मेघालय यानी ‘मेघों
का आलय’ ‘मेघों का घर’. जंगल और पहाड़ों के बीच बसा मेघालय बड़ा ही रमणीक है. गर्मी
की छुट्टियों में सपरिवार वहां जाना और विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करना
स्वयं को आनंदित कर देता है. यहाँ के झरने, गुफाएं,
घाटियाँ, पहाड़ों पर बने साफ़ सुथरे मकान, पर्वतों की ऊँचाइयाँ, मन को मोहित करती
हैं तो विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे से परिपूरित, मेघालय में वानस्पतिक जडी बूटियों
की भी भरमार है. यहाँ के वातावरण में फूलों की खुशबू, वनस्पतियों की आभा, झरनों और
झीलों की कलकल निनाद सबकुछ आपको आकर्षित करती है. आप यहाँ खूब जोर-जोर से सांस
लेकर अपने फेफड़े को ताजी हवा से भर सकते हैं. यहाँ के लजीज व्यंजन और ताजे पके फल
खाकर भी अपने स्वास्थ्य को सुगढ़ बना सकते हैं.
यहाँ की सड़कें जो
पहाड़ों को काटकर बड़े ही अच्छे ढंग से बनाई गई है, अच्छी और रख-रखाव से व्यवस्थित
है. यहाँ के लोग बड़े ही अनुशासित और नियम को पालन करनेवाले हैं. गाड़ियों की कतारें
लग जाती हैं, पर सभी लोग अपने ‘लेन’ में ही रहते हैं. गाड़ियाँ धीरे-धीरे ही सही पर
आगे बढ़ती जातीं हैं. बिना ट्रैफिक पुलिस के भी लोग यातायात नियमों का पालन करते
हैं. सफाई के लिए मशहूर भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसा मेघालय का मावलिननोंग
2003 से लगातार एशिया का सबसे स्वच्छ गांव बना हुआ है . डीएनए की एक
ख़बर के मुताबिक मेघालय के ईस्ट-खासी हिल जिले में बसे इस गांव की आबादी महज 500 है. यहाँ बांस के बने सीढीनुमा मचान है जहाँ से आप
बंगला देश के सीमावर्ती क्षेत्र देख सकते हैं. बांस के मचान पर चढ़ना भी एक रोमांच
का अनुभव देता है. सफाई के प्रति यहाँ के लोग जागरूक हैं न खुद गन्दा करते हैं न
गन्दा करने देते हैं. सैलानियों को भी यहाँ बताया जाता है, हर जगह कूड़ा कचड़ा न
फेंकें. कूड़ा कचड़ा फेंकने के लिए जगह-जगह कूड़ेदान बने हुए हैं. शौचालय की भी जगह-जगह
उचित व्यवस्था है.
इसके अलावा कुछ और
भी दर्शनीय स्थान हैं जिनकी सूची आपको गूगल पर मिल जायेगी. मैं कुछ स्थानों के
बारे में यहाँ चर्चा भर कर रहा हूँ.
१.
डबल डेकर
लिविंग रूट ब्रिज – बरगद के साथ अन्य जंगली पेड़ों के जड़ इस प्रकार आपस में गुंथे
हुए हैं, प्रकृति के साथ मनुष्य की भी कारीगरी ही कही जायेगी कि इस रूट ब्रिज से
होकर आप झरना नुमा नदी को पार कर सकते हैं. हालाँकि वहां के लोग ज्यादा देर पुल पर
ठहरने से मना करते हैं. वहां तक पहुँचने के लिए पत्थर की ही सीढ़ियाँ बनी हुई है.
आप कल कल बहती हुई पहाड़ी नदी को देख कर आनंदित महसूस करेंगे.
२.
नोह्कलिकाई
वाटर फॉल – चेरापूंजी से करीब ७ किलोमीटर दूर नोह्कलिकाई फॉल भारत का ५वाँ सबसे
ऊंचा वाटर फॉल है. इस वाटर फाल के पीछे एक कहानी है. कहते हैं कि का लिकाई नाम की
एक महिला जिसने अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी की. पहले पति से उसकी एक बेटी
थी. का लिकाई अपनी बेटी से बहुत प्यार करती थी. दूसरे पति को यह पसंद नहीं था. एक
दिन लिकाई किसी काम से बहार गई हुई थी. उसके दुसरे पति ने उसकी बेटी की हत्या कर
उसके टुकड़े को भोजन में डालकर पका दिया. लिकाई लौटी तो उसे घर में बेटी की उंगली
मिली जिससे पूरा मामला खुला. कहते हैं कि
इसके बाद लिकाई ने इसी वॉटरफॉल में कूदकर अपनी जान दे दी. उसके बाद से ही
इस फॉल का नाम नोह्कलिकाई फॉल पड़ गया. ‘खासी’ भाषा में ‘नोह’ का मतलब कूदना होता
है.
३.
एलिफैंट
फॉल – यह शिलोंग शहर से करीब १२ किलोमीटर दूर है. इसकी ख़ूबसूरती भी देखते ही बनती
है. इसका असली नाम का शैद लाई पटेंग खोशी यानी तीन हिस्से वाला फॉल है. बाद में
अंग्रेजों ने इसका नाम बदलकर एलीफैंट फॉल रख दिया. इस फॉल के पास एक पत्थर है जो
हाथी जैसा दीखता था. हालाँकि १८९७ में आये भूकंप में वो पत्थर नष्ट हो गया, लेकिन
फॉल का नाम नहीं बदला गया.
४.
स्वीट
फॉल – शिलोंग में स्थित स्वीट फॉल इस शहर का सबसे खूबसूरत वाटर फॉल माना जाता है.
लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है की सबसे ज्यादा खुदखुशी और मौत की घटनाएँ इसी
वाटर फॉल में हुई है.
५.
कामाख्या
देवी मंदिर – असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित माँ कामाख्या देवी का मंदिर
नीलाचल पहाड़ियों पर है. कामख्या देवी का मंदिर ५१ शक्ति पीठों में से एक है.
पौराणिक कथा के अनुसार अम्बुवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और और
माँ भगवती के गर्भ गृह स्थित महामुद्रा(योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल
प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है. दरअसल हमारा पारिवारिक कार्यक्रम का
मुख्य उद्देश्य माँ कामाख्या देवी का दर्शन ही था. ३१ मई के दिन हमलोग सभी सुबह ही
मंदिर के प्रांगण पहुँच गए थे. वी आई पी दर्शन के सारे टिकट बिक चुके थे. डिफेन्स
कोटे वाले चल रहे थे. चुनाव के बाद और गर्मी की छुट्टियों की वजह से काफी लोग यहाँ
दर्शन हेतु पधार रहे थे. इसलिए हमलोगों को सामान्य कतार में ही लगना पड़ा जिसमे
काफी भीड़ थी. दर्शन करने में सुबह से शाम हो गए. हालाँकि वहां कतार में भी बैठने
की ब्यवस्था थी. चाय, फल आदि ले सकते थे. पंखे, कूलर और ए सी के साथ भजन और
धार्मिक सीरियल भी हाल में लगे टी वी पर दिखलाये जा रहे थे. शाम की गोधूलि वेला
में दर्शन और जल स्पर्श रोमांच के साथ आस्था से परिपूर्ण लगा. उसके बाद हमलोगों ने
वहीं पर खाना खाया. दूसरे दिन ही हम लोग चेरापूंजी (अब सोहरा) के लिए रवाना हुए.
६.
जयन्ती
माता का मंदिर – जयन्ती शक्तिपीठ भी ५१ शक्तिपीठों में से एक है. पुराणों के
अनुसार जहाँ सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वहां वहां शक्तिपीठ
अस्तित्व में आये. मेघालय तीन पहाड़ों गारो, कहसी, और जयंतिया पर बसा हुआ है.
जयंतिया पहाडी पर ही जयन्ती शक्तिपीठ है, जहाँ सती के वाम जांघ का निपट हुआ था. यह
शक्ति पीठ शिलोंग से ५३ किलोमीटर दूर जयंतिया पर्वत के बाउर भाग ग्राम में स्थित
है. यहाँ की सती जयंती और शिव क्रम्दीश्वर हैं. यहाँ हम नहीं जा सके.
७.
शिलोंग
पीक – समुद्र तल से करीब १९०० मीटर ऊंची शिलोंग पीक शिलोंग की सबसे ऊंची चोटी है. यहाँ
से आप पूरे शहर का नजारा देख सकते हैं. यहाँ के लोगों का मानना है कि उनके देवता
ली शिलोंग इस पर्वत पर रहते हैं. यहाँ से वह पूरे शहर पर नजर रखते हैं और लोगों को
हर मुसीबत से बचाते हैं. शिलोंग पीक के शानदार व्यू पॉइंट के अलावा यहाँ इंडियन
एयर फोर्स का रडार भी स्थापित है.
इन सबके अलावा और भी बहुत कुछ जैसे,
गुफाएं, झरने, जंगल, पहाड़ और इन सबके बीच सभी सुविधाओं से लैस रिसोर्ट के अलावा
काफी गेस्ट हाउसेस और होटल हैं. कहा जाता है कि यहाँ के लोग बहुत कम बीमार पड़ते
हैं. शुद्ध और प्राकृतिक वातावरण में रहने के अलावा ये लोग काफी मिहनती भी हैं. ये
लोग पर्यटकों को कुछ बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं. ये भीख नहीं माँगते और अपने आप
में ईमानदार हैं. अब बाहरी लोगों का भी वहां दखल हो गया है. यहाँ अभी भी मातृसत्ता
चलती है.
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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