Tuesday, 25 December 2012

सेवामुक्त सरकार बाबु…

सरकार बाबु को सेवामुक्त हुए लगभग ६ साल हो गए हैं. उनका लड़का राज भी कंपनी में ही कार्यरत है. इसलिए कंपनी का क्वार्टर छोड़ना नहीं पड़ा. यही क्वार्टर राज के नाम से कर दिया गया. पहले पुत्र और पुत्रवधू साथ ही रहते थे. एक पोता भी हुआ था. उसके ‘अन्नप्रासन संस्कार’ (मुंह जूठी) में काफी लोग आए थे. अच्छा जश्न हुआ था. मैं भी आमंत्रित था….. बंगाली परिवार मेहमानों की अच्छी आवभगत करते हैं. खिलाते समय बड़े प्यार से खिलाते हैं. सिंह बाबू, दु टा रसोगुल्ला औरो नीन! मिष्टी दोही खान!(दो रसगुल्ला और लीजिये, मिष्टी दही खाइए)… अंत में सूखे मेवे के साथ सौंफ, पान आदि अवश्य देंगे! सिगरेट बीड़ी आदि भी रक्खेंगे … क्या है कि हर तरह के लोग आते हैं न!
‘पोता’ बहुत ही प्यारा है! सरकार बाबु उसी को गोद में लिए टहलते रहते हैं. कभी बैठकर उसके साथ खेलते हैं, बोतल से दूध भी पिलाते हैं,चेहरे पर क्रीम या आधुनिक तेल भी लगा देते हैं. पोते के हाथ पैर की भी मालिश कर देते हैं … हँसते हैं … कहते हैं बड़ा होकर मेरा पैर दबाएगा न! बच्चा मुस्कुराता है! सरकार बाबु बच्चे की भाषा समझते हैं… अपने आप से कहते हैं … क्यों नहीं दबाएगा? आशीर्वाद और टाफी भी तो पायेगा!…. ये सब बीते दिनों की बाते हैं! बच्चा जब रोता है, पुत्रवधू(वंदना) से चुप नहीं होता … वह फिर सरकार बाबु के ही बांहों में आ जायेगा. सरकार बाबु दूध की बोतल से उसे दूध भी पिलायेंगे. बच्चा हंसेगा… दादा की थकान को दूर करेगा! सरकार बाबु की मिसेज भी बच्चे के साथ खेलती है … किचेन में बहु की मदद भी कर देती है … वो क्या है कि बहु को स्कूल जाना होता है और समय पर पहुंचना होता है! पहले समय बिताने के लिए स्कूल ज्वाइन की थी. अब जरूरत बन गयी है. आखिर महंगाई के दौर में एक हाथ से कमाने से काम नहीं चलता न! … बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिला कराना होगा…. फिर और भी तरह तरह के खर्चे…. बाबूजी और माँजी का भी ख्याल रखना पड़ता है …..फिर एक फ्लैट भी तो चाहिए होगा … कंपनी क्वार्टर में कब तक रहेंगे! सो उन्होंने एक दो बेडरूम का एक फ्लैट बुक करा लिया है … पोजीसन मिलते ही वे लोग फ्लैट में चले जायेंगे … माँजी और बाबु जी इसी क्वार्टर में रहेंगे … उन्हें यही मन लगता है … क्या है कि काफी दिनों से सरकार बाबु इस क्वार्टर में रहते आए हैं, तो यही क्वार्टर उन्हें अपना घर लगता है. आस पास के लोगों से भी उनके मधुर सम्बन्ध है ! मिलने से पूछेंगे- “केमोन आछेन!”.. “भालो तो?” (कैसे हैं? अच्छे है तो?)
सरकार बाबू को पुराने गाने बहुत अच्छे लगते हैं … के एल सहगल का – “बाबुल मोरा, नैहर छूटोही जाय” और मन्ना डे का – “लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे!” अक्सर गुनगुनाते रहते हैं … कभी तो हारमोनियम भी बाहर ले आएंगे और हारमोनियम के साथ गायेंगे. मिसेज सरकार को सुनाते हैं और समझाते भी हैं .. इन गानों का गूढ़ अर्थ. मिसेज सरकार हंसती है … कहती है, शुरू से ही जिंदादिल आदमी हैं … फिर वो अपने पुराने दिनों में खो जाती है … कैसे वे दोनों सप्ताहांत में साथ साथ फिल्म देखने जाते थे … टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ब्लैक में भी टिकट का जुगाड़ कर एक साथ दोनों बैठकर पिक्चर देखते थे. तभी राज का इस दुनिया में आगमन हुआ और वे दोनो दंपत्ति उसी में खो गए! पिक्चर जाना बंद … छोटे बच्चे को साथ लेकर पिक्चर जाने में परेशानी है, उसे भी पैखाना-पेशाब उसी समय लगेगा, जब कोई बढ़िया सीन चल रहा होता है! सो उन्होंने पिक्चर जाना बंद कर दिया और एक ‘ब्लैक एंड वाइट टी वी’ ले आये उसमे हर सन्डे को एक फिल्म दिखलाई जाती थी और सप्ताह में दो दिन ‘चित्रहार’ भी होता था…. धीरे धीरे राज बड़ा हुआ और उनलोगों ने उसका नाम कंपनी के ही स्कूल में लिखवा दिया. अब उसे शुबह शुबह ही तैयार कर स्कूल बस में छोड़ आते थे. बस के ड्राईवर और कंडक्टर सभी बच्चों का ख्याल रखते थे. बच्चे भी उन्हें अंकल कहकर बुलाते थे.
इस तरह राज की पढाई पूरी हुई और कंपनी में ही जॉब में लग गया. फिर वंदना के पिता एक दिन सरकार बाबु के घर आए और राज को अपनी बेटी के लिए मांग लिया …. उस समय ज्यादा कुछ नहीं चाहिए था, तीन कपड़ों और पांच गहनों में बहु और बारातियों का स्वागत ठीक तरह से होना चाहिए! वंदना के पिता ने सरकार बाबु की चाह से कही ज्यादा…बहुत कुछ दिया!
जिन्दगी की गाड़ी लोकल की रफ़्तार से चल रही थी.
अचानक राज ने आकर अपने पिता सरकार बाबु से कहा – पापा, हमलोगों का फ्लैट बनकर तैयार हो गया है … हमलोग जल्दी ही वहां शिफ्ट हो जायेंगे … वो क्या है कि बंटी यहाँ आपलोगों के लाड़-प्यार में बिगड़ता जा रहा है. उसे अब कम्पटीसन की तैयारी करनी है, इसलिए उसे अब अकेले ही रहना होगा! .. आपलोग इसी क्वार्टर में रहेंगे .. आपके उपयोग का सामान छोड़ जायेंगे .. आपको यह जगह प्यारा भी लगता है! … सरकार बाबू ने तो सोचा ही नहीं था … ‘राज’ उनका ‘जिगर का टुकड़ा’… इस तरह आकर कहेगा! उन्होंने सोचा था … कहेगा … पापा, हमलोग अब नए फ्लैट में चलेंगे … हम दोनों हॉल में पड़े रहते….. बंटी को जी भरकर देखते तो सही … पर ऐसा नहीं हुआ … कुछ दिनों तक सरकार बाबु सदमे में रहे, उनका ब्लड प्रेसर भी बढ़ गया… राज और वंदना बीच बीच में आते थे. जरूरत का सामान दे जाते थे. बंटी भी साथ में आकर दादा के पैर छु लेता था और दादा उसे गले से लगा लेते थे…. बंटी अब तो तू बड़ा हो गया है अब टॉफी नहीं रसोगुल्ला खायेगा … राज की माँ, ले आना तो रसोगुल्ला,… मेरे बंटी के लिए और उसे जी भरकर रसोगुल्ला खिलाते .. बंटी कहता .. बस दादाजी, अब और नहीं वे कहते एक और खा ले मेरी तरफ से … एक तुम्हारी दादी की तरफ से! ….
‘विजय दशमी’ को सरकार बाबू के ही घर पर ‘विजया मिलन’ होता .. सभी नए पुराने लोग आते .. राज के मित्र भी आते! सभी सरकार बाबु के पैर छूते और आशीर्वाद स्वरुप कुछ न कुछ उपहार अवश्य पाते!……
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अभी कल ही देखा, सरकार बाबु दो छोटे-छोटे बच्चों को पकड़े हुए हैं- उन्हें समझा रहे हैं .. “तुम लोग तो मेरे बंटी के समान है .. तुम लोग बदमाशी करेगा तो हम तुमको डांटेगा…. तुम्हारे पापा को बोल देगा” .. बच्चे कहते – “नहीं दादा जी, हम तो बदमाशी नहीं कर रहे थे”. सरकार बाबु कहते – “तो पत्थर कौन चला रहा था ? …. अगर किसी को लग जाता तो? …..मेरा पैर देख रहे हो? …..उन्होंने अपना पैंट थोडा ऊपर किया और रेडीमेड ‘प्रेसर बैंडेज’ को दिखाया … इस पैर में मुझे चोट लगी थी…. बंटी के साथ क्रिकेट खेलने में उसने जोर का बाल फेंका था, जो मेरे पैर में लगी थी .. तभी से पैर में दर्द है…. ठंढा में यह और बढ़ जाता है ….. तभी तो मैं धूप में बैठा रहता हूँ” … बच्चे कहने लगे- “तो डाक्टर को क्यों नहीं दिखाते?” … “अरे बेटा बहुत दिखलाया डॉ. गोली दे देता है और कहता है- आराम से रहिये!” मैं सरकार बाबु को देखता था – दूध ले जाते वक्त थोड़ा लंगड़ा कर चलते थे … अगर दूध वाले के आने में विलंब है, तो मैदान का दो चक्कर भी काट लेते थे. संकोच वश मैंने कभी उनके पैर के बारे में नहीं पुछा … आज जब उनके पास से गुजर रहा था, उन्होंने मुझे पास बुला लिया और अपने जीवन की सारी ‘राम कहानी’ मुझे सुना दी जो ऊपर वर्णित है!
मैंने पूछ लिया – “आप राज के फ्लैट में जाते हैं कि नहीं” ? … “कहाँ मैं चढ़ पाऊँगा, पांच तल्ले पर”?… मैंने पुछा – “लिफ्ट तो होगी ही” .. सरकार बाबु दूसरी तरफ देखने लगे … मैंने पुन: उनसे आग्रह किया .. उनकी आँखों में आंसू छलक आए …”सिंह बाबू, राज अगर मुझसे यह कहता कि हमलोग सभी फ्लैट में एक साथ रहेंगे .. तो मै अवश्य जाता… पर उसने तो एकांत चाहा था, बंटी के बहाने … तो मैं क्यों उन्हें डिस्टर्ब करूँ? मेरा तो वही हाल है- जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ! .. आपलोग भले लोग हैं मेरा हालचाल पूछते रहते हैं इसी तरह जिन्दगी कट जायेगी.. सिर्फ एक बात आपसे कहूँगा अगर आपके भी माँ बाप है तो उन्हें बुढ़ापे में अलग मत करियेगा! अपने साथ ही रखियेगा. हमें और क्या चाहिए दो वक्त की रोटी और दो मीठे बोल!”
आज भी सरकार बाबु वैसे ही मस्त हैं और गुनगुनाते हैं “बाबुल मोरा… आ… आ…. नैहर छूटोही जाय!”….

Monday, 24 December 2012

कुछ बदलाव होकर रहेगा!

पूरे देश में प्रदर्शन …. लोगों में आक्रोश की झलक और उसका प्रदर्शन …. सरकार की तरफ से प्रतिदिन होती कुछ न कुछ घोषणाएं, अदालत की त्वरित कार्रवाई विलम्ब से ही सही ..पर कुछ तो संकेत दे जाते हैं कि परिवर्तन या बदलाव होकर रहेगा. घटनाएँ उसी रफ़्तार से घट रही हैं पर, रिपोर्टिंग हो रही है पुलिस थानों में केस दर्ज किये जा रहे हैं अधिकतर सम्भ्रांत या चुप रहने वाली महिलाएं अपनी चुप्पी तोड़ रही हैं. चाहे वह हाकी खिलाड़ी हो या अभिनेत्री, कार्यरत्त महिलाये हो या गृहणियां सभी सामने आ रही हैं. फेसबुक, मीडिया, सार्वजनिक स्थानों पर चर्चाएँ, कुछ तो सकारात्मक हो रहा है.

मुझे दुःख है राजनीतिक पार्टियों की अकर्मण्यता पर इतना कुछ होने पर भी न तो सर्वदलीय मीटिंग कराई गयी, न ही संसद का विशेष सत्र बुलाया गया! सत्तापक्ष और विपक्ष सभी टी वी चैनेल और मीडिया में तो बहस कर रहे हैं, संसद में बहस करने को तैयार नहीं दीखते कठोर कानून की मांग सभी कर रहे हैं, पर सक्रिय कदम नहीं उठाये जा रहे. दुर्भाग्य है हमारे देश का जहाँ कुत्सित विचार वाले कर्णधार हैं, जो नहीं चाहते कि कठोर कानून बने! लोकपाल बिल पर सभी पार्टियों का ढुलमुल रवैया पर एफ डी आई पर ऐन केन प्रकारेण बहुमत से पास करा लेना…. पर बाकी जनउपयोगी बिल पर सरकार और विपक्ष का ढुलमुल रवैया आम आदमी को सोचने पर मजबूर करता है कि उनकी मंशा क्या है?
जनता में जागृति आई है और वह अपना आक्रोश या तो सड़कों पर या अन्य संचार माध्यमों के द्वारा ब्यक्त कर रही है ..पर दुर्भाग्य यही कहा जाएगा कि कोई जन-नेता इस भीड़ को न तो नियंत्रित करने पहुँच रहा है, न ही इन्हें दिशा प्रदान कर रहा है……ठंढ के मौसम में पानी की बौछाड़, आंसू गैस के गोले, लाठियों की मार सब कुछ सहते हुए ये लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. अन्ना हजारे और किरण बेदी भी दूर से तमाशा देख रहे हैं बाबा रामदेव और अरविन्द केजरीवाल थोड़े समय के लिए वहां जरूर गए पर इन लोगों में भी जन समुदाय को दिशा प्रदान करने की क्षमता में कमी नजर आयी….. चर्चाएँ खूब हो रही है ..पर परिणाम कुछ ख़ास निकलता नजर नहीं आ रहा है!जब सभी आरोपी पकडे जा चुके हैं, बहुतों ने अपना जुल्म कबूल कर लिया है पीड़िता के बयान भी कलमबद्ध किये जा चुके हैं, तो ऐसी अवस्था में न्यायालय को छुट्टी मनाना क्या शोभा देता है?..क्यों यह सुनवाई ४ जनवरी तक के लिए टाल दी गयी? त्वरित सुनवाई क्या इसे ही कहते हैं. जब पूरा देश न्याय की गुहार लगा रहा है, तो क्या यह उचित है कि न्यायालय छुट्टी मनाये नौजवान अपनी छुट्टी को तिलांजली देकर सड़क पर इकठ्ठा हैं कुछ स्कूलों के शिक्षक भी अपने छात्रों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं ..मीडिया दिनरात इन प्रदर्शनों को कव्हर कर रहा है ..ऐसी स्थिति में छुट्टी और नए साल का जश्न मनाना कही से भी जायज नही दीखता
मेरी मान्यता है कि अगर भाजपा को सत्ता में वापस आना है तो ऐसे संवेदनशील मुद्दे को हाथों हाथ लेना चाहिए और आमलोगों की सहानुभूति अर्जित करनी चाहिए या फिर बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, केजरीवाल को एकजुट होकर इन आन्दोलनकारियों का साथ देना चाहिए. पुलिस कमिश्नर पर गाज गिराकर आप तत्काल आक्रोश को शांत करना चाह रहे हैं, पर इससे ज्यादा जिम्मेवारी जिनकी बनती हैं वह गृह मंत्रालय, दिल्ली की मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री अपनी बेटियों की गिनती करते नजर आते हैं. उनकी बेटियां सुरक्षित रहेंगी क्योंकि वे मजबूत सुरक्षा घेरे में हैं. जरा सा अपना सुरक्षा घेरा हटाकर तो देखें. (राष्ट्रपति की बेटी भी डर का अनुभव कर रही है, पर राष्ट्रपति चुप हैं!)
मेरे विचार से ऐसे समय में कोई भी सार्वजनिक जश्न नहीं मनाया जाना चाहिएफूहड़ फिल्मों, विज्ञापनों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए अश्लील गाने और कार्यक्रम को बैन कर देना चाहिए!..पर यह क्या हो रहा है आज २५ दिसंबर है, क्रिसमस धूमधाम से मनाया जायेगा…. वनभोज स्थलों पर भी फूहड़ता दिखलाई जायेगी और हमारे बच्चे बच्चियां ठंढ में सिकुड़ते हुए आन्दोलन करने को मजबूर होंगे या ठंढे पर जायेंगे.
जम्मू कश्मीर में ठीक उसी प्रकार की घटना का होना…. देश के अन्य भागों में भी उसी रफ़्तार से अनाचार होना …..आखिर क्या बताता है? …अपराधियों के मन में कानून का खौफ नहीं रह गया है. …. दिल्ली पुलिस जो आन्दोलन को दबाने में सक्रिय है, इन घटनाओं को रोक पाने में विफल है…. जनाक्रोश भी भीड़ में तो दीखता है, पर एक महिला, लडकी, बच्ची को प्रताड़ित होने से बचाने में कोई भी सक्रिय नहीं दीखता …. सार्वजनिक स्थलों पर जहाँ खुलेआम फब्तियां कसी जाती हैं या छेड़-छाड़ की घटनाएँ होती हैं, उसे रोकने के लिए कितने कदम आगे बढ़ते हैं? थानों में शिकायत दर्ज कराने में या उसपर त्वरित कार्रवाई कराने में कितने लोग सक्रिय होते हैं ? हमें इन सब पर ध्यान देने की जरूरत है. अगर जुल्म करते हुए हमारा बेटा पकड़ा जाय तो हम हर सम्भव कोशिश करेंगे उसे बचाने को और अगर शिकार हमारी बच्ची होगी तो चाहेंगे न्याय मिले या लोकलाज के भय से मामला को दबाने का हरसंभव प्रयास करेंगे!फेसबुक पर एक वाक्य पढने को मिला – “एक बलात्कार के बहाने लाखों लोग अपने को पाक-साफ़ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं”. क्या हम वाकई पाक-साफ़ हैं क्या हमने कभी किसी लडकी, अभिनेत्री, वेश्या को बुरी नजर से नहीं देखा???
प्रश्न बहुत हैं समाधान आचार ब्यवहार में परिवर्तन, सदाचार के नींव की मजबूती, हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अनुकरण, पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण से बचना आदि हो सकता है. पर उससे भी ज्यादा जरूरी है, हमारे मन की पवित्रता जो आध्यात्मिक सोच से ही आ सकती है. हमें अपने आप को ज्यादा से ज्यादा समय रचनात्मक कार्यों में लगाना होगा, नहीं तो हम सभी जानते हैं कि खाली मन शैतान का घर होता है. मनुष्य पशु बन जाता है, जब वह शराब आदि का नशा करता है यह सब पूर्णत: प्रतिबंधित होना चाहिए! केवल वैधानिक चेतावनी, समाधान नहीं है. ज्यादातर दुष्कर्म शराब के नशे में होते हैं. इन्हें रोकने के लिए हम क्या कर रहे हैं? बल्कि यह दिन प्रतिदिन फैशन बनता जा रहा है और आधुनिकता की पहचान भी. हमारे कालेजगामी बच्चे, उच्च शिक्षण संस्थान में पढनेवाले किशोर और किशोरियां क्लबों में या पबों में समय बिताते हुए पाए जाते हैं. वहां भी बहुत कुछ होता है. ….तब इसे कोई नया आधुनिक जामा पहना दिया जाता है. हम केवल सरकार को दोष नहीं दे सकते क्योंकि वह हमारी ही चुनी हुई सरकार है! पूरी ब्यवस्था परिवर्तन के लिए हमारे अपने आप की सोच को बदलनी होगी! ॐ शांति!

कुछ बदलाव होकर रहेगा!

पूरे देश में प्रदर्शन …. लोगों में आक्रोश की झलक और उसका प्रदर्शन …. सरकार की तरफ से प्रतिदिन होती कुछ न कुछ घोषणाएं, अदालत की त्वरित कार्रवाई विलम्ब से ही सही ..पर कुछ तो संकेत दे जाते हैं कि परिवर्तन या बदलाव होकर रहेगा. घटनाएँ उसी रफ़्तार से घट रही हैं पर, रिपोर्टिंग हो रही है पुलिस थानों में केस दर्ज किये जा रहे हैं अधिकतर सम्भ्रांत या चुप रहने वाली महिलाएं अपनी चुप्पी तोड़ रही हैं. चाहे वह हाकी खिलाड़ी हो या अभिनेत्री, कार्यरत्त महिलाये हो या गृहणियां सभी सामने आ रही हैं. फेसबुक, मीडिया, सार्वजनिक स्थानों पर चर्चाएँ, कुछ तो सकारात्मक हो रहा है.

मुझे दुःख है राजनीतिक पार्टियों की अकर्मण्यता पर इतना कुछ होने पर भी न तो सर्वदलीय मीटिंग कराई गयी, न ही संसद का विशेष सत्र बुलाया गया! सत्तापक्ष और विपक्ष सभी टी वी चैनेल और मीडिया में तो बहस कर रहे हैं, संसद में बहस करने को तैयार नहीं दीखते कठोर कानून की मांग सभी कर रहे हैं, पर सक्रिय कदम नहीं उठाये जा रहे. दुर्भाग्य है हमारे देश का जहाँ कुत्सित विचार वाले कर्णधार हैं, जो नहीं चाहते कि कठोर कानून बने! लोकपाल बिल पर सभी पार्टियों का ढुलमुल रवैया पर एफ डी आई पर ऐन केन प्रकारेण बहुमत से पास करा लेना…. पर बाकी जनउपयोगी बिल पर सरकार और विपक्ष का ढुलमुल रवैया आम आदमी को सोचने पर मजबूर करता है कि उनकी मंशा क्या है?
जनता में जागृति आई है और वह अपना आक्रोश या तो सड़कों पर या अन्य संचार माध्यमों के द्वारा ब्यक्त कर रही है ..पर दुर्भाग्य यही कहा जाएगा कि कोई जन-नेता इस भीड़ को न तो नियंत्रित करने पहुँच रहा है, न ही इन्हें दिशा प्रदान कर रहा है……ठंढ के मौसम में पानी की बौछाड़, आंसू गैस के गोले, लाठियों की मार सब कुछ सहते हुए ये लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. अन्ना हजारे और किरण बेदी भी दूर से तमाशा देख रहे हैं बाबा रामदेव और अरविन्द केजरीवाल थोड़े समय के लिए वहां जरूर गए पर इन लोगों में भी जन समुदाय को दिशा प्रदान करने की क्षमता में कमी नजर आयी….. चर्चाएँ खूब हो रही है ..पर परिणाम कुछ ख़ास निकलता नजर नहीं आ रहा है!जब सभी आरोपी पकडे जा चुके हैं, बहुतों ने अपना जुल्म कबूल कर लिया है पीड़िता के बयान भी कलमबद्ध किये जा चुके हैं, तो ऐसी अवस्था में न्यायालय को छुट्टी मनाना क्या शोभा देता है?..क्यों यह सुनवाई ४ जनवरी तक के लिए टाल दी गयी? त्वरित सुनवाई क्या इसे ही कहते हैं. जब पूरा देश न्याय की गुहार लगा रहा है, तो क्या यह उचित है कि न्यायालय छुट्टी मनाये नौजवान अपनी छुट्टी को तिलांजली देकर सड़क पर इकठ्ठा हैं कुछ स्कूलों के शिक्षक भी अपने छात्रों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं ..मीडिया दिनरात इन प्रदर्शनों को कव्हर कर रहा है ..ऐसी स्थिति में छुट्टी और नए साल का जश्न मनाना कही से भी जायज नही दीखता
मेरी मान्यता है कि अगर भाजपा को सत्ता में वापस आना है तो ऐसे संवेदनशील मुद्दे को हाथों हाथ लेना चाहिए और आमलोगों की सहानुभूति अर्जित करनी चाहिए या फिर बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, केजरीवाल को एकजुट होकर इन आन्दोलनकारियों का साथ देना चाहिए. पुलिस कमिश्नर पर गाज गिराकर आप तत्काल आक्रोश को शांत करना चाह रहे हैं, पर इससे ज्यादा जिम्मेवारी जिनकी बनती हैं वह गृह मंत्रालय, दिल्ली की मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री अपनी बेटियों की गिनती करते नजर आते हैं. उनकी बेटियां सुरक्षित रहेंगी क्योंकि वे मजबूत सुरक्षा घेरे में हैं. जरा सा अपना सुरक्षा घेरा हटाकर तो देखें. (राष्ट्रपति की बेटी भी डर का अनुभव कर रही है, पर राष्ट्रपति चुप हैं!)
मेरे विचार से ऐसे समय में कोई भी सार्वजनिक जश्न नहीं मनाया जाना चाहिएफूहड़ फिल्मों, विज्ञापनों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए अश्लील गाने और कार्यक्रम को बैन कर देना चाहिए!..पर यह क्या हो रहा है आज २५ दिसंबर है, क्रिसमस धूमधाम से मनाया जायेगा…. वनभोज स्थलों पर भी फूहड़ता दिखलाई जायेगी और हमारे बच्चे बच्चियां ठंढ में सिकुड़ते हुए आन्दोलन करने को मजबूर होंगे या ठंढे पर जायेंगे.
जम्मू कश्मीर में ठीक उसी प्रकार की घटना का होना…. देश के अन्य भागों में भी उसी रफ़्तार से अनाचार होना …..आखिर क्या बताता है? …अपराधियों के मन में कानून का खौफ नहीं रह गया है. …. दिल्ली पुलिस जो आन्दोलन को दबाने में सक्रिय है, इन घटनाओं को रोक पाने में विफल है…. जनाक्रोश भी भीड़ में तो दीखता है, पर एक महिला, लडकी, बच्ची को प्रताड़ित होने से बचाने में कोई भी सक्रिय नहीं दीखता …. सार्वजनिक स्थलों पर जहाँ खुलेआम फब्तियां कसी जाती हैं या छेड़-छाड़ की घटनाएँ होती हैं, उसे रोकने के लिए कितने कदम आगे बढ़ते हैं? थानों में शिकायत दर्ज कराने में या उसपर त्वरित कार्रवाई कराने में कितने लोग सक्रिय होते हैं ? हमें इन सब पर ध्यान देने की जरूरत है. अगर जुल्म करते हुए हमारा बेटा पकड़ा जाय तो हम हर सम्भव कोशिश करेंगे उसे बचाने को और अगर शिकार हमारी बच्ची होगी तो चाहेंगे न्याय मिले या लोकलाज के भय से मामला को दबाने का हरसंभव प्रयास करेंगे!फेसबुक पर एक वाक्य पढने को मिला – “एक बलात्कार के बहाने लाखों लोग अपने को पाक-साफ़ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं”. क्या हम वाकई पाक-साफ़ हैं क्या हमने कभी किसी लडकी, अभिनेत्री, वेश्या को बुरी नजर से नहीं देखा???
प्रश्न बहुत हैं समाधान आचार ब्यवहार में परिवर्तन, सदाचार के नींव की मजबूती, हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अनुकरण, पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण से बचना आदि हो सकता है. पर उससे भी ज्यादा जरूरी है, हमारे मन की पवित्रता जो आध्यात्मिक सोच से ही आ सकती है. हमें अपने आप को ज्यादा से ज्यादा समय रचनात्मक कार्यों में लगाना होगा, नहीं तो हम सभी जानते हैं कि खाली मन शैतान का घर होता है. मनुष्य पशु बन जाता है, जब वह शराब आदि का नशा करता है यह सब पूर्णत: प्रतिबंधित होना चाहिए! केवल वैधानिक चेतावनी, समाधान नहीं है. ज्यादातर दुष्कर्म शराब के नशे में होते हैं. इन्हें रोकने के लिए हम क्या कर रहे हैं? बल्कि यह दिन प्रतिदिन फैशन बनता जा रहा है और आधुनिकता की पहचान भी. हमारे कालेजगामी बच्चे, उच्च शिक्षण संस्थान में पढनेवाले किशोर और किशोरियां क्लबों में या पबों में समय बिताते हुए पाए जाते हैं. वहां भी बहुत कुछ होता है. ….तब इसे कोई नया आधुनिक जामा पहना दिया जाता है. हम केवल सरकार को दोष नहीं दे सकते क्योंकि वह हमारी ही चुनी हुई सरकार है! पूरी ब्यवस्था परिवर्तन के लिए हमारे अपने आप की सोच को बदलनी होगी! ॐ शांति!