एक ओर गायों के संरक्षण
और मॉब लिंचिंग को लेकर देश की राजनीति गरमाई हुई है. वहीं, राष्ट्रीय राजधानी के
छावला इलाके के घुम्मनहेड़ा की आचार्य सुशील गोशाला में अबतक 48 गायें मृत मिली हैं.
दिल्ली के विकास मंत्री गोपाल राय ने इस घटना को गंभीर बताते हुए 24 घंटे के अंदर जांच
रिपोर्ट अधिकारियों से तलब की है. वहीं, दिल्ली पुलिस ने भी मामले में
संज्ञान लेते हुए शिकायत पर कार्रवाई शुरू कर दी है. पुलिस के अनुसार, मृत मिली गायों को पोस्टमार्टम
के लिए भेज दिया है. गाय कैसे और किन हालातों में मरी हैं? इसकी जांच के लिए पशुपालन
विभाग की टीम जांच कर रही है. रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस इसमें आगे की कार्रवाई
करेगी.
दिल्ली के द्वारका इलाके में स्थित घुम्मनहेड़ा इलाके में वर्ष 1995 से आचार्य सुशील गोशाला संचालित है. पुलिस के अनुसार गोशाला करीब 20 एकड़ में फैली हुई है. यहां पुलिस को करीब 1400 गाय मिली हैं, इनमें से 48 मरी हुई पाई गई हैं. प्रथम दृष्टया किसी बीमारी की वजह से इनके मरने की आशंका है. हालांकि बड़ा सवाल है कि मौत के बावजूद इन गायों का समय रहते दफनाया क्यों नहीं गया?
द्वारका पुलिस के डीसीपी एंटो अल्फोंस का कहना है कि इस घटना की जांच के लिए पशुपालन विभाग की टीम को सूचना दी गई थी. इसके बाद मौके पर पहुंची टीम ने जांच शुरू कर दी है. रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी. चार दर्जन गाय मरी हुई मिलने की सूचना ने पूरे इलाके में खलबली सी मचा दी है. वहीं गोशाला के आसपास के लोगों का कहना है कि यहां न तो डॉक्टर है और न ही पशुओं की देखरेख के लिए कोई कर्मचारी. हालांकि पुलिस का भी यही कहना है कि उन्हें गोशाला में 20 मजदूरों के ही काम करने की जानकारी है. इतना ही नहीं आसपास के लोगों की मानें तो गोशाला में गायों के खानपान को लेकर भी कोई उचित व्यवस्था नहीं है. लोगों की मानें तो 20 एकड़ में फैली इस गोशाला दिल्ली नगर निगम की ओर से गायों पर काफी दान भी मिलता है. बावजूद इसके यहां बंदोबस्त न के बराबर हैं. वहीं गोशाला के कुछ हिस्से को छोड़ दें तो बाकी पूरी जमीन किसी दलदल से कम नहीं दिखती. गोशाला में साफ-सफाई की व्यवस्था भी देखने को नहीं मिली. चारों ओर गंदगी का आलम है. गंदे पानी की वजह से यहां मच्छर और कीट पतंगों का प्रभाव भी अत्यधिक है.
इस तरह से गायों का मृत अवस्था में मिलना वाकई शर्मनाक है. ये गोशाला दिल्ली सरकार के अधीन आती है. दिल्ली नगर निगम की ओर से गायों को यहां भेजा जाता है. जबकि इसके संचालन से लेकर देखरेख की पूरी जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है.
दिल्ली के द्वारका इलाके में स्थित घुम्मनहेड़ा इलाके में वर्ष 1995 से आचार्य सुशील गोशाला संचालित है. पुलिस के अनुसार गोशाला करीब 20 एकड़ में फैली हुई है. यहां पुलिस को करीब 1400 गाय मिली हैं, इनमें से 48 मरी हुई पाई गई हैं. प्रथम दृष्टया किसी बीमारी की वजह से इनके मरने की आशंका है. हालांकि बड़ा सवाल है कि मौत के बावजूद इन गायों का समय रहते दफनाया क्यों नहीं गया?
द्वारका पुलिस के डीसीपी एंटो अल्फोंस का कहना है कि इस घटना की जांच के लिए पशुपालन विभाग की टीम को सूचना दी गई थी. इसके बाद मौके पर पहुंची टीम ने जांच शुरू कर दी है. रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी. चार दर्जन गाय मरी हुई मिलने की सूचना ने पूरे इलाके में खलबली सी मचा दी है. वहीं गोशाला के आसपास के लोगों का कहना है कि यहां न तो डॉक्टर है और न ही पशुओं की देखरेख के लिए कोई कर्मचारी. हालांकि पुलिस का भी यही कहना है कि उन्हें गोशाला में 20 मजदूरों के ही काम करने की जानकारी है. इतना ही नहीं आसपास के लोगों की मानें तो गोशाला में गायों के खानपान को लेकर भी कोई उचित व्यवस्था नहीं है. लोगों की मानें तो 20 एकड़ में फैली इस गोशाला दिल्ली नगर निगम की ओर से गायों पर काफी दान भी मिलता है. बावजूद इसके यहां बंदोबस्त न के बराबर हैं. वहीं गोशाला के कुछ हिस्से को छोड़ दें तो बाकी पूरी जमीन किसी दलदल से कम नहीं दिखती. गोशाला में साफ-सफाई की व्यवस्था भी देखने को नहीं मिली. चारों ओर गंदगी का आलम है. गंदे पानी की वजह से यहां मच्छर और कीट पतंगों का प्रभाव भी अत्यधिक है.
इस तरह से गायों का मृत अवस्था में मिलना वाकई शर्मनाक है. ये गोशाला दिल्ली सरकार के अधीन आती है. दिल्ली नगर निगम की ओर से गायों को यहां भेजा जाता है. जबकि इसके संचालन से लेकर देखरेख की पूरी जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है.
इसी प्रकार पिछले वर्षों (अगस्त 2016 में) चर्चा में
आया था राजस्थान का हिंगोनिया गौशाला जहाँ हजारों गायें सही देख-भाल के अभाव में
मृत पायी गयी थी. जांच के आदेश हुआ, क्या हुआ? किसको सजा मिली? पता नहीं. राजस्थान
में वसुंधरा राजे नीत भाजपा की सरकार है. कोई
गौरक्षक(तथाकथित) वहां भी नहीं जाते गायों की रक्षा करने या सेवा करने. प्रधान
मंत्री भी अपने संबोधन में तथाकथित गौरक्षकों की भर्त्सना करते रहे हैं, पर उनके
मंत्री तथा अन्य भाजपा कार्यकर्ता/पदाधिकारी उनकी सुनते भी हैं. उनके बयान और
क्रिया-कलाप जहर फैलाते हैं ताकि हिन्दू मुस्लिम, स्वर्ण-दलित ही मुद्दा बना रहे
और जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटा रहे.
देश के हर भाग में गौशालाएं बनाई गयी हैं, कहीं इनका
देखभाल स्वयम सेवी संस्थाएं करती हैं तो कहीं कहीं सेना भी कर रही है. बहुत अच्छी
बात है कि गौशालाएं बनाई गयी हैं, यहाँ दूध देनेवाली और दूध न देनेवाली दोनों
प्रकार की गायों का ध्यान रखा जाना चाहिए. जो गायें दूध नहीं देती वे भी अपने गोबर
और मूत्र से कई प्रकार की औषधियों के निर्माण का मौका देती है, गौमूत्र कई प्रकार
की असाध्य बिमारियों की अचूक दवा है. गाय का गोबर भी कीटनाशक है और इससे जैविक खाद
बनाया जाता है. गोबर गैस भी इंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. तरीके बहुत
हैं. स्वाभाविक मृत्यु के बाद गाय की हड्डियों और चमड़े के इस्तेमाल से मेरे ख्याल
से कोई धार्मिक भावना का दोहन नहीं किया जाना चाहिए. नहीं तो उतना जगह भी होना
चाहिए जहाँ गायों को जमीन में दफनाया जा सके. बहुत बाते हैं, जिन्हें सामान्य बात
चीत से और नियम बनाकर सुलझाये जा सकते हैं. लेकिन मुद्दा बनाकर उछालना और किसी ख़ास
जाति और धर्म के लोगों को भीड़ द्वारा मार दिया जाना किसी भी तरीके से जायज नहीं
कहा जा सकता. गौशालाओं की देख-रेख के लिए
लोग बड़े पैमाने पर दान देते हैं, सरकार से भी अनुदान राशि मिलती है. फिर सारा पैसा
कहाँ चला जाता है. जो तस्वीरें मीडिया में आती हैं उन्हें देखकर यही लगता है कि
गायों के रख-रखाव का कोई खास ख्याल नहीं रखा जाता. खासकर जो गाएं दूध देना बंद कर
देती हैं, उनका वही हाल होता है जो हाल हमारे समाज में बुजुर्गों का है. जिन्हें
हम माता मानते हैं, पूजा करते हैं, गौदान करते हैं, उनकी ऐसी दुर्दशा? केवल बयानबाजी
और भाषणबाजी से तो कुछ होने से रहा. गंगा सफाई की योजनायें भी राजीव गांधी के समय से
चली आ रही है, पर गंगा की हालात दिन प्रतिदिन और बिगड़ती जा रही है. अब तो NGT ने
गंगा के जल को नहाने के लिए भी खतरनाक घोषित कर दिया है और सरकार को फटकार लगते
हुए कहा है कि सरकार हर जगह बोर्ड लगाये कि अमुक स्थान पर गंगा के प्रदूषण का स्तर
क्या है? ताकि लोग सावधानी बरत सकें. धन तो आवंटन किये जाते हैं, पर बंदरबाट आज भी
जारी है. वर्तमान प्रधान मंत्री चाहे जितने वादे करें, जितनी घोषणाएं करें, जबतक
धरातल पर काम नहीं दिखेगा, जनता को भरोसा कैसे होगा? क्या भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार कर पाए हैं
अभीतक हमलोग? अभी आधे भारत में बाढ़ का प्रकोप है. गावों की कौन कहे शहरों/महानगरों
का भी बुरा हाल है. नालियां जाम हैं, सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गयी है. पुल बह
जा रहे हैं. आखिर कौन है जिम्मेदार इन अनियमितताओं का. हमारा सिस्टम कितना बिगड़
गया है, जिसे सुधारा नहीं जा सकता?
गाय
रक्षा पर प्रसिद्द व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई का व्यंग्य प्रासंगिक है. प्रस्तुत
है उसका संकलित अंश! -- एक बार एक स्वामी जी से स्टेशन पर भेंट हो गयी. कहने लगे-
बच्चा, धर्मयुद्ध छिड़ गया. गोरक्षा-आंदोलन
तीव्र हो गया है. दिल्ली में संसद के सामने सत्याग्रह करेंगे. मैंने कहा- स्वामीजी, यह आंदोलन किस हेतु चलाया जा रहा है? स्वामीजी ने कहा- तुम अज्ञानी मालूम
होते हो, बच्चा!
अरे गौ की रक्षा करना है. गौ हमारी माता है. उसका वध हो रहा है. मैंने पूछा- वध
कौन कर रहा है? वे बोले- विधर्मी कसाई. मैंने कहा- उन्हें वध के लिए गौ
कौन बेचते हैं? वे
आपके सधर्मी गोभक्त ही हैं न? स्वामीजी ने कहा- सो तो है. पर वे
क्या करें? एक
तो गाय व्यर्थ खाती है, दूसरे
बेचने से पैसे मिल जाते हैं. मैंने कहा- यानी पैसे के लिए माता का जो वध करा दे, वही सच्चा गो-पूजक हुआ! बे बोले -यह
भावना की बात है. मैंने पुछा- स्वामीजी, आप तो गाय का दूध ही पीते होंगे? नहीं बच्चा, हम
भैंस के दूध का सेवन करते हैं. गाय कम दूध देती है और वह पतला होता है. भैंस के
दूध की बढ़िया गाढ़ी मलाई और रबड़ी बनती है. तो क्या सभी गोभक्त भैंस का दूध पीते
हैं? हां, बच्चा, लगभग
सभी. तब तो भैंस की रक्षा हेतु आंदोलन करना चाहिए. भैंस का दूध पीते हैं, मगर माता गौ को कहते हैं. जिसका दूध
पिया जाता है,
वही तो माता कहलाएगी. यानी
भैंस को हम माता…नहीं
बच्चा, तर्क ठीक है, पर भावना दूसरी है. स्वामीजी, हर चुनाव के पहले गोभक्ति क्यों जोर
पकड़ती है?
इस मौसम में कोई खास बात है
क्या? बच्चा, जब चुनाव आता है, तब हमारे नेताओं को गोमाता सपने में
दर्शन देती है. कहती है बेटा चुनाव आ रहा है. अब मेरी रक्षा का आंदोलन करो. देश की
जनता अभी मूर्ख है. मेरी रक्षा का आंदोलन करके वोट ले लो. बच्चा, कुछ राजनीतिक दलों को गोमाता वोट
दिलाती है, जैसे
एक दल को बैल वोट दिलाते हैं. तो ये नेता एकदम आंदोलन छेड़ देते हैं और हम साधुओं
को उसमें शामिल कर लेते हैं. हमें भी राजनीति में मजा आता है. .....
आप
समझ गए होंगे. समझना और मनन-चिंतन करना जरूरी है. मानव सेवा, पशु सेवा, प्रकृति
सेवा सभी उत्तम कार्य है. अच्छे कार्य की सराहना की जानी चाहिए. अच्छे कार्य का
समर्थन किया जाना चाहिए पर भीडतंत्र का न्याय कभी भी सही नहीं हो सकता. आप उन्हें
समझा सकते हैं. और सही रास्ते पर ला सकते हैं. जय श्रीराम! जय गोमाता! जय भारत! जय
हिन्द!
-
जवाहर
लाल सिंह, जमशेदपुर.