३ मार्च ,१८३९ को गुजरात के नवसारी में जन्मे
नुसरवान जी टाटा और जीवनबाई टाटा के बेटे जमशेदजी नुसेरवान जी टाटा ने आज से १५०
साल पहले ही ‘मेक इन इंडिया’ की ऐसी मजबूत आधारशिला रखी थी कि आज वो एक बड़े
फल-छायादार वृक्ष का रूप ले चुका है जिसकी शाखाएं देश विदेश में भी अब गहरी
जड़ें जमा चुकीं हैं. इस साल टाटा साहब के १७९ वीं जयंती मनाई जा रही है. हालाँकि
१९०७ में टाटा स्टील (तब-टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी यानि टिस्को के नाम से मशहूर)
ने जमशेदपुर में मूर्त रूप लेना शुरू किया था उसके पहले १९ मई ,१९०४ में ही जमशेदजी नुसेरवान जी टाटा
का जर्मनी में निधन हो चुका था लेकिन उनके अदम्य साहस, दूरदर्शिता और सपने को आगे बढ़ाते हुए
उनके बेटे दोराबजी टाटा के नेतृत्व में विपरीत परिस्थितियों में १९१२ में पहली
भारतीय स्टील कंपनी से जमशेदपुर में लौह उत्पादन शुरू हुआ.
देश के सफल औद्योगीकरण के लिए उन्होंने
इस्पात कारखानों की स्थापना की महत्त्वपूर्ण योजना बनायी। ऐसे स्थानों की खोज की,
जहाँ लोहे की खदानों के साथ कोयला और पानी की सुविधा प्राप्त हो सके। अंतत: आपने
बिहार(वर्तमान झाड़खंड) के जंगलों में सिंहभूमि जिले में वह स्थान (इस्पात की
दृष्टि से बहुत ही उपयुक्त) खोज निकाला। तब का ‘कालीमाटी’ स्थान आज जमशेदपुर, और
टाटानगर के नाम से प्रसिद्ध है, जो अपने आप में सम्पूर्ण भारत कहा जा सकता है.
यहाँ हर जाति, धर्म के लोग, स्त्री-पुरुष समभाव से अपना काम करते हैं और अपने काम
को ही पूजा मानते हैं. अमेरिकी
निबंधकार लेविस लैपहैप के शब्दों में -"कोई व्यक्ति औज़ार की तरह रोजगार का
साधन भी बन सकता है, वह ईश्वर के अवतार जैसा अपनी अद्भुत लीलाएं प्रदर्शित कर सकता
है, जिसने
अपनी सम्पदा का उपयोग भारत और भारतवासियों को समृद्ध बनाने में किया. वह जमशेदजी
ही हो सकता है."
टाटा स्टील अब तो भारत ही नहीं कई देशों
में भी फैला हुआ है, पर संस्थापक श्री जे. एन. टाटा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि टाटा
स्टील, जमशेदपुर के ही मुख्य द्वार पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित
कर मनाया जाता है. इस कार्यक्रम में शामिल होने टाटा परिवार के सभी वरिष्ठ और
कनिष्ठ सदस्य पधारते हैं. वैसे २ मार्च को ही कुछ मुख्य कार्यक्रम की शुरुआत हो
जाती है. इस बार भी सभी वरिष्ठ अधिकारी जो ज्यादा समय मुख्य दफ्तर मुंबई या विदेश
में रहते हैं, २ मार्च को ही जमशेदपुर पधार गए. २ मार्च को ही ८० वर्षीय श्री रतन
टाटा के साथ टाटा समूह के वर्तमान अध्यक्ष श्री एन. चंद्रशेखरन ने टाटा तार कंपनी
मैदान स्थित नवल टाटा हॉकी अकादमी का उद्घाटन किया साथ ही शाम को जुबिली पार्क में
विद्युत् सज्जा का उद्घाटन किया. इस उद्घाटन समारोह का जो फिल्मांकन दिखाया गया,
उसे देखकर खुद उद्घाटनकर्ता भी आश्चर्यचकित रह गए. जुबिली पार्क भी टाटा स्टील के
५० साल पूरा होने के अवसर १९५७ में जमशेदपुर वासियों के लिए दिया गया उपहार है,
जिसे बंगलोर के वृन्दावन गार्डेन के शैली में बनाया गया है. ३ मार्च के अवसर पर
इसे परीलोक की तरह सजाया जाता है और विद्युत् सज्जा के माध्यम से ही विभिन्न
प्रकार की झांकियां दिखाई जाती है. इस बार स्मार्ट सिटी की भी झलक दिखलाई गयी है.
भारत के विभिन्न रूपों को यहाँ भली-भांति चित्रण किया गया है. टाटा समूह के
चेयरमैन ने आश्वस्त किया है कि जमशेदपुर तकनीक के सहारे स्मार्ट से स्मार्टर स्टील
सिटी बनेगा.
मुख्य प्रवेश द्वार पर संस्थापक को
श्रद्धांजलि देने का कार्य सुबह साढ़े सात बजे से प्रारंभ हो जाता है. सर्वप्रथम
टाटा मुख्य अस्पताल का टीम अपने जनरल मेनेजर के नेतृत्व में परेड करते हुए प्रतिमा
पर पुष्पांजलि और माला अर्पित करता है. उसके बाद टाटा समूह की विभिन्न अनुषंगी
इकाई अपने अपने ढंग से श्रद्धांजलि अर्पित करता है. साढ़े आठ बजे जमशेदपुर के ही
वरिष्ठ नागरिकों की टीम अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और 9 बजे टाटा समूह के
निदेशक मंडल के सदस्य जिनमे इसबार श्री रतन टाटा, श्री एन चंद्रशेखरन, श्री जे जे
इरानी, श्री टी वी नरेन्द्रन आदि ने माल्यार्पण किया. फिर विभिन्न यूनियन के
पदाधिकारी गण भी अपने स्तर से श्रद्धासुमन अर्पित किये. यहाँ तक कि नाटस्टील, टाटा
स्टील थाईलैंड, टाटा स्टील यूरोप के प्रतिनिधियों ने भी यहीं पर आकर श्रद्धासुमन
अर्पित किए. हालाँकि हर साल यह समारोह होता है और कई बार मैं इसमे या तो प्रतिभागी
के रूप में या दर्शक के रूप में शामिल रहा
हूँ. इसबार भी मुझे सपत्नीक नजदीक से इस समारोह का प्रत्यक्षदर्शी होने का सौभाग्य
प्राप्त हुआ. इसबार मुझे उन सभी गणमान्य लोगों, जिनमे श्री रतन टाटा, एन
चंद्रशेखरन आदि महान विभूतियों को नजदीक से दीदार करने का सौभाग्य प्राप्त
हुआ.
दोपहर बाद यहाँ के हृदयस्थल में स्थित
गोपाल मैदान में खेलकूद की विभिन्न स्पर्धा का आयोजन हुआ जिसमे सभी प्रतिभागियों
को सम्मानित किया गया. शाम को जुबिली पार्क में जमशेदपुर और आस-पास के नागरिकों का
हुजूम जुटता है. जुबिली पार्क का कार्यक्रम ५ मार्च तक चलता है ताकि सभी ईच्छुक
लोग खूबसूरत नजारा देख सकें. लाइट एंड साउंड पर आधारित बहुत सारे कार्यक्रम मनमोहक
और मनोरंजक होते हैं.
अभी हाल ही में टाटा स्टील को बंगलोर में
आयोजित फ़ास्ट सिक्योरिटी इंडिया एक्सपो के दौरान बेस्ट सिक्योर कंपनी का सम्मान
मिला है. प्रधान मंत्री ट्राफी से लेकर बेस्ट एथिकल कंपनी का अवार्ड भी लगभग हर
साल ही मिलता है. यह टाटा ही है जो हर सरकारों की नीतियों के साथ साथ सामंजस्य
बिठाकर चलता है इसलिए यह दिन रात अपनी रफ़्तार से चलता रहता है. रुकने का नाम भी
नहीं लेता.
टाटा घराने में काम करनेवाले सभी स्तर
के कर्मचारी अधिकारी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं. टाटा से ही जमशेदपुर है
और जमशेदपुर तथा आस पास के लाखों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार
एवं अन्य नागरिक सुविधाएँ प्रदान करता है. टाटा के ही बदौलत यह शहर साफ़ सुथरा और
हर प्रकार के नागरिक सुविधाओं से सम्पन्न है. यहाँ के सभी व्यवसायी टाटा पर ही
आधारित हैं. इसलिए वे सभी चाहते हैं टाटा दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की करता रहे. आम
तौर पर यह शहर अमन पसंद है. बीच बीच में कभी-कभार अप्रिय घटना घट जाती है, जिससे
सभी दुखी होते है. झारखण्ड सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्री श्री रघुवर दास(मुख्य
मंत्री) और श्री सरयू राय जमशेदपुर के अमन का खास ख्याल रखते हैं. इसलिए भी यह शहर
अपनी समरसता कायम रख पाता है. बीच-बीच में टाटा कम्पनी कुछ ऐसे सामाजिक और
सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करती रहती है, जिससे लोगों की प्रतिभा का विकास
होता रहे. कई क्रिकेट खिलाड़ी, तीरंदाज और फ़िल्मी कलाकार भी इस जमशेदपुर से बने हैं,
जिनका अपना नाम देश और पूरे दुनिया में है. कवि सम्मेलनों में आनेवाले कई कवियों
का मानना है कि जमशेदपुर में लोहा बनानेवाले लोगों का दिल मोम का होता है. जैसे
यहाँ लोहा पिघलता है दिल भी बहुत जल्द पिघलता है.
पूरी दुनियां में अपना स्थान बनाने में
स्वर्गीय श्री जे एन टाटा की दूरदर्शिता ही है, जिससे यहाँ के सभी लोग प्रभावित
हैं और उनके जन्म दिन के अवसर पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं. टाटा यहाँ के लोगों
के लिए भगवान से कम नहीं हैं. पुराने कर्मचारी जो साइकिल से ड्यूटी आते थे, टाटा
साहब की मूर्ति के पास अपनी साइकिल रोककर, जूते उतारकर टाटा साहब को प्रणाम कर तब
ड्यूटी को प्रस्थान करते थे. ऐसी महान विभूति को शत शत नमन! –
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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