Sunday, 2 April 2017

चैत्र मास और श्री रामनवमी

पौराणिक कथाओं के अनुसार चैत्र शुक्ल नवमी के दिन भगवान राम का अवतार (जन्म) हुआ था.
तुलसीदास जी लिखते हैं,
नौमी तिथि मधुमास पुनीता, शुकल पच्छ अभिजीत हरि प्रीता.
मध्य दिवस अति धूप न घामा, प्रकटे अखिल लोक विश्रामा.
संवत १६३१ के, रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी, जो दो वर्ष, सात महीने, छब्बीस दिन के बाद, संवत १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूरी हुई थी. राम नवमी के दिन पूरे देश में राम जन्म के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. पूरे उत्तर भारत में भगवान राम की झांकियां निकाली जाती है तो पूर्वांचल, बिहार, झारखण्ड आदि जगहों में हनुमान जयन्ती मनाई जाती है. रामनवमी के दिन महावीर जी का ध्वज यानी झंडा विधिपूर्वक स्थापित किया जाता है. जहाँ पूजा स्थल निर्धारित है वहाँ स्थापित ध्वज को छोड़ दिया जाता है और पूरे साल वहाँ हनुमान जी की पूजा की जाती है.
आजकल शहरों, या गाँवों में भी दूसरे दिन यानी दशमी के दिन महावीर जी के विशाल ध्वज को शोभायात्रा के साथ मुख्य सड़कों, चौराहों पर घुमाया जाता है. ध्वज को लेकर चलने वाले अनेक हाथ होते है, और पूरा जन समुदाय जुलूश की शक्ल में पीछे पीछे चलता है. हनुमान जी चूंकि शौर्य के प्रतीक हैं, इसलिए उनके पीछे जन समुदाय अपने विभिन्न बहादुरी के करतब दिखलाते हैं. बोलो बोलो बजरंगबली की जय! के घोष से पूरा वातावरण उल्लासमय बन जाता है. वीर हनुमान के भक्त, हिन्दू जन समुदाय अपनी श्रद्धा को अर्पित करते हुए, नजदीक के नदी तालाब तक जाते हैं, और वहाँ पर झंडा को पवित्र जल से शांत कर अपने अपने घरों को लौट जाते हैं. यह है आदर्श स्थिति जिसे हम सभी को पालन करना चाहिए.
पर आजकल तो आप सभी जानते है, कोई भी धार्मिक अनुष्ठान में श्रद्धा कम दिखावा ज्यादा होने लगा है, वर्चस्व का दिखावा भी इन्ही आयोजनों में दिख जाता है. एक समूह, दूसरे समूह से बढ़ चढ़ कर दिखलाने की कोशिश करता है. हमारा झंडा पहले या आगे होना चाहिए. झंडे के बांस की ऊंचाई से, झंडे के वृहत आकार से भी वर्चस्व साबित किया जाता है. इनके अलावा एक और भावना आजकल के माहौल में देखने को मिलती है, अगर रास्ते में किसी अन्य समुदाय/पंथ/धर्म का स्थल हो तो वहाँ हमारी ताकत ज्यादा दिखनी चाहिए. दूसरे पंथ वाले भी इसी फ़िराक में रहते हैं कि इसमें विघ्न कैसे उपस्थित की जाय. एकाध पत्थर ही तो काफी होते हैं, वातावरण को विषाक्त बनाए के लिए! एक पत्थर गिरा नहीं कि पूरा जन समुदाय आन्दोलित हो उठता है और जो नहीं होना चाहिए वही हो जाता है. कुछेक शहरों में रामनवमी को राईट पर्वके रूप में भी बड़ा संवेदनशील माना जाता है. यह पर्व, खासकर झंडा विसर्जन शांति रूप से संपन्न हो जाय तो आम जन और प्रशासन भी चैन की सांस लेता है. इसलिए अधिकाँश शहरों में इस पर्व के आयोजन के पहले ही आयोजन समितियों के साथ, प्रशासन मिलकर शांति समिति बनाता है और यह आयोजन कैसे शांतिपूर्ण संपन्न हो जाय, इसके लिए बैठकें आयोजित की जाती है. इन बैठकों में प्रशासन के लोग और शहर या गाँव के गणमान्य लोग अपनी सिरकत करते है.
चूंकि, गर्मी का वातावरण रहता है, इसलिए बहुत सारी संस्थाएं झंडा के जुलूश के रास्ते में, ठंढे पानी, शरबत, शीतल पेय आदि की ब्यवस्था करते हैं. यह भी अपनी श्रद्धा भावना व्यक्त करने का एक अपना तरीका होता है. किसी भी धर्म के पर्व त्योहार आपसी मेल जोल, भाईचारे को बढ़ाने के उद्देश्य को लेकर ही बनाया गया होता है. इसलिए हम सबका यही प्रयास होना चाहिए कि भाईचारे और आपसी प्रेम को बढ़ाने में हमारा भी योगदान हो ना कि उसके विपरीत हम आचरण करें
अब हम आते है कि रामनवमी के दिन हनुमान जी की आराधना क्यों? इसमें विद्वानों का मत अलग अलग हो सकता है. मेरी समझ के अनुसार, हनुमान जी बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले, शंकर भगवान के अंशावतार हैं, भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त हनुमान जी ही हैं. इन्होने ही वानर राज सुग्रीव को भगवान से मिलाया और किष्किन्धा का राजा बनवाया, विभीषण को भी इन्होने ही लंकापति बनाने में मदद की. यहाँ तक कि गोस्वामी तुलसीदास जब श्रीराम को दर्शन कर भी पहचान नहीं कर पाए थे तो वहाँ भी हनुमान जी ने तोते का रूप धारण कर कहा था-
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक देत रघुवीर.
एक बात और मैं यहाँ जोडना चाहूँगा, तमाम सावधानियों के बाद भी लगभग हर साल झंडे की लंबाई और बिजली की लटकती तारों के साथ शायद सामंजस्य नहीं बिठा पाते, इसलिए यदा कदा दुर्घटनाएं घट जाती है, जिनसे जान माल की क्षति तो होती ही है, उल्लास का माहौल संताप में बदल जाता है. आम लोगों को भी ट्राफिक में अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है. अत: मेरा सभी श्रद्धालुओं से अनुरोध होगा कि रामनवमी में आस्था के साथ उल्लास को अवश्य समाहित करें, पर सावधानी जरूरी है. प्रेम बढ़ाये, नफरत न फैलाएं!
रामनवमी के साथ अगर हम वासंती नवरात्रि की बात करें तो इसकी शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही कलश स्थापना से शुरू हो जाती है. इस साल विक्रम संवत २०७४ का प्रारम्भ २८ मार्च को हुआ है. नवरात्रि आराधना करने वाले नौ दिन तक नमक रहित फलाहार और मिष्टान्न खाकर रहते हैं और दुर्गा पाठ करते हैं. नौवें दिन कन्यापूजन के बाद व्रत की समाप्ति होती है. नौ दिन तक दुर्गा के नौ रूपों की आराधना भी विधिवत की जाती है और दसवां दिन यानी दसमी को विसर्जन! ये सभी धार्मिक अनुष्ठान हैं. दुर्भाग्य इस बात का है कि जिस कन्या का पूजन हमलोग करते हैं, उसी कन्या का आदर पूरे साल नहीं करते! समय की मांग है कि बालिकाओं और महिलाओं को उचित सम्मान के साथ सामान सामजिक दर्जा भी प्राप्त हो.
अब आते हैं प्राकृतिक और ब्यवहारिक कर्म पर. चैत्र मास तक रब्बी की फसल पक कर तैयार हो जाती है. इसे खेतों से काट कर खलिहानों तक लाया जाता है. यहाँ तैयार फसल के दानों को अलग कर उसका उचित संग्रहण या विपणन कर दिया जाता है. पंजाब में इसी समय बैशाखी मनाई जाती है और बिहार में सतुआनी सतुआनी यानी सत्तू खाने का रिवाज. सत्तू रब्बी फसल चना, जौ, मकई आदि से ही तैयार की जाती है उसे गुड़ के साथ मिला कर खाया जाता है, साथ में आम और पुदीना की चटनी ! ये सभी गर्मी से राहत देने वाले होते हैं!
चैत्र मास में ही चैता का आयोजन होता है जो बिहार और पूर्वांचल का लोक संगीत भी है. सभी लोग इसमें खुलकर साथ निभाते हैं और मनोरंजन करते हैं. चैत्र महीने को खरमास भी मानते हैं, अर्थात इस महीने में शादी विवाह आदि शुभ कार्य नहीं होते. पर रामनवमी अथवा वैशाखी बाद, शादी विवाह के भी मुहूर्त निकल आते हैं और गाँव के ज्यादातर लोग इसी समय शादी विवाह करने में रूचि रखते हैं. कारण कृषि कार्यों से फुर्सत और ज्यादातर खेत खलिहान खाली रहते हैं. अमराई और बगीचे का भरपूर आनंद उठाने का माहौल होता है!
सभी पर्व त्यौहार के आयोजन का मुख्य उद्देश्य है आपसी भाईचारा, प्रेम और सौहार्द्य. अगर इन आयोजनों के द्वारा हम आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाते हैं, तो बड़ी अच्छी बात है, अन्यथा हम सभी जानते है
संयोग से हिंदूवादी राष्ट्रीय पार्टी भाजपा केंद्र के साथ कई राज्यों में सत्तारूढ़ है. इस बार उत्तर प्रदेश में अपार सफलता मिली है और योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया है. योगी जी उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाना चाहते हैं जिसके लिए वे प्रथम दिन से ही प्रयासरत हैं. मोदी जी और योगी जी दोनों ही नवरात्रि में उपवास रखते हैं और शाम को फलाहार करते हैं. बहुत सारे राज्यों के मुख्य मंत्री भी योगी जी के अच्छे कार्यों की सराहना के साथ उनका अनुकरण भी करने लगे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेश के साथ देश का भी भला होगा.
जमशेदपुर में भी रामनवमी का माहौल बन गया है. हर चौक चौराहे और मुख्य मार्गों पर महावीर जी का विशालकाय झंडा लगाया गया है. शाम को झांकी के साथ जुलूश के रूप में भक्त गण अपनी श्रद्धा और आस्था का प्रदर्शन करते हैं. प्रशासन के चुस्ती और मुस्तैदी आवश्यक है ताकि अप्रिय वारदातों से बचा जाय!   
इसी आशा के साथ प्रेम से बोलिए
सियावर रामचंद्र के जय! जय श्री राम! जय माँ दुर्गे! जय जय हे बजरंगबली!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 

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