पूरे देश में प्रदर्शन …. लोगों में आक्रोश की झलक और उसका प्रदर्शन …. सरकार की तरफ से प्रतिदिन होती कुछ न कुछ घोषणाएं, अदालत की त्वरित कार्रवाई … विलम्ब से ही सही ..पर कुछ तो संकेत दे जाते हैं कि परिवर्तन या बदलाव होकर रहेगा. घटनाएँ उसी रफ़्तार से घट रही हैं …पर, रिपोर्टिंग हो रही है … पुलिस थानों में केस दर्ज किये जा रहे हैं … अधिकतर सम्भ्रांत या चुप रहने वाली महिलाएं अपनी चुप्पी तोड़ रही हैं. चाहे वह हाकी खिलाड़ी हो या अभिनेत्री, कार्यरत्त महिलाये हो या गृहणियां सभी सामने आ रही हैं. फेसबुक, मीडिया, सार्वजनिक स्थानों पर चर्चाएँ, कुछ तो सकारात्मक हो रहा है.
मुझे दुःख है राजनीतिक पार्टियों की अकर्मण्यता पर … इतना कुछ होने पर भी न तो सर्वदलीय मीटिंग कराई गयी, न ही संसद का विशेष सत्र बुलाया गया! सत्तापक्ष और विपक्ष सभी टी वी चैनेल और मीडिया में तो बहस कर रहे हैं, संसद में बहस करने को तैयार नहीं दीखते …कठोर कानून की मांग सभी कर रहे हैं, पर सक्रिय कदम नहीं उठाये जा रहे. दुर्भाग्य है हमारे देश का जहाँ कुत्सित विचार वाले कर्णधार हैं, जो नहीं चाहते कि कठोर कानून बने! लोकपाल बिल पर सभी पार्टियों का ढुलमुल रवैया …पर एफ डी आई पर ऐन केन प्रकारेण बहुमत से पास करा लेना…. पर बाकी जनउपयोगी बिल पर सरकार और विपक्ष का ढुलमुल रवैया आम आदमी को सोचने पर मजबूर करता है कि उनकी मंशा क्या है?
जनता में जागृति आई है और वह अपना आक्रोश या तो सड़कों पर या अन्य संचार माध्यमों के द्वारा ब्यक्त कर रही है ..पर दुर्भाग्य यही कहा जाएगा कि कोई जन-नेता इस भीड़ को न तो नियंत्रित करने पहुँच रहा है, न ही इन्हें दिशा प्रदान कर रहा है……ठंढ के मौसम में पानी की बौछाड़, आंसू गैस के गोले, लाठियों की मार …सब कुछ सहते हुए ये लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. अन्ना हजारे और किरण बेदी भी दूर से तमाशा देख रहे हैं … बाबा रामदेव और अरविन्द केजरीवाल थोड़े समय के लिए वहां जरूर गए …पर इन लोगों में भी जन समुदाय को दिशा प्रदान करने की क्षमता में कमी नजर आयी….. चर्चाएँ खूब हो रही है ..पर परिणाम कुछ ख़ास निकलता नजर नहीं आ रहा है!…जब सभी आरोपी पकडे जा चुके हैं, बहुतों ने अपना जुल्म कबूल कर लिया है पीड़िता के बयान भी कलमबद्ध किये जा चुके हैं, तो ऐसी अवस्था में न्यायालय को छुट्टी मनाना क्या शोभा देता है?..क्यों यह सुनवाई ४ जनवरी तक के लिए टाल दी गयी? त्वरित सुनवाई क्या इसे ही कहते हैं. जब पूरा देश न्याय की गुहार लगा रहा है, तो क्या यह उचित है कि न्यायालय छुट्टी मनाये … नौजवान अपनी छुट्टी को तिलांजली देकर सड़क पर इकठ्ठा हैं …कुछ स्कूलों के शिक्षक भी अपने छात्रों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं ..मीडिया दिनरात इन प्रदर्शनों को कव्हर कर रहा है ..ऐसी स्थिति में छुट्टी और नए साल का जश्न मनाना कही से भी जायज नही दीखता …
मेरी मान्यता है कि अगर भाजपा को सत्ता में वापस आना है तो ऐसे संवेदनशील मुद्दे को हाथों हाथ लेना चाहिए और आमलोगों की सहानुभूति अर्जित करनी चाहिए या फिर बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, केजरीवाल को एकजुट होकर इन आन्दोलनकारियों का साथ देना चाहिए. पुलिस कमिश्नर पर गाज गिराकर आप तत्काल आक्रोश को शांत करना चाह रहे हैं, पर इससे ज्यादा जिम्मेवारी जिनकी बनती हैं वह गृह मंत्रालय, दिल्ली की मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री अपनी बेटियों की गिनती करते नजर आते हैं. उनकी बेटियां सुरक्षित रहेंगी क्योंकि वे मजबूत सुरक्षा घेरे में हैं. जरा सा अपना सुरक्षा घेरा हटाकर तो देखें. (राष्ट्रपति की बेटी भी डर का अनुभव कर रही है, पर राष्ट्रपति चुप हैं!)
मेरे विचार से ऐसे समय में कोई भी सार्वजनिक जश्न नहीं मनाया जाना चाहिए… फूहड़ फिल्मों, विज्ञापनों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए …अश्लील गाने और कार्यक्रम को बैन कर देना चाहिए!..पर यह क्या हो रहा है …आज २५ दिसंबर है, क्रिसमस धूमधाम से मनाया जायेगा…. वनभोज स्थलों पर भी फूहड़ता दिखलाई जायेगी और हमारे बच्चे – बच्चियां ठंढ में सिकुड़ते हुए आन्दोलन करने को मजबूर होंगे या ठंढे पर जायेंगे.
जम्मू कश्मीर में ठीक उसी प्रकार की घटना का होना…. देश के अन्य भागों में भी उसी रफ़्तार से अनाचार होना …..आखिर क्या बताता है? …अपराधियों के मन में कानून का खौफ नहीं रह गया है. …. दिल्ली पुलिस जो आन्दोलन को दबाने में सक्रिय है, इन घटनाओं को रोक पाने में विफल है…. जनाक्रोश भी भीड़ में तो दीखता है, पर एक महिला, लडकी, बच्ची को प्रताड़ित होने से बचाने में कोई भी सक्रिय नहीं दीखता …. सार्वजनिक स्थलों पर जहाँ खुलेआम फब्तियां कसी जाती हैं या छेड़-छाड़ की घटनाएँ होती हैं, उसे रोकने के लिए कितने कदम आगे बढ़ते हैं? थानों में शिकायत दर्ज कराने में या उसपर त्वरित कार्रवाई कराने में कितने लोग सक्रिय होते हैं ? हमें इन सब पर ध्यान देने की जरूरत है. अगर जुल्म करते हुए हमारा बेटा पकड़ा जाय तो हम हर सम्भव कोशिश करेंगे उसे बचाने को और अगर शिकार हमारी बच्ची होगी तो चाहेंगे न्याय मिले या लोकलाज के भय से मामला को दबाने का हरसंभव प्रयास करेंगे!…फेसबुक पर एक वाक्य पढने को मिला – “एक बलात्कार के बहाने लाखों लोग अपने को पाक-साफ़ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं”. क्या हम वाकई पाक-साफ़ हैं …क्या हमने कभी किसी लडकी, अभिनेत्री, वेश्या को बुरी नजर से नहीं देखा???
प्रश्न बहुत हैं … समाधान आचार ब्यवहार में परिवर्तन, सदाचार के नींव की मजबूती, हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अनुकरण, पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण से बचना आदि हो सकता है. पर उससे भी ज्यादा जरूरी है, हमारे मन की पवित्रता जो आध्यात्मिक सोच से ही आ सकती है. हमें अपने आप को ज्यादा से ज्यादा समय रचनात्मक कार्यों में लगाना होगा, नहीं तो हम सभी जानते हैं कि खाली मन शैतान का घर होता है. मनुष्य पशु बन जाता है, जब वह शराब आदि का नशा करता है …यह सब पूर्णत: प्रतिबंधित होना चाहिए! केवल वैधानिक चेतावनी, समाधान नहीं है. ज्यादातर दुष्कर्म शराब के नशे में होते हैं. इन्हें रोकने के लिए हम क्या कर रहे हैं? बल्कि यह दिन प्रतिदिन फैशन बनता जा रहा है और आधुनिकता की पहचान भी. हमारे कालेजगामी बच्चे, उच्च शिक्षण संस्थान में पढनेवाले किशोर और किशोरियां क्लबों में या पबों में समय बिताते हुए पाए जाते हैं. वहां भी बहुत कुछ होता है. ….तब इसे कोई नया आधुनिक जामा पहना दिया जाता है. हम केवल सरकार को दोष नहीं दे सकते क्योंकि वह हमारी ही चुनी हुई सरकार है! पूरी ब्यवस्था परिवर्तन के लिए हमारे अपने आप की सोच को बदलनी होगी! ॐ शांति!
हमारी अपनी सोच बदलनी होगी, बच्चों में संस्कार पैदा करना होग!
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