अगस्त २०१७ में गोरखपुर
के बी आर डी हॉस्पिटल में ६७ बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी. तब
जिम्मेदार मंत्री द्वारा कहा गया था – “अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं”. यह
खबर भी सुर्ख़ियों में आया था और तब योगी सरकार के ऊपर उंगलियाँ उठी थी.
उसके बाद बाद बिहार
के मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल हॉस्पिटल में १४५ बच्चों की मौत जब चमकी
बुखार से हो गई तो कहा गया – “लीची खाने से बच्चों की मौत हुई है”. उस समय
बिहार की नितीश सरकार पर भी उंगलियाँ उठी थी.
अब राजस्थान के कोटा
में जे के लोन अस्पताल जब बच्चों की मौत हो रही है तो मुख्य मंत्री अशोक गहलोत
द्वारा आंकड़े दिए रहे हैं – “इस साल पिछले सालों की तुलना में कम बच्चों की मौत
हुई है”.
ये सारे बयान
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार करते हैं. दरअसल हमारे सरकारी अस्पतालों में
उपकरणों, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफों का घोर अभाव है जिसके मूल में लापरवाही, अफसरशाही
और फंड के सही इस्तेमाल न होना है. सरकारी अस्पताल गरीबों के लिए ही होते हैं. जो प्राइवेट
अस्पतालों के महंगे खर्च नहीं उठा सकते, वही सरकारी अस्पताल में जाते हैं. प्रधान
मंत्री के जन आरोग्य योजना इस पर कहाँ फेल हो रही है, इसपर भी गौर करने की जरूरत
है.
राजस्थान के कोटा में जेके लोन
अस्पताल में हुए नवजात शिशुओं के मौत को लेकर सीएम गहलोत की मुश्किलें और बढ़ती ही
नजर आ रही हैं. अब तक विपक्ष के हमलों का जवाब दे रहे गहलोत पर अपनी ही सरकार के
उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सवाल उठाए हैं. राजस्थान के कोटा में बच्चों की
लगातार हो रही मौत पर सचिन पायलट ने कहा है कि मुझे लगता है कि हमें इस मुद्दे पर और
ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है. सचिन पायलट ने कहा कि सत्ता में आए हमें 13 महीनों का वक्त हो
चुका है और मुझे नहीं लगता है कि अब पुरानी सरकार पर दोष डालने का कोई मतलब है.
जवाबदेही तय होनी चाहिए.
सचिन पायलट का यह बयान अपनी ही सरकार के
लिए मुसीबत बन गया है. चूंकि इस पूरे मामले पर सीएम गहलोत के बयान विवादित रहे हैं
जिन्हें विपक्ष गैरजिम्मेदार करार देता रहा है. ऐसे में सचिन पायलट का यह बयान
विपक्ष को और आक्रामक रुख अख्तियार करने का मौका देगा.
ऐसा लगता है कि राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार का
फ़ोकस बीजेपी पर निशाना साधने में ही है. अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में कम है. कोटा
के जे के लोन अस्पताल का मामला एक हफ़्ते से पब्लिक में है. इसके बाद भी एक्सप्रेस
के रिपोर्टर दीप ने पाया है कि इंटेंसिव यूनिट में खुला डस्टबिन है. उसमें कचरा
बाहर तक छलक रहा है. क़ायदे से तो दूसरे दिन वहां की सारी व्यवस्था ठीक हो जानी
चाहिए थी. लेकिन मीडिया रिपोर्ट से पता चल रहा है कि वहां गंदगी से लेकर ख़राब
उपकरणों की स्थिति जस की तस है. जबकि मुख्यमंत्री की बनाई कमिटी ही लौट कर ये सब
बता रही है. सवाल है कि क्या एक सरकार एक हफ़्ते के भीतर इन चीजों को ठीक नहीं कर
सकती थी?
गहलोत
सरकार को अब तक राज्य के दूसरे अस्पतालों की समीक्षा भी करा लेनी चाहिए थी. वहां
की साफ़ सफ़ाई से लेकर उपकरणों के हाल से तो पता चलता कि राज्य के पैसे से क़ौन
मोटा हो रहा है. आख़िर दिल्ली से हर्षवर्धन को आने की चुनौती दे रहे हैं तो सिर्फ़
आंकड़ों के लिए क्यों? क्यों
नहीं इसी बहाने चीजें ठीक की जा रही हैं?
हर्षवर्धन की राजनीतिक सुविधा के लिए जो आंकड़े दिए
जा रहे हैं उससे कांग्रेस बनाम बीजेपी की राजनीति ही चमक सकती है, ग़रीब मां-बाप को क्या फ़ायदा. गरीबों के बच्चे जो
असमय ही काल कवलित हो गए वे तो लौट कर आने से रहे.
इसलिए नागरिकों को कांग्रेस बनाम बीजेपी से ऊपर उठकर
इन सवालों पर सोचना चाहिए. ऊपर उठने का यह मतलब नहीं कि अभी जो मुख्यमंत्री के पद
पर हैं वो जवाबदेही से हट जाएगा बल्कि यह समझने के लिए आप कांग्रेस बीजेपी से ऊपर
उठ कर देखिए कि स्वास्थ्य के मामले में दोनों का ट्रैक रिकार्ड कितना ख़राब है.
काश दोनों के बीच इसे अच्छा बनाने की प्रतियोगिता होती लेकिन तमाम सक्रियता इस बात
को लेकर दिखती है कि बयानबाज़ी का मसाला मिल गया है. बच्चे मरे हैं उससे किसी को
कुछ लेना देना नहीं.
राजस्थान सरकार ने अपनी
रिपोर्ट में स्वीकार किया कि अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए इस्तेमाल किए जाने
वाले कुछ इनक्यूबेटर ठीक से काम करने की स्थिति में नहीं थे. इस मामले पर
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि 'कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की
मौत के बारे में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस साल 963 बच्चों की मौत हुई
है, जबकि साल 2015 में 1260 बच्चों ने जान
गंवाई थी. वहीं, 2016 में यह आंकड़ा 1193 था, जब राज्य में बीजेपी का शासन था. वहीं, 2018 में 1005 बच्चों की जान
गई है.
यह सब आंकड़ेबाजी और राजनीतक बयानबाजी बंद
होनी चाहिए. बल्कि उसके बदले धरातल पर काम होना चाहिए, जो कि दिल्ली में केजरीवाल
सरकार ने कर के दिखाया है. रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली पानी सड़क के अलावा शिक्षा और
स्वास्थ्य भी हर नागरिक को मिले यह भी किसी भी सरकार का दायित्व होता है. दुर्भाग्य
से हमारा देश विकासशील देश तो है ही, पर विकास के रास्ते में इन कमियों पर भी
ध्यान देने की जरूरत है. कभी ऐसे भी आंकड़े आते हैं कि हमारा देश हंगर इंडेक्स में
भी बहुत अच्छी पोजीशन में नहीं है. जाड़ों में भी गरीब ही ज्यादा मरते हैं. हम सबको
और सरकारों को इनपर काम करने की जरूरत है. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों
के साथ मूलभूत सुविधा पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है.
एक आम नागरिक की हैसियत से ही मैं यह सवाल
उठा रहा हूँ. इन सब बातों को उजागर करनेवाला भी मीडिया ही होता है और सरकार इन पर
एक्शन लेती रही है आगे भी लेने की जरूरत है. जन प्रतिनिधियों का भी बहुत बड़ा
दायित्त्व होता है कि वे अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को देखें और सुनें साथ
ही उनकी परेशानियों को दूर करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.
जयहिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम!
- - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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