वाराणसी और हरिद्वार से एक साथ नमामि गंगे मिशन की 231 परियोजनाओं की
शुरुआत हुई। हरिद्वार में जहां उमा भारती और नितिन गडकरी ने इस योजना की शुरुआत की
तो वहीं वाराणसी में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने इस योजना की शुरुआत की। इस योजना में गंगोत्री से शुरू कर बंगाल तक गंगा
के किनारे घाटों, नालों का गंदा पानी, स्वच्छता आदि पर ध्यान दिया जाएगा। नवम्बर 2014 में उमा भारती
ने वाराणसी में एक बड़ा जलसा कर के कहा था कि "गंगा का काम 3 साल में दिखने
लगेगा और 48 दिनों में
योजनाएं ‘टेक आफ’ ले लेंगी। लेकिन दो साल गुजर गए जमीन पर गंगा सफाई को लेकर कुछ
नजर नहीं आया। हां इस बीच कई मीटिंगों और योजनाओं पर काम करने की बात जरूर सामने
आई थी। पर कोई ठोस योजना गंगा किनारे नहीं
दिख रही थी। अब 2 साल बाद नमामि
गंगे प्रोजेक्ट के तहत 231 योजनाओं का शुभारम्भ हुआ है। जिसमे एक बार फिर उमा भारती 2018 तक जमीन पर
दिखाई देने की बात कह रही हैं।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट की 231 योजनाओं में
गंगोत्री से शुरू होकर हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबद, बनारस, गाजीपुर, बलिया, बिहार में 4 और बंगाल में 6 जगहों पर पुराने
घाटों का जीर्णोद्धार, नए घाट, चेंजिंग रूम, शौचालय, बैठने की जगह, सीवेज ट्रीटमेंट प्लान्ट, आक्सीडेशन प्लान्ट
बायोरेमेडेशन प्रक्रिया से पानी के शोधन का काम किया जाएगा। इसमें गांव के नालों को भी शामिल किया गया
है। साथ ही तालाबों का गंगा से जुड़ाव पर
क्या असर होता है उसे भी देखा जाएगा। इसके
प्रोजेक्ट डायरेक्टर कहते हैं कि "गंगा एक्शन प्लान का सारा फोकस सफाई पर था,
इसमें कोई बुराई नहीं थी। उसमे अविरलता की बात नहीं थी, बायोडायवर्सिटी की बात
नहीं थी, उसके अंदर सैनिटेशन की बात नहीं थी, हमने इसमें कई चीजें जोड़ी हैं।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर नमामि गंगे योजना में अविरलता की बात
तो कह रहे हैं, पर पूछने पर उसकी कोई योजना नहीं बता पाए। सिर्फ गंगा के किनारे
उसके सौंदर्य की ही बात कह पाए। जबकि आज
गंगा की निर्मलता की कौन कहे उसके बचाने की बात सामने आ रही है। गौरतलब है कि गंगा में हर साल 3000 MLD सीवेज डालते हैं, जिसमें बनारस में
300 MLD सीवेज डाला जाता
है। जो आज भी वैसे ही डाला जा रहा है।
गंगा में डाले जाने वाले सीवेज में हम सिर्फ 1000 MLD का ही ट्रीटमेंट
कर पाते हैं, बाकी 2000 MLD सीवेज ऐसे ही बह रहा है जिससे गंगा में गंगा का पानी ही
नहीं है। यही वजह है कि जानकार कहते हैं कि पहले गंगा को बचाइए फिर उसकी सुंदरता
को देखिए। प्रो बी. डी. त्रिपाठी जो विशेषज्ञ सदस्य नेशनल मिशन क्लीन गंगा के हैं, साफ़ कहते हैं
कि गंगा की जो लांगीट्यूडिनल कनेक्टिविटी
खत्म होती जा रही है। गंगा नदी न होकर तालाब का रूप लेती जा रही है। थोड़ा सा
प्रदूषण डालने में उसकी पाचन क्षमता समाप्त होती जा रही है। तो उसके लिए गंगा में
पानी छोड़ने की कौन योजना है, उसे प्रायरिटी पर लेना चाहिए तभी हमारी समस्या का
समाधान हो पाएगा।
गौरतलब है कि गंगा की कुल लम्बाई 2525 किलोमीटर की है।
गंगा का बेसिन 1.
6 मिलियन वर्ग किलोमीटर का है, 468. 7 बिलियन मीट्रिक पानी साल भर में प्रवाहित होता
है जो देश के कुल जल श्रोत का 25. 2 प्रतिशत भाग है। इसके बेसिन में 45 करोड़ की आबादी
बसती है। साथ ही गंगा पांच राज्यों से होकर गुजरती है। इसे राष्ट्रीय नदी भले ही
घोषित किया गया हो पर यह राज्यों की मर्जी से ही बहती है। इसलिये इसके रास्ते में
कई अड़चनें ज़रूर हैं। पर जिस गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत 1986 में हुई। जिस पर
अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। बाद में
वर्ष 2009
में राष्ट्रीय
गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना भी
गई जिसके चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं।
इस परियोजना के लिए 2600 करोड़ रुपये वर्ल्ड बैंक से कर्ज ले कर कई योजनाओं की शुरुआत
की गई। लेकिन गंगा का मामला जस का तस है। इसी प्राधिकरण ने भविष्य के लिए 7000 करोड़ के नए
प्रोजेक्ट की रूपरेखा भी बना रखी है। बावजूद इसके गंगा की हालात वही है। अब एक बार
फिर उसे 231 योजनाओं की सौगात
मिली है, लेकिन इसमें भी गंगा में पानी छोड़ने की कोई बात नहीं है। ऐसे में गंगा
क्या बिना पानी के ठीक हो पाएगी यह देखने वाली बात होगी।
उपर्युक्त जितनी बातें की गयी है यह सब सरकारी घोषणाओं और
आंकड़ों के अनुसार है। सरकारी घोषणाओं का अर्थ और क्रियान्वयन का हस्र हम सभी अच्छी
तरह जानते हैं। गंगा एक धार्मिक आस्था से भी जुड़ी है। पुराणों के अनुसार भगवान के
बिष्णु के अंगूठे से निकली गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में सुरक्षित थी. राजा सगर के वंशज भगीरथ के अथक प्रयास और शिव जी की कृपा से
गंगा कैलाश पर्वत से होते हुए पृथ्वी पर आई और बंगाल की खाड़ी में जा मिली, जिससे कपिल मुनि की क्रोधाग्नि से जले राजा सगर के ६०,००० पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। आज भी गंगा मोक्षदायिनी ही
बनी हुई है। हिन्दू धर्म अनुयायी के सभी मृत शरीर की अस्थियाँ गंगा में ही विसर्जित की
जाती है, मुक्ति के लिए। आस्था की इस नदी के वाराणसी,
प्रयाग, पटना, मोकामा, सुल्तानगंज और गंगा सागर में अलग अलग महत्व है। हम अपने पूर्वजों की
अस्थियाँ गंगा में प्रवाह कर ही संतुष्ट होते हैं। हम सभी अपनी पूजन सामग्री,
मूर्तियाँ आदि भी गंगा में ही प्रवाहित कर अपने आप को पुण्य के भागीदार मान लेते
हैं। इसे रोकने
में प्रशासन या सरकार शायद ही सफल हो पाए पर बाकी प्रदूषण के माध्यमों को जरूर
नियंत्रित किया जा सकता है।
पतित पावनी गंगा आज स्वयं प्रदूषण की शिकार होकर मैली हो गयी है। अब इसे साफ़ कर या पुनर्जीवित कर निर्मल गंगा बनाने का अथक प्रयास जारी है। गंगा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण, इसके प्रवाह में अवरोध, कल-कारखानों का प्रदूषित ठोस और अवशिष्ट तरल पदार्थ हैं, इसके अलावा इनके किनारे बसे शहरों, गांवों के नालों का प्रवाह भी, जो बिना संशोधित किये गंगा में छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा विभिन्न पशुओं, मनुष्यों का शव भी है, जिसे सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है।
गंगा को साफ़ करने के अनेक प्रयास हुए, बहुतों ने तपस्या की, अनशन किये, आरती की और गंगा के किनारे का भ्रमण किया, सौगंध खाए, गंगा एक्सन प्लान बनाई, इसे राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया. करोड़ों के वारे न्यारे हुए, नतीजा वही ढाक के तीन पात। अब एक बार पुन: जोर शोर से अभियान चला है। श्री मोदी जी को गंगा माँ ने ही बनारस में बुलाया था। उन्होंने अपनी ऐतिहासिक विजय के बाद गंगा माँ की आरती की और इसे निर्मल बनाने क बीरा उठा लिया है। जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने भी पूर्व में काफी प्रयास किया है। अब उन्हें यह महत्पूर्ण जिम्मेदारी भी दे दी गयी है कि वे अपने प्लान में सफल हों।
बहुत सारे मीडिया घराने भी इस प्रयास में आगे निकले हैं, जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सबको साथ लेने के लिए, आखिर जन-जागरूकता ही तो परिवर्तन लाती है। बिना जन-जागरूकता, और जन-भागीदारी के यह संभव नहीं है। आइये हम सब यह प्रण लें कि गंगा को प्रदूषित नहीं करेंगे और दूसरे जो प्रदूषित कर रहे हैं उन्हें रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे। विदेशों में और भारत के अन्य राज्यों में भी नदियों को साफ़ करने के प्रयास सफल हुए हैं। तो सबसे पवित्र नदी गंगा को क्यों नहीं स्वच्छ और निर्मल बनाया जा सकता है? मोदी जी भी कहते हैं, अगर देश के सवा सौ करोड़ लोग चाह लें तो कुछ भी संभव हो सकता है। आस्था और धर्म तो सबसे पहले हमारे मनोमस्तिष्क में जगह बनाते हैं। गंगा आस्था और धर्म दोनों में मौजूद है, है न? बहुत सारे कवियों और गीतकारों ने भी माँ गंगा पर रचनाएँ रची हैं और हम सभी उनका गुण गाते हैं। इसलिए गंगा तेरा पानी अमृत, झर झर बहता जाए! जय माँ गंगे! नमामि गंगे!
पतित पावनी गंगा आज स्वयं प्रदूषण की शिकार होकर मैली हो गयी है। अब इसे साफ़ कर या पुनर्जीवित कर निर्मल गंगा बनाने का अथक प्रयास जारी है। गंगा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण, इसके प्रवाह में अवरोध, कल-कारखानों का प्रदूषित ठोस और अवशिष्ट तरल पदार्थ हैं, इसके अलावा इनके किनारे बसे शहरों, गांवों के नालों का प्रवाह भी, जो बिना संशोधित किये गंगा में छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा विभिन्न पशुओं, मनुष्यों का शव भी है, जिसे सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है।
गंगा को साफ़ करने के अनेक प्रयास हुए, बहुतों ने तपस्या की, अनशन किये, आरती की और गंगा के किनारे का भ्रमण किया, सौगंध खाए, गंगा एक्सन प्लान बनाई, इसे राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया. करोड़ों के वारे न्यारे हुए, नतीजा वही ढाक के तीन पात। अब एक बार पुन: जोर शोर से अभियान चला है। श्री मोदी जी को गंगा माँ ने ही बनारस में बुलाया था। उन्होंने अपनी ऐतिहासिक विजय के बाद गंगा माँ की आरती की और इसे निर्मल बनाने क बीरा उठा लिया है। जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने भी पूर्व में काफी प्रयास किया है। अब उन्हें यह महत्पूर्ण जिम्मेदारी भी दे दी गयी है कि वे अपने प्लान में सफल हों।
बहुत सारे मीडिया घराने भी इस प्रयास में आगे निकले हैं, जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सबको साथ लेने के लिए, आखिर जन-जागरूकता ही तो परिवर्तन लाती है। बिना जन-जागरूकता, और जन-भागीदारी के यह संभव नहीं है। आइये हम सब यह प्रण लें कि गंगा को प्रदूषित नहीं करेंगे और दूसरे जो प्रदूषित कर रहे हैं उन्हें रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे। विदेशों में और भारत के अन्य राज्यों में भी नदियों को साफ़ करने के प्रयास सफल हुए हैं। तो सबसे पवित्र नदी गंगा को क्यों नहीं स्वच्छ और निर्मल बनाया जा सकता है? मोदी जी भी कहते हैं, अगर देश के सवा सौ करोड़ लोग चाह लें तो कुछ भी संभव हो सकता है। आस्था और धर्म तो सबसे पहले हमारे मनोमस्तिष्क में जगह बनाते हैं। गंगा आस्था और धर्म दोनों में मौजूद है, है न? बहुत सारे कवियों और गीतकारों ने भी माँ गंगा पर रचनाएँ रची हैं और हम सभी उनका गुण गाते हैं। इसलिए गंगा तेरा पानी अमृत, झर झर बहता जाए! जय माँ गंगे! नमामि गंगे!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
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