गतांक से आगे)
पिछले भाग में मैंने कहना चाहा था – भाजपा वाले, अभी भी वक्त है, सम्हल जाओ आत्म-मंथन, आत्म चिंतन, संघ शरणम जो भी करो, पर अपने पर न कतरो…… कांग्रेस से सब परेशान हैं, पर विकल्प बनने की कोशिश तो करो. संसद ठप्प करके क्या साबित करना चाहते हो?
अब जबकि सारा देश देख चुका है – एफ डी आइ के मामले में भाजपा के सारे तर्क बेकार हो गए जब माया और मुलायम ने अपना रास्ता चुन लिया! यह भी हम देख चुके हैं कि कांग्रेस तभी नियम १८४ के तहत चर्चा को तैयार हुई, जब वह दोनों सदनों में अपना बहुमत का अंकगणित तैयार कर चुकी थी! अब आप इसे ‘मैनेजमेंट’ कहें या ‘जुगाड़’ … जीत तो ‘जीत’ ही होती है, वह भी लोकतान्त्रिक तरीके से!
इन चार दिनों के बहस और परिणाम के बाद जो मुझे समझ आया, वह कुछ इस प्रकार है! भाजपा को अगर दुबारा सत्ता में आना है तो -
१. भाजपा को अपनी ‘साम्प्रदायिक’ छवि के ‘दाग’ को मिटाना होगा. मुस्लिमों के ह्रदय में जगह बनानी होगी! कुछ मुस्लिम नेताओं को पार्टी में शामिल कर उन्हें ‘जिम्मेदार’ पद देना होगा.
२. पिछड़े और दलित वर्गों में भी अपनी पैठ बनानी होगी. कल्याण सिंह और उमा भारती पिछड़े वर्ग के नेता हैं. इनका उपयोग माया और मुलायम के विरुद्ध किया जा सकता है!…. पर केवल चुनाव के वक्त नहीं! …जहाँ, यानी जिस राज्य में आपका शाशन है, वहां पिछड़े तबके के नेता को भी प्रमुखता देनी होगी!
इस देश में सारी राजनीति, धर्म और जाति को लेकर होती रही है, इसे मिटाना आसान नहीं है! विकास अंतिम ब्यक्ति तक पहुंचना चाहिए! …यह दिखना भी चाहिए! मनरेगा में चाहे जितना भी भ्रष्टाचार हो, कुछ लोग तो इससे लाभान्वित हो ही रहे हैं! अब सब्सिडी वाले मामले को ही ले लीजिये. जिस गरीब के हाथ ने पैसा देखा नहीं, अब उसके बैंक खाते में जायेगा तो वह अपनी खुशी का इजहार करेगा ही और कांग्रेस को इसका लाभ मिलना तय है.
साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग ही तो राजनीति है. कट्टरता राजनीति को शोभा नहीं देती! शिव सेना, बजरंग दल, आर एस एस आदि को भी अपनी छवि सुधारनी होगी. प्रतिद्वंदी (दुश्मन) को भी पुचकार कर ही वश में किया जा सकता है. आप अगर उसकी औकात बतायेंगे तो वह भी अपनी औकात में आयेगा ही! सुषमा जी और जेटली बड़े अच्छे वक्ता हैं, पर थोड़ी सी चूक या शब्दों का गलत इस्तेमाल उन्हें मौका दे देता है, पलट वार करने का! आज मीडिया भी नुक्ता-चीनी कर रहा है, मीन-मेख निकाल रहा है, तो शब्दों को ही ढो रहा है!
फेसबुक पर आपने जी भरकर कांग्रेस और सपा-बसपा को कोसा – उससे आम जनता पर क्या फर्क पड़ता है! फेसबुक इस्तेमाल करने वाले बहुत कम वोट देने जाते हैं, ऐसा आंकड़ा बताता है. हमारे यहाँ शिक्षा का स्तर अभी उतना आगे नहीं बढ़ा, जिससे फेसबुक या एस एम एस के जरिये सर्वे कर नतीजा निकाल लेंगे! बल्कि हम देख रहे हैं कि इधर जितना गाली या अपशब्दों (कार्टूनों) का इस्तेमाल इंटरनेट पर होने लगा है, उससे कांग्रेस का कुछ भी नहीं बिगड़ा! नहीं भाजपा को बहुत फायदा ही होता हुआ दिख रहा है! २०१४ में क्या होगा, यह हम नहीं जानते, पर … आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं! भाजपा नेतृत्व किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में अवश्य दिख रही है! अगर एफ डी आई पर सुषमा जी का प्रस्ताव नहीं गिरता तो स्थिति कुछ दूसरी नजर आ सकती थी. अब रह गया है गुजरात और हिमाचल प्रदेश का चुनाव परिणाम!… पर इससे देश का आम चुनाव कितना प्रभावी होगा कहना मुश्किल है! अन्ना और बाबा रामदेव नेपथ्य में चले गए हैं .. अरविन्द अकेले क्या कर लेंगे? अभी उनको बहुत तैयारी करनी है ….. संगठन का विस्तार नहीं हो रहा है… ले देकर ‘दिल्ली से दिल्ली तक’ तो नहीं पहुंचा जा सकता??
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