Saturday, 29 April 2017

मुझे माफ़ कर दीजिये!

दिल्‍ली एमसीडी चुनावों में करारी हार झेलने के बाद पार्टी में बढ़ते असंतोष के बीच मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहली बार इस पर सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर पर एक खत पोस्‍ट करते हुए लिखा है कि उन्‍होंने चुनाव में गलती की है, जल्‍दी ही गलती को सुधारेंगे. उन्‍होंने लिखा, ''पिछले दो दिनों में मैंने बहुत से कार्यकर्ताओं और वोटरों से बात की है...हां, हमने गलतियां की हैं लेकिन हम इसका आत्‍ममंथन करेंगे और इसको सुधारेंगे. अब फिर से ड्राइंग बोर्ड पर वापस लौटने का यह समय है. इसको सुधारना उचित होगा.  उन्‍होंने कहा कि यह हम अपने कार्यकर्ताओं और वोटरों से कहना चाहते हैं. यह हम अपने आप से कहना चाहते हैं. एक्‍शन की जरूरत है और किसी बहाने की जरूरत नहीं है. यह वापस काम पर लौटने का समय है. अगर हम समय-समय पर स्लिप भी करते हैं तो उसका तरीका यही है कि हम उनसे सबक लें और आगे बढ़ें. उन्‍होंने अंत में कहा कि केवल एक ही चीज शाश्‍वत है और वह है-बदलाव्”
पिछले दिनों गोवा, पंजाब, के विधान सभा चुनावों, दिल्ली के राजौरी गार्डन के मध्यावधि चुनाव और उसके बाद MCD के चुनाव में मिली जबर्दश्त हार के बाद चारो तरफ से आलोचनाओं से घिरे केजरीवाल ने आखिर में माफी मांग ली. उन्हें अपने बड़बोलेपन पर शायद अफ़सोस हुआ होगा या अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के अलग अलग बयानों से वे घिरते नजर आ रहे थे. कई नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी कबूल करते हुए अपने पद से इस्तीफे दिए. उधर कुमार विश्वास के विडियो और बयानों से भी विचलित हुए होंगे और अंत में सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली है.
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ कुमार विश्वास का कहना है कि पंजाब और दिल्ली चुनाव में पार्टी का हार के लिए EVM को दोष देना ठीक नहीं. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा 'EVM में गंभीर गड़बड़ियां हैं, ये हम नही बोल रहे. ये सब तरफ पकड़ी गई हैं और सब राजनीतिक पार्टियां बोल रही हैं लेकिन ये कहना कि हम केवल EVM से हार गए, ये अपने से मुंह चुराना होगा.' हम केवल EVM की वजह से नहीं हारे बल्कि गड़बड़ी हम में भी है. 'ज़मीन में मुंह देने से सेहरा में तूफान खत्म नहीं हो जाता. पार्टी के कार्यकर्ता को बहुत दुख होता है जब हम कुछ लोग मिलकर बात करके फैसले कर लेते हैं और कार्यकर्ता को संज्ञान में भी नहीं लेते. किसी फैसले पर स्पष्टीकरण नहीं देते, मौन हो जाते हैं. ये गलतियां हमसे पिछले दो साल में हुई है और हमको ये सुधारनी होंगी.'
कुमार विश्वास ने लगातार बीजेपी में जाने की खबरों बीच साफ कर दिया है कि वो आम आदमी पार्टी छोड़कर जाने की सोच भी नहीं रहे. कुमार ने कहा कि "मैं क्यों पार्टी छोड़कर जाऊंगा? ये पार्टी मेरी है और ये मेरे घर से पार्टी बनी है इसलिये मेरे कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता." लगातार चुनाव में मिल रही हार के बाद चर्चा चलने लगी है कि क्या अरविंद केजरीवाल को राष्ट्रीय संयोजक का पद छोड़कर दिल्ली सरकार पर ध्यान देना चाहिए? इस पर कुमार ने कहा कि "अरविंद राष्ट्रीय संयोजक बने रहने चाहिए, उनके नेतृत्व पर किसी को कोई शंका नहीं है. ऐसा नहीं होता कि एक चुनाव हार गए तो आप लीडर बदल लेंगे, आज हारें है तो कल जीते भी थे."
वैसे पार्टी में संजय सिंह, आशीष तलवार, दिलीप पांडेय और दुर्गेश पाठक के इस्तीफे पर कुमार विश्वास ने कहा कि "इस्तीफ़े देने से स्थिति नही बदल जाती. क्योंकि आज ये लोग कुछ कर रहे हैं तो कल ये ही लोग कुछ और करेंगे. ज़रूरत है संगठन, रणनीति, संवाद में बदलाव करने की जिससे हम अपने कार्यकर्ता और जनता को वही लोग दिखाई दें जो जंतर मंतर से करप्शन के खिलाफ लड़ने चले थे.'
उन्होंने भविष्य के लिए पार्टी में व्यापक बदलाव की ज़रूरत पर बल दिया और कहा कि पार्टी में संगठन, संवाद, और रणनीति में बदलाव की ज़रूरत है. ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम लोग TV डिबेट में जाकर गलत बातों का बचाव करते दिखें. कुमार विश्वास ने अपनी नाराजगी और पार्टी नेताओं में मतभेद के बीच पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं से माफी मांगते हुए कहा है कि 'मैं उन सब कार्यकर्ताओं से माफी मांगता हूं जिनको हमारी वजह से कष्ट हुआ और गर्व का मौका नहीं मिला. उनकी मेहनत में कोई कमी नहीं है और मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं उनको जोड़ूं और जंतर-मंतर के आंदोलन की उस आग को दोबारा पार्टी के साथ लाकर खड़ा करूं.' कुमार विश्वास जानते हैं कि आम आदमी पार्टी में कार्यकर्ता कितनी बड़ी ताक़त है, इसलिए उन्होंने कहा कि कुछ टिकट हमने ऐसे दिए जहां कार्यकर्ता आक्रोश में था, उनकी नाराज़गी थी. पंजाब और दिल्ली में कहां कहां टिकट गलत हुए इसको लेकर हम गंभीर हैं और जांच करवा रहे हैं.
विश्वास ने कहा 'बीते दो साल में हम कई बार पटरी से उतरे और फिर चढ़े. कई बार हम भटके. हमें ये याद रखना होगा कि हम चले कहां से थे और क्या करने चले थे. हम करप्शन विरोधी थे, हम कांग्रेस विरोधी थे, हम मोदी विरोधी थे या हम EVM विरोधी थे?' कुमार विश्वास ने कहा कि बीते दो साल के अंदर जिस परसेप्शन के साथ हम राजनीति में आये वो अब टूट रहा है. अगर हम लोगों का विश्वास अर्जित नहीं कर पाए तो सीधी बात हैं हम संवाद नहीं कर पाए.
इसमे कोई दो राय नहीं है कि आज पूरे देश में मोदी जी के कद का कोई नेता नहीं और अमित शाह जैसा रणनीतिकार नहीं है. योगी जी मोदी जी के नक्शेकदम पर चलते हुए दो कदम आगे ही बढ़ना चाहते हैं जिससे आगामी चुनावों में भाजपा को ही फायदा होनेवाला है. योगी जी के यु पी में अच्छे काम से यु पी में अगर सुधार होता है तो इसका असर भी पूरे देश में पड़ने वाला है. होना भी चाहिए. अच्छी चीज की नकल की जानी चाहिए. जैसे आम आदमी पार्टी ने लाल बत्ती लेना बंद किया तो पंजाब चुनाव के बाद मुख्य मंत्री कैप्टेन अरमिन्दर सिंह ने भी लाल बत्ती लेना बंद किया और अब केंद्र सरकार ने भी यही फैसला लिया जिसका स्वागत पूरे देश में हुआ. योगी जी ने यु पी में महापुरुषों के जन्मदिन की छुट्टियाँ रद्द कीं तो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी यही निर्णय दिल्ली के लिए लिया. नर्मदा बचाओ आन्दोलन से सीख लेने योगी जी मध्य प्रदेश गए और उसी तर्ज पर नमामि गंगे योजना को अमली जामा पहनने का संकल्प लिया. तात्पर्य यही है कि अच्छी बातें कहीं से भी सीखी जा सकती है. नितीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू की तो इसका भी प्रचार प्रसार हो रहा है और दूसरे राज्य भी इसे अपनाने को सोच रहे हैं. महिलाओं के हक़ के लिए हर जगह से आवाजें उठ रही है. दिल्ली में सरकारी स्कूलों का कायाकल्प में काफी सुधार हुआ है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में मोहल्ला क्लिनिक की काफी प्रशंशा हो रही है. बस काम अच्छा होना चाहिए और जनता की समस्यायों का निदान भी होना चाहिए तभी सरकारें अगली बार भी जीतती है और पार्टी का जनाधार बढ़ता है. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होत! परिवर्तन जरूरी है. ठोकर लगना भी जरूरी है तभी आदमी सम्हलता है, अन्यथा निरंकुश बनता चला जाता है. काफी जाने माने पत्रकार और विद्वानों की राय में आम आदमी पार्टी को अपनी शाख बचाकर रखनी चाहिए ताकि वह दूसरे दलों से अलग दिखे. अन्यथा इस नई पार्टी का गठन का क्या मतलब रह जायेगा जिसका अहसास कुमार विश्वास भी करा रहे हैं. कुमार विश्वास कवि के साथ साथ वाक्पटु भी हैं और शिक्षित वर्ग को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. फिलहाल पार्टी में और टूट नहीं होनी चाहिए वरना पार्टी समाप्त हो जायेगी. पुरानी पार्टियों को आम आदमी पार्टी से डर लगता है इसीलिए लगभग सभी पार्टियाँ इसका विरोध करती है. उम्मीद किया जाना चाहिए कि आगे सब ठीक हो जायेगा. आम आदमी और आम आदमी की पार्टी मजबूत हो यही जरूरी है. जयहिंद!

-      - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Saturday, 22 April 2017

ऐसा भी एक किसान आन्दोलन!

वरिष्ठ पत्रकार और टी वी एंकर श्री रविश कुमार के शब्दों में- “लोकतंत्र की हम जब भी बात करते हैं, हमारा ध्यान राजनीतिक दल और उनके नेताओं की तरफ ही जाता है. स्वाभाविक भी है. लेकिन आप यह भी देख सकते हैं कि जब चुनाव समाप्त हो जाता है तो वो कौन लोग हैं जो आवाज़ उठाने का साहस करते हैं, सत्ता से सीधे टकराते हैं. राजनीति से निराश होते वक्त भी हम इनकी तरफ नहीं देखते. हो सकता है कि हमें ये लगता हो कि लाठी खाते शिक्षकों से हमारा क्या लेना देना, फीस वृद्धि की मार सहने वाले मां-बाप से हमारा क्या लेना, रोज़गार की मांग करने वालों से हमारा क्या. हालांकि आप इन सबमें होते हैं लेकिन देखने और सोचने की ट्रेनिंग ऐसी हो गई है कि पार्टी के बाहर आप किसी को नेता की तरह देखते ही नहीं हैं. हम सब यह मान चुके हैं कि लोकतंत्र के लिए संघर्ष राजनीतिक दलों के मुख्यालयों से ही होता है”. कुछ साल पहले जब रामलीला मैदान में दिन-रात सत्याग्रह चल रहा था तब नर्मदा नदी में कुछ किसान जल सत्याग्रह करने उतर गए. 213 लोगों ने 32 दिनों तक कमर भर पानी में खड़े होकर प्रदर्शन किया था. उनके पांव खराब हो गए थे. मीडिया और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए आम लोगों को क्या-क्या करना पड़ रहा है. वे अपनी रचनात्मकता के ज़रिए इस लोकतंत्र को समृद्ध करते रहे हैं. कभी जीत जाते हैं, कभी हार भी जाते हैं.
14
मार्च को तमिलनाडु से 134 किसान दिल्ली आए. तमिलनाडु में भयंकर सूखा है, 140 साल में ऐसा सूखा किसी ने नहीं देखा, मगर वहां के नेता सत्ता का खेल खेल रहे हैं. किसान मुआवज़े और कर्ज़ माफी की मांग को लेकर दिल्ली आए. मुश्किल से इनके बीच कोई हिन्दी बोलने वाला है. देखिए कि इन किसानों ने अपने प्रदर्शन को किस तरह से हर दिन एक नई ऊंचाई दी है. ये प्रदर्शनों की रचनात्मकता का दौर है. किसान नहीं ये असली कवि हैं.
स्टेशन से उतरते ही वहां छोटी मोटी सभा जैसी कर ली. सबको निर्देश दिया कि कहां जाना है, क्या करना है और फिर जंतर-मंतर के लिए चल दिए. जल्दी ही ये लोग हर दिन ख़ुद ही घटना बनने लगे. सबसे पहले खुद को अर्धनग्न किया. हाथ में कटोरा लिया और उस पर बेगर(begger) लिख दिया. आधे ढंके तन के साथ ये किसान कर्ज़ माफी की मांग करने लगे. इनके गले में नरमुंड की माला भी थी. इनका कहना था कि यह खोपड़ी उन किसानों की है जिन्होंने कर्ज़ से तंग आकर आत्महत्या कर ली है. 40 दिन से ये जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन किसानों में 25 साल का नौजवान भी है और 75 साल के बुजुर्ग किसान भी.
दूसरे दिन दो किसान पेड़ पर चढ़ गए और फांसी लगाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने समय रहते इस घटना को रोक दिया. तीसरे दिन किसानों ने अपने कपड़े उतार दिए और पत्तों से शरीर को ढंक लिया. चौथे दिन पूरे शरीर को पेंट कर लिया. छठे दिन वे रुद्राक्ष की माला पहनकर प्रदर्शन करने लगे. सातवें, आठवें और नौंवे दिन इन्होंने कुछ अलग नहीं किया. जंतर मंतर पर ही प्रदर्शन करते रहे. 10 वें दिन सुप्रीम कोर्ट तक लंगोट में पदयात्रा की, 11 वें दिन जंतर मंतर पर कुत्ता बन गए और भौंककर प्रदर्शन करने लगे. 12 वें दिन एक किसान लाश बन गया, किसान लाश के आसपास बैठकर घंटा बजाने लगे, रोने लगे,लाश बने किसान की शवयात्रा भी निकाली. 13 वें दिन रो-रोकर प्रदर्शन करने लगे. 14 वें दिन दिल्ली रेलवे स्टेशन गए और वहां से चूहे पकड़कर ले आए. पटरियों पर दौड़ते चूहों को पकड़ना और उन्हें लेकर आना और फिर दांत से दबाना. तमाम मंत्रियों के दफ्तर भी गए, तमिलनाडु से मोदी सरकार में मंत्री भी आए, राहुल गांधी भी गए और बहुत से सामान्य लोग भी गए. इनका कहना है कि कुछ हो जाए, दिल्ली से लड़ाई जीतकर जाएंगे. इनका कहना है कि अगर सरकार ट्रेन में बिठा देगी तो चेन खींच देंगे, फिर भी उतरने नहीं देगी तो चलती ट्रेन से कूद जाएंगे. अब तो इन किसानों का कहना है कि वे पेशाब पीने जा रहे हैं.
उन्होंने जंतर मंतर पर एक नाटक भी खेला. इसमें प्रधानमंत्री को चाबुक मारते हुए दिखाया गया और किसान गांधी का मुखौटा पहनकर ज़मीन पर कोड़ा खाते रहे और मदद मांगते रहे. यह उनके प्रदर्शन का 15 वां दिन था. 16 वें दिन सांप का मांस खाया. 17 वें दिन काले कपड़े से सर और आंख को ढंक लिया. 18 वें दिन कटोरा लेकर भिखारी बन गए. 19 वें दिन आधा सर और आधी मूंछ मुंडवा ली. 21 वें दिन पूरी मूंछ साफ कर दी और 22 वें दिन सर के बल खड़े हो गए.
इस आंदोलन का नेतृत्व 70 साल के एक वकील कर रहे हैं. इनका कहना है कि ये पिछले साल भी दिल्ली आए थे. तमिलनाडु के किसानों की व्यथा बताई थी मगर किसी ने परवाह नहीं की. वे ज़रूर दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं मगर तमिलनाडु की राजनीतिक गतिविधियों को देखकर नहीं लगता कि वहां के विधायकों या सरकार को किसानों की चिंता है.  24 वें दिन इन किसानों ने कपड़े से खुद को ढंक लिया. 25 वें दिन एक आदमी प्रधानमंत्री बन गया और किसान अपनी हथेली काटकर खून उनके चरणों में अर्पित करने लगा. 26 वें दिन भूख हड़ताल की. 27 वें दिन गले में फांसी डालकर प्रदर्शन करने लगे. 28 वें और 29 वें दिन इनका प्रदर्शन झकझोर देने वाला रहा. किसी ने कल्पना नहीं की थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय में अपना ज्ञापन देकर लौटते वक्त ये निर्वस्त्र हो जाएंगे और प्रदर्शन करने लगेंगे.
जैसे-जैसे दिन गुजरा इन किसानों की ज़िद बढ़ती गई. चालीस हज़ार करोड़ की मदद राशि की मांग है इनकी. किसी भी सरकार के लिए मुश्किल है. केंद्र सरकार ने भी 2000 करोड़ से अधिक की मदद का एलान तो किया ही है मगर चालीस हज़ार करोड़ वह दे सकेगी, हम अंदाज़ा तो कर ही सकते हैं. 29 वें दिन इन्होंने जो किया वो और भी मुश्किल था. खुली सड़क पर चावल को चादर की तरह बिछा दिया. उस पर दाल डालकर खाने लगे. 30 वें दिन उन्होंने जिस शरीर को भाषा में बदला था, उसी की छाती और पीठ पर मांग लिख दी. 31 वें दिन की जानकारी नहीं है हमारे पास. 32 वें दिन इन किसानों ने साड़ी पहनकर प्रदर्शन किया. इन किसानों ने बताया कि एक किसान ने पत्नी का मंगलसूत्र गिरवी रखकर कर्ज़ लिया था. लोन नहीं चुका पाया तो साहूकार मंगलसूत्र ले गया. इस सीन को किसानों ने जंतर मंतर पर दोहराया. धागे के मंगल सूत्र पहनकर प्रदर्शन करने लगे.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राज्य के सहकारिता बैंकों से लिए गए 5,780 करोड़ के कर्ज़ वहां की सरकार ने माफ कर दिए हैं. हाईकोर्ट ने भी कहा है कि तमिलनाडु के किसानों का कर्ज़ माफ होना चाहिए. पिछले साल यहां 170 मिलीमीटर बारिश हुई जबकि औसतन 437 मिलीमीटर बारिश होती है. 80 फीसदी किसान, छोटे किसान हैं. 34 वें दिन किसान औरत बन गए, चूड़ी तोड़कर प्रदर्शन करने लगे. 37 वें दिन किसानों ने फटा हुआ कुर्ता पहन लिया.
हम कह सकते हैं कि किसानों के इन प्रदर्शनों में अतिवाद है, विचित्रता भी हैं, लेकिन यह भी तो देखिए कि आम किसान अपनी बात को लेकर कैसे लड़ रहा है. लड़ने के लिए किन-किन तरीकों को ईजाद कर रहा है. जंतर मंतर पर ही उनका घर बस गया है. मांग पूरी होने तक जाने वाले नहीं हैं इसलिए वहीं रात बिताते हैं, वहीं खाना बनाते हैं. आसपास से लोग मदद भी करने आ रहे हैं. कोई आर्थिक मदद कर रहा है तो कोई नैतिक मदद दे रहा है. लेकिन इनके प्रदर्शनों में कोई ज़ोर शोर से शामिल नहीं है. नेता मंत्री गए हैं मगर जाने की औपचारिकता दर्ज हो, उतने भर के लिए गए हैं. किसान चक्रव्यूह में फंसे हैं. ऐसा नहीं है कि सरकारें कुछ नहीं करती हैं लेकिन उनका करना काफी नहीं है. किसानों ने जो रचनात्मकता दिखाई है उससे उनकी बेचैनी समझ में आती है. कुछ लोग निंदा भी कर रहे होंगे कि इतना अतिवाद क्यों. कई बार करुणा दिखानी चाहिए. समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्यों कोई मुंह में चूहा दबा रहा है, ज़मीन पर दाल-भात बिछाकर खा रहा है. वो क्या कहना चाहता है, क्या पाना चाहता है. ऐसी ही ज़िद और रचनात्मकता चाहिए किसानों को अपनी समस्या से निकलने के लिए. प्रदर्शन के लिए भी और खेती के तौर तरीके बदल देने के लिए भी.... इसमे मेरा कुछ भी नहीं है, मात्र संकलन है- ध्यानाकर्षण के लिए मात्र आप सबने जरूर देखा सुना होगा. इस देश का जय जवान! जय किसान! नारा भी सुना ही होगा .....

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर