ज़ाकिर नाईक वहाबी का बहाव अवरुद्ध
भारत में अनेकों न्यूज़ चैनलों के साथ धर्म दर्शन के नाम पर कई चैनल लांच हुए हैं, जो कई बार धर्म के नाम पर अंधविश्वास का प्रसार करते रहते हैं। इसके लिए कई प्रकार के बाबा, फकीर और मैसेंजर चैनलों के स्टूडियो में अवतरित हुए हैं। इनमें से कोई न कोई डॉक्टर होता है, इंजीनियर होता है, या अन्य पेशे से जुड़े लोग होते हैं। ये लोग आराम से विज्ञान की बातों को धर्म की किताबों से साबित करते रहते हैं कि कैसे धर्म, विज्ञान से महान है।
कहीं फिजिक्स का फार्मूला आसमानी किताबों की देन बता देते हैं तो कहीं रसायन शास्त्र को वैदिक मंत्रों की देन। हम सब सभी विषयों में पारंगत तो होते नहीं, लिहाज़ा यही सोचते हैं कि सामने वाला बाबा फकीर बढ़िया बोल रहा है। ऐसे बाबाओं की एक और खूबी होती है। वो अंग्रेज़ी भी बोलते हैं। वैसे अंग्रेज़ी बोलने वाले भी ऐसे बाबाओं की चपेट में आ जाते हैं। यह प्रवृत्ति इस्लाम, हिन्दू ईसाई और अन्य धर्मों के नाम पर फ़ैली हुई है। ज़ाकिर नाईक भी पेशे से डॉक्टर रहे हैं। अंग्रेज़ी बोलते हैं। खुद को कई विषयों और कई धर्मों के ज्ञाता बताते रहते हैं। एक जीवन में अच्छे-अच्छे संत एक धर्म को नहीं समझ सके फिर भी ज़ाकिर नाईक कई धर्मों के चलते फिरते गाइड बुक जैसे अवतरित होते रहते हैं। अपना पीस चैनल भी है। ये मुंबई के रहने वाले हैं।
ज़ाकिर नाईक वहाबी इस्लाम प्रचारक हैं। वहाबी का मतलब यूं समझिये कि जो जैसा था वैसा ही आज हो की बात करने वाले। ज़ाकिर नाईक कहते हैं कि मन्नत मांगना, मज़ार पर जाना ग़ैर इस्लामी है। ज़ाकिर नाईक ओसाम बिना लादेन को आतंकवादी नहीं मानते। नाईक अमरीका को आतंकी मानते हैं और अमरीका से लड़ने वाले हर आतंकी को अपना साथी बताते हैं। मुसलमानों को आतंकी हो जाने के लिए कहते हैं। ज़ाकिर नाईक से ही कहा जाना चाहिए वो क्यों नहीं अमरीका से लड़ने चले जाते हैं। धार्मिक शुद्धिकरण की विचारधारा कई बार आकर्षक लगने लगती है। एक सनक की तरह हावी होती है और कोई बंदूक लेकर जाता है और अमजद साबरी को गोली मार देता है। गनीमत है कि उसी पाकिस्तान में अमजद साबरी के जनाज़े में लाखों लोग उमड़ आते हैं। भारत में भी केरल में बड़ा सम्मेलन हुआ जिसमें आतंक को ग़ैर इस्लामी बताया गया। जमीयत से लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक सबने आतंकवाद को ग़ैर इस्लामी कहा है। बांग्लादेश हमले पर उर्दू अखबार इंकलाब के संपादक ने लिखा कि यह कुरान पर हमला है। ज़ाकिर नाईक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि वे आईएसआईएस को ग़ैर इस्लामी मानते हैं। भारत में कई मुस्लिम धर्मगुरु और मुस्लिम सेलिब्रिटी भी जाकिर नाईक के बयान से असहमति जाता चुके हैं। कई जगहों पर विरोध रूपी प्रदर्शन हो रहे हैं। बयानबाजी हो रही है, मीडिया में खूब बहस हो रही है। ज्यादातर विरोध में हैं तो कोई कोई और खुद नाईक भी यह कह चुके हैं कि उनके बयान को गलत ढंग से पेश किया गया है।
हमें इस सत्य का सामना करना ही होगा कि दुनिया भर में धर्म के नाम पर ख़ूनी खेल चल रहा है। इसलिए मज़हब के बारे में भावुकता से सोचने का वक्त चला गया। कहीं कोई इसके नाम पर हमें सांप्रदायिक बना रहा है तो कहीं कोई आतंकवादी। कोई तो है जो हमसे खेल रहा है। ब्रिटेन, कनाडा और मलेशिया में इन पर बैन है और भारत के कई शहरों में इनके कार्यक्रमों पर रोक लगाई जा चुकी है। भारत के गृह राज्य मंत्री ने कहा है कि अगर बांग्लादेश आग्रह करेगा, तो हम नाईक को बैन कर सकते हैं। अब तो बैन लग भी चुका है।
यह भी एक तथ्य है कि नाईक की बात से कई मुस्लिम धर्मगुरु भी नाराज़ हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा है कि जो व्यक्ति यज़ीद की हिमायत कर रहा हो उससे ज़्यादा दहशतगर्द का हामी कौन हो सकता है। यज़ीद ने इमाम हुसैन को शहीद किया, उसकी हिमायत कर रहे हैं। इसका मतलब है कि आप दहशतगर्दी की हिमायत कर रहे हैं। प्रमोट कर रहे हैं। ज़ाकिर नाईक ने कहा है कि जो भी इस्लाम के दुश्मन के खिलाफ लड़ रहा है, मैं उसके साथ हूं। अगर वो अमरीका को आतंकित कर रहे हैं, जो खुद आतंकवादी है, तो मैं उनके साथ हूं। हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए।
हम सभी को आतंक के हर ठिकानों और विचारों की पहचान करनी ही चाहिए, जहां से इस जुनून को खुराक मिलती है। नौजवानों को बार-बार बताना ज़रूरी है कि हर धर्म के पास नाइंसाफी के तमाम किस्से हैं। पूरी दुनिया नाइंसाफी से भरी है। आतंकवाद उसका समाधान नहीं है। कई वर्षों से नाईक के विचार सार्वजनिक हैं, पर ऐसी बात अब उठ रही है। नाईक की समीक्षा यू ट्यूब पर खूब हुई है। उनके डार्विन थ्योरी को चैलेंज करने वाली तकरीर का किसी ने बिंदुवार चुनौती दी है।
गूगल में एक प्रसंग मिला कि श्री श्री रविशंकर और ज़ाकिर नाईक के बीच सार्वजनिक बहस हुई थी। बाद में एक वीडियो में श्री श्री रविंशकर ज़ाकिर नाईक की कई बातों को कुतर्क बताते हैं। श्री श्री ने तो उन्हें मूर्ख तक कहा है । पता नहीं उनके मूर्ख कहने का क्या मतलब है? यह बातें शायद उनसे बहस के बाद समझ में आई होगी। हो सकता है नाईक ने भी उन्हें ऐसा ही कहा होगा। वैसे धर्मगुरु मौलाना इरफान मियां फिरंगी महली ने कहा है कि नाईक के ऊपर पाबंदी लगा कर उसको जेल में ठूंस दिया जाए तो उसके लिए बहुत अच्छा होगा। ये दूसरा विकल्प है।
एक तीसरा विकल्प है। टीवी की चर्चा जिसने ज़ाकिर नाईक को प्रसिद्ध किया। अब वही टीवी उन्हें आतंकवादी बता रहा है। टीवी को एक नया चेहरा मिल गया है जिसके नाम पर वो एक तबके को ऐसे चित्रित करेगा जैसे सारे नाईक की बात सुनकर ही खाना खाते हैं। चूंकि हम सब आतंकवाद के किसी भी सोर्स को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, इसलिए आंख, कान खोलकर जाकिर नाईक की बातों की समीक्षा करनी ही चाहिए।
अब तो भारत का गृह मंत्रालय सक्रिय हुआ है और उसने पीस टी वी पर बैन लगा दिया है। पर इन्टरनेट और यु ट्यूब पर उनके अनेकों प्रवचन/भाषण मौजूद हैं जिन्हें आतंकवादी के ‘अंकुर’ सुनते होंगे और अपना ब्रेनवाश कर लेते होंगे उन्हें कैसे रोकेंगे? निश्चित ही हम सबको धर्मगुरुओं के प्रवचन को तर्क की कसौटी और विज्ञान की कसौटी पर परखने की जरूरत है। धर्म का अनुपालन कितना जरूरी है, धर्मगुरु की बातों में कितनी सत्यता है, यह सिद्ध होनी चाहिए. वैसे अनेक धर्मों/सम्प्रदायों के गुरु अपनी बात को ही श्रेष्ठ बताते हैं। वे लगातार अपने अनुयायी बढ़ाते जाते हैं। उनके अनुयायी/समर्थक कभी कभी इतने उग्र हो उठते हैं कि उन्हें सम्हालना मुश्किल हो जाता है। धर्म एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से अंध-समर्थक पैदा किये जा सकते हैं। दुनिया के बुद्धिजीवियों, समाज सेवियों, नेताओं को इन सबमे अंतर पैदा कर एक लोककल्याण या जनकल्याण में अंतर को समझना होगा। या फिर हमारे पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत हो तो की जानी चाहिए। आक्रोश फैलाना, आतंकवादी पैदा करना कभी भी सही नहीं हो सकता। हर राज्य/राष्ट्र के अपने नियम होते हैं उन्हें विश्वकल्याण की तरफ मोड़ना होगा। आज जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद दोनों गंभीर समस्या है, क्यों नहीं इस पर सर्व सम्मत विचार किया जाना चाहिए! रहन-सहन, पहनावा, खाना अलग अलग हो सकता है पर किसी की जिन्दगी से खिलवाड़! यह तो सही नहीं हो सकता। संयुक्त-राष्ट्र-संघ को जरूर ही इस पर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके। आज दुनिया आतंकवाद से कराह रही है। हमारा भारत और पड़ोसी देश भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में इन्हें किसी भी तरह से बढ़ावा देना उचित नहीं होगा। एक सर्व्सम्मत राय बननी चाहिए और उसे अमल में लाया जाना चाहिए। साथ ही हर किसी को किसी काम या ब्यवसाय में बाँध कर रखा जाना चाहिए ताकि वे अपने कर्म को ही धर्म समझे। ज्यादा इधर-उधर सोचने की जरूरत ही न पड़े। अगर बदलाव की जरूरत महसूस करे तो उसे किसी पर्यटन स्थल या धार्मिक स्थल घूमकर आ जाना चाहिए। मेरा तो यही मानना है। धर्म को पागलपन की हद तक मानना बेवकूफी ही कही जाएगी। वैसे कोई भी धर्म गलत काम को बढ़ावा नहीं देता । ये धर्मगुरु ही गलत व्याख्या कर लोगों को भड़काते रहते हैं।
सर्वे सुखिन: भवन्तु! ओम शांति शांति शांति!
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
भारत में अनेकों न्यूज़ चैनलों के साथ धर्म दर्शन के नाम पर कई चैनल लांच हुए हैं, जो कई बार धर्म के नाम पर अंधविश्वास का प्रसार करते रहते हैं। इसके लिए कई प्रकार के बाबा, फकीर और मैसेंजर चैनलों के स्टूडियो में अवतरित हुए हैं। इनमें से कोई न कोई डॉक्टर होता है, इंजीनियर होता है, या अन्य पेशे से जुड़े लोग होते हैं। ये लोग आराम से विज्ञान की बातों को धर्म की किताबों से साबित करते रहते हैं कि कैसे धर्म, विज्ञान से महान है।
कहीं फिजिक्स का फार्मूला आसमानी किताबों की देन बता देते हैं तो कहीं रसायन शास्त्र को वैदिक मंत्रों की देन। हम सब सभी विषयों में पारंगत तो होते नहीं, लिहाज़ा यही सोचते हैं कि सामने वाला बाबा फकीर बढ़िया बोल रहा है। ऐसे बाबाओं की एक और खूबी होती है। वो अंग्रेज़ी भी बोलते हैं। वैसे अंग्रेज़ी बोलने वाले भी ऐसे बाबाओं की चपेट में आ जाते हैं। यह प्रवृत्ति इस्लाम, हिन्दू ईसाई और अन्य धर्मों के नाम पर फ़ैली हुई है। ज़ाकिर नाईक भी पेशे से डॉक्टर रहे हैं। अंग्रेज़ी बोलते हैं। खुद को कई विषयों और कई धर्मों के ज्ञाता बताते रहते हैं। एक जीवन में अच्छे-अच्छे संत एक धर्म को नहीं समझ सके फिर भी ज़ाकिर नाईक कई धर्मों के चलते फिरते गाइड बुक जैसे अवतरित होते रहते हैं। अपना पीस चैनल भी है। ये मुंबई के रहने वाले हैं।
ज़ाकिर नाईक वहाबी इस्लाम प्रचारक हैं। वहाबी का मतलब यूं समझिये कि जो जैसा था वैसा ही आज हो की बात करने वाले। ज़ाकिर नाईक कहते हैं कि मन्नत मांगना, मज़ार पर जाना ग़ैर इस्लामी है। ज़ाकिर नाईक ओसाम बिना लादेन को आतंकवादी नहीं मानते। नाईक अमरीका को आतंकी मानते हैं और अमरीका से लड़ने वाले हर आतंकी को अपना साथी बताते हैं। मुसलमानों को आतंकी हो जाने के लिए कहते हैं। ज़ाकिर नाईक से ही कहा जाना चाहिए वो क्यों नहीं अमरीका से लड़ने चले जाते हैं। धार्मिक शुद्धिकरण की विचारधारा कई बार आकर्षक लगने लगती है। एक सनक की तरह हावी होती है और कोई बंदूक लेकर जाता है और अमजद साबरी को गोली मार देता है। गनीमत है कि उसी पाकिस्तान में अमजद साबरी के जनाज़े में लाखों लोग उमड़ आते हैं। भारत में भी केरल में बड़ा सम्मेलन हुआ जिसमें आतंक को ग़ैर इस्लामी बताया गया। जमीयत से लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक सबने आतंकवाद को ग़ैर इस्लामी कहा है। बांग्लादेश हमले पर उर्दू अखबार इंकलाब के संपादक ने लिखा कि यह कुरान पर हमला है। ज़ाकिर नाईक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि वे आईएसआईएस को ग़ैर इस्लामी मानते हैं। भारत में कई मुस्लिम धर्मगुरु और मुस्लिम सेलिब्रिटी भी जाकिर नाईक के बयान से असहमति जाता चुके हैं। कई जगहों पर विरोध रूपी प्रदर्शन हो रहे हैं। बयानबाजी हो रही है, मीडिया में खूब बहस हो रही है। ज्यादातर विरोध में हैं तो कोई कोई और खुद नाईक भी यह कह चुके हैं कि उनके बयान को गलत ढंग से पेश किया गया है।
हमें इस सत्य का सामना करना ही होगा कि दुनिया भर में धर्म के नाम पर ख़ूनी खेल चल रहा है। इसलिए मज़हब के बारे में भावुकता से सोचने का वक्त चला गया। कहीं कोई इसके नाम पर हमें सांप्रदायिक बना रहा है तो कहीं कोई आतंकवादी। कोई तो है जो हमसे खेल रहा है। ब्रिटेन, कनाडा और मलेशिया में इन पर बैन है और भारत के कई शहरों में इनके कार्यक्रमों पर रोक लगाई जा चुकी है। भारत के गृह राज्य मंत्री ने कहा है कि अगर बांग्लादेश आग्रह करेगा, तो हम नाईक को बैन कर सकते हैं। अब तो बैन लग भी चुका है।
यह भी एक तथ्य है कि नाईक की बात से कई मुस्लिम धर्मगुरु भी नाराज़ हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा है कि जो व्यक्ति यज़ीद की हिमायत कर रहा हो उससे ज़्यादा दहशतगर्द का हामी कौन हो सकता है। यज़ीद ने इमाम हुसैन को शहीद किया, उसकी हिमायत कर रहे हैं। इसका मतलब है कि आप दहशतगर्दी की हिमायत कर रहे हैं। प्रमोट कर रहे हैं। ज़ाकिर नाईक ने कहा है कि जो भी इस्लाम के दुश्मन के खिलाफ लड़ रहा है, मैं उसके साथ हूं। अगर वो अमरीका को आतंकित कर रहे हैं, जो खुद आतंकवादी है, तो मैं उनके साथ हूं। हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए।
हम सभी को आतंक के हर ठिकानों और विचारों की पहचान करनी ही चाहिए, जहां से इस जुनून को खुराक मिलती है। नौजवानों को बार-बार बताना ज़रूरी है कि हर धर्म के पास नाइंसाफी के तमाम किस्से हैं। पूरी दुनिया नाइंसाफी से भरी है। आतंकवाद उसका समाधान नहीं है। कई वर्षों से नाईक के विचार सार्वजनिक हैं, पर ऐसी बात अब उठ रही है। नाईक की समीक्षा यू ट्यूब पर खूब हुई है। उनके डार्विन थ्योरी को चैलेंज करने वाली तकरीर का किसी ने बिंदुवार चुनौती दी है।
गूगल में एक प्रसंग मिला कि श्री श्री रविशंकर और ज़ाकिर नाईक के बीच सार्वजनिक बहस हुई थी। बाद में एक वीडियो में श्री श्री रविंशकर ज़ाकिर नाईक की कई बातों को कुतर्क बताते हैं। श्री श्री ने तो उन्हें मूर्ख तक कहा है । पता नहीं उनके मूर्ख कहने का क्या मतलब है? यह बातें शायद उनसे बहस के बाद समझ में आई होगी। हो सकता है नाईक ने भी उन्हें ऐसा ही कहा होगा। वैसे धर्मगुरु मौलाना इरफान मियां फिरंगी महली ने कहा है कि नाईक के ऊपर पाबंदी लगा कर उसको जेल में ठूंस दिया जाए तो उसके लिए बहुत अच्छा होगा। ये दूसरा विकल्प है।
एक तीसरा विकल्प है। टीवी की चर्चा जिसने ज़ाकिर नाईक को प्रसिद्ध किया। अब वही टीवी उन्हें आतंकवादी बता रहा है। टीवी को एक नया चेहरा मिल गया है जिसके नाम पर वो एक तबके को ऐसे चित्रित करेगा जैसे सारे नाईक की बात सुनकर ही खाना खाते हैं। चूंकि हम सब आतंकवाद के किसी भी सोर्स को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, इसलिए आंख, कान खोलकर जाकिर नाईक की बातों की समीक्षा करनी ही चाहिए।
अब तो भारत का गृह मंत्रालय सक्रिय हुआ है और उसने पीस टी वी पर बैन लगा दिया है। पर इन्टरनेट और यु ट्यूब पर उनके अनेकों प्रवचन/भाषण मौजूद हैं जिन्हें आतंकवादी के ‘अंकुर’ सुनते होंगे और अपना ब्रेनवाश कर लेते होंगे उन्हें कैसे रोकेंगे? निश्चित ही हम सबको धर्मगुरुओं के प्रवचन को तर्क की कसौटी और विज्ञान की कसौटी पर परखने की जरूरत है। धर्म का अनुपालन कितना जरूरी है, धर्मगुरु की बातों में कितनी सत्यता है, यह सिद्ध होनी चाहिए. वैसे अनेक धर्मों/सम्प्रदायों के गुरु अपनी बात को ही श्रेष्ठ बताते हैं। वे लगातार अपने अनुयायी बढ़ाते जाते हैं। उनके अनुयायी/समर्थक कभी कभी इतने उग्र हो उठते हैं कि उन्हें सम्हालना मुश्किल हो जाता है। धर्म एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से अंध-समर्थक पैदा किये जा सकते हैं। दुनिया के बुद्धिजीवियों, समाज सेवियों, नेताओं को इन सबमे अंतर पैदा कर एक लोककल्याण या जनकल्याण में अंतर को समझना होगा। या फिर हमारे पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत हो तो की जानी चाहिए। आक्रोश फैलाना, आतंकवादी पैदा करना कभी भी सही नहीं हो सकता। हर राज्य/राष्ट्र के अपने नियम होते हैं उन्हें विश्वकल्याण की तरफ मोड़ना होगा। आज जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद दोनों गंभीर समस्या है, क्यों नहीं इस पर सर्व सम्मत विचार किया जाना चाहिए! रहन-सहन, पहनावा, खाना अलग अलग हो सकता है पर किसी की जिन्दगी से खिलवाड़! यह तो सही नहीं हो सकता। संयुक्त-राष्ट्र-संघ को जरूर ही इस पर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके। आज दुनिया आतंकवाद से कराह रही है। हमारा भारत और पड़ोसी देश भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में इन्हें किसी भी तरह से बढ़ावा देना उचित नहीं होगा। एक सर्व्सम्मत राय बननी चाहिए और उसे अमल में लाया जाना चाहिए। साथ ही हर किसी को किसी काम या ब्यवसाय में बाँध कर रखा जाना चाहिए ताकि वे अपने कर्म को ही धर्म समझे। ज्यादा इधर-उधर सोचने की जरूरत ही न पड़े। अगर बदलाव की जरूरत महसूस करे तो उसे किसी पर्यटन स्थल या धार्मिक स्थल घूमकर आ जाना चाहिए। मेरा तो यही मानना है। धर्म को पागलपन की हद तक मानना बेवकूफी ही कही जाएगी। वैसे कोई भी धर्म गलत काम को बढ़ावा नहीं देता । ये धर्मगुरु ही गलत व्याख्या कर लोगों को भड़काते रहते हैं।
सर्वे सुखिन: भवन्तु! ओम शांति शांति शांति!
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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