिन्दू कट्टरवाद का पूर्ण कट्टरता के साथ पालन करने का निर्णय लिया। १९८४ में आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उनके नेतृत्व में भाजपा राम जन्मभूमि आंदोलन की राजनीतिक आवाज़ बनी।तब भाजपा का मुख्य नारा था जय श्रीराम.  १९८० के दशक के पूर्वार्द्ध में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर हिन्दू देवता राम का मन्दिर निर्माण के उद्देश्य से एक अभियान की शुरूआत की थी। आंदोलन का आधार यह था कि यह क्षेत्र राम की जन्मभूमि है और यहाँ पर मस्जिद निर्माण के उद्देश्य से बाबर ने मन्दिर को ध्वस्त करवाया। भाजपा ने इस अभियान का समर्थन आरम्भ कर दिया और इसे अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बनाया। आंदोलन की ताकत के साथ भाजपा ने १९८९ के लोक सभा चुनावों में ८६ सीटें प्राप्त की और समान विचारधारा वाली नेशनल फ़्रॉण्ट की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार का महत्वपूर्ण समर्थन किया।
सितम्बर १९९० में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में अयोध्या के लिए "रथ यात्रा" आरम्भ की। यात्रा के कारण होने वाले दंगो के कारण बिहार सरकार ने आडवाणी को गिरफ़तार कर लिया लेकिन ६ दिसम्बर १९९२ को कार सेवक और संघ परिवार कार्यकर्ता फिर भी अयोध्या पहुँच गये और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए हमला कर दिया। इसके परिणामस्वरूप अर्द्धसैनिक बलों के साथ घमासान लड़ाई हुई जिसमें कई कार सेवक मारे गये। तभी भाजपा ने विश्वनाथ प्रतापसिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और एक नये चुनाव के लिए तैयार हो गई। इन चुनावों में भाजपा ने अपनी शक्ति को और बढ़ाया और १२० सीटों पर विजय प्राप्त की तथा उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।
इसके कई सप्ताह बाद देशभर में हिन्दू एवं मुस्लिमों में हिंसा भड़क उठी जिसमें २,००० से अधिक लोग मारे गये। २७ फ़रवरी २००२ को हिन्दू तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक रेलगाडी को गोधरा कस्बे के बाहर आग लगा दी गयी जिसमें ५९ लोग मारे गये। इस घटना को हिन्दुओं पर हमले के रूप में देखा गया और इसने गुजरात राज्य में भारी मात्रा में मुस्लिम-विरोधी हिंसा को जन्म दिया जो कई सप्ताह तक चली। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य सरकार के उच्च-पदस्थ अधिकारियों पर हिंसा आरम्भ करने और इसे जारी रखने के आरोप लगे। अप्रैल २००९ में सर्वोच्य न्यायालय ने गुजरात दंगे मामले की जाँच करने और उसमें तेजी लाने के लिए एक विशेष जाँच दल (एस॰आई॰टी॰) घटित किया। सन् २०१२ में एस॰आई॰टी॰ ने मोदी को दंगों में संलिप्तता के आरोप से मुक्त कर दिया।
वाजपेयी जी ने २००४ में राजग का अभियान "इंडिया शाइनिंग" (उदय भारत) के नारे के साथ शुरू कराया जिसमें राजग सरकार को देश में तेजी से आर्थिक बदलाव का श्रेय दिया गया। पर, राजग को अप्रत्यासित हार का समाना करना पड़ा और लोकसभा में कांग्रेस के गठबंधन के २२२ सीटों के सामने केवल १८६ सीटों पर ही जीत मिली।
२०१४ के आम चुनावों में भाजपा ने २८२ सीटों पर जीत प्राप्त की और मोदी जी के नेतृत्व वाले राजग को ५४३ लोकसभा सीटों में से ३३६ सीटों पर जीत प्राप्त हुई। यह १९८४ के बाद पहली बार था कि भारतीय संसद में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला। भाजपा संसदीय दल के नेता नरेन्द्र मोदी को २६ मई २०१४ को भारत के १५वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गयी। मोदी जी का विजय रथ पहले दिल्ली औरे बाद में बिहार में रुक गया। हिंदुत्व के रथ पर सवार भाजपा को सवर्णों और ब्यापारियों (बनियों) की पार्टी कहा जाने लगा। बीच  बीच में आर एस एस प्रमुख भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात उठाकर दलितों और पिछड़ों के मन में शंका के बीज बो दिए, जिसे मोदी विभिन्न मंचों से खंडित करते रहे और जब भी मौका मिला अम्बेडकर, जगजीवन राम, भक्त रविदास आदि के गुण गाने रहे। पर इससे भी शायद संतुष्टि नहीं हुई और कई राज्यों में जाति आधारित क्षेत्रीय पार्टियों से निपटने के लिए आगामी विधान सभाओं के चुनावों को देखते हुए अभी से ही पांच राज्यों के नए अध्यक्ष नियुक्त कर दिए जो या तो पिछड़ी या दलित जाति से आते हैं। यानी कि अब भाजपा के रणनीतिकारों की नजर भी दलित-पिछड़ों के जातिगत आधारित वोट बैंक पर पडी है। सबका साथ और सबका विकास कहते हुए मुसलमानों की सभाओं में जाते हुए और अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाते हुए मुस्लिमों के एक वर्ग तक पहुँचने की भी भरपूर कोशिश भी जारी है। कभी कभी कुछ राष्ट्रवादी नारों ‘भारत माता की जय’ और वन्दे मातरम के माध्यम से हिन्दुओं और राष्ट्वादियों को जोड़े रखने की कवायद भी जारी रही है।
उत्तर प्रदेश की आम जनता मे एक अन्जाना सा नाम केशव मौर्य जी को पूरे प्रदेश भाजपा की बाग़डोर सौप दी गयी, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे वह किसान रहे है और चाय अखबार भी बेचते रहे है। नेता बनने के बाद कई करोड़ की संपत्ती के मालिक भी हो चुकें है। केशव मौर्य फूलपुर इलाहाबाद से सांसद है, उसकें पहले वह विधायक भी रह चुके है। उसी तरह पंजाब में विजय सांपला, कर्णाटक में बी एस यदुरप्पा, तेलंगाना में के लक्ष्मण और अरुणाचल प्रदेश में तापिर गाव को कमान सौप दी है। दिक्कत इस बात की है कि देश के बड़े दलो मे इतना आत्म विश्वास नही कि इनको 50% से ज्यादा वोट कौन देगा ?
इसे जातिवाद से जोड़कर देखना अन्याय होगा, भाजपा तो जातिवाद में नहीं, राष्ट्रवाद में बिश्वास रखती है, मैंने कुछ गलत नहीं कहा न! मोदी जी तो विकास के रथ पर आरूढ़ हैं वे  भारत को आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध, विश्व के प्रमुख राष्ट्रों में शामिल करते हुए विश्वगुरु भारत की तरफ बढ़ना चाहते हैं नास्त्रेदम की भविष्यवाणी भी तो यही कहती है जय श्री राम (श्री रामनवमी के शुभ अवसर पर), भारत माता की जय ! जय हिन्द!   

-    -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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